Tuesday 12 January 2016

#श्री राम जय राम जय-जय राम#.....
यकीन मानिए.... ‪#‎LIVE‬#.......‪#‎अन्तर्राष्ट्रीय‬ संबोधन#....प्रत्येक भारतीय का सम्पूर्ण विश्व को.....‪#‎राम‬-राम#....‪#‎भूलभुलैया‬#...हरगिज नहीं......मात्र गति का अनुभव....COPY, PASTE & EDIT……तत्पश्चात......Save, Send, Publish....जीवन को....”कोरा कागज़ के स्थान पर भरा-पूरा अखबार”.....मान सकते है....तब हम स्वयं ‘संपादक’ सिद्ध होते है....सही फैसले लें, साहसी फैसले लें और सही समय पर लें….‪#‎विनायक‬-प्रबंधन#....मांडवाली हरगिज नहीं....गूढ़ रहस्य....कोई उपदेश नहीं.....मात्र स्वयं का अनुभव......तर्क-वितर्क...अहम्-पहलु...और यदि इस पहलु को सकारात्मक बनाने की जिसने भी पहल करी...बस वही कहलाता है..."जो जीता, वही सिकंदर"...और वही कहलाता है... "मुकद्दर का सिकंदर"...युद्ध के मैदान में भाग्य का कार्य बहुत कम तथा पुरुषार्थ का कार्य बहुत ज्यादा हो सकता है... पुरुषार्थ हमारे "आसन" को पुष्ट करने का एक-मात्र माध्यम या सेतु है.....निश्चिन्त रूप से हमेशा के लिए...मजबूत आसन का एक-मात्र आधार-"मजबूत पुरुषार्थ".....पायथागोरस के सिद्धांत के मुताबिक धर्म , विज्ञानं एवम् साहित्य.....किसी भी समकोण त्रिभुज के लंब, आधार और कर्ण हो सकते है....कोई जल्दबाजी नहीं,...आराम से पढियेगा....आखिर आराम शब्द में #राम# है....ठीक जैसे ‪#‎विश्राम‬# में.....और सम्पूर्ण चर्चा मर्यादा-पुरुषोत्तम ‪#‎श्री‬-राम# के श्री-चरणों में समर्पित.....सहज #विनायक-प्रस्तुति#....जय हो...सादर नमन.....तो क्या हुआ यदि post यदि जरा-सी लम्बी होती है तो....शब्द जरा ज्यादा होते है तो....आमने-सामने....सीधी बातचीत का अहसास भी तो है....जय हो.....कुछ अलग हट कर....देखने की...करने की....सुनने की....कहने की इच्छा होती है.....कब ?....क्यों ?....कैसे ?....भुत, भविष्य, वर्तमान.....उच्च, समकक्ष, माध्यम...यह तो “विनायक-चर्चा” है....मात्र आनन्द के लिए प्रयास.....’विनायक-परिश्रम’....मात्र अनुभव ही आधार...मात्र संस्कार का धरातल.....तैरने में ज्यादा परिश्रम लगता है....पसीना आने का भी झंझट नहीं....और पसीने को कोई ताकत रोक नहीं सकती....बस 'गुरु-आदेश'...मात्र प्रसार....सात्विक सकल....निरन्तर.....जय हो...सादर नमन....हार्दिक स्वागतम...मात्र अनुभव करने के लिए....कब ? क्यों ? कैसे ?....आसमान में पक्षी तथा वायुयान दोनों की दक्षता होती है, मगर समुद्र की गहराई तो गोताखोर ही मापने की हिम्मत कर सकता है....समझ में आये, न आये....परन्तु आनन्द अवश्य आ सकता है......कठिन को आसान समझना सहज नहीं होता, परन्तु आनन्द को अनुभव करना सहज के अतिरिक्त कुछ और नहीं हो सकता है....जैसे तैरने की कला स्थायी...वैसे ही सभी ‪#‎post‬# भी स्थायी....ग्यारंटी ‪#‎पोस्टमेन‬# की....मात्र शब्दों का आदान-प्रदान....अनादि से अनन्त...सहज स्व-सत्संग....सुनिश्चिंत आनन्द...निश्चिन्त प्रारम्भ...विनायक शुभारम्भ....ॐ गं गणपतये नम:....”इस सुचना-क्रांति के युग में अधिकांश कार्य कम्प्यूटर पर होता है...दरअसल में इंटरनेट पर किसी भी विषय पर आवश्यक्ता से अधिक सामग्री उपलब्ध है...और कुछ मित्रो के लिए यह 'अति सर्वत्र वर्जयते' के रूप में महसूस हो सकता है...और यह बात भी सही है कि सामान्य ज्ञान बढ़ाने के लिए नियमित अध्ययन अति आवश्यक है...विनायक समाधान का मुख्य कार्य है..."आमने-सामने की चर्चा" का आयोजन....नियमित कार्यक्रम....दोनों पक्ष की सुविधानुसार.....वर्ष 2007 से निरंतर....गुरु आदेशानुसार मात्र सात्विक कर्म...लगभग 17,000 हजार सामान्य चर्चाओ का सामान्य अनुभव का सामान्य प्रसार...इस संकल्प के साथ कि प्रत्येक शब्द मात्र सकारात्मक सिद्ध हो...जय हो....पधारो म्हारा ‪#‎देश‬#......‪#‎मालवा‬ का रंगीला शहर ‪#‎इंदौर‬#......प्रत्येक ‪#‎चित्र‬# ध्यान से देखियेगा....प्रत्येक ‪#‎अप्रत्यक्ष‬# प्रश्न का उत्तर चित्र स्वयं देने का प्रयास करेगा...एक विनायक-मित्र के रूप में.......माँ अहिल्या की शिक्षा-नगरी में सभी मित्रो का हार्दिक स्वागत....आभावान मित्रों की पहल से आज #इंदौर# सम्पूर्ण राष्ट्र में चर्चित है....और यह गूंज ‪#‎विश्व‬--स्तर# तक ‪#‎बेशक‬# जा रही है.....इंदौर में राजवाडा स्थित इमामबाडे(बड़े साहब का स्थान..जहा पर ताजियों का प्रदर्शन होता है) के बाहर एक साईन-बोर्ड लगा है....”लोगो की मदद करते जाओ...बड़े आदमी बन जाओगे”...और यह नौ वर्षो का निरन्तर अनुभव रहा कि यह आसान कार्य बाकि जटिल कार्यो से कम जटिल है...शायद इसीलिए आसान है...और हमेशा रहेगा...हमेशा-हमेशा के लिए..."जा को राखें साइयां, मार सके ना कोई"....'वाहे गुरु' को समर्पित शब्द प्रसाद के रूप में सभी मित्रो को सादर आवंटित या वितरित....ना हार का डर, ना जीत का लालच....धर्म में मात्र पीछे ना हटने का सहज प्रयास करना होता है, स्वतः आगे ले जाने का कार्य तो धर्म स्वयं ही सहज करता है...यही सामान्य बात, सामान्य रूप से कहने का प्रयास किया गया है....प्रपंच या व्यवसाय कदापि नहीं....असंभव....'गुरु दीक्षा' के प्रसाद या पुरस्कार को बेचना संभव नही है...आप महसूस कर सकते है कि प्रत्येक चर्चा में समाचार पत्रों का, पत्रिकाओं का, टेलीविजन का, राजनीति का, समाज का जिक्र सिर्फ और सिर्फ धर्म के दायरे में ही किया गया है...तथा धर्म को सम्प्रदाय से पूर्ण मुक्त रखा गया है....अर्थात चर्चा मात्र आनंद के लिए....प्रत्येक शब्द में निमंत्रण है...और प्रत्येक चित्र में चरित्र है...अर्थात..."गुरु कृपा ही केवलम्"....भले पधारो सा.....खोदा पहाड़ निकली चुहिया या फिर गहरे पानी पैठ....एक तरफ पहाड़ तो दूसरी तरफ समुद्र...आखिर बात खजाने की है....कहते है खजाना सहज सार्वजनिक नहीं होता है....गोपनीयता का घूँघट धन का संस्कार माना जा सकता है.....”धन, स्त्री तथा भोजन पर्दे (curtain) योग्य होते है”....यह कहावत किसी भी बुजुर्ग की हो सकती है....केवल सहज अनुभव...परन्तु यह भी विचारणीय है कि बात एकान्त की भी हो सकती है....तीनो पहलु सहज श्रृंगार या विश्राम का सहज अधिकार रखते है.....हीरा सदा के लिए हो न हो....परन्तु धर्म सदा के लिए है.....सदैव ‪#‎स्थायी‬#....कोई भी साधारण कार्य आसान हो सकता है......हर कार्य को आसान समझना आसान है....कोई कार्य आसान हो या ना हो....परन्तु किसी भी कार्य को आसान बनाने के लिए....अनेक आसान प्रयत्न करने में कोई कठिनाई नहीं.....कोई प्रयत्न लगातार करने से बारम्बार आसानी का अनुभव बहुत आसान कार्य है.....ज़माना एक खजाना है....इस खजाने में आसान को खोजना.....साधारण कार्य....खोजने का अपना एक अलग आनन्द....आसान या कठिन ?......यह स्वयं का निर्णय....‪#‎भूतकाल‬#....जो बीत गया....‪#‎वर्तमान‬#...जो उपस्तिथ है...”नजर के सामने, जिगर के पास”.....‪#‎भविष्य‬# वह जिसे जानने के लिए...मात्र उत्सुकता ही शेष.....वर्ना भुत तो सिर्फ अवशेष....और मजे की बात....सम्पूर्ण घटनाक्रम में....पकड़ने-जकड़ने...का झंझट हरगिज नहीं....या छोड़ने की दादागिरी नहीं....समय अन्त तक.....घडी रूकती है तो मुँह बन्द होने का डर या बातों को कहने-सुनने का अवसर खोने का डर...और कैलेण्डर के पन्ने टटोलने या पलटने की आदत का क्या होगा ???....मात्र भुत-काल की व्याख्या सम्भव....परन्तु बात तो वर्तमान या भविष्य की...यही सुनने की आदत...और हम है कि चलती घडी को भी छेड़ने का हुनर रखते है...पाँच मिनट....आगे या पिछे....यह जानते हुए भी कि हम चाह कर भी स्वयं से झूठ नहीं बोल सकते है...जैसे ‪#‎पंच‬-तत्व# स्थायी है...वैसे समय वास्तविक सत्य है.....वर्तमान के रूप में.....अंतिम सांस तक साथ निभाता है.....भला ‪#‎घड़ी‬# को कौन रोक पाया ?.....घड़ी की चाभी मात्र सिमित समय के लिए नियमित घुमाने के लिए होती है.....इसके अतिरिक्त इसका कोई उपयोग नहीं.....आदेश हेतु मजाक या पछताने का मलाल नहीं....समझौता भी चाल देख कर ही तय माना जाता है.....और चाल से अभिप्राय मात्र क्रमचय-संचय ही हो सकता है....और क्रमचय-संचय में सरकने वाला सरल लय-ताल का सामंजस्य हो तो ‪#‎सेवा‬# सार्थक हो सकती है.....और सेवा सशुल्क न हो कर, निशुल्क हो तो उत्तम....तब निशुल्क से अभिप्राय ‪#‎प्रभु‬-सेवा# ही सम्भव है....मात्र #पंच-नाम# ही प्रारम्भ....सुबह की सैर की बात नहीं....शुद्ध रूप से सुबह के सम्बोधन की...दोस्तों को JUST FOR YOU कहने के साथ just BECAUSE of YOU कहना भी अनिवार्य....जब ‪#‎radio‬#पर गाना बजता है.....यारी है ईमान मेंरा यार मेरी जिन्दगी.....यार ऐसा मिल गया दिल हमारा खिल गया.....तब गाना सुनना पड़ता है....ध्यान से.....कब ?क्यों ?कैसे ? का उत्तर जानने के लिए.....भगवान के प्रति आस्तिक तथा नास्तिक दोनों हुआ जा सकता है...पर मित्र को मित्र मानने में कोई हर्ज नहीं....यह सब आमने-सामने का खेल..... ‪#‎शत‬-प्रतिशत सहिष्णु#..... #INTOLERANCE या असहिष्णुता कदापि नहीं#....सहज श्री विष्णु समान ख्यात हस्तियों का जीवन बयान करता है कि सर्वाधिक सुरक्षित वह भी आध्यात्मिक दृष्टि से मात्र #भारत-देश# हो सकता है.....अति-प्राचीन, सामान्य-पहलु....हर व्यक्ति मात्र साधारण ही हो सकता है....परन्तु किये गए प्रयास या कार्य से वह असाधारण कहला सकता है....सम्मान की धारा....यत्र-तत्र-सर्वत्र.....Ordinary may be Extra-Ordinary…..Just due to mind….train the #MIND#, to mind the #TRAIN#.....सिर्फ मस्तिष्क की विचार-धारा......मात्र पंच-अक्षर....पंचर की बात नहीं.....डर लगता है.....मात्र हवा भरने की बात....फुल की पंखुड़ी भी #प्रभु-प्रताप# की प्राप्ति का अधिकार रखती है....याद रखियेगा....दमा-दम मस्त कलन्दर.....#FOREVER#....#TOP-SECRET#.....जो सेक्रेटरी के पास हो सकता है...और सेक्रेटरी मात्र एक #पद# हो सकता है....आसन पर स्वयं का पद.....तब शुरू होती है....सेवक की सेवा.....प्रार्थना....प्रभु-प्रताप हेतु प्रभु-सेवा....और उस प्रभु की सेवा जो हमारे मन-मस्तिष्क में अर्थात वायुमंडल में प्रभुत्व का भाव जगाये....मात्र उत्तम क्रमचय-संचय....जो सिद्ध करे.....एक छोटी सी परन्तु लाख टके की...कभी न ख़त्म होने वाली टेक....एक तेरा ही सहारा....राम से बड़ा राम का नाम....अर्थात बरकत....भावनाओं का सम्मान होता है....किन्तु #भाव# तो भीतर के ही #कद्र-दान#.....और दान भी निशुल्क दायरे में उपस्तिथ हो तो....मात्र समय-दान....और इस #दान# का एक ही उपयोग, प्रयोग, सदुपयोग.....श्रवण, किर्तन, चिंतन, मनन......स्वयं वायुमंडल में सकारात्मक भाव उत्पन्न करने की ग्यारंटी स्वयं की हो तो स्वयं को ग्यारंटीड-माल कह सकते है....भावनाए सरपरस्ती के अधिनियम में उत्पन्न होती है....और समुद्र में ज्वार-भाटा उपस्तिथ होता रहता है....जैसे खेत में खरपतवार....परन्तु नाव पार लगाने के लिए....उपस्तिथ है....पतवार....जैसे शौर्य के प्रदर्शन के लिए....उपस्तिथ है तलवार....और नकारात्मक शक्तियों के लिए काफी है, एक ही ललकार....#खबरदार#.....और #प्रभु-प्रताप# की बारिश है स्वीकार....शत-प्रतिशत.....अक्षय.....#राम-राम सा#....पांच अक्षर.....पांच पीढ़ी की ग्यारंटी नहीं....परन्तु मात्र एक मित्र भी अन्य पंच मित्रो को कहे चाहे वह कोई भी रूप हो....RADIO के....सच-मुच की रेडियोवाणी....मच-मच नहीं..... श्रवण, किर्तन, चिंतन, मनन....मात्र #आकाशवाणी#....हेलो-हेलो....#राम-राम# सा.....#ससम्मान#.....जय हो....सादर नमन....बस यही है---#विनायक-अभिवादन#....# i am HEALTHY RADIO#....#स्वयं को सहज सिद्ध करना अत्यन्त सरल#....महान गणितज्ञ पायथागोरस का मानना था कि अंकों और रेखाओं के आधार पर विश्व की घटनाओं को हम सुलझा सकते हैं....पायथागोरस के सिद्धांत के मुताबिक किसी भी समकोण त्रिभुज के लंब और आधार के फलों का योगफल कर्ण के वर्गफल के बराबर होता है….धर्म , विज्ञानं एवम् साहित्य.....किसी भी त्रिभुज के लंब, आधार और कर्ण हो सकते है....और धर्म वह स्थाई आधार सिद्ध होता है कि लंब और कर्ण अर्थात विज्ञानं एवम् साहित्य को उत्कृष्टता के साथ-साथ जड़त्व प्रदान करता है......धर्म हमें सहज आहार, विहार तथा सदाचार के संस्कार प्रदान करता है.....विज्ञानं हमे भौतिक संसाधन प्रदान करता है...साहित्य हमें श्रवण, किर्तन, चिंतन तथा मनन प्रदान करता है....सहज और अदभुत समीकरण यह है कि धर्म वह आधार है कि आवश्यकता अनुसार लंब और कर्ण की भूमिका प्रदर्शित कर सकता है....मात्र आस्था एवम् प्रार्थना के आधार पर...सामाजिक त्रिकोण में धार्मिक आधार का अपना महत्त्व है..... #शत-प्रतिशत सहिष्णु#..... #INTOLERANCE या असहिष्णुता कदापि नहीं#.... #LIVE#.......#अन्तर्राष्ट्रीय संबोधन#....#राम-राम# का जवाब #राम-राम# ही संभव है...वायुमंडल को अनुभव करने की शर्त....आमने-सामने...#राम-राम सा#.....जब तक #सूरज# , #चाँद# रहेगा....तब तक किसका नाम रहेगा ?....मालुम नहीं....पर #राम# से बड़ा #राम# का नाम...."राम की चिड़िया-राम का खेत"....और #राम-राम# का रहस्य.....बड़ा ही गूढ़.....और चार कंधे मतलब आमने-सामने....और चार कंधे सम्पूर्ण #यात्रा# के साक्षी....और #मन की यात्रा# के साक्षी स्वयं शब्द मात्र #यात्री# के रूप में....#ईश्वर# सत्य है... .#राम# से बड़ा #राम# का नाम....और सर्वगुणसंपन्न युग्म में प्रधान तो #माता# ही हो सकती है....#सीताराम#....शाश्वत #सत्य#......कंधे का झुकना आसान है क्योंकि फल लगने के बाद पेड़ का झुकना लाज़मी है......तो क्या #कमान# के समान तनना उससे भी आसान है ?....और पेड़ का सबसे मजबूत अंग #तना# होता है.......#सीना# तान कर चलना गर्व की बात है....और सर कटा सकते है परन्तु सर झुकेगा नहीं.....और जोश और उमंग के लिये....एक उत्तम नाद....#राम-राम#....जटाओं का जिनका स्त्रोत मात्र #रोम-छिद्र#.....मात्र स्थान परिवर्तन से....सम्पूर्ण नामकरण....और रोम-रोम में #राम#.....#राम# से बड़ा #राम# का नाम....#राम# की चिड़िया #राम# का खेत.....#राम-राम# का जवाब #राम-राम# ही संभव है...और #राम-राम# का रहस्य.....बड़ा ही गूढ़....जैसे पुराना गुड.....और प्रसन्न रहने के लिए सही होना चाहिए #MOOD#.....प्राचीन काल से....long ago.....forever #LOGO#....आमने-सामने...#राम-राम# सा.....दो बार “राम राम" बोलने के पीछे बड़ा गूढ़ रहस्य....हिन्दी की शब्दावली में.....‘र' २७(27th) वां शब्द है....‘आ’ की मात्रा २ दूसरा(2nd).....‘म' २५ वां(25th) शब्द है.....अब तीनो अंको का योग करें तो (२७+२+२५=५४) अर्थात एक “राम” का योग ५४ हुआ…..इसी प्रकार दो “राम-राम” का कुल योग १०८ होगा....और १०८ बार जाप करना हमारे धर्म, संस्कृति और पुराणों मे पवित्र कहा गया है....अत: “राम-राम” के उच्चारण द्वारा हमें १०८ मनके की माला जपनें जैसा पुण्य प्राप्त होता है..अंक नौ(9-NINE)...सिद्ध-पूर्णांक....अक्षय अर्थात विनायक-अंक माना जाता है....(54=5+4=9)....(108=1+0+8=9)...(1008=1+0+0+8=9).....साधारण तथ्य--''जो #उर्जा# को जागृत करे"....यही है 'विनायक-योग'.....’आमने-सामने’ एक दुसरे को “राम-राम” कहने के लिए....उत्तम 'वैदिक-योग'....सम्पूर्ण चर्चा का "संपर्क-सूत्र'...#विनायक-सूत्र#....#9165418344#........'9+1+6+5+4+1+8+3+4+4'='45'="9" अर्थात सहज अक्षय समीकरण....इस समीकरण में सम्पूर्ण अंक-शास्त्र सिर्फ तीन अंक गायब है.....0, 2, 7... और (0+2+7=9)....जो अप्रत्यक्ष है, वही प्रत्यक्ष है.....जो प्राप्त है, वहीं पर्याप्त है....ऐसा कहा जाता है कि #राम# नाम पापो का नाशक और मन को शांत करने वाला है...वास्तव मे ऐसा है क्योकि मंत्र शास्त्र के अनुसार "रा" अग्नि का बीज मन्त्र है जो कि पापो को भस्म करने को अग्नि के सिद्धान्त पर काम करता है और इसी तरह "म" चन्द्र का जो मन को शीतल और शांत करके शान्ति देता है....और कोई नेटवर्क मात्र इसलिए सफल होता है क्योंकि उसमे मित्रो की संख्या में इज़ाफा होता रहता है....और मित्र बनने-बनाने में ज्यादा विषमता कठिनाइयों को आमंत्रित कर सकती है....और सूक्ष्म प्रपंच भी मित्रता की जड़ में अशुद्धि का समावेश कर सकता है....और यह सदाबहार महावाक्य है कि #यारी है ईमान मेरा, यार मेरी जिन्दगी#...जमीन पर बैठने का फायदा यह कि गिरने का डर कदापि नहीं.....जमीन से जुड़ने का मतलब अपनों को भूलने की भूल हरगिज नहीं….‘खड्ग सिंह के खड़कने से खड्कती है खिड़कियाँ....और खिड़कियों के खड़कने से खडकता है खडग सिंह’...मजा तो बहुत आता है परन्तु समझने का प्रयास अवश्य करना होगा....”HOW MANY TIMES” ???.....चिंता की कोई बात नहीं....सब ईश्वरीय ‘देख-रेख....We Demand….क्षमा, रक्षा, न्याय, व्यवस्था....’जाको राखे साईयाँ, मार सके ना कोय’.... #JUST for YOU#.......बड़े #होर्डिंग# की लागत ज्यादा हो सकती है, परन्तु छोटे #होर्डिंग# तो कोई भी बना सकता है....#just BECAUSE of YOU#......#मुद्रा या रोकड़# से महत्वपूर्ण #%#.....#विनायक-परिश्रम#....एक ही प्रार्थना..."सर्वे भवन्तु सुखिनः" एवम् एक ही आधार "गुरू कृपा हिं केवलमं"....आप सभी आमंत्रित है....समय अपना-अपना....और आदान-प्रदान हो जाए....तो सहज आमने-सामने.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव.....हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)…







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