Saturday 8 October 2016

घर मे गहरी नींद का राज़ सरहद पर ही हो सकता है....जहाँ पर हर एक पल कंधे से कन्धा मिलने के लिये...खरीदने-बेचने का कोई झंझट नही....सौदा बाजी की बात नही....मुनाफा ढूंढने की फ़जीहत नही....तब तो "खुदा-गवाह"....और अगर फिर भी मन साक्ष्य के बगैर संतुष्ट ना हो तो एक आखरी रास्ता...एक ही प्रार्थना...हे प्रभु आनंददाता, ज्ञान हमको दीजिये...शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये...और समझ में आ जावे तो...ALL IS WELL...कृपा-दृष्टि बनाये रखना....यह प्रार्थना दिव्य-दृष्टिवान ईश्वर के समक्ष सभी करते है....और यह दृष्टि हृदय मे अनुभूति के रूप मे समा जाय तो....आनंद अपरंपार....
'परमप्रकाश रूप दिन राती.....
नहिं कछु चहिअ दिआ घृत बाती'....
परम-प्रकाश.....न दिन, न रात, न उदय, न अस्त....सम, शान्त, शीतल, एकरस आनन्दाभास.....अनंत सत्य, अनंत चैतन्य, अनंत आनंदस्वरूप....उस पुर (नगर) मे...जो अत्यधिक सुन्दर है, संपूर्ण वायु एवं प्रकाश से परिपूर्ण....स्वयं अपने-आप मे संपूर्ण... "नवद्वारे पुरे देहि"..... तब रोम-रोम मे राम...प्रत्येक रोम-छिद्र द्वार का प्रारूप....और इनमें क्रमचय-संचय करने हेतु संपूर्ण शरीर मे बहत्तर हजार दौ सौ एक नाड़ियाँ विद्यमान है....और प्रतिनिधि के रूप मे तीन नाड़ियाँ मुख्य है... (1)...इडा...वाम-पक्ष की चंद्र-नाड़ी... (2)...सुषुम्ना....मध्य-पक्ष... (3)...पिंगला...दक्षिण-पक्ष की सूर्य-नाड़ी... और यह शाश्वत सत्य कि शल्य-क्रिया के उपरान्त भी इन्हें देखना असम्भव.....कुल मिला कर शरीर मे तीन प्रकार की नाड़ियाँ...वायुवाहिनी, रक्तवाहिनी, ज्ञानवाहिनी....किन्तु आनंदवाहिनी नाड़ी तो "सुषुम्ना" ही है...समस्त नाड़ियों की जननी....
जीत किसके लिए, हार किसके लिए
ज़िंदगीभर ये तकरार किसके लिए....
जो भी आया है वो जायेगा एक दिन
फिर ये इतना अहंकार किसके लिए…
समय अपना-अपना....और आदान-प्रदान हो जाए....तो सहज आमने-सामने.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव.....हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)…


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