Saturday 8 October 2016

आखरी रास्ता...एक ही प्रार्थना...हे प्रभु आनंददाता, ज्ञान हमको दीजिये...शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये...और समझ में आ जावे तो...ALL IS WELL.....और सब-कुछ समझ कर यह जरूर समझ मे आता है कि....सबसे ज्यादा फायदा संत बनने के बाद....एक संत के पीछे अनेक....बाकायदा अनेकोनेक....तब संत कहे उसे, जो सुनता है, सबकी....अपनी ही धुन मे रहता हूँ, बिल्कुल तेरे जैसा हूँ.....बात प्रचलन की होती है तो......सनातन धारा में संतो का सामीप्य अनिवार्य संस्कार माना जा सकता है....संस्कारों की यात्रा पूर्णतया संगति पर आत्म-निर्भर....समय-समय पर सन्त अथवा साधक उत्पन्न होते आये है....एक नहीं, अनेक.....सबकी प्रकृति एक समान......धार्मिक शिक्षण, सामान्य भोजन, व्यायाम, पठन और दार्शनिक अध्ययन से युक्त जीवन का अनुसरण करना.....संगीतमय-जीवन को एक आवश्यक आयोजन कारक मानना......मित्रों के साथ नियमित रूप से मिल-जुल कर भजन गाने का नियम.....आत्मा या शरीर की बीमारी का इलाज करने के लिए वीणा (lyre) का उपयोग....याद्दाश्त को बढ़ाने के लिए सोने से पहले और जागने के बाद में कविता का पठन......इतनी सी यात्रा साधना की....हर दिन नया सवेरा...हर रात के बाद सुबह....चमत्कार का सरल नियम...
धन तभी सार्थक हैं जब धर्म भी साथ हो.....
विशिष्टता तभी सार्थक हैं जब शिष्टता भी साथ हो......
सुंदरता तभी सार्थक है, जब चरित्र भी शुद्ध हो.......
संपत्ति तभी सार्थक है, जब स्वास्थ्य भी अच्छा हो..
शील, विनय, आदर्श, श्रेष्ठता…….
तार बिना झंकार नहीं……..
शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी,
यदि नैतिक आधार नहीं है……..
कीर्ति कौमुदी की गरिमा में…….
संस्कृति का सम्मान न भूलें……
निर्माणों के पावन युग में,
हम चरित्र निर्माण न भूलें.......
Happiness comes when you believe in what you are doing,
know what you are doing, and love what you are doing......
”सदा दिवाली संत की आठों प्रहर आनन्द....निज स्वरुप में मस्त है छोड़ जगत के फंद".....जय हो.....सादर नमन..

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