Saturday 11 June 2016

Vinayak Samadhan: जय हो....आइये जरा पता लगाते है...कि ईश्वर कहाँ रहत...

Vinayak Samadhan: जय हो....आइये जरा पता लगाते है...कि ईश्वर कहाँ रहत...: जय हो....आइये जरा पता लगाते है...कि ईश्वर कहाँ रहता है और क्या चाहता है ???....SIMPLE.....सात्विक सत्य है कि स्वच्छता में ईश्वर का वास है...
जय हो....आइये जरा पता लगाते है...कि ईश्वर कहाँ रहता है और क्या चाहता है ???....SIMPLE.....सात्विक सत्य है कि स्वच्छता में ईश्वर का वास है....तत्पश्चात आवास, निवास, उपवास, विश्वास....प्रति मास नही बल्कि प्रतिदिन...प्रतिदिन नहीं बल्कि प्रतिपल....मात्र सात्विक धारा....और सत्व तत्व में लिप्त होना धर्म को स्वीकार है....निगेटिव या पोजिटिव होने के लिये जिन्दगी बहुत लम्बी है....काटे नहीं कटते...दिन और रात....परन्तु सात्विक होने के लिये प्रति-पल हमेशा स्वागत करता रहता है, यह कहते हुये कि...जब आंख खुले, तब सवेरा....बीती ताहि बिसार दे...यह याद रखते हुये कि जीवन मात्र एक पल का.....जिन्दगी कोई वस्तु नहीं कि एक पल में मुट्ठी में कैद हो जाये....हाथ खुला रहना पड़ता है....गिनती और पहाड़ो को याद रखने के लिये...फायदे के लिए पहाडा...और हर सांस में गिनती....जाग्रत अवस्था की टीका-टिप्पणी...NEITHER NEGATIVE... NOR POSITIVE... JUST SIMPLE, ORDINARY, EASY...SOMETHING LIKE ॐ.......ॐकार....पूर्ण सात्विक....कर्म में टिपण्णी....क्यों करे हम उपाय ?....जबकि हम कार्य होने के प्रति आश्वस्त होना चाहते है...शत-प्रतिशत...तब हम पुनः यह ध्यान करे कि जो उपाय हम तमाम कीट-नाशक उपाय हम करते है...वे हमारे लिये भी सर्वप्रथम हानिकारक हो सकते है...तब टूट-फुट की जवाबदारी अंततः कौन ओढ़े ??....सम्पूर्ण ज्योतिष शास्त्र मात्र आकलन पर आधारित है....होनी को टालने के मुड में प्रकृति कम ही रहती है...शुरुआत बेहतर और सुरक्षित हो तो गलतियां स्वतः कम होती जायेगी...और आटे का नमक कहता है...ना कम, ना ज्यादा....शायद यही है...परम प्रेम का वादा...मात्र स्वयं का अनुभव...सहज सिद्धि....गणितज्ञ के लिए मात्र गणना ही चमत्कार....कोई फर्क नहीं...अबकी बार किसकी सरकार ?....बस सदैव रहे आनन्द...जय गजानन्द...बारम्बार....हर बार...आबाद रहे घर-बार...जँहा मात्र स्वयं की सरकार....यँहा प्रत्येक सात्विक-कर्म स्वीकार....न जीत का लालच, न हार का डर....सुविधाओं के फेर में हम इस दुनिया-दारी में गुम हो जाते है....तब गुम-शुदा की तलाश या गुमनाम.....तब कोई तो हो जो FIR अर्थात्....’रपट दर्ज करे’.....और गाँव की पुलिया पर लिखा है कि पानी ज्यादा होने पर “रपट पार करना मना है”... नई शुरुआत में हम सायकल को किसी हेलीकाप्टर से कम नहीं समझते है....वह तो जब गाडी पंचर होती है तो समझ में आता है कि हेलीकाप्टर तो सर के ऊपर उड़ता है...चलता है पेट्रोल से, मगर उड़ता हवा में है....और सायकल चलती हवा से, मगर चलती है जमीन पर...गुरु-मन्त्र के आधार पर किसी भी मामूली गैरेज का 'छोटू' आखिर एक न एक दिन "उस्ताद" बन ही जाता है....और मामूली 'गैरेज' को खास 'कारखाने' में बदल सकता है....जहाँ एक 'छोटू' नहीं अनेक "छोटे-सरकार" चाहिये... मित्र बनने के लिए ‪#‎आमने‬-सामने# की कला में पारंगत होना स्वयं का दायित्व.....शत-प्रतिशत.....जिसका एक मात्र मुख्य विनायक आधार--'गुरु कृपा हि केवलम्'.....समस्त सागरों के पानी की स्याही....समस्त जंगलों के पेड़ो की कलम....और सम्पूर्ण धरती मात्र एक कागज़ के समान....पर्याप्त है या नहीं ???....यह तो लिखने वाला ही जाने....इस अनुभव, आभास या अनुभूति के साथ....."गुरु-गुण लिख्यो न जाय"....'हरि कथा अनन्ता'....सबसे मोटी पुस्तक....जिसमे एक ही प्रार्थना......"सर्वे भवन्तु सुखिनः"......बस मात्र यही....भक्ति, इबादत, अरदास.....”‪#‎विनायक‬-समाधान#” @ #91654-18344#...‪#‎vinayaksamadhan‬# ‪#‎INDORE‬#/‪#‎UJJAIN‬#/‪#‎DEWAS‬#




Wednesday 8 June 2016

जय हो.....‪#‎हिंदू‬# धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता है…..मात्र गलतफहमी या हकीकत क्या है ?..... वेदों में 33 कोटि देवी देवता का सहज उल्लेख.....शायद यही कारण कि देवी देवताओ कि संख्या 33 करोड हो सकती है....और शायद के स्पष्टीकरण के एवज में ‪#‎कोटि‬# शब्द का अध्ययन आवश्यक..... • कोटि • दर्जा • पद • प्रवर्ग • वर्ग • विभाग • श्रेणी... ‪#‎समान‬-वर्ग#.....category......ordinate......order.....rate.....grade......degree.....rank......quality......denomination.....ten million.... कोटि उन्नयन.... upgrade..... कोटि निर्धारण.... gradation... कोटिज्या.....cosine..... secant....कोटिपूरक अक्षांश....colatitude.... कोटिस्पर्शज्या.... cotangent.......जबकि सीधे-सीधे कोटि का सरल अर्थ ‪#‎श्रेणी‬# या प्रकार होता है.....संस्कृत में कोटि शब्द का अर्थ प्रकार होता है....और हिंदी मे करोड....और वेदों में 33 कोटि का अर्थ 33 करोड़ नहीं बल्कि 33 प्रकार तथा कोटि का आसान वर्गीकरण...उच्च, समकक्ष, निम्न....वेदो का तात्पर्य 33 कोटि अर्थात 33 प्रकार के देवी देवता से है...33 कोटि देवो का जिक्र हर कहीं मिल जाता है.....ईश्वर देवताओं का भी देवता है और इसीलिए वह महादेव कहलाता है.....‪#‎हिन्दू‬# ग्रंथो में प्रकृति पूजा को प्रधानता दी गयी है.....क्योकि प्रकृति से ही मनुष्य जाति है ना की मनुष्य जाति से प्रकृति है अतः प्रकृति को धर्म से जोड़ा जाना और उनकी पूजा उपयुक्त है यही कारण है कि सूर्य, चन्द्र, वरूण, वायु, अग्नि को देवता माना गया है... 33 कोटि अर्थात श्रेणी के देवताओ में.....8 वसु.....(पृथ्वी, जल, वायु , अग्नि, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्र.....धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभाप), जिनमे सारा संसार निवास करता है......10 जीवनी शक्तियां और 1 जीव अर्थात ग्यारह रूद्र.....प्राण (प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त , धनञ्जय ), ये तथा 1 जीव..... हर, बहुरूप, >यम्बक, अपराजिता, वृषाकपि, शम्भु, कपर्दी, रेवत, म्रग्व्यध, शर्व, कपाली.... 12 आदित्य अर्थात धाता, मित, अर्यमा, शुक्र, वरूण, अंश, भग,विवस्वान,पूषा,सविता, त्वष्टा, बिष्णु.....यथा वर्ष के 12 महीने.... 2 सक्रिय देव... इन्द्र ,अश्विनी कुमार....यथा ‪#‎विद्युत्‬# तथा ‪#‎यज्ञ‬#....चक्रतीर्थ के स्वामी......महामृत्युंजय....महामृत्युंजय मंत्र के 33 अक्षर में.... महर्षि वशिष्ठ....की दृष्टि में.... 8 वसु 11 रुद्र और....12 आदित्य, 1 प्रजापति तथा 1 षटकार हैं...इन तैंतीस कोटि देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ....महामृत्युंजय मंत्र से......निहीत होती है,.....अत्यधिक उपयोगी.... निरंतर किये जाने वाले निस्वार्थ कर्म.....और इन 33 देवताओं का स्वामी परमपिता परमात्मा....परमानन्द....स्वयंभूः.....# महादेव#....जिसका सर्वोत्तम नाम ‪#‎ओ३म‬# है.....‪#‎ॐ‬#....रामायण और राम चरित मानस में अंतर मात्र यही है कि रामायण का अर्थ है राम का मंदिर, राम का घर....राम की चिड़िया, राम का खेत...जब हम मंदिर जाते है तो जाने के लिए अनेक नियम....एक समय पर जाना होता है, नहाना पडता है, खाली हाथ नहीं जाते कुछ फूल, फल साथ लेकर जाना होता है. साफ सुथरा होकर जाया जाता है.....और मानस जैसे मस्तिष्क अर्थात सरोवर, सरोवर में ऐसी कोई शर्त नहीं होती, समय की पाबंधी नहीं होती, कोई भेद नहीं होता ,कोई भी हो ,कैसा भी हो ? और व्यक्ति में स्वच्छता की लालसा जाग्रत हो तभी सरोवर में स्नान करने जाता है.माँ की गोद में कभी भी कैसे भी बैठा जा सकता है....इसलिए जो शुद्ध हो चुके है वे रामायण में चले जाए.....और जो शुद्ध होना चाहते है ....वे राम चरित मानस में आ जाए.राम कथा जीवन के दोष मिटाती है’’’......प्रस्तुत चित्रों से किसी भी चमत्कार की कोई उम्मीद नहीं....क्योंकि बाबा कहते है....करने से होता है.....सर्व-श्रेष्ठ सनातन सुन्दर नियम....प्रतिदिन का प्रारम्भ....प्रातः स्नान....वायु-स्नान से जल-स्नान...चित्र की गवाही....मन की आवाज...मन में लहर तरंग के माध्यम से….
"रामचरित मानस एहिनामा, सुनत श्रवन पाइअ विश्रामा"
राम चरित मानस तुलसीदास जी ने जब किताब पर ये शब्द लिखे तो
आड़े (horizontal)में रामचरितमानस ऐसा नहीं लिखा, खड़े में लिखा (vertical)
‪#‎राम‬
‪#‎चरित‬
‪#‎मानस‬......‪#‎प्रसादी‬-वितरण#......नेवैध्यम...पहचान या शान....स्वयं का निर्णय....और व्यायाम भूखे पेट लाजमी, सिद्धि भी भूखे पेट ही आती है......और धर्म उपवास की अनुमति तथा शक्ति देता है....और शक्ति भोजन से आती है....भजन में शक्तिशाली की तालियाँ बजती है....तब एक ही आगाज़.....सत्यमेव जयते....स्वयं को पवित्र मानना ही होगा....न हार का डर, न जीत का लालच....पुर्णतः निरपेक्ष....मात्र निरन्तर सापेक्षता...मात्र समक्ष होने के लिये....मात्र शब्दों का आदान-प्रदान....कश्तियाँ किनारों तक सुरक्षित पहुचाने के लिए....सिर्फ मेहनत में ईमानदारी चाहिए....और हर इबादतगाह में लिखा है....रहमत तेरी, मेहनत मेरी....मेहनत की ऐशगाह में आनन्द के सिवाय कुछ और...हरगिज नहीं....इश्क सूफियाना.....स्वयं में परिवर्तन, हर स्थितियों में संभव.....‪#‎विनायक‬# प्रारम्भ....जीवन की गति का अनुभव....COPY, PASTE & EDIT……तत्पश्चात......Save, Send, Publish....हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS).

Vinayak Samadhan: यह मान कर कि प्रत्येक भारतीय ज्ञानी है.....शुरू से...

Vinayak Samadhan: यह मान कर कि प्रत्येक भारतीय ज्ञानी है.....शुरू से...: यह मान कर कि प्रत्येक भारतीय ज्ञानी है.....शुरू से शुरुआत......अ- से - अनार.........ज्ञ- से - ज्ञानी a- से - apple.........z- से – zebra....
यह मान कर कि प्रत्येक भारतीय ज्ञानी है.....शुरू से शुरुआत......अ- से - अनार.........ज्ञ- से - ज्ञानी
a- से - apple.........z- से – zebra.....यानी शुरुआत दोनों भाषा में एक फल से होती है और अंत मे हिन्दी आपको ज्ञानी बनाकर छोड़ती है, और अंग्रेजी में ज़ेब्रा एक प्रकार का विचित्र पशु का नाम होता है....सबसे अलग.....भीड़ से अलग....भेद वाली चल नहीं.....और इन दोनों कि जन्म माता .....संस्कृत भाषा का रहस्य – संस्कृति.....संस्कृत भाषा विश्व की प्राचीन भाषा....देव भाषा....आइये जानते हैं संस्कृत के रहस्य.....दुनिया की पहली पुस्तक की भाषा होने के कारण संस्कृत भाषा को विश्व की प्रथम भाषा मानने में कहीं कोई संशय की गुंजाइश नहीं....सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता स्वयं सिध्द......संस्कृत भाषा अन्य भाषाओ की तरह केवल अभिव्यक्ति का साधन मात्र ही नहीं....अपितु मनुष्य के सर्वाधिक संपूर्ण विकास की कुंजी भी है.....
महर्षि पाणिनि....महर्षि कात्यायिनि और योग शास्त्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि.....इन तीनों महर्षियों ने बड़ी ही कुशलता से योग की क्रियाओं को भाषा में समाविष्ट किया है....यही इस भाषा का रहस्य है.....जिस प्रकार साधारण पकी हुई दाल को शुध्द घी में जीरा; मैथी; लहसुन; और हींग का तड़का लगाया जाता है;तो उसे संस्कारित दाल कहते हैं.....
घी ; जीरा; लहसुन, मैथी ; हींग आदि सभी महत्वपूर्ण औषधियाँ हैं.....ये शरीर के तमाम विकारों को दूर करके पाचन संस्थान को दुरुस्त करती है.....ठीक यही बात संस्कारित भाषा संस्कृत के साथ सटीक बैठती है.....संस्कृत में निम्नलिखित चार विशेषताएँ हैं जो उसे अन्य सभी भाषाओं से उत्कृष्ट और विशिष्ट बनाती हैं....
१ अनुस्वार (अं ) और विसर्ग(अ:)....
संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण और लाभ दायक व्यवस्था है, अनुस्वार और विसर्ग। पुल्लिंग के अधिकांश शब्द विसर्गान्त होते हैं —
यथा- राम: बालक: हरि: भानु: आदि।
और नपुंसक लिंग के अधिकांश शब्द अनुस्वारान्त होते हैं—
यथा- जलं वनं फलं पुष्पं आदि।
अब जरा ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि विसर्ग का उच्चारण और कपालभाति प्राणायाम दोनों में श्वास को बाहर फेंका जाता है....अर्थात् जितनी बार विसर्ग का उच्चारण करेंगे उतनी बार कपालभाति प्रणायाम अनायास ही हो जाता है....जो लाभ कपालभाति प्रणायाम से होते हैं, वे केवल संस्कृत के विसर्ग उच्चारण से प्राप्त हो जाते हैं....उसी प्रकार अनुस्वार का उच्चारण और भ्रामरी प्राणायाम एक ही क्रिया है....भ्रामरी प्राणायाम में श्वास को नासिका के द्वारा छोड़ते हुए भौंरे की तरह गुंजन करना होता है, और अनुस्वार के उच्चारण में भी यही क्रिया होती है....अत: जितनी बार अनुस्वार का उच्चारण होगा , उतनी बार भ्रामरी प्राणायाम स्वत: हो जावेगा।कपालभाति और भ्रामरी प्राणायामों से क्या लाभ है? यह बताने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि स्वामी रामदेव जी जैसे संतों ने सिद्ध करके सभी को बता दिया है.....
जैसे हिन्दी का एक वाक्य लें- ” राम फल खाता है“इसको संस्कृत में बोला जायेगा- ” राम: फलं खादति”....राम फल खाता है ,यह कहने से काम तो चल जायेगा ,किन्तु राम: फलं खादति कहने से अनुस्वार और विसर्ग रूपी दो प्राणायाम हो रहे हैं....यही संस्कृत भाषा का रहस्य है....संस्कृत भाषा में एक भी वाक्य ऐसा नहीं होता जिसमें अनुस्वार और विसर्ग न हों.....अत: कहा जा सकता है कि संस्कृत बोलना अर्थात् चलते फिरते योग साधना करना
२- शब्द-रूप
संस्कृत की दूसरी विशेषता है शब्द रूप....विश्व की सभी भाषाओं में एक शब्द का एक ही रूप होता है,जबकि संस्कृत में प्रत्येक शब्द के 25 रूप होते हैं.....जैसे राम शब्द के निम्नानुसार 25 रूप बनते हैं.....
यथा:- रम् (मूल धातु)
राम: रामौ रामा:
रामं रामौ रामान्
रामेण रामाभ्यां रामै:
रामाय रामाभ्यां रामेभ्य:
रामत् रामाभ्यां रामेभ्य:
रामस्य रामयो: रामाणां
रामे रामयो: रामेषु
हे राम! हेरामौ! हे रामा:!.......ये 25 रूप सांख्य दर्शन के 25 तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं......जिस प्रकार पच्चीस तत्वों के ज्ञान से समस्त सृष्टि का ज्ञान प्राप्त हो जाता है, वैसे ही संस्कृत के पच्चीस रूपों का प्रयोग करने से आत्म साक्षात्कार हो जाता है.....और इन 25 तत्वों की शक्तियाँ संस्कृतज्ञ को प्राप्त होने लगती है।
सांख्य दर्शन के 25 तत्व निम्नानुसार हैं.....
आत्मा (पुरुष)
(अंत:करण 4 ) मन बुद्धि चित्त अहंकार
(ज्ञानेन्द्रियाँ 5) नासिका जिह्वा नेत्र त्वचा कर्ण
(कर्मेन्द्रियाँ 5) पाद हस्त उपस्थ पायु वाक्
(तन्मात्रायें 5) गन्ध रस रूप स्पर्श शब्द
( महाभूत 5) पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश
३- द्विवचन
संस्कृत भाषा की तीसरी विशेषता है...द्विवचन....सभी भाषाओं में एक वचन और बहु वचन होते हैं जबकि संस्कृत में द्विवचन अतिरिक्त होता है....यह द्विवचन बहुत ही उपयोगी और लाभप्रद है.....जैसे :- राम शब्द के द्विवचन में निम्न रूप बनते हैं:- रामौ , रामाभ्यां और रामयो:.....इन तीनों शब्दों के उच्चारण करने से योग के क्रमश: मूलबन्ध ,उड्डियान बन्ध और जालन्धर बन्ध लगते हैं, जो योग की बहुत ही महत्वपूर्ण क्रियायें हैं
४ सन्धि
संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है....सन्धि.....ये संस्कृत में जब दो शब्द पास में आते हैं तो वहाँ सन्धि होने से स्वरूप और उच्चारण बदल जाता है....उस बदले हुए उच्चारण में जिह्वा आदि को कुछ विशेष प्रयत्न करना पड़ता है....ऐंसे सभी प्रयत्न एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति के प्रयोग हैं....”इति अहं जानामि” इस वाक्य को चार प्रकार से बोला जा सकता है,....और हर प्रकार के उच्चारण में वाक् इन्द्रिय को विशेष प्रयत्न करना होता है।
यथा:- १ इत्यहं जानामि।
२ अहमिति जानामि।
३ जानाम्यहमिति ।
४ जानामीत्यहम्।
इन सभी उच्चारणों में विशेष आभ्यंतर प्रयत्न होने से एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति का सीधा प्रयोग अनायास ही हो जाता है....जिसके फल स्वरूप मन बुद्धि सहित समस्त शरीर पूर्ण स्वस्थ एवं नीरोग हो जाता है....इन समस्त तथ्यों से सिद्ध होता है कि संस्कृत भाषा केवल विचारों के आदान-प्रदान की भाषा ही नहीं ,अपितु मनुष्य के सम्पूर्ण विकास की कुंजी है....यह वह भाषा है, जिसके उच्चारण करने मात्र से व्यक्ति का कल्याण हो सकता है....इसीलिए इसे देवभाषा और अमृतवाणी कहते हैं......अतः अधिकांश मन्त्र संस्कृत भाषा में पाए जाते है.....इश्क सूफियाना.....स्वयं में परिवर्तन, हर स्थितियों में संभव.....‪#‎विनायक‬# प्रारम्भ....जीवन की गति का अनुभव....COPY, PASTE & EDIT……तत्पश्चात......Save, Send, Publish....हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS).



Vinayak Samadhan: #100 % प्रायोगिक#....‪#‎सनातन‬-सत्य#....JUST ‪#‎IN...

Vinayak Samadhan: #100 % प्रायोगिक#....‪#‎सनातन‬-सत्य#....JUST ‪#‎IN...: #100 % प्रायोगिक#.... ‪#‎ सनातन‬ -सत्य#....JUST ‪#‎ INTERNATIONAL‬ #....आजमा कर देखने वाली बात....यदि धर्म को सहजता से समझा जाएँ तो....शुद...
#100 % प्रायोगिक#....‪#‎सनातन‬-सत्य#....JUST ‪#‎INTERNATIONAL‬#....आजमा कर देखने वाली बात....यदि धर्म को सहजता से समझा जाएँ तो....शुद्ध रूप से सम्मिश्रण या योग....शुभ कर्म का प्रेम तथा करुणा के साथ योग....और पुनः धर्म की उत्पत्ति या चाहत या प्रतिफल शुभ-कर्म ही सम्भव है...पुनरावृत्ति में धर्म हमेशा संलग्न....मात्र प्रोत्साहन या चेतावनी हेतु......सिवाय इसके कुछ और नहीं....और इसके सिवाय कुछ अलग हट कर होता है तो वह प्रभुत्व का प्रपंच ही संभव है....अर्थात कर्म में मन तथा वचन की ईमानदारी से भागीदारी हो....और कर्म, शुभ स्वत: कहलायेगा.....बेशक....यक़ीनन...जब प्रावधान हो इनका....शत-प्रतिशत....क्षमा, रक्षा, न्याय, व्यवस्था.....चादर के चार छौर......और सुना जाता है कि चादर की लम्बाई उतनी ही ठीक, जितने कि पैर---यहाँ इमानदारी है.......मतलब चादर देख कर पावं पसारना चाहिये—यहाँ शुद्ध आध्यात्मिकता.....और पावं पसारने के बाद चादर की साइज़ के बारे में सोचा तो नींद गायब.....और धर्म इसे स्वीकृत नहीं करता है.....धर्म तो सिर्फ एक पहलु को जानता है.....आध्यात्म....इसे अपनाने का एक ही रास्ता.....सरलता के साथ शुभ-कर्म जारी रहे....करुणा और प्रेम स्वत: जाग्रत होंगे....इस तरह हमारा कर्म और शुद्ध हो जायेगा....और जैसे ही शुभ कर्म बढ़ता जाएगा....आध्यात्मिकता स्वत: बढती जायेगी.....बस यही उपाय है धार्मिक कहलाने का.....परन्तु मन में अभी भी संशय है कि धार्मिक कौन ?....तब बड़ा ही सरल सा उत्तर है....पूजा-पाठ तथा धार्मिक आयोजन में रूचि रख कर भाग लेने वाला....सरल बनने का आसान शौक, सम्पूर्ण सहज.....परन्तु मात्र इतनी सी बात पर शुभ-कार्य की परिभाषा संपन्न नहीं हो जाती है....अशुभ कार्य करने वाले भी धार्मिक हो सकते है.....यहाँ थोड़ा सा अंतर या भेद या फर्क नज़र आता है....सरल बनने का आसान शौक परन्तु पश्चाताप या प्रायश्चित के तौर पर.....क्या वास्तव में शुभ कार्य नितांत आवश्यक है.....तब यह सत्य है कि खाली हाथ ही जाना है....साथ कुछ नहीं जाता है....फिर भी परीक्षा में प्रश्न है....OUT OF COURSE….सोचो, साथ क्या जाएगा ?....मात्र सर खुजाने से उत्तर आता है.....कर्म....अच्छे तथा बुरे....दोनों.....हम दो, हमारे दो....हमारे और ईश्वर के सामने हमारे दोनों कर्म....और यह बात सोलह आने सही है कि....शुभ कार्य सिर्फ करने से ही होता है....आजमा कर देखने वाली बात.....आत्म ज्ञान की कला सिर्फ धर्म के आश्रय में....कहीं और संभव नहीं.....बकलम खुदा.....खुद कहे......राज़ की बात....मै अपने हाथों से इस दुनिया की तक़दीर (DESTINY OF THE WORLD) लिखता हूँ.....और जब तरस आता है तेरे जैसे बेचारों पर....जो मात्र सौ वर्षों में अनन्त अनुभव प्राप्त करना चाहते है....और सौ वर्ष सृष्टि के सामने जय ऊँट के मुह में जीरा......और जीवन को कहा जाता है पानी का बुलबुला.....और सभी प्राणियों में मानव मात्र चुलबुला.....तब चेतना कहती है, प्राण को....तब MIND SPEAKS WITH BODY THROUGH SENSES….और क्या कहती है ?.....हाथी में है हाथी तू....और कीड़ी में कीड़ी तू....हाथियों में कभी बहस नहीं कि कौन छोटा ?---कौन बड़ा ?....मनुष्य को उसके प्रश्न का उत्तर......कीड़ी में है कीड़ो तू.....कीड़ी में है कीड़ी तू....और चींटी में भी छोटो तू.....भले ही कौड़ी-कौड़ी माया जोड़ी.....उच्च, समकक्ष तथा मध्यम...निम्न-स्तर हेतु चर्चा नहीं....निम्न तो प्राण-रहित और स्तर अर्थात जागृति....और जागृति के लिये प्राण के पक्ष में प्रार्थना होती है....प्राण का एकमात्र पक्ष है, जाग्रत अवस्था....प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष या सापेक्ष.....पूर्ण निरपेक्ष.....कहत कबीर....सुनो, भाई साधो...प्रकृति कहती है....”तू रंग शर्बतों का, मै मीठे झील का पानी”....और गिरगिट के रंग के समान.....इस जीवन की यात्रा में साधन अनेक, पर यात्री के नाम पर....तू का तू.....YOU & ONLY YOU….यात्रा का नियम है कि हम कहाँ है ? और कहाँ जाना चाहते है ?...एक अच्छे यात्री की कोई तय योजना नहीं होती, सिवाय इसके कि वह कहीं पहुंचने के लिए भी हड़बड़ी में नहीं होता......दूसरों को जानना ज्ञान है, स्वयं को जानना आत्मज्ञान है....प्रकृति कभी जल्दबाजी नहीं करती, फिर भी सारी चीजें पूरी हो जाती हैं.....एक चलती हुई चींटी, एक ऊँघ रहे बैल से अधिक काम करती है...जो खुद पर विश्वास रखता है, वही खुद को प्रकाशित कर पाता है....यह शुद्ध रूप से....स्वयं का निर्णय हो सकता है....सोचने वाला, तू का तू.. धरपकड़ नहीं....मारपकड़ नही.....किसी प्रकार की अकड़-धकड़ नहीं...मात्र पकड़.....मित्रता के लिये जरुरी है—मजबूत जोड़........"विनायक समाधान" @ 91654-18344...(इंदौर/उज्जैन/देवास)...हार्दिक स्वागत.....विनायक कामना की पूर्ति हेतु विनायक प्रार्थना....एक मात्र मुख्य विनायक आधार--'गुरु कृपा हि केवलम्' ...एकमात्र विनायक उद्देश्य--'सर्वे भवन्तु सुखिनः'...भले पधारो सा.....खम्मा घणी…




Vinayak Samadhan: जय हो...सादर नमन... सम्पूर्ण अभियान के पावन माध्यम...

Vinayak Samadhan: जय हो...सादर नमन... सम्पूर्ण अभियान के पावन माध्यम...: जय हो...सादर नमन... सम्पूर्ण अभियान के पावन माध्यम प्रभु श्री..."विनायक"....मंगलमूर्ति, बुद्धिदाता....पूर्ण सहज...पूर्ण सात्विक...
जय हो...सादर नमन... सम्पूर्ण अभियान के पावन माध्यम प्रभु श्री..."विनायक"....मंगलमूर्ति, बुद्धिदाता....पूर्ण सहज...पूर्ण सात्विक....विनायक समाधान....विनायक रेखाएं...विनायक शब्द....विनायक चर्चा...विनायक जिज्ञासा....विनायक प्रश्न...विनायक उत्तर...विनायक गणना...विनायक उपासना...विनायक यंत्र...विनायक निमंत्रण...विनायक मित्र...विनायक वायुमंडल....विनायक उपाय...विनायक गति...विनायक उन्नति...विनायक अनुभूति...विनायक अहसास...विनायक एकांत...विनायक अध्ययन...विनायक आनंद...विनायक संतुष्टि..विनायक मार्गदर्शन...विनायक प्रोत्साहन..विनायक प्रार्थना....और इसी तारतम्य में विनायक अभियान हेतु उपरोक्त सभी का विनायक क्रमचय-संचय....निरंतर...वर्ष 2007 से... विनायक-मित्रो से सहज “विनायक-वार्तालाप”...अर्थात विनायक पुनरावृत्ति....’विनायक चर्चा’...विनायक शुरुआत अर्थात अंत तक विनायक आनंद की कामना...इसी विनायक कामना की पूर्ति हेतु विनायक प्रार्थना....एक मात्र मुख्य विनायक आधार--'गुरु कृपा हि केवलम्' ...एकमात्र विनायक उद्देश्य--'सर्वे भवन्तु सुखिनः'....उत्तम 'वैदिक-योग'....सम्पूर्ण चर्चा का "संपर्क-सूत्र'..."विनायक-सूत्र"...."91654-18344"...'9+1+6+5+4+1+8+3+4+4'='45'="9" अर्थात सहज अक्षय समीकरण....इस समीकरण में सम्पूर्ण अंक-शास्त्र सिर्फ तीन अंक गायब है.....0, 2, 7... और (0+2+7=9)....जो अप्रत्यक्ष है, वही प्रत्यक्ष है....यह बात अलग है कि दोनों को जानने के लिए समीकरण हल करना अनिवार्य है...सात्विक तथा सहज परिश्रम...'विनायक-परिश्रम'.......हार्दिक स्वागत......समय अपना-अपना....और आदान-प्रदान हो जाए....तो सहज आमने-सामने.....प्रणाम.... ....इस 'प्रण' के साथ कि 'प्रमाण' में 'प्राण' बसे...Just Because Of You..




Vinayak Samadhan:

विश्व-व्यापी विचार...घर-घर की कहानी....बचपन की कहानी, नानी की जुबानी....युग्म परिपूर्ण भले ही न हो, परकोटे हमेशा मजबूत होना चाहिये....दोनों एक से ज्यादा...युग्म अर्थात तमाम सम्बन्ध....परिवार, व्यवसाय, शिक्षा, धर्म, समाज......सभी संलग्न....और परकोटे मात्र कुछ ही....उच्च, समकक्ष, मध्यम, निम्न....महल हो या झोंपड़ी...सर पर छत के अतिरिक्त कुछ नहीं....और इस आश्रय में युग्म तथा परकोटे के अतिरिक्त भला क्या हो सकता है ?.....दोनों के सम्मिश्रण का माध्यम है....आहार, विहार, सदाचार..... और कुछ मित्र इन दोनों परिधियों में उभयनिष्ठ सिद्ध हो सकते है.... तब नोंक-झोंक...श्रवण, किर्तन, चिंतन, मनन में व्याधि...बाधा....दोष....रोग...आकर्षण.....यत्र-तत्र-सर्वत्र....तब मत भेद भी सम्भव, क्योंकि #मतदान# में सिर्फ एक ही मत स्वीकृत होता है......और अधिकार के तहत होता है.. किन्तु मन के भेद की बात शत-प्रतिशत धर्म के विरुद्ध.....और धर्म का आश्रय प्राप्त करने का एक ही रास्ता.....आखरी रास्ता....धर्म से परिचय का रास्ता....जो स्वयं को बनाना पड़ेगा.....जमींन को समतल बनाने का कार्य सहज और सार्वजनिक हो तो सुन्दरता स्वतः प्रकट होती है.....ठीक मन को बनाने के समान....मुड तो कोई भी बना सकता है... पर मन को बनाने के लिये....आकृति तो बनानी पड़ती है.....भले....मन ही मन....किसी से कोई भी धार्मिक कार्य करवाने का सम्पूर्ण प्रावधान....हर धर्म में....परन्तु प्रश्न यह है कि हम क्या करते है ?.....तब हम मन की आकृति को युग्म तथा परकोटे में शामिल करे....परिमिति गणित के शब्द है....आकृति के रूप में....LINE, CIRCLE, SQUARE, PARABOLA, HYPERBOLE, ELLIPSE....कल्पना का हकीकत में प्रदर्शन....बस यह विश्वास है कि दुनिया इन पर टिकी है....आसमान में तो सब अधर में....अधबीच में.....और पैर जमींन पर ही टिक सकते है....भले ही मन कहता है, कभी-कभी.....आजकल जमींन पर नहीं पड़ते है, पैर मेरे....और गुरु के चरण तो सत्य रूप से धरातल पर.....जो सुगम तथा समतल है...जो युग्म एवं परकोटों के समन्वय के लिए उचित हो सकता है...यह याद रखते हुये कि युग्म, बन्धन किन्तु बाध्यता का दायरा, स्वयं का निर्णय और परकोटा पूर्णत: सुरक्षित समर्पण.....સંપૂર્ણ ધારા સનાતન.....तत्पश्चात नमामीशमीशान निर्वाण रूपम्.......गिन-गिन के उँगलियों पर....माला के मनको को याद करना......कश्तियाँ किनारों तक सुरक्षित पहुचाने के लिए....सिर्फ मेहनत में ईमानदारी चाहिए....और हर इबादतगाह में लिखा है....रहमत तेरी, मेहनत मेरी....मेहनत की ऐशगाह में आनन्द के सिवाय कुछ और...हरगिज नहीं....इश्क सूफियाना.....स्वयं में परिवर्तन, हर स्थितियों में संभव.....#विनायक# प्रारम्भ....जीवन की गति का अनुभव....COPY, PASTE & EDIT……तत्पश्चात......Save, Send, Publish....हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS).