जय हो....आइये जरा पता लगाते है...कि ईश्वर कहाँ रहता है और क्या चाहता है
???....SIMPLE.....सात्विक सत्य है कि स्वच्छता में ईश्वर का वास
है....तत्पश्चात आवास, निवास, उपवास, विश्वास....प्रति मास नही बल्कि
प्रतिदिन...प्रतिदिन नहीं बल्कि प्रतिपल....मात्र सात्विक धारा....और सत्व
तत्व में लिप्त होना धर्म को स्वीकार है....निगेटिव या पोजिटिव होने के
लिये जिन्दगी बहुत लम्बी है....काटे नहीं कटते...दिन और रात....परन्तु
सात्विक होने के लिये प्रति-पल हमेशा स्वागत करता रहता है, यह कहते हुये
कि...जब आंख खुले, तब सवेरा....बीती ताहि बिसार दे...यह याद रखते हुये कि
जीवन मात्र एक पल का.....जिन्दगी कोई वस्तु नहीं कि एक पल में मुट्ठी में
कैद हो जाये....हाथ खुला रहना पड़ता है....गिनती और पहाड़ो को याद रखने के
लिये...फायदे के लिए पहाडा...और हर सांस में गिनती....जाग्रत अवस्था की
टीका-टिप्पणी...NEITHER NEGATIVE... NOR POSITIVE... JUST SIMPLE,
ORDINARY, EASY...SOMETHING LIKE ॐ.......ॐकार....पूर्ण सात्विक....कर्म
में टिपण्णी....क्यों करे हम उपाय ?....जबकि हम कार्य होने के प्रति
आश्वस्त होना चाहते है...शत-प्रतिशत...तब हम पुनः यह ध्यान करे कि जो उपाय
हम तमाम कीट-नाशक उपाय हम करते है...वे हमारे लिये भी सर्वप्रथम हानिकारक
हो सकते है...तब टूट-फुट की जवाबदारी अंततः कौन ओढ़े ??....सम्पूर्ण ज्योतिष
शास्त्र मात्र आकलन पर आधारित है....होनी को टालने के मुड में प्रकृति कम
ही रहती है...शुरुआत बेहतर और सुरक्षित हो तो गलतियां स्वतः कम होती
जायेगी...और आटे का नमक कहता है...ना कम, ना ज्यादा....शायद यही है...परम
प्रेम का वादा...मात्र स्वयं का अनुभव...सहज सिद्धि....गणितज्ञ के लिए
मात्र गणना ही चमत्कार....कोई फर्क नहीं...अबकी बार किसकी सरकार ?....बस
सदैव रहे आनन्द...जय गजानन्द...बारम्बार....हर बार...आबाद रहे
घर-बार...जँहा मात्र स्वयं की सरकार....यँहा प्रत्येक सात्विक-कर्म
स्वीकार....न जीत का लालच, न हार का डर....सुविधाओं के फेर में हम इस
दुनिया-दारी में गुम हो जाते है....तब गुम-शुदा की तलाश या गुमनाम.....तब
कोई तो हो जो FIR अर्थात्....’रपट दर्ज करे’.....और गाँव की पुलिया पर लिखा
है कि पानी ज्यादा होने पर “रपट पार करना मना है”... नई शुरुआत में हम
सायकल को किसी हेलीकाप्टर से कम नहीं समझते है....वह तो जब गाडी पंचर होती
है तो समझ में आता है कि हेलीकाप्टर तो सर के ऊपर उड़ता है...चलता है
पेट्रोल से, मगर उड़ता हवा में है....और सायकल चलती हवा से, मगर चलती है
जमीन पर...गुरु-मन्त्र के आधार पर किसी भी मामूली गैरेज का 'छोटू' आखिर एक न
एक दिन "उस्ताद" बन ही जाता है....और मामूली 'गैरेज' को खास 'कारखाने' में
बदल सकता है....जहाँ एक 'छोटू' नहीं अनेक "छोटे-सरकार" चाहिये... मित्र
बनने के लिए #आमने-सामने#
की कला में पारंगत होना स्वयं का दायित्व.....शत-प्रतिशत.....जिसका एक
मात्र मुख्य विनायक आधार--'गुरु कृपा हि केवलम्'.....समस्त सागरों के पानी
की स्याही....समस्त जंगलों के पेड़ो की कलम....और सम्पूर्ण धरती मात्र एक
कागज़ के समान....पर्याप्त है या नहीं ???....यह तो लिखने वाला ही
जाने....इस अनुभव, आभास या अनुभूति के साथ....."गुरु-गुण लिख्यो न
जाय"....'हरि कथा अनन्ता'....सबसे मोटी पुस्तक....जिसमे एक ही
प्रार्थना......"सर्वे भवन्तु सुखिनः"......बस मात्र यही....भक्ति, इबादत,
अरदास.....”#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#...#vinayaksamadhan# #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#
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