Wednesday 8 June 2016

यह मान कर कि प्रत्येक भारतीय ज्ञानी है.....शुरू से शुरुआत......अ- से - अनार.........ज्ञ- से - ज्ञानी
a- से - apple.........z- से – zebra.....यानी शुरुआत दोनों भाषा में एक फल से होती है और अंत मे हिन्दी आपको ज्ञानी बनाकर छोड़ती है, और अंग्रेजी में ज़ेब्रा एक प्रकार का विचित्र पशु का नाम होता है....सबसे अलग.....भीड़ से अलग....भेद वाली चल नहीं.....और इन दोनों कि जन्म माता .....संस्कृत भाषा का रहस्य – संस्कृति.....संस्कृत भाषा विश्व की प्राचीन भाषा....देव भाषा....आइये जानते हैं संस्कृत के रहस्य.....दुनिया की पहली पुस्तक की भाषा होने के कारण संस्कृत भाषा को विश्व की प्रथम भाषा मानने में कहीं कोई संशय की गुंजाइश नहीं....सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता स्वयं सिध्द......संस्कृत भाषा अन्य भाषाओ की तरह केवल अभिव्यक्ति का साधन मात्र ही नहीं....अपितु मनुष्य के सर्वाधिक संपूर्ण विकास की कुंजी भी है.....
महर्षि पाणिनि....महर्षि कात्यायिनि और योग शास्त्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि.....इन तीनों महर्षियों ने बड़ी ही कुशलता से योग की क्रियाओं को भाषा में समाविष्ट किया है....यही इस भाषा का रहस्य है.....जिस प्रकार साधारण पकी हुई दाल को शुध्द घी में जीरा; मैथी; लहसुन; और हींग का तड़का लगाया जाता है;तो उसे संस्कारित दाल कहते हैं.....
घी ; जीरा; लहसुन, मैथी ; हींग आदि सभी महत्वपूर्ण औषधियाँ हैं.....ये शरीर के तमाम विकारों को दूर करके पाचन संस्थान को दुरुस्त करती है.....ठीक यही बात संस्कारित भाषा संस्कृत के साथ सटीक बैठती है.....संस्कृत में निम्नलिखित चार विशेषताएँ हैं जो उसे अन्य सभी भाषाओं से उत्कृष्ट और विशिष्ट बनाती हैं....
१ अनुस्वार (अं ) और विसर्ग(अ:)....
संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण और लाभ दायक व्यवस्था है, अनुस्वार और विसर्ग। पुल्लिंग के अधिकांश शब्द विसर्गान्त होते हैं —
यथा- राम: बालक: हरि: भानु: आदि।
और नपुंसक लिंग के अधिकांश शब्द अनुस्वारान्त होते हैं—
यथा- जलं वनं फलं पुष्पं आदि।
अब जरा ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि विसर्ग का उच्चारण और कपालभाति प्राणायाम दोनों में श्वास को बाहर फेंका जाता है....अर्थात् जितनी बार विसर्ग का उच्चारण करेंगे उतनी बार कपालभाति प्रणायाम अनायास ही हो जाता है....जो लाभ कपालभाति प्रणायाम से होते हैं, वे केवल संस्कृत के विसर्ग उच्चारण से प्राप्त हो जाते हैं....उसी प्रकार अनुस्वार का उच्चारण और भ्रामरी प्राणायाम एक ही क्रिया है....भ्रामरी प्राणायाम में श्वास को नासिका के द्वारा छोड़ते हुए भौंरे की तरह गुंजन करना होता है, और अनुस्वार के उच्चारण में भी यही क्रिया होती है....अत: जितनी बार अनुस्वार का उच्चारण होगा , उतनी बार भ्रामरी प्राणायाम स्वत: हो जावेगा।कपालभाति और भ्रामरी प्राणायामों से क्या लाभ है? यह बताने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि स्वामी रामदेव जी जैसे संतों ने सिद्ध करके सभी को बता दिया है.....
जैसे हिन्दी का एक वाक्य लें- ” राम फल खाता है“इसको संस्कृत में बोला जायेगा- ” राम: फलं खादति”....राम फल खाता है ,यह कहने से काम तो चल जायेगा ,किन्तु राम: फलं खादति कहने से अनुस्वार और विसर्ग रूपी दो प्राणायाम हो रहे हैं....यही संस्कृत भाषा का रहस्य है....संस्कृत भाषा में एक भी वाक्य ऐसा नहीं होता जिसमें अनुस्वार और विसर्ग न हों.....अत: कहा जा सकता है कि संस्कृत बोलना अर्थात् चलते फिरते योग साधना करना
२- शब्द-रूप
संस्कृत की दूसरी विशेषता है शब्द रूप....विश्व की सभी भाषाओं में एक शब्द का एक ही रूप होता है,जबकि संस्कृत में प्रत्येक शब्द के 25 रूप होते हैं.....जैसे राम शब्द के निम्नानुसार 25 रूप बनते हैं.....
यथा:- रम् (मूल धातु)
राम: रामौ रामा:
रामं रामौ रामान्
रामेण रामाभ्यां रामै:
रामाय रामाभ्यां रामेभ्य:
रामत् रामाभ्यां रामेभ्य:
रामस्य रामयो: रामाणां
रामे रामयो: रामेषु
हे राम! हेरामौ! हे रामा:!.......ये 25 रूप सांख्य दर्शन के 25 तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं......जिस प्रकार पच्चीस तत्वों के ज्ञान से समस्त सृष्टि का ज्ञान प्राप्त हो जाता है, वैसे ही संस्कृत के पच्चीस रूपों का प्रयोग करने से आत्म साक्षात्कार हो जाता है.....और इन 25 तत्वों की शक्तियाँ संस्कृतज्ञ को प्राप्त होने लगती है।
सांख्य दर्शन के 25 तत्व निम्नानुसार हैं.....
आत्मा (पुरुष)
(अंत:करण 4 ) मन बुद्धि चित्त अहंकार
(ज्ञानेन्द्रियाँ 5) नासिका जिह्वा नेत्र त्वचा कर्ण
(कर्मेन्द्रियाँ 5) पाद हस्त उपस्थ पायु वाक्
(तन्मात्रायें 5) गन्ध रस रूप स्पर्श शब्द
( महाभूत 5) पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश
३- द्विवचन
संस्कृत भाषा की तीसरी विशेषता है...द्विवचन....सभी भाषाओं में एक वचन और बहु वचन होते हैं जबकि संस्कृत में द्विवचन अतिरिक्त होता है....यह द्विवचन बहुत ही उपयोगी और लाभप्रद है.....जैसे :- राम शब्द के द्विवचन में निम्न रूप बनते हैं:- रामौ , रामाभ्यां और रामयो:.....इन तीनों शब्दों के उच्चारण करने से योग के क्रमश: मूलबन्ध ,उड्डियान बन्ध और जालन्धर बन्ध लगते हैं, जो योग की बहुत ही महत्वपूर्ण क्रियायें हैं
४ सन्धि
संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है....सन्धि.....ये संस्कृत में जब दो शब्द पास में आते हैं तो वहाँ सन्धि होने से स्वरूप और उच्चारण बदल जाता है....उस बदले हुए उच्चारण में जिह्वा आदि को कुछ विशेष प्रयत्न करना पड़ता है....ऐंसे सभी प्रयत्न एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति के प्रयोग हैं....”इति अहं जानामि” इस वाक्य को चार प्रकार से बोला जा सकता है,....और हर प्रकार के उच्चारण में वाक् इन्द्रिय को विशेष प्रयत्न करना होता है।
यथा:- १ इत्यहं जानामि।
२ अहमिति जानामि।
३ जानाम्यहमिति ।
४ जानामीत्यहम्।
इन सभी उच्चारणों में विशेष आभ्यंतर प्रयत्न होने से एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति का सीधा प्रयोग अनायास ही हो जाता है....जिसके फल स्वरूप मन बुद्धि सहित समस्त शरीर पूर्ण स्वस्थ एवं नीरोग हो जाता है....इन समस्त तथ्यों से सिद्ध होता है कि संस्कृत भाषा केवल विचारों के आदान-प्रदान की भाषा ही नहीं ,अपितु मनुष्य के सम्पूर्ण विकास की कुंजी है....यह वह भाषा है, जिसके उच्चारण करने मात्र से व्यक्ति का कल्याण हो सकता है....इसीलिए इसे देवभाषा और अमृतवाणी कहते हैं......अतः अधिकांश मन्त्र संस्कृत भाषा में पाए जाते है.....इश्क सूफियाना.....स्वयं में परिवर्तन, हर स्थितियों में संभव.....‪#‎विनायक‬# प्रारम्भ....जीवन की गति का अनुभव....COPY, PASTE & EDIT……तत्पश्चात......Save, Send, Publish....हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS).



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