Wednesday 8 June 2016



विश्व-व्यापी विचार...घर-घर की कहानी....बचपन की कहानी, नानी की जुबानी....युग्म परिपूर्ण भले ही न हो, परकोटे हमेशा मजबूत होना चाहिये....दोनों एक से ज्यादा...युग्म अर्थात तमाम सम्बन्ध....परिवार, व्यवसाय, शिक्षा, धर्म, समाज......सभी संलग्न....और परकोटे मात्र कुछ ही....उच्च, समकक्ष, मध्यम, निम्न....महल हो या झोंपड़ी...सर पर छत के अतिरिक्त कुछ नहीं....और इस आश्रय में युग्म तथा परकोटे के अतिरिक्त भला क्या हो सकता है ?.....दोनों के सम्मिश्रण का माध्यम है....आहार, विहार, सदाचार..... और कुछ मित्र इन दोनों परिधियों में उभयनिष्ठ सिद्ध हो सकते है.... तब नोंक-झोंक...श्रवण, किर्तन, चिंतन, मनन में व्याधि...बाधा....दोष....रोग...आकर्षण.....यत्र-तत्र-सर्वत्र....तब मत भेद भी सम्भव, क्योंकि #मतदान# में सिर्फ एक ही मत स्वीकृत होता है......और अधिकार के तहत होता है.. किन्तु मन के भेद की बात शत-प्रतिशत धर्म के विरुद्ध.....और धर्म का आश्रय प्राप्त करने का एक ही रास्ता.....आखरी रास्ता....धर्म से परिचय का रास्ता....जो स्वयं को बनाना पड़ेगा.....जमींन को समतल बनाने का कार्य सहज और सार्वजनिक हो तो सुन्दरता स्वतः प्रकट होती है.....ठीक मन को बनाने के समान....मुड तो कोई भी बना सकता है... पर मन को बनाने के लिये....आकृति तो बनानी पड़ती है.....भले....मन ही मन....किसी से कोई भी धार्मिक कार्य करवाने का सम्पूर्ण प्रावधान....हर धर्म में....परन्तु प्रश्न यह है कि हम क्या करते है ?.....तब हम मन की आकृति को युग्म तथा परकोटे में शामिल करे....परिमिति गणित के शब्द है....आकृति के रूप में....LINE, CIRCLE, SQUARE, PARABOLA, HYPERBOLE, ELLIPSE....कल्पना का हकीकत में प्रदर्शन....बस यह विश्वास है कि दुनिया इन पर टिकी है....आसमान में तो सब अधर में....अधबीच में.....और पैर जमींन पर ही टिक सकते है....भले ही मन कहता है, कभी-कभी.....आजकल जमींन पर नहीं पड़ते है, पैर मेरे....और गुरु के चरण तो सत्य रूप से धरातल पर.....जो सुगम तथा समतल है...जो युग्म एवं परकोटों के समन्वय के लिए उचित हो सकता है...यह याद रखते हुये कि युग्म, बन्धन किन्तु बाध्यता का दायरा, स्वयं का निर्णय और परकोटा पूर्णत: सुरक्षित समर्पण.....સંપૂર્ણ ધારા સનાતન.....तत्पश्चात नमामीशमीशान निर्वाण रूपम्.......गिन-गिन के उँगलियों पर....माला के मनको को याद करना......कश्तियाँ किनारों तक सुरक्षित पहुचाने के लिए....सिर्फ मेहनत में ईमानदारी चाहिए....और हर इबादतगाह में लिखा है....रहमत तेरी, मेहनत मेरी....मेहनत की ऐशगाह में आनन्द के सिवाय कुछ और...हरगिज नहीं....इश्क सूफियाना.....स्वयं में परिवर्तन, हर स्थितियों में संभव.....#विनायक# प्रारम्भ....जीवन की गति का अनुभव....COPY, PASTE & EDIT……तत्पश्चात......Save, Send, Publish....हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS).





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