#100 % प्रायोगिक#....#सनातन-सत्य#....JUST #INTERNATIONAL#....आजमा
कर देखने वाली बात....यदि धर्म को सहजता से समझा जाएँ तो....शुद्ध रूप से
सम्मिश्रण या योग....शुभ कर्म का प्रेम तथा करुणा के साथ योग....और पुनः
धर्म की उत्पत्ति या चाहत या प्रतिफल शुभ-कर्म ही सम्भव है...पुनरावृत्ति
में धर्म हमेशा संलग्न....मात्र प्रोत्साहन या चेतावनी हेतु......सिवाय
इसके कुछ और नहीं....और इसके सिवाय कुछ अलग हट कर होता है तो वह प्रभुत्व
का प्रपंच ही संभव है....अर्थात कर्म में मन तथा वचन की ईमानदारी से
भागीदारी हो....और कर्म, शुभ स्वत: कहलायेगा.....बेशक....यक़ीनन...जब
प्रावधान हो इनका....शत-प्रतिशत....क्षमा, रक्षा, न्याय, व्यवस्था.....चादर
के चार छौर......और सुना जाता है कि चादर की लम्बाई उतनी ही ठीक, जितने कि
पैर---यहाँ इमानदारी है.......मतलब चादर देख कर पावं पसारना चाहिये—यहाँ
शुद्ध आध्यात्मिकता.....और पावं पसारने के बाद चादर की साइज़ के बारे में
सोचा तो नींद गायब.....और धर्म इसे स्वीकृत नहीं करता है.....धर्म तो सिर्फ
एक पहलु को जानता है.....आध्यात्म....इसे अपनाने का एक ही
रास्ता.....सरलता के साथ शुभ-कर्म जारी रहे....करुणा और प्रेम स्वत: जाग्रत
होंगे....इस तरह हमारा कर्म और शुद्ध हो जायेगा....और जैसे ही शुभ कर्म
बढ़ता जाएगा....आध्यात्मिकता स्वत: बढती जायेगी.....बस यही उपाय है धार्मिक
कहलाने का.....परन्तु मन में अभी भी संशय है कि धार्मिक कौन ?....तब बड़ा ही
सरल सा उत्तर है....पूजा-पाठ तथा धार्मिक आयोजन में रूचि रख कर भाग लेने
वाला....सरल बनने का आसान शौक, सम्पूर्ण सहज.....परन्तु मात्र इतनी सी बात
पर शुभ-कार्य की परिभाषा संपन्न नहीं हो जाती है....अशुभ कार्य करने वाले
भी धार्मिक हो सकते है.....यहाँ थोड़ा सा अंतर या भेद या फर्क नज़र आता
है....सरल बनने का आसान शौक परन्तु पश्चाताप या प्रायश्चित के तौर
पर.....क्या वास्तव में शुभ कार्य नितांत आवश्यक है.....तब यह सत्य है कि
खाली हाथ ही जाना है....साथ कुछ नहीं जाता है....फिर भी परीक्षा में प्रश्न
है....OUT OF COURSE….सोचो, साथ क्या जाएगा ?....मात्र सर खुजाने से उत्तर
आता है.....कर्म....अच्छे तथा बुरे....दोनों.....हम दो, हमारे दो....हमारे
और ईश्वर के सामने हमारे दोनों कर्म....और यह बात सोलह आने सही है
कि....शुभ कार्य सिर्फ करने से ही होता है....आजमा कर देखने वाली
बात.....आत्म ज्ञान की कला सिर्फ धर्म के आश्रय में....कहीं और संभव
नहीं.....बकलम खुदा.....खुद कहे......राज़ की बात....मै अपने हाथों से इस
दुनिया की तक़दीर (DESTINY OF THE WORLD) लिखता हूँ.....और जब तरस आता है
तेरे जैसे बेचारों पर....जो मात्र सौ वर्षों में अनन्त अनुभव प्राप्त करना
चाहते है....और सौ वर्ष सृष्टि के सामने जय ऊँट के मुह में जीरा......और
जीवन को कहा जाता है पानी का बुलबुला.....और सभी प्राणियों में मानव मात्र
चुलबुला.....तब चेतना कहती है, प्राण को....तब MIND SPEAKS WITH BODY
THROUGH SENSES….और क्या कहती है ?.....हाथी में है हाथी तू....और कीड़ी में
कीड़ी तू....हाथियों में कभी बहस नहीं कि कौन छोटा ?---कौन बड़ा ?....मनुष्य
को उसके प्रश्न का उत्तर......कीड़ी में है कीड़ो तू.....कीड़ी में है कीड़ी
तू....और चींटी में भी छोटो तू.....भले ही कौड़ी-कौड़ी माया जोड़ी.....उच्च,
समकक्ष तथा मध्यम...निम्न-स्तर हेतु चर्चा नहीं....निम्न तो प्राण-रहित और
स्तर अर्थात जागृति....और जागृति के लिये प्राण के पक्ष में प्रार्थना होती
है....प्राण का एकमात्र पक्ष है, जाग्रत अवस्था....प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष
या सापेक्ष.....पूर्ण निरपेक्ष.....कहत कबीर....सुनो, भाई साधो...प्रकृति
कहती है....”तू रंग शर्बतों का, मै मीठे झील का पानी”....और गिरगिट के रंग
के समान.....इस जीवन की यात्रा में साधन अनेक, पर यात्री के नाम पर....तू
का तू.....YOU & ONLY YOU….यात्रा का नियम है कि हम कहाँ है ? और कहाँ
जाना चाहते है ?...एक अच्छे यात्री की कोई तय योजना नहीं होती, सिवाय इसके
कि वह कहीं पहुंचने के लिए भी हड़बड़ी में नहीं होता......दूसरों को जानना
ज्ञान है, स्वयं को जानना आत्मज्ञान है....प्रकृति कभी जल्दबाजी नहीं करती,
फिर भी सारी चीजें पूरी हो जाती हैं.....एक चलती हुई चींटी, एक ऊँघ रहे
बैल से अधिक काम करती है...जो खुद पर विश्वास रखता है, वही खुद को प्रकाशित
कर पाता है....यह शुद्ध रूप से....स्वयं का निर्णय हो सकता है....सोचने
वाला, तू का तू.. धरपकड़ नहीं....मारपकड़ नही.....किसी प्रकार की अकड़-धकड़
नहीं...मात्र पकड़.....मित्रता के लिये जरुरी है—मजबूत जोड़........"विनायक
समाधान" @ 91654-18344...(इंदौर/उज्जैन/देवास)...हार्दिक स्वागत.....विनायक
कामना की पूर्ति हेतु विनायक प्रार्थना....एक मात्र मुख्य विनायक
आधार--'गुरु कृपा हि केवलम्' ...एकमात्र विनायक उद्देश्य--'सर्वे भवन्तु
सुखिनः'...भले पधारो सा.....खम्मा घणी…
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