Thursday 3 December 2015

#‎राम‬-राम सा#....यही है 'विनायक-योग'.....‪#‎गूढ़‬ रहस्य#…..’आमने-सामने’ एक दुसरे को “राम-राम” कहने के लिए...‪#‎शत‬-प्रतिशत सहिष्णु#....‪#‎INTOLERANCE‬# या ‪#‎असहिष्णुता‬#.....कदापि नहीं#...... मात्र ‪#‎आनन्द‬#....‪#‎समापन‬ में तापमान सामान्य#....मात्र आनन्द की जानकारी....वैसे तो दो लोगो में आमने-सामने का सम्बोधन "राम-राम" होता है परन्तु सम्बोधन के साथ सम्मान हेतु 'राम-राम सा' भी कहा जाता है...विशेषतः ग्रामीण परिवेश में...वैसे तो अन्य सम्बोधन भी लोकप्रियता के दायरे में हो सकते है, परन्तु ‘राम-राम’ का जवाब भी ‘राम-राम’ से अतिशीघ्र आता है...बहुत आसान...‘दो और दो चार’ या ‘दो दुनी चार’ या ‘आँखे-चार’....”सत्संग ही श्रेष्ठ अचार”....स्वाभाविक अनिवार्य रूप से....बाध्यता किञ्चित नहीं...कदापि नहीं....WHY ???....क्यों यह संस्कार इतना सहज प्रचलित है ?....आओ इसका पता लगाये....विषय-'धर्म-विज्ञान'....पाठ-एक....आखिर क्यों कहते है सब ?....कि "राम से बड़ा राम का नाम"... ."राम की चिड़ियाँ, राम का खेत"....शब्दों के खेत में शब्दों की चिड़ियाँ...यह कहावत निरर्थक कि....'चिड़ियाँ चुग गयी खेत, अब का होत'....दूर-दूर तक पश्चाताप नहीं....चारो और गर्व ही गर्व....शायद यही है..."ONE MAN ARMY"....'यथा बीजम् तथा निष्पत्ति'....जाहे विधि राखे राम, ताहे विधि रहिये....”राम-राम” कहिये जी, “राम-राम” कहिये...क्या कभी सोचा है कि बहुत से लोग जब एक दूसरे से मिलते हैं तो आपस में एक दूसरे को दो बार ही “राम-राम" क्यों बोलते हैं ?.....एक बार या तीन बार क्यों नही बोलते ?.....दो बार “राम राम" बोलने के पीछे बड़ा गूढ़ रहस्य…...वह भी आदि काल से......आइये जरा-सा अध्ययन करते है.....हिन्दी की शब्दावली में.....‘र' २७(27th) वां शब्द है....‘आ’ की मात्रा २ दूसरा(2nd).....‘म' २५ वां(25th) शब्द है.....अब तीनो अंको का योग करें तो (२७+२+२५=५४) अर्थात एक “राम” का योग ५४ हुआ…..इसी प्रकार दो “राम-राम” का कुल योग १०८ होगा....हम जब कोई जाप करते हैं तो १०८ मनके की माला गिनकर करते हैं क्योंकि १०८ बार जाप करना हमारे धर्म, संस्कृति और पुराणों मे पवित्र कहा गया है....अत: जब हम दो बार “राम-राम” का उच्चारण करते हैं तो हमें १०८ मनके की माला जपनें जैसा पुण्य प्राप्त होता है….अब वैदिक गणित...अंक नौ(9-NINE)...सिद्ध-पूर्णांक....अक्षय अर्थात विनायक-अंक माना जाता है....(54=5+4=9)....(108=1+0+8=9)...(1008=1+0+0+8=9).....साधारण तथ्य--''जो उर्जा को जागृत करे"...वही कहलाता है--"अतिविशिष्ट"....प्रार्थना के शब्दों का एक-मात्र उदगम-स्थल....मात्र अध्ययन...अध्ययन के अनेक अंग....सबका एक ही रंग....मात्र, सिर्फ, केवल, Only..."सत्संग"...जहाँ और कुछ नहीं हो सकता है, बस...."ईश्वर की उपस्तिथि का अहसास होता है"...चिरस्थायी, अक्षय, विराट...मात्र आनंद को सफल तथा सुफल बनाने के लिये...यही है 'विनायक-योग'.....’आमने-सामने’ एक दुसरे को “राम-राम” कहने के लिए.....ठीक जैसे उत्तम 'वैदिक-योग'....सम्पूर्ण चर्चा का "संपर्क-सूत्र'..."विनायक-सूत्र"...."91654-18344"...'9+1+6+5+4+1+8+3+4+4'='45'="9" अर्थात सहज अक्षय समीकरण....इस समीकरण में सम्पूर्ण अंक-शास्त्र सिर्फ तीन अंक गायब है.....0, 2, 7... और (0+2+7=9)....जो अप्रत्यक्ष है, वही प्रत्यक्ष है....यह बात अलग है कि दोनों को जानने के लिए समीकरण हल करना अनिवार्य है...सात्विक तथा सहज परिश्रम...'विनायक-परिश्रम'....हार्दिक स्वागतम @ 91654-18344...INDORE+UJJAIN+DEWAS....‪#‎vinayaksamadhan‬#....जय हो...सादर नमन...Regards#.....




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