#SOMETHING DIFFERENT#.....#पोस्टर# निकला #हीरो#.....बिल्कुल #भीड़# से अलग...#भेड़# वाली चाल नहीं.... #JUST for YOU#....प्रत्येक #चित्र# ध्यान से देखियेगा....प्रत्येक #अप्रत्यक्ष#
प्रश्न का उत्तर चित्र स्वयं देने का प्रयास करेगा...एक विनायक-मित्र के
रूप में....All of US are Editors….Be sure regarding this…तब किसी की भी
कल्पना भर हो परन्तु यदि फटा स्वेटर बीते दिनों की याद दिलाता है तो
निश्चिन्त रूप से स्वयं को भूतकाल में महसूस कर सकते है......ठण्ड से बचने
के अनेक उपाय परन्तु ठिठुरते शरीर का कम्पन....मात्र स्वयं का
अनुभव.....स्कूलों में उसी छात्र का हाथ उठता है जिसको उत्तर मालुम होता
है....तब उत्तर और हाथ के बीच स्वेटर की चर्चा नहीं.....और फटे स्वेटर की
तो हरगिज नहीं, मांगो एक मिलेंगे हज़ार.....और यदि हाथ किसी फटे स्वेटर वाले
का होता है तो एक बार यह विचार आता है कि ऊपर वाला जब भी देता #छप्पर
फाड़ कर#......विषय कोई भी हो परन्तु अच्छे प्रतिशत उत्तम छात्र की प्रथम
पहचान होती है....बस, यही मिल्कियत जो मालिक बनने के लिए पर्याप्त....और जो
प्राप्त है वही पर्याप्त है....% या #प्रतिभा तो बस #अध्ययन#
मात्र है.....अर्थात ज्ञान जो जल से पतला माना गया है...ठीक एक पक्षी के
समान जो ध्यान तथा अध्ययन के पंखो के सक्रियता से जीवित है.....#प्रतिमा के सामने #प्रार्थना
करने से #प्रतिभा सम्पन्न होती है.....कहाँ जायेंगे विचार ?...बुलाएँगे तो
दस बार आयेंगें....और एक नहीं चार....बस हो साथ में सत्संग का
अचार.....चखने पर मिलते है समाचार.....हम पत्थर, मिट्टी,या धातु की पूजा #भगवान# का स्वरूप मानकर करते हैं.....#भगवान# तो कण-कण मे है, पर एक #आधार# मानने के लिए और मन को एकाग्र करने के लिए हम मूर्ति पूजा करते हैं.....जीवन का #आधार#....#आस्था#......गुरु #द्रोणाचार्य# की मूर्ति का पुजारी भला #एकलव्य#
से बेहतर कौन ?...एकलव्य जी ने तो गुरु द्रोणाचार्य जी की मूर्ति को
सर्वस्व मान लिया था....और सर्वश्रेष्ठ साबित हुए....गुरु को किसी भी रूप
में माना जाये परन्तु गुरु का श्रृंगार श्रद्धा एवम् एकाग्रता से ही सम्भव
है.....#ईश्वर# तुल्यं या सर्वोपरि #गुरु#
के स्थान की गणना या मान्यता या तुलना ...परिवार में माता-पिता....शरीर
में मष्तिष्क....जन्म-पत्रिका में वृहस्पति ग्रह....हस्त-रेखा में गुरु
पर्वत...मित्र-मण्डल में सम्माननीय गण....समाज में वरिष्ठ अथवा
बुजुर्ग....कार्य-क्षेत्र या राज्य-पक्ष में वरिष्ठ अथवा सम्माननीय...आश्रम
में कल्याणकारी गुरु श्री.....”श्रद्धावान लभते ज्ञानम”..... लाभ अर्थात
ज्ञान अर्थात श्रवण, किर्तन, चिन्तन, मनन अर्थात निर्णय लेने की
क्षमता...होर्डिंग (विज्ञापन बोर्ड) अर्थात स्वंय को सिध्द करने का
प्रयास...बड़े होर्डिंग की लागत ज्यादा हो सकती है परन्तु छोटे होर्डिंग तो
कोई भी बना सकता है....#माँ को भी #ममता की #मूर्ति कहा जाता है....और #चित्र# से बेहतरीन #मित्र# भला और कौन ?....#आँखे#
मनुष्य की सर्वोत्तम ज्ञानेन्द्रिय अंग है....किसी भी चित्र तो सोलह
सेकण्ड तक स्वतः #अध्ययन# करती रहती है....और हमेशा के लिए संग्रह कर सकती
है....और यह किसी #चमत्कार#
से कम नहीं....शायद इसीलिए #त्राटक# योग सर्वोत्तम #ध्यान# माना गया
है....यह सत्य है कि #चित्र# बोलते है....और #ईशान# में अवश्य बोलते
है.....बस #ध्यान# से सुनना होगा...बस सहज #ध्यान# ही विनम्र
निवेदन....#%#....कण-कण में सात्विकता....#तन, #मन, #धन.......#तीन रेखाओं
का खेल#....हार या जीत पूर्णत: नदारद.....#पूर्णत:
सात्विक#..#अखण्ड#...#अक्षय#....जब तक #सूरज# , #चाँद# रहेगा....तब तक
किसका नाम रहेगा ?....मालुम नहीं....पर #राम# से बड़ा #राम# का नाम......और
जब नाम की बारी आती है तो #विनायक# मित्र श्री #अक्षय अमेरिया साहब
सुप्रसिद्ध चित्रकार उज्जैन (म.प्र.) का नाम लेना इसलिए उचित होगा कि निम्न
चित्र में से कोई एक इन्ही #विनायक-मित्र# की कृति सादर #विनायक# उपहार
है...#बूझो तो जाने#.....मित्र का चित्र, मित्र द्वारा....#गूढ़
रहस्य#…..#सहज-सार्वजनिक#...#आमने-सामने# …...'सेर को सवा सेर' मिल ही जाते
है परन्तु मन तो स्वतः 'सवा-मन' हो जाता है...शायद इसीलिए मन को काबू में
रखा जाता है...यह सार्थक करने के लिए...."मन चंगा तो कठौती में
गंगा"....सादर नमन....जय हो....हार्दिक स्वागत....जय-गुरुवर....प्रणाम...इस
'प्रण' के साथ कि 'प्रमाण' में 'प्राण' बसे...Just Because Of You...."अणु
में अवशेष".....#मुद्रा या रोकड़# से महत्वपूर्ण
#%#.....#विनायक-परिश्रम#....एक ही प्रार्थना..."सर्वे भवन्तु सुखिनः" एवम्
एक ही आधार "गुरू कृपा हिं केवलमं"....आप सभी आमंत्रित है....पूर्व
निर्धारित समय हमेशा की तरह सुविधा सिध्द होती रहेगी....हार्दिक
स्वागतम.....समय अपना-अपना....और आदान-प्रदान हो जाए....तो सहज
आमने-सामने.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का
आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव...”#विनायक-समाधान#” @
#91654-18344#...#vinayaksamadhan# #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#
जय हो....सादर नमन....फटा
जय हो....सादर नमन....फटा
No comments:
Post a Comment