Friday 4 December 2015


#अनेक अवसरों पर हम ‘मन की आवाज़’ को दबा देते है....”अन्तरात्मा की आवाज़”.....अपने स्वयं के कानो से सुनने के बाद....यह स्वीकार करते हुए कि हम सही दिशा में नहीं जा रहे है....तब चर्चा की आवश्यकता महसूस हो सकती है.....किस प्रकार की चर्चा.....कुछ भी सुनिश्चिन्त नहीं....शायद ‘सत्संग’.....Not Decided.....कोई ठिकाना नहीं.....प्रश्नों का.....सिर्फ रूबरू होने पर पता चलता है कि प्रश्न किस प्रकार के हो सकते है ?....समय अपना-अपना....और आदान-प्रदान हो जाए....तो सहज आमने-सामने....पुछ-ताछ केंद्र में तो मात्र सुचना के अधिकार हेतु ज्ञान का भण्डार....प्रत्येक जानकारी सुनिश्चिन्त होने का दावा....परन्तु गतिमान सूचनाओं में सम्भावना से इनकार नहीं....लेकिन ज्ञान-विज्ञान केंद्र तो मात्र स्वयं का मन.....मन ही त्रि-आयामी या बहु-आयामी....सहज प्रतिरूप मात्र “त्रिमूर्ति”......सब-कुछ, कुछ-कुछ या बहुत-कुछ....#GOD#....#G-Generator....सृष्टि का निर्माण...ब्रहम-देव 'ब्रह्मा जी'....#O-Operator....सृष्टि के संचालक....नारायण 'श्री विष्णु'.....और अंत में #D-Destroyer....मात्र अति का अंत तथा मति (बुद्धि) का 'श्रीं गणेश'....देवो के देव....'महादेव'....स्वयं के नाथ है या नहीं परन्तु नाम..."भोले-नाथ"...."स्वयंभू"....बड़े आदमी अलग-अलग परिवेश में विभिन्न आवास....परन्तु मानसरोवर का युग्म बनने हेतु....शम्भू गए कैलाश....'कैलाश-मानसरोवर'....अब सम्पूर्ण सृष्टि का भार ‘श्री हरी’ के पास....विष्णु....संचालक या प्रचालक.....TOTAL OPERATION…..चाणक्य-नीति तथा विदुर-नीति का सुदृढ़ सामंजस्य......साम, दाम, दण्ड, भेद.....पूर्ण रूपेण सहिष्णु प्रशासन.....शायद इसीलिए विष्णु नाम सार्थक....आग्रहपूर्वक आदेश या सविनय अवज्ञा......मूल्यों का हास् या क्षय कदापि नहीं....क्षमा, रक्षा, न्याय, व्यवस्था.....विधि का विधान....सम्पूर्ण ‘विधायक-चिंतन”......न उत्पत्ति, न संहार......बस उचित परवरिश.....न जीत का लालच, न हार का डर.....’हरी करे सो खरी’....’नर ही नारायण’....हरी कथा अनंता.....शिखर-दर्शन हो या गर्भ-गृह.....समान आस्था तथा श्रध्दा.....तुलनात्मक दृष्टि से सिर्फ तराजू ही सही हो सकती है....एक पक्ष शुद्धता में सदा स्थायी....परन्तु दो व्यक्तियों में अगर तुलना हो तो किस को, किस स्तर से स्थायी तथा शुद्ध  माना जावे....व्यक्ति कितना भी स्थायित्व की ओर अग्रसर हो, परन्तु जीवन का स्थायित्व अपनी जगह....वर्ष का एक दिन उम्र में कम होता है या फिर बढता है ?.....समझ-समझ का फेर है....एक पलड़े में सरस्वती....सदा स्थायी....और दुसरे में चंचला लक्ष्मी.... So Be A Editor...The in-charge of 'EDITION'...editing  अर्थात "कांट-छांट"....सामान्य काम....प्रत्येक के लिये...और सीखना भी सामान्य....किसी भी 'विनायक-पोस्ट' को किसी भी दृष्टि से कांट-छांट या "COPY या PEST" करे...और पारंगत होने का सुअवसर....रंग में रंगने का 'विनायक-परिश्रम'...न हार का डर, न जीत का लालच...Save, Send, Publish....स्वयं का निर्णय.... हम क्या चाहते है ? और उसे किस प्रकार हासिल करना चाहते है ?...एडिटिंग का अभिप्राय आत्म-संशोधन से है……हमारा ऑडिट तो कोई भी कर देगा…… आत्म-संशोधित करने का काम हमें स्वयं करना होगा.....जय श्री महाकाल.....शतरंज की चालों का खौफ उन्हें होता है , जो सियासत करते है...अखण्ड ब्रहमांड के राजा महाकाल के भक्त है तो न हार का डर, न जीत का लालच....चिन्ता हो ना भय...’हर-हर महादेव’....चिन्तामण चिन्ता हरे । कष्ट हरे महाँकाल ।। हरसिध्दी माँ सिध्दी दे । आशीष दे गोपाल ||....हार्दिक स्वागतम.....समय अपना-अपना....और आदान-प्रदान हो जाए....तो सहज आमने-सामने.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव...#विनायक समाधान#” @ 91654-18344...#vinayaksamadhan# (INDORE/UJJAIN/DEWAS)#








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