Sunday 20 December 2015

just an information on number #NINE#...#9#......अंक नौ(9-NINE)...सिद्ध-पूर्णांक...यही अंक हो सकता है वैदिक गणना का आश्रम....प्राचीन काल में सामाजिक व्यवस्था के दो स्तंभ थे - वर्ण और ‪#‎आश्रम‬#....मनुष्य की प्रकृति-गुण, कर्म और स्वभाव-के आधार पर मानवमात्र का वर्गीकरण चार वर्णो में हुआ था...व्यक्तिगत संस्कार के लिए उसके जीवन का विभाजन चार आश्रमों में किया गया था....ये चार आश्रम थे-(१) ब्रह्मचर्य, (२) गृहस्थ, (३) वानप्रस्थ और (४) संन्यास...अर्थात्‌ जिसमें सम्यक प्रकार से श्रम किया जाए वह आश्रम है अथवा आश्रम जीवन की वह स्थिति है जिसमें कर्तव्यपालन के लिए पूर्ण परिश्रम किया जाए...उपकार या परोपकार हेतु परिश्रम....‪#‎विनायक‬-‪#‎परिश्रम‬...अखण्ड....अक्षय....अजर-अमर....आश्रम अर्थात 'अवस्थाविशेष' विश्राम का स्थान'.... 'ऋषिमुनियों के रहने का पवित्र स्थान'...तब तो आश्रम की परिधि सिमित कैसे ?....आश्रम तो वायुमंडल के समकक्ष मान्य है....परिधि तो परकोटे की संभव है....एक नियत क्षेत्रफल....अर्थात आमने-सामने....और वायुमंडल सहज सम्मुख....अखण्ड....अक्षय....अजर-अमर....और समस्त गणनाओं का मुख्य आधार....अंक नौ(9-NINE)...सिद्ध-पूर्णांक...यही अंक हो सकता है वैदिक गणना का आश्रम....और वायुमंडल को अनुभव करने की शर्त....आमने-सामने...राम-राम सा.....दो बार “राम राम" बोलने के पीछे बड़ा गूढ़ रहस्य....हिन्दी की शब्दावली में.....‘र' २७(27th) वां शब्द है....‘आ’ की मात्रा २ दूसरा(2nd).....‘म' २५ वां(25th) शब्द है.....अब तीनो अंको का योग करें तो (२७+२+२५=५४) अर्थात एक “राम” का योग ५४ हुआ…..इसी प्रकार दो “राम-राम” का कुल योग १०८ होगा....और १०८ बार जाप करना हमारे धर्म, संस्कृति और पुराणों मे पवित्र कहा गया है....अत: “राम-राम” के उच्चारण द्वारा हमें १०८ मनके की माला जपनें जैसा पुण्य प्राप्त होता है..अंक नौ(9-NINE)...सिद्ध-पूर्णांक....अक्षय अर्थात विनायक-अंक माना जाता है....(54=5+4=9)....(108=1+0+8=9)...(1008=1+0+0+8=9).....साधारण तथ्य--''जो ‪#‎उर्जा‬# को जागृत करे"....यही है 'विनायक-योग'.....’आमने-सामने’ एक दुसरे को “राम-राम” कहने के लिए....ऐसा कहा जाता है कि ‪#‎राम‬# नाम पापो का नाशक और मन को शांत करने वाला है...वास्तव मे ऐसा है क्योकि मंत्र शास्त्र के अनुसार "रा" अग्नि का बीज मन्त्र है जो कि पापो को भस्म करने को अग्नि के सिद्धान्त पर काम करता है और इसी तरह "म" चन्द्र का जो मन को शीतल और शांत करके शान्ति देता है... ठीक जैसे उत्तम 'वैदिक-योग'....सम्पूर्ण चर्चा का "संपर्क-सूत्र'..."विनायक-सूत्र"...."91654-18344"...'9+1+6+5+4+1+8+3+4+4'='45'="9" अर्थात सहज अक्षय समीकरण....इस समीकरण में सम्पूर्ण अंक-शास्त्र सिर्फ तीन अंक गायब है.....0, 2, 7... और (0+2+7=9)....जो अप्रत्यक्ष है, वही प्रत्यक्ष है....यह बात अलग है कि दोनों को जानने के लिए समीकरण हल करना अनिवार्य है...सात्विक तथा सहज परिश्रम...'विनायक-परिश्रम'...मात्र अध्ययन...अध्ययन के अनेक अंग....सबका एक ही रंग....मात्र, सिर्फ, केवल, Only..."सत्संग"...जहाँ और कुछ नहीं हो सकता है, बस...."ईश्वर की उपस्तिथि का अहसास होता है"....#%#.....#विनायक-परिश्रम#....एक ही प्रार्थना..."सर्वे भवन्तु सुखिनः" एवम् एक ही आधार "गुरू कृपा हिं केवलमं"....आप सभी आमंत्रित है....पूर्व निर्धारित समय हमेशा की तरह सुविधा सिध्द होती रहेगी....हार्दिक स्वागतम.....समय अपना-अपना....और आदान-प्रदान हो जाए....तो सहज आमने-सामने.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव...”#विनायक-समाधान#” @ #09165418344#...‪#‎vinayaksamadhan‬# ‪#‎INDORE‬#/‪#‎UJJAIN‬#/‪#‎DEWAS‬#...जय हो...सादर नमन...‪#‎Regards‬#..










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