Monday 7 December 2015

#LIVE#.....FROM #VINAYAKSAMADHAN#.......
#LIVE#......hello... hello....#Hello#....Listen Property.....चित्र संलग्न है...Probably OR sure ….#IMPORTANT#....We are the #BIRDS#....from the #आश्रम#.....We are the #WORDS#.....वह #चर्चा# रूपी साहित्य जो मित्रो के साथ साझा हुई....पढने की शुरुआत या प्रारम्भ, अन्त से भी कर सकते है...अभिनव-प्रयोग....उल्टा-पुल्टा स्वतः सीधा-सीधा....स्वयं सिद्ध करे....याद रखने की जरुरत नहीं....एकान्त का सार्वजानिक प्रदर्शन....#SUNDAY#...#LIVE#....From #KALYANI-KUNJ#.....#JUNI-INDORE#.....#मध्य-प्रदेश#...#भारत#....#INDIA#....संलग्न-चित्र का अध्ययन करने के पश्चात ज्ञात होता है कि समस्त विशेषताओं को प्राप्त करना है तो सर्वप्रथम सरल होना आवश्यक शर्त हो सकती है....कहानी, किस्सों की दुनिया अनंत....सब मात्र आनंद के लिए....क्योकि व्यक्ति आनंद के अभाव में साक्षात मृतप्रायः अर्थात बेजान....जैसे शरीर से रक्त निचोड़ने की कल्पना...खून की कमि है तो धन्वन्तरी, पतंजलि है....धन की कमि है तो मात्र परिश्रम.....कोई तोड़ नहीं...मांडवाली कदापि नहीं....."उल्लू" का परिश्रम सबसे अलग .....'रात्रि-जागरण'...परिश्रम कुछ अलग हट कर...सदैव....शायद इसीलिए लक्ष्मी प्रसन्न....मात्र चंचलता का भ्रमण...."TOTAL NO TENSION JOB".....रही बात मन की तो एक ही बात लाख टके की...."हरी करे सो खरी"....आनंद तो कल्पना मात्र है....सहज सम्मिश्रण....मात्र तीन घटक....#तन-मन-धन#...सरल सूत्र.....समागम का मार्ग....धर्म की सहमति...सदैव.....तन सर्वप्रथम--'जान है तो जहां है'....मन तो स्वयं साक्षात स्वयंभू प्रत्यक्ष.....आनंद का स्त्रोत....."मिल के खयालो में, अपने बलम से"......शायद यही आनंद....मध्य-क्रम में खुश....न पहलवान, न धनवान....और सबसे आखिर में धन....सर्वाधिकार श्री देवी लक्ष्मी के पास सुरक्षित...जो #रोटी# की चाल को नृत्य समझे....सुन्दर नृत्य....एक खड़ी, एक पड़ी, एक छमा-छम....और छम-छम के कदम तो मात्र #श्रीदेवी# के....छमा-छम और छम-छम का संगम.....शायद यही चंचलता.....और चंचलता का वाहन #उल्लू#.....और भ्रमण भी मात्र रात्रि में....और यह उलूक-कर्म आदमी के बस में नहीं....और यही ईष्या का कारण हो सकता है....और अनेक वक्तव्य....मात्र रात्रि-जागरण तथा दिन में विश्राम के मध्य...."जो जागत है, वो पावत है"....जो सोवत है, वो खोवत है.....जागरण के पश्चात विश्राम स्वीकार....वरना 'खोया-पाया' केंद्र प्रत्येक मेले में उपलब्ध.....और स्वयं के घर से बेहतर कोई 'खाया-पिया' केंद्र नहीं....और व्ययामशाला ही एकमात्र 'खाया-पाया' केंद्र... और मन साक्षात् केंद्र है....खोजने से परे मात्र उत्पत्ति....सरल-सूत्र.....#तन+मन+धन#.....#33+33+33=99#.....यह #DIFFERENTIAL# गणना पुर्णतः वैदिक.....वैदिक गणित में मन्त्रों की मन्त्रणा....सात्विक-संपादन.....सात्विक-यंत्र....सहज #गागर में सागर".....#TOTAL INTEGRATION#.....#हरिद्रा गणेश# #सिद्धि-यंत्र# का अध्ययन आवश्यक हो जाता है....समस्त विशेषताये किसी भी सामान्य व्यक्ति में संभव है...अत्श्योक्ति पूर्ण व्याख्या कदापि नहीं....सात्विक-संपादन....प्रभु विनायक स्वयं सम्पादित है....स्वयं स्वयंभू, शम्भू का आशर्वाद.....विनायक-मेहमान....हर उत्सव की शान.....आकार-प्रकार भिन्न.....श्रवण, किर्तन, चिंतन, मनन सर्वदा भिन्न....आहार, विहार, सदाचार अनिवार्य, अभिन्न सात्विक.....एक ही चमत्कार कि शुद्ध शाकाहार.......मात्र चिंघाड़ से युद्ध जाग्रत हो जाये....आगाह करने के लिये....#यलगार# हो....पता नहीं....मालुम नहीं...अनेक स्वर में अनेक प्रश्न....समस्त प्रश्नों का अत्यन्त आसान जवाब...वास्तव में पता नहीं तब तो मन सुनिश्चिंत "ईमानदार" परन्तु यदि मन में कुछ है और मौन से शब्द तथा शब्द से वाक्य की रचना न हो तो स्वयं के लिए क्या 'सम्बोधन' होगा ?....यह तो मन ही जाने.....परन्तु उत्तर की प्रतिक्षा किसी अन्य दिशा को चुन लेगी....जीवन के आरम्भ तथा अन्त के मध्य अनेकानेक प्रश्नोत्तर....मन सभी मुल्य स्वीकार करता है परन्तु हानि युक्त मुल्य कदापि नहीं...सरल सम्मान तुल्य....और कोई शीघ्रता से अपने सवालों का जवाब चाहता है तो यह मान सकते है कि उसके लिए #जीवन# एक बहुत ही सीमित बात है..."सीमित-मुल्य"....#कल, आज और कल#....सीमित #शब्दकोष#....और जीवन के मूल्यों का शब्दकोष अनन्त....अपार.....और जब शब्दों का #क्रमचय-संचय#  प्रगाढ़ हो जाए तो यह मान कर चलिए कि तब प्रश्न स्वतः उत्तर बन जाते है....#कब ? क्यों ? कैसे ?....#राम जाने#.....पर हम यह गौर कर सकते है कि जहाँ आकाश और धरती मिलते है....#HORIZON#.....वहाँ न कोई अन्त है, न कोई विभाजन....वहाँ सिर्फ गति ही हो सकती है....मन की यात्रा सिर्फ एक ज्ञात से दुसरे ज्ञात की ओर....शायद सक्रियता का यही श्री-गणेश....सहज-सरल प्रारब्ध....# # से महत्वपूर्ण #%#...#विनायक-प्रारब्ध#....हार्दिक स्वागतम.....समय अपना-अपना....और आदान-प्रदान हो जाए....तो सहज आमने-सामने.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव...#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#...#vinayaksamadhan# #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#

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