Monday 21 December 2015

#‎LIVE‬#.....From the desk of ‪#‎VINAYAKSAMADHAN‬#.....‪#‎भूलभुलैय्या‬#.....so please study, although ‪#‎POST‬# may be long.....‪#‎JUST‬ for YOU#.....बड़े ‪#‎होर्डिंग‬# की लागत ज्यादा हो सकती है, परन्तु छोटे #होर्डिंग# तो कोई भी बना सकता है..... ‪#‎चित्र‬# ध्यान से देखियेगा....प्रत्येक ‪#‎अप्रत्यक्ष‬# प्रश्न का उत्तर चित्र स्वयं देने का प्रयास करेगा....मात्र तन, मन, धन के बारे में.....जीने के लिए ‪#‎जीवन‬# भले ही छोटा सही, परन्तु उपाय द्वारा ‪#‎सुधार‬# के लिए बहुत लम्बा....मुड (‪#‎mood‬#) ख़राब है तो सब कुछ ख़राब लग सकता है....ठीक जैसे ‪#‎पेट‬# ख़राब हो जाता है, ‪#‎कभी‬-कभी#....किसी कार्य को टालने के लिए mood का हवाला देना अत्यंत आसान....और सविनय अवज्ञा आन्दोलन या वादाखिलाफ़ी....तब मुड़ सही करने के लिए क्या उचित है ?...यह हम अपने अनुसार तय करते है.....और mood सही करने लिए simplest one उपाय सर्व-श्रेष्ठ माने गए है....जो प्रत्येक धर्म में विभिन्न शास्त्रों में लिखा है.....‪#‎कब‬?, ‪#‎क्यों‬?, ‪#‎कैसे‬?...सबको मालुम है....कुछ-कुछ, बहुत-कुछ, सब-कुछ.....परन्तु hardest one को सही मानते हुए...mood को सही करने की कोशिश करते है....अर्थात सामान्य सी बात है कि शास्त्र पढ़े नहीं जाते है....और यह और भी सामान्य बात है कि शास्त्र आसानी से सुने जा सकते है.....और यह परम साधारण सत्य है कि पढना हो या सुनना हो, दोनों में ‪#‎ध्यान‬# आवश्यक है....और जो कुछ है मात्र ‪#‎अध्ययन‬#.....busy without business.....कोई व्यवसाय नहीं....जबकि mood सही करने का व्यवसाय ‪#‎business‬# व्यापक स्तर पर....स्वयं से प्रश्न....What More ?, What Next ?, What Else ?.....The Three Magical Questions that PROPEL Progress....’विनायक-प्रश्नोत्तर’.....भक्त, भक्ति और भगवान को मानव के अतिरिक्त कोई दूसरा समझ ही नहीं सकता है...फटा ‪#‎पोस्टर‬# निकला ‪#‎हीरो‬#.....बिल्कुल ‪#‎भीड़‬# से अलग...‪#‎भेड़‬# वाली चाल नहीं....एक समीकरण को हल करने के लिए दो मित्र पर्याप्त है...साझा अध्ययन...COMBINED STUDY…..कोई पहेली नहीं....रचना हमारी खुद की, स्वयं द्वारा रचित....छोटी-बड़ी...आड़ी-तिरछी....सीधी-सादी...मोटी-पतली....भले ही कैसी भी हो....है तो स्व-रचित....कोई प्रतियोगिता या प्रतिस्पर्धा नहीं....कोई हार या जीत नहीं.....सुना है कुछ लोग अपनी लकीर को बड़ी करने के लिए, दूसरों की लकीरों को अकसर मिटा कर या घटा कर छोटी कर देते है....तब वें यह भूल जाते है कि मजा तो सिर्फ अपनी लकीर बड़ी करने में है...और यह मजा मात्र सरल या आसान होने के कारण है....जितना वक्त लकीर मिटाने में लगता है, उससे कंही कम वक्त लकीर बनाने में लगता है....शायद इसीलिए प्रकृति-प्रदत्त....सहज हस्त-रेखायें....प्रत्येक मानव-हस्त पर नैसर्गिक रचना....विधाता का सहज ‘लेख’....शायद आज-तक कोई न निकाल सका....’मीन-मेख’....और अन्त तक विधाता यही कहे...’देख तमाशा देख’....और चिंता की कोई बात नहीं....सब ईश्वरीय ‘देख-रेख....We Demand….क्षमा, रक्षा, न्याय, व्यवस्था....’जाको राखे साईयाँ, मार सके ना कोय’.... #JUST for YOU#.......बड़े #होर्डिंग# की लागत ज्यादा हो सकती है, परन्तु छोटे #होर्डिंग# तो कोई भी बना सकता है..... #चित्र# ध्यान से देखियेगा....प्रत्येक #अप्रत्यक्ष# प्रश्न का उत्तर चित्र स्वयं देने का प्रयास करेगा....एक विनायक-मित्र के रूप में....इस चित्र में मात्र तीन रेखाए....और सहज दृष्टि अर्थात एक आँख...विनायक-दृष्टि....संजय दृष्टि या दिव्य दृष्टि.....‪#‎आँखे‬# मनुष्य की सर्वोत्तम ज्ञानेन्द्रिय अंग है....#चित्र# से बेहतरीन #मित्र# भला और कौन ? इसीलिए #त्राटक# योग सर्वोत्तम #ध्यान# माना गया है....किसी भी चित्र को सोलह सेकण्ड तक स्वतः #अध्ययन# करती रहती है....और हमेशा के लिए संग्रह कर सकती है....और यह किसी #चमत्कार# से कम नहीं....शायद #ईशान# में अवश्य बोलते है.....बस #ध्यान# से सुनना होगा...बस सहज #ध्यान# ही विनम्र निवेदन…..एक मात्र सद्बुद्धि का सन्मार्ग....सात्विक मार्ग....चाहे #कर्म# हो या #धर्म#......मात्र #सत्संग#....उपदेश या उद्देश्य....जो भी हो परन्तु हो #आमने-सामने#....गुरु द्रोणाचार्य ने शिष्य एकलव्य को कभी उपदेश नहीं दिया...और उद्देश्य भी एकलव्य द्वारा स्व-निर्धारित किया गया....स्पष्ट चर्चा....न पांडाल न ही कोई धर्मगुरु....अक्सर शंकाये हो जाती है....किसी ने कुछ कर दिया है....#क्या# कर दिया ?....ऐसा लगता है तो...#क्यों# लगता है ?.....हर कार्य शीघ्रातिशीघ्र हो परन्तु...#कब# हो ?....प्रत्येक कार्य आसानी से हो....#कैसे हो ?......कब ? क्यों ? कैसे ?...….'तलाशने या खोजने का अपना एक अलग आनंद होता है'...जिज्ञासा प्रतिपल या प्रतिदिन...हो सकता है, कुछ काम को बनाने वाली बात मिल जाये...और मिल जाये तो "निश्चिन्त हो कर निश्चिन्त रूप" से समझना पड़ सकता है...चर्चा अर्थात् 'शब्दों के सरोवर में' तैरने का प्रयत्न या अभ्यास या आनन्द....सब कहते है वो है....कौन है वह ?....अब मस्तिष्क को खोलना होगा....सारी दुनिया का शोरगुल सब सहे....अध्ययन-अध्ययन सब कहे....मौन धरे न कोय.....बिन मौन के ध्यान और ज्ञान कहाँ से होय ?.....मूर्तियों को मौन रहने पर भी पूजा जाता है.....पैर इतने फैलाना है जितने पैर लम्बे है....या जितने पैर लम्बे है उतनी चादर भी लम्बी होना चाहिए....या इतनी चादर फैलाओ जितने पैर लंबे है....दिमाग ही नहीं प्रत्येक बंद संदूक को खोलने के लिए संदूक के आमने-सामने होना आवश्यक है....राम-राम सदैव सत्य संबोधन सिद्ध हुवा है....हाथ में हाथ....स्वयं के द्वारा हो....अभिवादन या निवेदन....और एक से एक हो अर्थात आमने-सामने हो तो....सत्संग...न उपदेश, न उपाय....मात्र सात्विक कर्म....सौ व्याधि की एक दावा....कोई दावा नहीं.....न जीत का लालच, न हार का डर....वायुमंडल दीखता नहीं परन्तु उसका असर दीखता है.....वह भी सेहत पर.....अर्थात #तन जो #मन तथा #धन दोनों को धारण करता है......”मै धारक को वचन देता हूँ.....न विश्वास हो तो हस्ताक्षर देख लीजिये....सचमुच....#सत्यमेव जयते#.....गुरुदेव योग गुरु बाबा #रामदेव#.....सादर प्रणाम....यह हम नहीं अपितु सारा अंतर्राष्ट्रीय जगत कह रहा है....सम्पूर्ण विश्व के स्वास्थ्य में अभूतपूर्व परिवर्तन....और बाबा के प्रबंधन में का कोई तोड़ नहीं....सहज प्रबंधन गुरु....#विनायक-प्रबंधन#....मांडवाली हरगिज नहीं....गूढ़ रहस्य....कोई उपदेश नहीं.....मात्र स्वयं का अनुभव......तर्क-वितर्क...अहम्-पहलु...और यदि इस पहलु को सकारात्मक बनाने की जिसने भी पहल करी...बस वही कहलाता है..."जो जीता,वही सिकंदर"...और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वही कहलाता है... "मुकद्दर का सिकंदर"...युद्ध के मैदान में भाग्य का कार्य बहुत कम तथा पुरुषार्थ का कार्य बहुत ज्यादा हो सकता है... पुरुषार्थ हमारे "आसन" को पुष्ट करने का एक-मात्र माध्यम या सेतु है.....निश्चिन्त रूप से हमेशा के लिए...मजबूत आसन का एक-मात्र आधार-"मजबूत पुरुषार्थ "…'सेर को सवा सेर' मिल ही जाते है परन्तु मन तो स्वतः 'सवा-मन' हो जाता है...शायद इसीलिए मन को काबू में रखा जाता है...यह सार्थक करने के लिए...."मन चंगा तो कठौती में गंगा"....सादर नमन....जय हो....हार्दिक स्वागत....जय-गुरुवर....प्रणाम...इस 'प्रण' के साथ कि 'प्रमाण' में 'प्राण' बसे...Just Because Of You...."अणु में अवशेष".....#मुद्रा या रोकड़# से महत्वपूर्ण #%#.....#विनायक-परिश्रम#....एक ही प्रार्थना..."सर्वे भवन्तु सुखिनः" एवम् एक ही आधार "गुरू कृपा हिं केवलमं"....आप सभी आमंत्रित है....पूर्व निर्धारित समय हमेशा की तरह सुविधा सिध्द होती रहेगी....हार्दिक स्वागतम.....समय अपना-अपना....और आदान-प्रदान हो जाए....तो सहज आमने-सामने.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव...”#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#...#vinayaksamadhan# #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#..








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