Monday 21 December 2015

Vinayak Samadhan: #‎LIVE‬#.....From the desk of ‪#‎VINAYAKSAMADHAN‬#...

Vinayak Samadhan: #‎LIVE‬#.....From the desk of ‪#‎VINAYAKSAMADHAN‬#...: #‎LIVE‬#.....From the desk of ‪#‎VINAYAKSAMADHAN‬#.....‪#‎भूलभुलैय्या‬#.....so please study, although ‪#‎POST‬# may be long.....‪#‎JUST‬ fo...
#‎LIVE‬#.....From the desk of ‪#‎VINAYAKSAMADHAN‬#.....‪#‎भूलभुलैय्या‬#.....so please study, although ‪#‎POST‬# may be long.....‪#‎JUST‬ for YOU#.....बड़े ‪#‎होर्डिंग‬# की लागत ज्यादा हो सकती है, परन्तु छोटे #होर्डिंग# तो कोई भी बना सकता है..... ‪#‎चित्र‬# ध्यान से देखियेगा....प्रत्येक ‪#‎अप्रत्यक्ष‬# प्रश्न का उत्तर चित्र स्वयं देने का प्रयास करेगा....मात्र तन, मन, धन के बारे में.....जीने के लिए ‪#‎जीवन‬# भले ही छोटा सही, परन्तु उपाय द्वारा ‪#‎सुधार‬# के लिए बहुत लम्बा....मुड (‪#‎mood‬#) ख़राब है तो सब कुछ ख़राब लग सकता है....ठीक जैसे ‪#‎पेट‬# ख़राब हो जाता है, ‪#‎कभी‬-कभी#....किसी कार्य को टालने के लिए mood का हवाला देना अत्यंत आसान....और सविनय अवज्ञा आन्दोलन या वादाखिलाफ़ी....तब मुड़ सही करने के लिए क्या उचित है ?...यह हम अपने अनुसार तय करते है.....और mood सही करने लिए simplest one उपाय सर्व-श्रेष्ठ माने गए है....जो प्रत्येक धर्म में विभिन्न शास्त्रों में लिखा है.....‪#‎कब‬?, ‪#‎क्यों‬?, ‪#‎कैसे‬?...सबको मालुम है....कुछ-कुछ, बहुत-कुछ, सब-कुछ.....परन्तु hardest one को सही मानते हुए...mood को सही करने की कोशिश करते है....अर्थात सामान्य सी बात है कि शास्त्र पढ़े नहीं जाते है....और यह और भी सामान्य बात है कि शास्त्र आसानी से सुने जा सकते है.....और यह परम साधारण सत्य है कि पढना हो या सुनना हो, दोनों में ‪#‎ध्यान‬# आवश्यक है....और जो कुछ है मात्र ‪#‎अध्ययन‬#.....busy without business.....कोई व्यवसाय नहीं....जबकि mood सही करने का व्यवसाय ‪#‎business‬# व्यापक स्तर पर....स्वयं से प्रश्न....What More ?, What Next ?, What Else ?.....The Three Magical Questions that PROPEL Progress....’विनायक-प्रश्नोत्तर’.....भक्त, भक्ति और भगवान को मानव के अतिरिक्त कोई दूसरा समझ ही नहीं सकता है...फटा ‪#‎पोस्टर‬# निकला ‪#‎हीरो‬#.....बिल्कुल ‪#‎भीड़‬# से अलग...‪#‎भेड़‬# वाली चाल नहीं....एक समीकरण को हल करने के लिए दो मित्र पर्याप्त है...साझा अध्ययन...COMBINED STUDY…..कोई पहेली नहीं....रचना हमारी खुद की, स्वयं द्वारा रचित....छोटी-बड़ी...आड़ी-तिरछी....सीधी-सादी...मोटी-पतली....भले ही कैसी भी हो....है तो स्व-रचित....कोई प्रतियोगिता या प्रतिस्पर्धा नहीं....कोई हार या जीत नहीं.....सुना है कुछ लोग अपनी लकीर को बड़ी करने के लिए, दूसरों की लकीरों को अकसर मिटा कर या घटा कर छोटी कर देते है....तब वें यह भूल जाते है कि मजा तो सिर्फ अपनी लकीर बड़ी करने में है...और यह मजा मात्र सरल या आसान होने के कारण है....जितना वक्त लकीर मिटाने में लगता है, उससे कंही कम वक्त लकीर बनाने में लगता है....शायद इसीलिए प्रकृति-प्रदत्त....सहज हस्त-रेखायें....प्रत्येक मानव-हस्त पर नैसर्गिक रचना....विधाता का सहज ‘लेख’....शायद आज-तक कोई न निकाल सका....’मीन-मेख’....और अन्त तक विधाता यही कहे...’देख तमाशा देख’....और चिंता की कोई बात नहीं....सब ईश्वरीय ‘देख-रेख....We Demand….क्षमा, रक्षा, न्याय, व्यवस्था....’जाको राखे साईयाँ, मार सके ना कोय’.... #JUST for YOU#.......बड़े #होर्डिंग# की लागत ज्यादा हो सकती है, परन्तु छोटे #होर्डिंग# तो कोई भी बना सकता है..... #चित्र# ध्यान से देखियेगा....प्रत्येक #अप्रत्यक्ष# प्रश्न का उत्तर चित्र स्वयं देने का प्रयास करेगा....एक विनायक-मित्र के रूप में....इस चित्र में मात्र तीन रेखाए....और सहज दृष्टि अर्थात एक आँख...विनायक-दृष्टि....संजय दृष्टि या दिव्य दृष्टि.....‪#‎आँखे‬# मनुष्य की सर्वोत्तम ज्ञानेन्द्रिय अंग है....#चित्र# से बेहतरीन #मित्र# भला और कौन ? इसीलिए #त्राटक# योग सर्वोत्तम #ध्यान# माना गया है....किसी भी चित्र को सोलह सेकण्ड तक स्वतः #अध्ययन# करती रहती है....और हमेशा के लिए संग्रह कर सकती है....और यह किसी #चमत्कार# से कम नहीं....शायद #ईशान# में अवश्य बोलते है.....बस #ध्यान# से सुनना होगा...बस सहज #ध्यान# ही विनम्र निवेदन…..एक मात्र सद्बुद्धि का सन्मार्ग....सात्विक मार्ग....चाहे #कर्म# हो या #धर्म#......मात्र #सत्संग#....उपदेश या उद्देश्य....जो भी हो परन्तु हो #आमने-सामने#....गुरु द्रोणाचार्य ने शिष्य एकलव्य को कभी उपदेश नहीं दिया...और उद्देश्य भी एकलव्य द्वारा स्व-निर्धारित किया गया....स्पष्ट चर्चा....न पांडाल न ही कोई धर्मगुरु....अक्सर शंकाये हो जाती है....किसी ने कुछ कर दिया है....#क्या# कर दिया ?....ऐसा लगता है तो...#क्यों# लगता है ?.....हर कार्य शीघ्रातिशीघ्र हो परन्तु...#कब# हो ?....प्रत्येक कार्य आसानी से हो....#कैसे हो ?......कब ? क्यों ? कैसे ?...….'तलाशने या खोजने का अपना एक अलग आनंद होता है'...जिज्ञासा प्रतिपल या प्रतिदिन...हो सकता है, कुछ काम को बनाने वाली बात मिल जाये...और मिल जाये तो "निश्चिन्त हो कर निश्चिन्त रूप" से समझना पड़ सकता है...चर्चा अर्थात् 'शब्दों के सरोवर में' तैरने का प्रयत्न या अभ्यास या आनन्द....सब कहते है वो है....कौन है वह ?....अब मस्तिष्क को खोलना होगा....सारी दुनिया का शोरगुल सब सहे....अध्ययन-अध्ययन सब कहे....मौन धरे न कोय.....बिन मौन के ध्यान और ज्ञान कहाँ से होय ?.....मूर्तियों को मौन रहने पर भी पूजा जाता है.....पैर इतने फैलाना है जितने पैर लम्बे है....या जितने पैर लम्बे है उतनी चादर भी लम्बी होना चाहिए....या इतनी चादर फैलाओ जितने पैर लंबे है....दिमाग ही नहीं प्रत्येक बंद संदूक को खोलने के लिए संदूक के आमने-सामने होना आवश्यक है....राम-राम सदैव सत्य संबोधन सिद्ध हुवा है....हाथ में हाथ....स्वयं के द्वारा हो....अभिवादन या निवेदन....और एक से एक हो अर्थात आमने-सामने हो तो....सत्संग...न उपदेश, न उपाय....मात्र सात्विक कर्म....सौ व्याधि की एक दावा....कोई दावा नहीं.....न जीत का लालच, न हार का डर....वायुमंडल दीखता नहीं परन्तु उसका असर दीखता है.....वह भी सेहत पर.....अर्थात #तन जो #मन तथा #धन दोनों को धारण करता है......”मै धारक को वचन देता हूँ.....न विश्वास हो तो हस्ताक्षर देख लीजिये....सचमुच....#सत्यमेव जयते#.....गुरुदेव योग गुरु बाबा #रामदेव#.....सादर प्रणाम....यह हम नहीं अपितु सारा अंतर्राष्ट्रीय जगत कह रहा है....सम्पूर्ण विश्व के स्वास्थ्य में अभूतपूर्व परिवर्तन....और बाबा के प्रबंधन में का कोई तोड़ नहीं....सहज प्रबंधन गुरु....#विनायक-प्रबंधन#....मांडवाली हरगिज नहीं....गूढ़ रहस्य....कोई उपदेश नहीं.....मात्र स्वयं का अनुभव......तर्क-वितर्क...अहम्-पहलु...और यदि इस पहलु को सकारात्मक बनाने की जिसने भी पहल करी...बस वही कहलाता है..."जो जीता,वही सिकंदर"...और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वही कहलाता है... "मुकद्दर का सिकंदर"...युद्ध के मैदान में भाग्य का कार्य बहुत कम तथा पुरुषार्थ का कार्य बहुत ज्यादा हो सकता है... पुरुषार्थ हमारे "आसन" को पुष्ट करने का एक-मात्र माध्यम या सेतु है.....निश्चिन्त रूप से हमेशा के लिए...मजबूत आसन का एक-मात्र आधार-"मजबूत पुरुषार्थ "…'सेर को सवा सेर' मिल ही जाते है परन्तु मन तो स्वतः 'सवा-मन' हो जाता है...शायद इसीलिए मन को काबू में रखा जाता है...यह सार्थक करने के लिए...."मन चंगा तो कठौती में गंगा"....सादर नमन....जय हो....हार्दिक स्वागत....जय-गुरुवर....प्रणाम...इस 'प्रण' के साथ कि 'प्रमाण' में 'प्राण' बसे...Just Because Of You...."अणु में अवशेष".....#मुद्रा या रोकड़# से महत्वपूर्ण #%#.....#विनायक-परिश्रम#....एक ही प्रार्थना..."सर्वे भवन्तु सुखिनः" एवम् एक ही आधार "गुरू कृपा हिं केवलमं"....आप सभी आमंत्रित है....पूर्व निर्धारित समय हमेशा की तरह सुविधा सिध्द होती रहेगी....हार्दिक स्वागतम.....समय अपना-अपना....और आदान-प्रदान हो जाए....तो सहज आमने-सामने.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव...”#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#...#vinayaksamadhan# #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#..








Sunday 20 December 2015

Vinayak Samadhan: just an information on number #NINE#...#9#......अं...

Vinayak Samadhan: just an information on number #NINE#...#9#......अं...: just an information on number #NINE#...#9#......अंक नौ(9-NINE)...सिद्ध-पूर्णांक...यही अंक हो सकता है वैदिक गणना का आश्रम....प्राचीन काल मे...
just an information on number #NINE#...#9#......अंक नौ(9-NINE)...सिद्ध-पूर्णांक...यही अंक हो सकता है वैदिक गणना का आश्रम....प्राचीन काल में सामाजिक व्यवस्था के दो स्तंभ थे - वर्ण और ‪#‎आश्रम‬#....मनुष्य की प्रकृति-गुण, कर्म और स्वभाव-के आधार पर मानवमात्र का वर्गीकरण चार वर्णो में हुआ था...व्यक्तिगत संस्कार के लिए उसके जीवन का विभाजन चार आश्रमों में किया गया था....ये चार आश्रम थे-(१) ब्रह्मचर्य, (२) गृहस्थ, (३) वानप्रस्थ और (४) संन्यास...अर्थात्‌ जिसमें सम्यक प्रकार से श्रम किया जाए वह आश्रम है अथवा आश्रम जीवन की वह स्थिति है जिसमें कर्तव्यपालन के लिए पूर्ण परिश्रम किया जाए...उपकार या परोपकार हेतु परिश्रम....‪#‎विनायक‬-‪#‎परिश्रम‬...अखण्ड....अक्षय....अजर-अमर....आश्रम अर्थात 'अवस्थाविशेष' विश्राम का स्थान'.... 'ऋषिमुनियों के रहने का पवित्र स्थान'...तब तो आश्रम की परिधि सिमित कैसे ?....आश्रम तो वायुमंडल के समकक्ष मान्य है....परिधि तो परकोटे की संभव है....एक नियत क्षेत्रफल....अर्थात आमने-सामने....और वायुमंडल सहज सम्मुख....अखण्ड....अक्षय....अजर-अमर....और समस्त गणनाओं का मुख्य आधार....अंक नौ(9-NINE)...सिद्ध-पूर्णांक...यही अंक हो सकता है वैदिक गणना का आश्रम....और वायुमंडल को अनुभव करने की शर्त....आमने-सामने...राम-राम सा.....दो बार “राम राम" बोलने के पीछे बड़ा गूढ़ रहस्य....हिन्दी की शब्दावली में.....‘र' २७(27th) वां शब्द है....‘आ’ की मात्रा २ दूसरा(2nd).....‘म' २५ वां(25th) शब्द है.....अब तीनो अंको का योग करें तो (२७+२+२५=५४) अर्थात एक “राम” का योग ५४ हुआ…..इसी प्रकार दो “राम-राम” का कुल योग १०८ होगा....और १०८ बार जाप करना हमारे धर्म, संस्कृति और पुराणों मे पवित्र कहा गया है....अत: “राम-राम” के उच्चारण द्वारा हमें १०८ मनके की माला जपनें जैसा पुण्य प्राप्त होता है..अंक नौ(9-NINE)...सिद्ध-पूर्णांक....अक्षय अर्थात विनायक-अंक माना जाता है....(54=5+4=9)....(108=1+0+8=9)...(1008=1+0+0+8=9).....साधारण तथ्य--''जो ‪#‎उर्जा‬# को जागृत करे"....यही है 'विनायक-योग'.....’आमने-सामने’ एक दुसरे को “राम-राम” कहने के लिए....ऐसा कहा जाता है कि ‪#‎राम‬# नाम पापो का नाशक और मन को शांत करने वाला है...वास्तव मे ऐसा है क्योकि मंत्र शास्त्र के अनुसार "रा" अग्नि का बीज मन्त्र है जो कि पापो को भस्म करने को अग्नि के सिद्धान्त पर काम करता है और इसी तरह "म" चन्द्र का जो मन को शीतल और शांत करके शान्ति देता है... ठीक जैसे उत्तम 'वैदिक-योग'....सम्पूर्ण चर्चा का "संपर्क-सूत्र'..."विनायक-सूत्र"...."91654-18344"...'9+1+6+5+4+1+8+3+4+4'='45'="9" अर्थात सहज अक्षय समीकरण....इस समीकरण में सम्पूर्ण अंक-शास्त्र सिर्फ तीन अंक गायब है.....0, 2, 7... और (0+2+7=9)....जो अप्रत्यक्ष है, वही प्रत्यक्ष है....यह बात अलग है कि दोनों को जानने के लिए समीकरण हल करना अनिवार्य है...सात्विक तथा सहज परिश्रम...'विनायक-परिश्रम'...मात्र अध्ययन...अध्ययन के अनेक अंग....सबका एक ही रंग....मात्र, सिर्फ, केवल, Only..."सत्संग"...जहाँ और कुछ नहीं हो सकता है, बस...."ईश्वर की उपस्तिथि का अहसास होता है"....#%#.....#विनायक-परिश्रम#....एक ही प्रार्थना..."सर्वे भवन्तु सुखिनः" एवम् एक ही आधार "गुरू कृपा हिं केवलमं"....आप सभी आमंत्रित है....पूर्व निर्धारित समय हमेशा की तरह सुविधा सिध्द होती रहेगी....हार्दिक स्वागतम.....समय अपना-अपना....और आदान-प्रदान हो जाए....तो सहज आमने-सामने.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव...”#विनायक-समाधान#” @ #09165418344#...‪#‎vinayaksamadhan‬# ‪#‎INDORE‬#/‪#‎UJJAIN‬#/‪#‎DEWAS‬#...जय हो...सादर नमन...‪#‎Regards‬#..










Vinayak Samadhan: #SOMETHING DIFFERENT#.....‪#‎पोस्टर‬# निकला ‪#‎हीर...

Vinayak Samadhan: #SOMETHING DIFFERENT#.....‪#‎पोस्टर‬# निकला ‪#‎हीर...: #SOMETHING DIFFERENT#..... ‪#‎ पोस्टर‬ # निकला ‪#‎ हीरो‬ #.....बिल्कुल ‪#‎ भीड़‬ # से अलग... ‪#‎ भेड़‬ # वाली चाल नहीं.... ‪#‎ JUST‬ for YOU...
#SOMETHING DIFFERENT#.....‪#‎पोस्टर‬# निकला ‪#‎हीरो‬#.....बिल्कुल ‪#‎भीड़‬# से अलग...‪#‎भेड़‬# वाली चाल नहीं.... ‪#‎JUST‬ for YOU#....प्रत्येक ‪#‎चित्र‬# ध्यान से देखियेगा....प्रत्येक ‪#‎अप्रत्यक्ष‬# प्रश्न का उत्तर चित्र स्वयं देने का प्रयास करेगा...एक विनायक-मित्र के रूप में....All of US are Editors….Be sure regarding this…तब किसी की भी कल्पना भर हो परन्तु यदि फटा स्वेटर बीते दिनों की याद दिलाता है तो निश्चिन्त रूप से स्वयं को भूतकाल में महसूस कर सकते है......ठण्ड से बचने के अनेक उपाय परन्तु ठिठुरते शरीर का कम्पन....मात्र स्वयं का अनुभव.....स्कूलों में उसी छात्र का हाथ उठता है जिसको उत्तर मालुम होता है....तब उत्तर और हाथ के बीच स्वेटर की चर्चा नहीं.....और फटे स्वेटर की तो हरगिज नहीं, मांगो एक मिलेंगे हज़ार.....और यदि हाथ किसी फटे स्वेटर वाले का होता है तो एक बार यह विचार आता है कि ऊपर वाला जब भी देता ‪#‎छप्पर‬ फाड़ कर#......विषय कोई भी हो परन्तु अच्छे प्रतिशत उत्तम छात्र की प्रथम पहचान होती है....बस, यही मिल्कियत जो मालिक बनने के लिए पर्याप्त....और जो प्राप्त है वही पर्याप्त है....% या ‪#‎प्रतिभा‬ तो बस ‪#‎अध्ययन‬# मात्र है.....अर्थात ज्ञान जो जल से पतला माना गया है...ठीक एक पक्षी के समान जो ध्यान तथा अध्ययन के पंखो के सक्रियता से जीवित है.....‪#‎प्रतिमा‬ के सामने ‪#‎प्रार्थना‬ करने से #प्रतिभा सम्पन्न होती है.....कहाँ जायेंगे विचार ?...बुलाएँगे तो दस बार आयेंगें....और एक नहीं चार....बस हो साथ में सत्संग का अचार.....चखने पर मिलते है समाचार.....हम पत्थर, मिट्टी,या धातु की पूजा ‪#‎भगवान‬# का स्वरूप मानकर करते हैं.....#भगवान# तो कण-कण मे है, पर एक ‪#‎आधार‬# मानने के लिए और मन को एकाग्र करने के लिए हम मूर्ति पूजा करते हैं.....जीवन का #आधार#....‪#‎आस्था‬#......गुरु ‪#‎द्रोणाचार्य‬# की मूर्ति का पुजारी भला ‪#‎एकलव्य‬# से बेहतर कौन ?...एकलव्य जी ने तो गुरु द्रोणाचार्य जी की मूर्ति को सर्वस्व मान लिया था....और सर्वश्रेष्ठ साबित हुए....गुरु को किसी भी रूप में माना जाये परन्तु गुरु का श्रृंगार श्रद्धा एवम् एकाग्रता से ही सम्भव है.....‪#‎ईश्वर‬# तुल्यं या सर्वोपरि ‪#‎गुरु‬# के स्थान की गणना या मान्यता या तुलना ...परिवार में माता-पिता....शरीर में मष्तिष्क....जन्म-पत्रिका में वृहस्पति ग्रह....हस्त-रेखा में गुरु पर्वत...मित्र-मण्डल में सम्माननीय गण....समाज में वरिष्ठ अथवा बुजुर्ग....कार्य-क्षेत्र या राज्य-पक्ष में वरिष्ठ अथवा सम्माननीय...आश्रम में कल्याणकारी गुरु श्री.....”श्रद्धावान लभते ज्ञानम”..... लाभ अर्थात ज्ञान अर्थात श्रवण, किर्तन, चिन्तन, मनन अर्थात निर्णय लेने की क्षमता...होर्डिंग (विज्ञापन बोर्ड) अर्थात स्वंय को सिध्द करने का प्रयास...बड़े होर्डिंग की लागत ज्यादा हो सकती है परन्तु छोटे होर्डिंग तो कोई भी बना सकता है....‪#‎माँ‬ को भी ‪#‎ममता‬ की ‪#‎मूर्ति‬ कहा जाता है....और #चित्र# से बेहतरीन ‪#‎मित्र‬# भला और कौन ?....‪#‎आँखे‬# मनुष्य की सर्वोत्तम ज्ञानेन्द्रिय अंग है....किसी भी चित्र तो सोलह सेकण्ड तक स्वतः #अध्ययन# करती रहती है....और हमेशा के लिए संग्रह कर सकती है....और यह किसी ‪#‎चमत्कार‬# से कम नहीं....शायद इसीलिए #त्राटक# योग सर्वोत्तम #ध्यान# माना गया है....यह सत्य है कि #चित्र# बोलते है....और #ईशान# में अवश्य बोलते है.....बस #ध्यान# से सुनना होगा...बस सहज #ध्यान# ही विनम्र निवेदन....#%#....कण-कण में सात्विकता....#तन, #मन, #धन.......#तीन रेखाओं का खेल#....हार या जीत पूर्णत: नदारद.....#पूर्णत: सात्विक#..#अखण्ड#...#अक्षय#....जब तक #सूरज# , #चाँद# रहेगा....तब तक किसका नाम रहेगा ?....मालुम नहीं....पर #राम# से बड़ा #राम# का नाम......और जब नाम की बारी आती है तो #विनायक# मित्र श्री #अक्षय अमेरिया साहब सुप्रसिद्ध चित्रकार उज्जैन (म.प्र.) का नाम लेना इसलिए उचित होगा कि निम्न चित्र में से कोई एक इन्ही #विनायक-मित्र# की कृति सादर #विनायक# उपहार है...#बूझो तो जाने#.....मित्र का चित्र, मित्र द्वारा....#गूढ़ रहस्य#…..#सहज-सार्वजनिक#...#आमने-सामने# …...'सेर को सवा सेर' मिल ही जाते है परन्तु मन तो स्वतः 'सवा-मन' हो जाता है...शायद इसीलिए मन को काबू में रखा जाता है...यह सार्थक करने के लिए...."मन चंगा तो कठौती में गंगा"....सादर नमन....जय हो....हार्दिक स्वागत....जय-गुरुवर....प्रणाम...इस 'प्रण' के साथ कि 'प्रमाण' में 'प्राण' बसे...Just Because Of You...."अणु में अवशेष".....#मुद्रा या रोकड़# से महत्वपूर्ण #%#.....#विनायक-परिश्रम#....एक ही प्रार्थना..."सर्वे भवन्तु सुखिनः" एवम् एक ही आधार "गुरू कृपा हिं केवलमं"....आप सभी आमंत्रित है....पूर्व निर्धारित समय हमेशा की तरह सुविधा सिध्द होती रहेगी....हार्दिक स्वागतम.....समय अपना-अपना....और आदान-प्रदान हो जाए....तो सहज आमने-सामने.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव...”#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#...#vinayaksamadhan# #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#









जय हो....सादर नमन....फटा

Wednesday 16 December 2015

Vinayak Samadhan: विनायक कामना की पूर्ति हेतु विनायक प्रार्थना....एक...

Vinayak Samadhan: विनायक कामना की पूर्ति हेतु विनायक प्रार्थना....एक...: विनायक कामना की पूर्ति हेतु विनायक प्रार्थना....एक मात्र मुख्य विनायक आधार--'गुरु कृपा हि केवलम्' ...एकमात्र विनायक उद्देश्य--'...
विनायक कामना की पूर्ति हेतु विनायक प्रार्थना....एक मात्र मुख्य विनायक आधार--'गुरु कृपा हि केवलम्' ...एकमात्र विनायक उद्देश्य--'सर्वे भवन्तु सुखिनः'...#‎ईश्वर‬# तुल्यं या सर्वोपरि ‪#‎गुरु‬# के स्थान की गणना या मान्यता या तुलना ...परिवार में माता-पिता....शरीर में मष्तिष्क....जन्म-पत्रिका में वृहस्पति ग्रह....हस्त-रेखा में गुरु पर्वत...मित्र-मण्डल में सम्माननीय गण....समाज में वरिष्ठ अथवा बुजुर्ग....कार्य-क्षेत्र या राज्य-पक्ष में वरिष्ठ अथवा सम्माननीय...आश्रम में कल्याणकारी गुरु श्री....एकलव्य जी ने तो गुरु द्रोणाचार्य जी की मूर्ती को सर्वस्व मान लिया था....और सर्वश्रेष्ठ साबित हुए....गुरु को किसी भी रूप में माना जाये परन्तु #गुरु# का श्रृगार श्रद्धा एवम् एकाग्रता से ही सम्भव है.....”श्रद्धावान लभते ज्ञानम”..... लाभ अर्थात ज्ञान अर्थात श्रवण, किर्तन, चिन्तन, मनन अर्थात निर्णय लेने की क्षमता...अर्थात ‪#‎अध्ययन‬#...
‪#‎पानी‬# आकाश से गिरे तो........‪#‎बारिश‬#
आकाश की ओर उठे तो........‪#‎भाप‬#
अगर जम कर गिरे तो...........‪#‎ओले‬#
अगर गिर कर जमे तो...........‪#‎बर्फ‬#
फूल पर हो तो....................‪#‎ओस‬#
फूल से निकले तो................‪#‎इत्र‬#
जमा हो जाए तो..................‪#‎झील‬#
बहने लगे तो......................‪#‎नदी‬#
सीमाओं में रहे तो................‪#‎जीवन‬#
सीमाएं तोड़ दे तो................‪#‎प्रलय‬#
आँख से निकले तो..............‪#‎आँसू‬#
शरीर से निकले तो..............‪#‎पसीना‬# और
‪#‎श्री‬ हरी# के चरणों को छू कर निकले तो....‪#‎चरणामृत‬#.....अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में
है जीत तुम्हारे हाथों मैं, है हार तुम्हारे हाथों में.
मेरा निश्चय है ये एक यही एक बार तुम्हें पा जाऊं मैं,
अर्पण करदूं दुनिया भर का, सब प्यार तुम्हारे हाथों में.
अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में
जो जग मे रहूं तो ऐसे रहूं ज्यों जल में कमल का फूल रहे,
मेरे सब गुण दोष समर्पित हो, भगवान तुम्हारे हाथों में
अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे में
यदि मानव ही मुझे जन्म मिले, तब-तब
श्री चरणों का पुजारी बनूँ.
मुझ पूजक की एक-एक रग का, हो तार तुम्हारे हाथों में
अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में
जब जब संसार का कैदी बनू, निष्काम भाव से कर्म करूं,
फिर अंत समय में प्राण तजू, निराकार तुम्हारे हाथों में.
अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में
मुझमें तुझमें है भेद यही, मैं नर हूँ तुम नारायण हो,
मैं हूँ संसार के हाथों में संसार तुम्हारे हाथों में.
अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों मैं
है जीत तुम्हारे हाथों मैं, है हार तुम्हारे हाथों.....हार्दिक स्वागतम.....समय अपना-अपना....और आदान-प्रदान हो जाए....तो सहज आमने-सामने.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव...”‪#‎विनायक‬-समाधान#” @ #09165418344#...‪#‎vinayaksamadhan‬# ‪#‎INDORE‬#/‪#‎UJJAIN‬#/‪#‎DEWAS‬#...जय हो...सादर नमन...‪#‎Regards‬#...








Monday 14 December 2015

Vinayak Samadhan:
#चित्र# ही #मित्र# का स्वरूप.....अब तो सिद्ध हो कर रहेगा......#अखण्ड#...#अक्षय#....जब तक #सूरज# , #चाँद# रहेगा....तब तक किसका नाम रहेगा ?....मालुम नहीं....पर #राम# से बड़ा #राम# का नाम......और जब नाम की बारी आती है तो #विनायक# मित्र श्री #अक्षय अमेरिया साहब का नाम लेना इसलिए उचित होगा कि निम्न चित्र में से कोई एक इन्ही #विनायक-मित्र# की कृति सादर #विनायक# उपहार है...#बूझो तो जाने#.....मित्र का चित्र, मित्र द्वारा....
#गूढ़ रहस्य#…..#सहज-सार्वजनिक#...#आमने-सामने# …स्वामी #विवेकानंद# को एक राजा ने अपने भवन में बुलाया और पूछा गया.....तुम #हिन्दू# लोग मूर्ति की पूजा करते हो....मिट्टी, पीतल, पत्थर की मूर्ति का....पर मैं ये सब नही मानता....ये तो केवल एक पदार्थ है....राजा के सिंहासन के पीछे किसी की तस्वीर लगी थी....#विवेकानंद# जी ने राजा से पूछा, “राजा जी, ये तस्वीर किसकी है?”....राजा ने कहा, “मेरे पिताजी की....स्वामी जी बोले, “उस तस्वीर को अपने हाथ में लीजिये...राजा तस्वीर को हाथ मे ले लेता है...स्वामी जी राजा से :अब आप उस तस्वीर पर थूकिए!......राजा : ये आप क्या बोल रहे हैं स्वामी जी.?“.....स्वामी जी : मैंने कहा उस तस्वीर पर थूकिए.....राजा (क्रोध से) :स्वामी जी, आप होश मे तो हैं ना?....मैं ये काम नही कर सकता.....स्वामी जी बोले, “क्यों?....ये तस्वीर तो केवल एक कागज का टुकड़ा है, और जिस पर कूछ रंग लगा है....इसमे ना तो जान है, ना आवाज, ना तो ये सुन सकता है, और ना ही कूछ बोल सकता है.....ना ही हड्डी है और ना प्राण.... फिर भी आप इस पर कभी थूक नही सकते.....क्योंकि आप इसमे अपने पिता का स्वरूप देखते हो....आप इस तस्वीर का अनादर करना, अपने पिता का अनादर करना समझते हो....वैसे ही, हम #हिंदू# भी उन पत्थर, मिट्टी,या धातु की पूजा #भगवान# का स्वरूप मानकर करते हैं.....#भगवान# तो कण-कण मे है, पर एक #आधार# मानने के लिए और मन को एकाग्र करने के लिए हम मूर्ति पूजा करते हैं.....जीवन का #आधार#....#आस्था#......गुरु #द्रोणाचार्य# की मूर्ति का पुजारी भला #एकलव्य# से बेहतर कौन ?....माँ को भी ममता की मूर्ति कहा जाता है....और #चित्र# से बेहतरीन #मित्र# भला और कौन ?....#आँखे# मनुष्य की सर्वोत्तम ज्ञानेन्द्रिय अंग है....किसी भी चित्र तो सोलह सेकण्ड तक स्वतः #अध्ययन# करती रहती है....और हमेशा के लिए संग्रह कर सकती है....और यह किसी #चमत्कार# से कम नहीं....शायद इसीलिए #त्राटक# योग सर्वोत्तम #ध्यान# माना गया है....यह सत्य है कि #चित्र# बोलते है....और #ईशान# में अवश्य बोलते है...बस #ध्यान# से सुनना होगा...बस सहज #ध्यान# ही विनम्र निवेदन....#%#.....#विनायक-परिश्रम#....एक ही प्रार्थना..."सर्वे भवन्तु सुखिनः" एवम् एक ही आधार "गुरू कृपा हिं केवलमं"....आप सभी आमंत्रित है....पूर्व निर्धारित समय हमेशा की तरह सुविधा सिध्द होती रहेगी....हार्दिक स्वागतम.....समय अपना-अपना....और आदान-प्रदान हो जाए....तो सहज आमने-सामने.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव...”#विनायक-समाधान#” @ #09165418344#...#vinayaksamadhan# #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#...जय हो...सादर नमन...#Regards#...