Saturday 14 November 2015

”वसीयत में बंटवारा”......वसीयत को ध्यान से पढ़ा जा सकता है...लिपि-बद्ध चर्चा...एकान्त सहज सार्वजनिक....नियमानुसार इच्छा जाहिर करने का अधिकार....वसीयत को वह मित्र ध्यान से पढ़ना चाहेगा जिसके नाम वसीयत होती है....”हिब्बा-नामा”...Nomination में Nominee...अर्थात सबसे प्रिय या सबसे योग्य या सबसे अनुभवी हो....स्वयं से प्रश्न करना पड़ सकता है..."Why Me" ???.....प्रश्न तथा उत्तर दोनों में आनन्द......घर का बंटवारा......हिस्सेदारी.....दावा-प्रस्तुति.....और ठहराव-प्रस्ताव किसी सन्त के पास आ जाये तो क्या होगा ?.....अब सन्त की बुद्धि तो सहज यही कहे.....न घर तेरा, न घर मेरा, यह घर चिड़िया रैन-बसेरा रे भाई.....बंटवारे या वसीयत में चिड़िया का कोई काम नहीं....राम की चिड़िया, राम का खेत.....सबसे ज्यादा फायदे में चिड़िया.....राम का खेत भी अपना और घर पर भी अपना कब्ज़ा.....जैसे मन माफिक.....तन तम्बूरा, तार मन....मन नी मुरलिया मा, श्याम नो नृत्य......भक्ति, भक्त, भगवान.....परीक्षा, परीक्षार्थी, परीक्षक.....गुरु, शिष्य, आश्रम.....सर्व-प्रथम स्वयं के अनुभव के विषय है....तत्पश्चात गर्व के.....गर्व में प्रपंच संभव है परन्तु अनुभव सरल सत्य होता है....टिका-टिप्पणियों से पूर्णतया परे.....चलती बैल-गाड़ी के निचे श्वान के चलने की कहानी सब कहते-सुनते आये है...जबकि श्वान ने आज-तक किसी से कुछ नहीं कहा...बैल-गाड़ी के साथ श्वान का चलना ही सम्भव है, शेर कदापि नहीं...श्वान बैलगाड़ी के निचे मात्र धुप से बचने के लिये चुप-चाप चलता है....श्वान ने कभी स्वीकार नहीं किया कि गाड़ी वह चला रहा है...वह तो मात्र यही स्वीकार कर सकता है जो कि शत-प्रतिशत सत्य है..."तेरी वजह से मेरा काम हो रहा है, बेकाम में मेरा नाम हो रहा है"...सिर्फ अपने साथियों से संभाषण....मौन धन्यवाद...मन की बात....श्वान की उपस्थिति...यात्रा हो या न हो....स्वयं को सुरक्षा का अहसास करवाता है...क्योंकि दरवाजे पर लिखा होता है...'Beware the Dog'....चेतावनी मात्र दुसरो के लिए....खरगोश और कछुए की तुलना सिर्फ गति के कारण होती है....वर्ना दोनों में कोई मेल-जोल नहीं...आदमी, आदमी को मुर्ख बना सकता है, एक बार नहीं, हजार बार...किन्तु जानवर को नहीं....जानवर, जानवर को मुर्ख बनाता है या नहीं ?....पता नहीं...i don't know.....लेकिन शेर, शेर को कभी नहीं खाता...यह fact सबको पता...शेर का शिकार, भला स्वयं शेर कैसे बन सकता है ?...अब गुस्ताखी माफ़...क्या यह प्रश्न उचित है कि जानवर, आदमी को मुर्ख बना सकता है ?.....जानवर वही कार्य करता है, जो उसे सिखाया जाता है...और तब करता है जब उसे कहा जाता है...इशारो में, ध्वनि रूपित शब्दों द्वारा...इस चेष्टा के साथ कि एकबारगी...सुनो तो जरा...परन्तु फिर भी यह नहीं कि...’एक बार मुस्करा दो’...और खुश होने के इशारे हजार...मात्र ध्वनि से इजहार...और मुस्कराहट में तो शब्द व्यक्त करना....’हा-हा, ही-ही’.....मात्र मनुष्य का अधिकार...ठीक जैसे सुचना का अधिकार...कब ?, क्यूँ ?, कैसे ?....आनन्द के मार्ग में कोई शर्त लागू नहीं...आनन्द में बाध्यता बन्धन समान है......जिस को जान की परवाह नहीं, उसके लिए जान से मारने की धमकी व्यर्थ....Hands-up कहने का कोई असर नहीं......जो फेल होने से नहीं डरता, वह प्रावीण्य सूचि में अवश्य आ सकता है...’पहला नम्बर’....”FIRST RANK’....जिसको प्रसिद्धी का मोह नहीं, वही सिद्धि का अधिकारी माना जा सकता है...OFFICER....सबसे कम संख्या परन्तु विलुप्त कदापि नहीं...निर्णय को पहचानने की कला...और यह मान कर चलिए सिद्धि रुपयों से नहीं खरीदी जा सकती है....न बेचीं जा सकती है....न हार का डर, न जीत का लालच....हद से ज्यादा साधारण चीज.....’बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख’.....”सिद्धि” तो सहज ‘रिद्धि-सिद्धि’ में से एक है....कोई निश्चिन्त माप-दण्ड नहीं...समय अनुसार प्रश्न और उत्तर में परिवर्तन अवश्य हो सकता है..इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमारा स्वयं का अनुभव होता है...'विनायक चर्चा' के माध्यम से यही निवेदन है कि सहज सुंदरता कायम रहे...हार्दिक स्वागत...विनायक समाधान @ 91654-18344...(इंदौर/उज्जैन/देवास)..






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