Sunday 15 November 2015



जय हो...तेज याददाश्त उच्च प्रतिशत का मुख्य आधार हो सकता है...शत-प्रतिशत प्रायोगिक.....स्वयं का निर्णय....यद्यपि माला जपने की अपेक्षा मन को मथना ज्यादा श्रेष्ठ है तथापि माला फेरने का भी अपना एक प्रभाव है….माला के प्रति  हमारी धारणा निष्ठा और विश्वास का ही प्रतिफल है कि वह मौन रहकर भी हमें अनुशासित करती है…..माला फेरने से हमारी बुद्धि या मन मात्र एकाग्रता से शुद्ध हो जाती है…..सहज धर्म....माला, आसन, मन्त्र...सहज मौन तंत्र....सहज मन का यंत्र...दो लोगों में मुस्कराहट या शान्त मन से चर्चा होती है तो दोनों को ही संतुष्टि का अहसास हो सकता है...शायद यही है ‘विनायक-शैली’.....आमने-सामने....जैसे कागज़-कलम......कागज़-पेन की बात ही अलग होती है.....शब्दों का झरना बहता रहे, जैसे ‘गुरु-कृपा”.....हालांकि सभी वनों के पेड़ो की कलम, समस्त धरती रूपी कागज़ तथा समस्त समुन्दरो के बराबर स्याही “गुरु-महिमा” के लिए पर्याप्त नहीं हो सकती है.....परन्तु हिन्दुस्तान की पट्टी-पेम....स्लेट के साथ पेम....और कागज़ के साथ....कलम, पेन्सिल, तूलिका, कूँची.....इनकी ताकत सभी जानते है....भारतीय परिश्रम की सहजता को सम्पूर्ण विश्व ने सराहा है....सम्पूर्ण विश्व में भारत-वर्ष के विद्ध्यार्थी को शायद सब से कम सुविधाये प्राप्त होती है.....और यह भी सत्य है कि भारतीय छात्र वर्तमान में संचार क्रान्ति का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है....और यह हिस्सेदारी बढती जाती है....WHY ??....उत्तर चित्र में प्रस्तुत है....इस विषय पर शब्दों का आदान-प्रदान ‘विनायक-शैली’ में आवश्यक है या नहीं ?...स्वयं का निर्णय....सबके घर मे संतान है....सबको संतान के लिए परिश्रम का अनुभव है....अपने घर की प्रतिभा का सम्मान जब बाहर होता है तो निश्चिन्त रूप से मन पुलकित होता है....भारत वर्ष का विद्यार्थी अपना बचपन कम से कम खिलौनों से भरपूर खेलता है....गुलेल चलाना, कन्चे खेलना, पतंग उड़ना......कम राशी में ज्यादा परिश्रम के साथ ज्यादा आनन्द.....इसके साथ भारतीय परिवारों के छात्र पारिवारिक उतार-चदाव से अनभिज्ञ न होकर माता-पिता की फटकार को सहजता से सुन ही लेते है....कोई भी भारतीय छात्र हो....किसी भी परिवार का हो....किसी भी धर्म का हो....धर्म, आराधना, प्रार्थना से पूर्ण रूपेण परिचित.....सहज परिचय परन्तु अन्त तक अक्षय....बचपन से ही आस्था का अनिवार्य पाठ...कोई घर धर्म से वंचित नहीं.....चाहे रूप-स्वरूप अनेक हो.....भारतीय मस्तिष्क का आभास तथा अनुभूति का संगम चरम प्रदर्शन कर सकता है....और सहज परिणाम कि अनुभव एकत्र करना और फिर उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए तैयार रहना....यह साधारण कार्य शीघ्रता से तथा शुद्धता से  प्रत्येक भारतीय कर सकता है.....यत्र-तत्र-सर्वत्र....शुद्धता का दायरा आँकना चुनौती हरगिज नहीं...शुद्धता की तो कसौटी ही संभव है...हाथ कँगन को आरसी क्या ? पढ़े-लिखे को फ़ारसी क्या ?....शुद्धता स्वयं के दायरे में या घर के दायरे में....और घर का दायरा अपरिमित...घर अर्थात परिवार...मात्र एक से अनेक....जय हो.....Please Wait while you are redirected…..WAIT A WHILE…..कब तक ?.....मालुम नहीं.....तो क्या शायद इसीलिए इन्तजार का फल मीठा होता है ???...मालवा में जिस घर पर, जिस दिन “केड़ी” (गाय-माता की बछड़ी) का जन्म होता है....उस दिन मन से उत्सव मना कर संस्कारों में सात्विक-परिवर्तन या संशोधन कर लिया जाता है....सहज स्त्रीत्व की प्रधानता....सहज स्वीकृति.....मातृत्व-प्रधान....पवित्र-सात्विकता....चरम या शीर्ष....परन्तु सुनिश्चिन्त उत्कृष्ट.....जय हो....सादर नमन...जीवन-प्रबंधन के लिए सहज धर्म सदैव उपस्थित है....धर्म अर्थात आनन्द....और परम-आनन्द अर्थात स्वयं का मानस-धर्म...प्रत्येक विद्ध्यार्थी सहज ‘मानस-पुत्र’....मन से स्वीकार....यत्र-तत्र-सर्वत्र....’विनायक-तृप्ति’....मृग-मरीचिका संभव नहीं....जय हो....सादर नमन....विनायक-समाधान @ 91654-18344...(इंदौर/उज्जैन/देवास)....JUST SEARCH IN “SEARCH-ENGINE”….REGARDS






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