Monday 9 November 2015

WITH   BEST   BEST    COMPLEMENTS.........
@...Tuitions....Coaching....Tutor....Home tutor...अनेक महान परम पूज्य महापुरुष युगद्रष्टा एवं सूक्ष्म द्रष्टा कहलाये....सभी ने युग की समस्याओं के अनेक कारण बारीकी से खोजे...समाधान भी प्रस्तुत किये...समस्या के निवारण के लिए योजनाये भी बनाई...और अन्त में यही सार प्रस्तुत किया कि समस्त समस्याओ का मूल कारण 'मानव-चिंतन' की विकृति होती है....इसका हल सिर्फ 'विचार-क्रांति' ही सम्भव है...या 'ज्ञान-यज्ञ'....सहज धार्मिक-अध्यात्मिक स्वरूप....उचित माध्यम....सत्संग या स्वाध्याय....कहीं से कहीं तक विरोधाभास नहीं....एक या अनेक....एकांत या सार्वजनिक....मानस-पटल पर श्रेष्ठ-चिंतन....मात्र मानस-पुत्र बनने के लिए....प्राण-नाथ....अनाथ-सखे.... 'ज्ञान-यज्ञ'...स्वयं की परिधि से प्रारम्भ...स्वयं का गृहस्थ-आश्रम.....स्वयं की मित्र-मण्डली...स्वयं को सात्विक सिद्ध करने का सहज प्रयास...बात मामूली नहीं, साहस का कार्य है....चार लोगो में धार्मिक बात सिर्फ वृद्धावस्था का कर्म नहीं है...श्रेष्ठ-चिंतन सबका मौलिक-अधिकार तथा नैतिक-दायित्व है.....और यह सब श्रेष्ठ-अध्ययन का सुनिश्चिंत परिणाम होता है....और यह सब निशुल्क सम्भव है....और साधारण बात कि यह सब हो रहा है....आमने-सामने....सबकी आँखों के सामने....'RIGHT NOW'....सबकी दृष्टि में सृष्टि.....शब्दों के माध्यम से मित्रता की प्रथा....यत्र-तत्र-सर्वत्र....सदैव....और अब तो चित्र भी मित्र से चर्चा करने लगे है....शब्द वायुमंडल में....Wi-Fi....wireless-fidelity....The ULTIMATE....The Existence.....Fight with ULTIMATUM....Just a Soft-Start....Now our NETWORK is our TEAM....Tuitions....Coaching....Tutor....Home tutor....सब आमने-सामने का खेल....सब आपको वह बताना चाहते है जो आपको अकेले में करना है....परीक्षा की तैय्यारी....कब ? क्यों ? कैसे ?...सबको सब-कुछ मालुम...मात्र सात्विक-कर्म.....जो नहीं है उसे प्राप्त करने का प्रयास....नहीं है तो होगा....क्योंकि "वो है"....अब प्रश्न होता है कि क्या नहीं है ???.....तब सहज उत्तर में हमारी कोई भी इच्छा हो सकती है....उच्च, समकक्ष, मध्यम....तब अनेक प्रश्न और खड़े होते है....उत्पन्न इच्छा के पूर्ण होने के सम्बन्ध में, जैसे....कब ? क्यों ? कैसे ?.....यह सब स्वयं के मन का अनुभव है....तब हमारी अपनी इच्छा हो सकती है कि हम अपनी इच्छा को पूर्ण करने के सम्बन्ध किसी से चर्चा करे....आमने-सामने...वह कोई भी हो सकता है...मित्र, बंधू, सखा....यही साक्षात् सम्पूर्ण विश्व....तब शब्द द्वारा वाकसिद्धि जाग्रत होती है...."वाकसिद्धि लभते ध्रुवम्"....तब माँ मातंगी-कृपा...दस-महाविद्या में एक...शब्दों को जाग्रत करने की क्षमता...प्रत्येक में....मात्र सहज प्रश्न-उत्तर...शब्दों का आदान-प्रदान....'विनायक-चर्चा'....सहज उत्क्रमणीय...शत-प्रतिशत रमणीय....विरोधाभास की चर्चा नहीं....चर्च में तो प्रार्थना तथा प्रोत्साहन ही उत्पन्न होते है.. ..और मन-मंदिर में जाग्रत प्राण-प्रतिष्ठा हेतु....शब्दों की सरिता...मन रूपी महासागर में मिलने को आतुर...सहज आमने-सामने...सिर्फ सामान्य पर सामान्य चर्चा....सामान्य रूप से...सिर्फ आसानी के लिये....परीक्षा में आसान प्रश्नों का उत्तर आसान होता है...शायद इसीलिये....प्राथमिकता...शिक्षा-मंडल कक्षा पांचवी से ही हस्तक्षेप करने लगता है....और पांच का अनुभव 'राजा-बाबु' के पास....और अनेक पहलु कहते है....एक में योगी, दो में भोगी, तीन में रोगी....परन्तु धर्म-क्षेत्र में आदि से अनन्त तक...योगी, योगी और महा-योगी....आनन्द तो अनुभव के माध्यम से ही सम्भव है.....आप महसूस कर सकते है कि प्रत्येक चर्चा में समाचार पत्रों का, पत्रिकाओं का, टेलीविजन का, राजनीति का, समाज का जिक्र सिर्फ और सिर्फ धर्म के दायरे में ही किया गया है...तथा धर्म को सम्प्रदाय से पूर्ण मुक्त रखा गया है....अर्थात चर्चा मात्र आनंद के लिए....प्रत्येक शब्द में निमंत्रण है...और प्रत्येक चित्र में चरित्र है...अर्थात..."गुरु कृपा ही केवलम्"....भले पधारो सा...हार्दिक स्वागत...MOST WELCOME...विनायक समाधान @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS).....

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