Thursday 5 November 2015

JUST ABOUT "TORCH".......REGARDS......    हम बचपन से ही यह सीखते आये हो कि पैसा कमाना है...कहाँ से कमाना है ?....इस पर कोई प्रकाश नहीं डालता है...कारण खुद पर प्रकाश डालने की व्यस्तता...खुद ही 'टॉर्च वाला'.....अव्वल तो खुद को टॉर्च बेचना हास्यास्पद लग सकता है...यहाँ लक्ष्मी चंचल नहीं...पैसा घूम-फिर कर पूनः खुद की जेब के अन्दर...और सब 'शोर्ट-कट' आजमा कर खुद को बेच भी देतें है तो....Outstanding Marketing....पर टॉर्च एक से ज्यादा स्वयं को बेचना शायद मुमकिन नहीं....अँधेरे में भी आँखे चौंधया जाये....दुसरो को कितनी भी बेचे, कोई सीमा नहीं....पर है, एक के लिए एक....जो प्राप्त है, वही पर्याप्त है...किसी क्षेत्र में सिद्ध-हस्त होना....अर्थात आशीर्वाद या वरदान जो भी हो.... लोटे में कंकर के स्थान पर शब्द रख लीजिये....अगर परम आदरणीय मित्र जादूगर श्री ए.आर. रहमान साहब (Just A Sound Engineer... That's All) की याद न आ जाये तो मित्र मेरे, नाम पलट देना....जिसका भी....बस मन की गवाही चाहिये....बाकि तो मात्र शुक्रिया के कारण....शुक्र है....और शुक्रगुजार है उनकी प्रतिभा के...."माँ तुझे सलाम"....मात्र उत्तर....प्रत्येक प्रश्न का सहज उत्तर...हवा में उड़ता जाये रे ss...मोरा लाल दुपट्टा 'मलमल' का....हो जीss..."म्हारो हेलो सूणोजी रामा पीर"....और इसी पथ पर...."पिया हाजी अली"....पिया होss....'दिल से रेssss'....शब्दों की लहलहाती फसल....'यथा बीजम तथा निष्पत्ति'...."तथास्तु"....सहज माध्यम 'प्रार्थना'...दिल से आह....शत-प्रतिशत सूफियाना....इश्क सूफियाना मेरा...हर दीवाना यही कहे....सेंट-परसेंट 'नीति-शास्त्र'....सौ टका पक्का 'धर्म-शास्त्र' पर आधारित....दुनिया चलने-चलाने का एक-मात्र...."शस्त्र"....अनुभूति, आभास, अनुभव....पुस्तके मोटी होती जाती है....जैसे-जैसे कक्षा बड़ती जाती है...और लिखी जाती है मात्र किसी मित्र द्वारा....और लय-ताल से सँवार दिया जाता है किसी मित्र द्वारा...तब जो इबारत बनती है...वह हो सकती है....प्रार्थना....भक्ति, इबादत, अरदास....सबसे मोटी पुस्तक....समस्त सागरों के पानी की स्याही....समस्त जंगलों के पेड़ो की कलम....और सम्पूर्ण धरती मात्र एक कागज़ के समान....पर्याप्त है या नहीं ???....यह तो लिखने वाला ही जाने....इस अनुभव, आभास या अनुभूति के साथ....."गुरु-गुण लिख्यो न जाय"....'हरि कथा अनन्ता'...सम्भव ही नहीं...गुरु क्या करता है ?....नहीं मालुम, परन्तु गुरु क्या कहता है ?..गुरु-मन्त्र की फुसफुसाहट सीधे कान में सुनाई जाती है ताकि ध्यान से सुन सके.....प्रत्येक शिष्य.....सब-कुछ याद रखने का प्रयास....मन ही मन में.....यही एक मात्र प्राप्त है जो महिमा को याद रखने के लिए पर्याप्त....”ख्वाजा मेरे ख्वाजा”.....दिल में समा जा.....जय हो....सादर नमन.....शत-प्रतिशत सहज...संपर्क-सूत्र, विजिटिंग-कार्ड, बैनर, होर्डिंग, समाचार....सहज निरन्तर यात्रा...विनायक-यात्रा…..जय हो...सादर नमन....हार्दिक स्वागतम...मात्र अनुभव करने के लिए....कब ? क्यों ? कैसे ?....आसमान में पक्षी तथा वायुयान दोनों की दक्षता होती है, मगर समुद्र की गहराई तो गोताखोर ही मापने की हिम्मत कर सकता है....अनादि से अनन्त...सहज स्व-सत्संग....सुनिश्चिंत आनन्द...निश्चिन्त प्रारम्भ...विनायक शुभारम्भ....ॐ गं गणपतये नम:....”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)…










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