Thursday 5 November 2015

JUST ABOUT T.V.    OR     MIND       OR       'मेरुदण्ड'     ...बातो-बातो में...भुलभुलैया...मगर याद रखने के लिए....शायद हमेशा के लिये....आम व्यक्ति T.V. लेट कर ही देखना पसन्द करता है...सोने का समय मात्र रात्रि-शयन तथा लेटने का भी लगभग यही...परन्तु T.V. देखने का समय सुनिश्चित हरगिज नहीं...और लेट कर देखना का समय तो सबसे ज्यादा अनिश्चिंत....बात बैठ कर देखने की बिलकुल नहीं...बात है लेटने की....दिन के उजाले में....रात्रि-शयन के अतिरिक्त शयन...अर्थात मेरुदण्ड ठीक एक चौपाये के समान...उत्तम रात्रि-शयन हेतु दिन का शयन वर्जित माना जाता है...सत्य वचन "Early to Bed.... Early to Rise" सबको पता है...जिस प्रकार घोड़ा सिर्फ बीमार होने पर ही बैठता है उसी प्रकार दिन का शयन भी अस्वस्थता की पहचान माना जाता है...मानव संरचना में मस्तिष्क का आधार मेरुदण्ड है...मस्तिष्क की सक्रियता हेतु आवश्यकता से अधिक शयन हानिकारक हो सकता है...यह प्रकृति प्रदत्त वरदान है कि शरीर को परिश्रम के अनुसार स्वतः शयन की आवश्यकता महसूस होती है...मेरुदण्ड की व्याधि स्वरूप अनिद्रा रोग उत्पन्न होता है...और अनिद्रा से रोग ही रोग...मानव मात्र को मेरुदण्ड की अनुकूलता अनुसार विभिन्न स्थानों पर विभिन्न कार्य सुनिश्चित करना पड़ते है...यह ध्यान में रख कर कि समस्त ध्यान का आधार मस्तिष्क...और मस्तिष्क का सुदृढ़ आधार मेरुदण्ड... बच्चा स्कुल में भर्ती होता है तो सब खुश पर आदमी अस्पताल में भर्ती होता है तो सब चिन्तित...भर्ती के अलग-अलग स्थान...और अलग-अलग विचार...अर्थात विचारों की विभिन्नता से कल्पना में भिन्नता....उत्तम तो चिन्तन ही माना जावेगा...चिंता हरगिज नहीं...सत्य वचन "Sound Mind in a Sound Body"....दोनों की सक्रियता...चाहे मस्तिष्क हो या मेरुदण्ड....सहज चिंतन....बस यही मन का अभिन्न अंग हो सकता है...बात अजीब नहीं है....बिलकुल साधारण...मामूली बात...सब को सब-कुछ मालुम...बस समय पर याद रहे... महिमा को याद रखने के लिए पर्याप्त....”ख्वाजा मेरे ख्वाजा”.....दिल में समा जा.....जय हो....सादर नमन.....शत-प्रतिशत सहज...संपर्क-सूत्र, विजिटिंग-कार्ड, बैनर, होर्डिंग, समाचार....सहज निरन्तर यात्रा...विनायक-यात्रा…..जय हो...सादर नमन....हार्दिक स्वागतम...मात्र अनुभव करने के लिए....कब ? क्यों ? कैसे ?....आसमान में पक्षी तथा वायुयान दोनों की दक्षता होती है, मगर समुद्र की गहराई तो गोताखोर ही मापने की हिम्मत कर सकता है....अनादि से अनन्त...सहज स्व-सत्संग....सुनिश्चिंत आनन्द...निश्चिन्त प्रारम्भ...विनायक शुभारम्भ....ॐ गं गणपतये नम:....”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)…







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