Sunday 1 November 2015

अब यात्रा गुजरात नी..........”?”..ध्यान से देखिये...प्रश्नवाचक चिन्ह के चित्र को जो सहज गुरु के रूप में चट्टान पर आसन लगाये बैठा है...‘हीरा है, सदा के लिए’...कहता है सदा के लिए.....भीड़ में खड़ा होना मकसद नही है मेरा..बल्कि भीड़ जिसके लिए खड़ी है “वो” बनना है मुझे….और “वो’ है....अर्थात “विनायक-मन”....और यह नेक बात कि भीड़ मे अपनों से अपनों की बात कैसे होगी ???....दर्पण को अकेले देखना सुखद होता है....और सत्य तो यह कि खुद के बारे में जानना हो तो एकान्त हो....शायद इसलिये कि एकांत में स्वयं को जानना सुखद होता है....ता कि भीड़ में अकेलेपन का डर ना हो....याद कीजिये, बचपन में अँधेरे से डर लगता था, पर क्या यह डर अब भी बरक़रार है ???...यह बड़ा सत्य कि छोटी गलती की बड़ी सजा मात्र स्वयं को ही सम्भव हो सकती है...तब यह माना जा सकता है कि ‘सिद्धि’ मौन होती है....तब यह भी कि ‘लाठी में आवाज’ नहीं...सूरज में लगे ‘धब्बा’ कि सब फितरत के करिश्मे है.....भले ही सब-कुछ, सबको मालुम हो....परन्तु प्रश्न-उत्तर सहज मानव-मनोवृत्ति....ध्यान से देखिये...प्रश्नवाचक चिन्ह के चित्र को जो सहज गुरु के रूप में चट्टान पर आसन लगाये बैठा है....”?”....मस्तिष्क का आधार....मात्र आसन....तब तो प्रश्न ही उत्तर का जन्म-दाता हुआ...एक मात्र उद्देश्य मात्र उत्तर....सहज, साधारण, सरल.....यह मामूली बात कि परीक्षा सरल हो तो नम्बर अच्छे आते है...और किसी-किसी के तो....शत-प्रतिशत...हमेशा के लिए...
@@@वड़ोदरा (GUJRAT) शहर में किसी भी मंदिर में अतिशीघ्र....तथा “विनायक-मित्रों” के सहयोग से ‘विनायक-योग’ बनता है तो...अन्य शहर के मंदिरों का भी दर्शन लाभ....माह में एक बार.....निशुल्क, सहज, साधारण, सरल....मात्र आनन्द का आदान-प्रदान....कार्य की सफलता में सात्विक कर्मो का समावेश...जैसे प्रार्थना में सात्विक शब्दों का समावेश....इसके साथ ही मस्तिष्क से आवेश का पलायन....उच्च, समकक्ष या मध्यम....सभी मित्रो का हार्दिक अभिनन्दन.....सुबह दस बजे से शाम छः बजे तक....आमने-सामने...एक दिवसीय....मात्र आनन्द से परम आनन्द......जिज्ञासाओं पर चर्चा.....सब कुछ चित्र के अनुसार....चित्र ही मित्र....हार्दिक स्वागत.....मै 'मालिक' अपनी मर्जी का, पर मेरा "मालिक" कोई और....ठीक जैसे....Train Your MIND, To Mind Your TRAIN.....संकट में घड़ी की चाल धीमी लगती है और प्रसन्नता में यही घडी पंख लगा कर उडती प्रतीत होती है....शायद यही सबसे बड़ा भ्रम है....सादर नमन....जय हो....हार्दिक स्वागत....जय-गुरुवर....प्रणाम...इस 'प्रण' के साथ कि 'प्रमाण' में 'प्राण' बसे...Just Because Of You...."अणु में अवशेष"....यही है आदेश....अतिशीघ्र दूर हो स्वयं के दोष....जय हो..."विनायक समाधान"...@...91654-18344....Just An idea.....To Feel Or Fill..... To Fit With Faith....Just For Prayer..... Just for Experience....INDORE / UJJAIN / DEWAS....








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