THE DRIVE UNDER PERMISSIBLE LIMIT......
…..@जिद करो और दुनिया जीतो....मगर काम की बात....जिद करने में जल्दबाजी नहीं...और जल्दी का काम शैतान का काम या फिर किसी भी गृहणी का...गृहणी को छुट है क्योंकि वह सदा दुसरो के लिये सहज चिन्तित...अन्नपूर्णा सदैव सकारात्मक....मगर शैतान तो स्वयं के अस्तित्व लिये भयातुर....यह विनम्र निवेदन है कि किसी भी 'विनायक-पोस्ट' अर्थात चर्चा को पढने में कोई जल्दबाजी न करे...आराम से लिखी गई चर्चा को आराम से ही समझना आसान हो सकता है...घंटो का लेखन....मिनटों का अध्ययन....आमने-सामने.....Face to Face....यह स्व-अनुभव हो सकता है...स्व-आनन्द....शत-प्रतिशत...जैसे भोजन 'आराम या आनन्द से बनाओ तथा आराम से या आनन्द से खाओ और खिलाओ'...शत-प्रतिशत.. ..'अहर्निशम सेवामहे'....Service Before Self....'जियो और जीने दो'...यानि कि 'आत्माराम'....'मन का मीत'....क्योंकि दोनों ही कार्य आचार-सीमा में...आचार-संहिता स्वयं का निर्णय या निर्माण.....रोटी चबा कर खाना चाहिये तब तो शब्द भी चबा कर पढ़े जा सकते है...और चबाने तो समय लगता है...जुगाली पर चर्चा नहीं...जल्दबाजी में अनेक कार्य अपूर्ण रह जाते है...इसीलिए कहते है..."हल्लू से"...शब्दों का मंचन भी रोटी के नृत्य के समान...एक खड़ी, एक पड़ी, एक छमाछम नाच रही...शायद इसीलिए भोजन की प्रार्थना...मात्र परिश्रम के हिस्से में...सदैव...सब्जी के बारे में अनेक प्रश्न परन्तु रोटी सदैव सामान्य....ठीक उसी प्रकार सम्पूर्ण चर्चाओं में धर्म के अतिरिक्त कोई और स्वाद नहीं....एक-मात्र सकारात्मक विषय....साथ ही अनन्त...जीवन के बाद भी....बस तरीका भिन्न हो सकता है....हर भोजन-शाला के अपने नियम मगर 'रोटी'...वही आकार, वही नृत्य....शरीर में नियमित प्राण-प्रतिष्ठा...और मन-मंदिर में जाग्रत प्राण-प्रतिष्ठा हेतु....शब्दों की सरिता...मन रूपी महासागर में मिलने को आतुर...सहज आमने-सामने...सिर्फ सामान्य पर सामान्य चर्चा....सामान्य रूप से...सिर्फ आसानी के लिये....परीक्षा में आसान प्रश्नों का उत्तर आसान होता है...शायद इसीलिये....प्राथमिकता...शिक्षा-मंडल कक्षा पांचवी से ही हस्तक्षेप करने लगता है....और पांच का अनुभव 'राजा-बाबु' के पास....और अनेक पहलु कहते है....एक में योगी, दो में भोगी, तीन में रोगी....परन्तु धर्म-क्षेत्र में आदि से अनन्त तक...योगी, योगी और महा-योगी....आनन्द तो अनुभव के माध्यम से ही सम्भव है....शत-प्रतिशत सहज...संपर्क-सूत्र, विजिटिंग-कार्ड, बैनर, होर्डिंग, समाचार....सहज निरन्तर यात्रा...विनायक-यात्रा…..जय हो...सादर नमन....हार्दिक स्वागतम...मात्र अनुभव करने के लिए....कब ? क्यों ? कैसे ?....आसमान में पक्षी तथा वायुयान दोनों की दक्षता होती है, मगर समुद्र की गहराई तो गोताखोर ही मापने की हिम्मत कर सकता है....अनादि से अनन्त...सहज स्व-सत्संग....सुनिश्चिंत आनन्द...निश्चिन्त प्रारम्भ...विनायक शुभारम्भ....ॐ गं गणपतये नम:....”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)…
…..@जिद करो और दुनिया जीतो....मगर काम की बात....जिद करने में जल्दबाजी नहीं...और जल्दी का काम शैतान का काम या फिर किसी भी गृहणी का...गृहणी को छुट है क्योंकि वह सदा दुसरो के लिये सहज चिन्तित...अन्नपूर्णा सदैव सकारात्मक....मगर शैतान तो स्वयं के अस्तित्व लिये भयातुर....यह विनम्र निवेदन है कि किसी भी 'विनायक-पोस्ट' अर्थात चर्चा को पढने में कोई जल्दबाजी न करे...आराम से लिखी गई चर्चा को आराम से ही समझना आसान हो सकता है...घंटो का लेखन....मिनटों का अध्ययन....आमने-सामने.....Face to Face....यह स्व-अनुभव हो सकता है...स्व-आनन्द....शत-प्रतिशत...जैसे भोजन 'आराम या आनन्द से बनाओ तथा आराम से या आनन्द से खाओ और खिलाओ'...शत-प्रतिशत.. ..'अहर्निशम सेवामहे'....Service Before Self....'जियो और जीने दो'...यानि कि 'आत्माराम'....'मन का मीत'....क्योंकि दोनों ही कार्य आचार-सीमा में...आचार-संहिता स्वयं का निर्णय या निर्माण.....रोटी चबा कर खाना चाहिये तब तो शब्द भी चबा कर पढ़े जा सकते है...और चबाने तो समय लगता है...जुगाली पर चर्चा नहीं...जल्दबाजी में अनेक कार्य अपूर्ण रह जाते है...इसीलिए कहते है..."हल्लू से"...शब्दों का मंचन भी रोटी के नृत्य के समान...एक खड़ी, एक पड़ी, एक छमाछम नाच रही...शायद इसीलिए भोजन की प्रार्थना...मात्र परिश्रम के हिस्से में...सदैव...सब्जी के बारे में अनेक प्रश्न परन्तु रोटी सदैव सामान्य....ठीक उसी प्रकार सम्पूर्ण चर्चाओं में धर्म के अतिरिक्त कोई और स्वाद नहीं....एक-मात्र सकारात्मक विषय....साथ ही अनन्त...जीवन के बाद भी....बस तरीका भिन्न हो सकता है....हर भोजन-शाला के अपने नियम मगर 'रोटी'...वही आकार, वही नृत्य....शरीर में नियमित प्राण-प्रतिष्ठा...और मन-मंदिर में जाग्रत प्राण-प्रतिष्ठा हेतु....शब्दों की सरिता...मन रूपी महासागर में मिलने को आतुर...सहज आमने-सामने...सिर्फ सामान्य पर सामान्य चर्चा....सामान्य रूप से...सिर्फ आसानी के लिये....परीक्षा में आसान प्रश्नों का उत्तर आसान होता है...शायद इसीलिये....प्राथमिकता...शिक्षा-मंडल कक्षा पांचवी से ही हस्तक्षेप करने लगता है....और पांच का अनुभव 'राजा-बाबु' के पास....और अनेक पहलु कहते है....एक में योगी, दो में भोगी, तीन में रोगी....परन्तु धर्म-क्षेत्र में आदि से अनन्त तक...योगी, योगी और महा-योगी....आनन्द तो अनुभव के माध्यम से ही सम्भव है....शत-प्रतिशत सहज...संपर्क-सूत्र, विजिटिंग-कार्ड, बैनर, होर्डिंग, समाचार....सहज निरन्तर यात्रा...विनायक-यात्रा…..जय हो...सादर नमन....हार्दिक स्वागतम...मात्र अनुभव करने के लिए....कब ? क्यों ? कैसे ?....आसमान में पक्षी तथा वायुयान दोनों की दक्षता होती है, मगर समुद्र की गहराई तो गोताखोर ही मापने की हिम्मत कर सकता है....अनादि से अनन्त...सहज स्व-सत्संग....सुनिश्चिंत आनन्द...निश्चिन्त प्रारम्भ...विनायक शुभारम्भ....ॐ गं गणपतये नम:....”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)…
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