Friday 6 November 2015

WITH REGARDS.....READY...STEADY   AND GO........@प्रवचन....पांडाल में प्रवचन...चर्चा का अनोखा स्वरूप.....प्रवचन तो समझ में आने के लिए ही आयोजित होते है किन्तु पांडाल समझ में आते ही है....आज नहीं तो कल...पांडाल की चर्चा भी होना आवश्यक हो जाती है....पांडाल में पांडित्य सहज उपलब्ध....अनेक उपस्तिथियों से पांडाल निर्मित...आने-जाने वाले अनेक, तब पांडाल के आकार भी तदनुसार...पांडाल की पूर्व जानकारी या सुचना भी श्रोताओं को पूर्व में होना आवश्यक....उचित माध्यम से....सभी श्रोताओ को...दर्शको को....उच्च, समकक्ष, मध्यम....पांडाल में सभी बराबर...सहज नियम....."भक्त के कारण भगवान".....यह उसका चमत्कार है कि अदृश्य होते हुये भी शब्दों के माध्यम से चर्चा का माध्यम है या विषय.....जैसे राम की चिड़िया, राम का खेत....मात्र आनन्द की खेती...कुल मिला कर आनन्द का बहाना...मेल-मिलाप का सात्विक सेतु...ईश्वर सचमुच एक मधुर कल्पना है....धर्म में आनन्द का समावेश करने लिए....हर विधा का स्वागत....साथ ही अवगत....नृत्य, गायन, मौन....सरल तथा सुन्दर नाद-विज्ञान....सिमित रूप, अनंत स्वरूप.....भोजन-उपवास, श्रवण-किर्तन, एकान्त या एकत्रित, मौन या भजन, आश्रम या घर, स्त्री-पुरुष, पशु-पक्षी...पंच-तत्व की सहज उपस्तिथि या गवाही...किसी का भी, किसी के प्रति कोई विरोधाभास नहीं....और तो और....जमींन-आसमान को एक करने के लिए सहस्त्र धाराएँ.....सहज चमत्कार....यत्र-तत्र-सर्वत्र...सहज नत-मस्तक करने का सात्विक साहस....मात्र प्रतिक्षारत....प्रवचनकार के शब्दों का इन्तजार....अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता...किन्तु अकेला चना अनेक घोड़ो को शक्ति प्रदान कर सकता है...परन्तु बात तो पांडाल की...मधुर सत्य का रस....जो खेतों और खलिहानों में पसीना कहलाता है....और अस्तबल से बाहर...मंजिल की ओर....घोड़े के टापो की आवाज परन्तु हिनहिनाहट हरगिज नहीं...तब तो पांडाल.....यत्र-तत्र-सर्वत्र.....सरल धर्म....हर उस मित्र का, जिसके समझ में आ जाये....समझदार को दुसरो का इशारा, स्वयं की सम्पत्ति लगता है....तब हकदार बनने के लिए या घुड़-सवारी करने के लिए...तब हक़ अदा करना होगा 'लम्बी-रेस' का घोड़ा घोषित होने के लिए....दुसरो के द्वारा...स्वयं तो सिर्फ सिद्ध करने तथा होने के लिए....और यह हो जाये तो हर वह पांडाल सिद्ध जहाँ "स्वयं" सहज सात्विक रूप से उपस्थित....पांडाल की सार्थकता स्वयं से बाहर सम्भव नहीं....विज्ञापन में घोड़े तो दिखते है पर बिकने के लिये हरगिज नहीं...और मोटर-सायकल या Bike का विज्ञापन साधारण लोगो के लिये होता है...किसी भी हीरो द्वारा....जो ऐसी गाड़ी में बैठते है, जिसका चालक कोई और....इसे अवश्य विरोधाभास मान सकते है....तलाश से मामला तलाक तक क्यों जाये भला ?....जब तलाश का अंत सदा के लिए हो जाए...यह याद रखते हुए कि जो प्राप्त है, वही पर्याप्त है.....समय और खण्डहर दोनों ही गवाही देते है कि “सेर को सवा सेर हमेशा मिलते रहते है’.....और शेर पानी में तैरने के बावजूद भी पानी को जीभ से चाट कर ही पीता है...आरामदेह बिस्तर प्रत्येक के भाग्य में हो न हो परन्तु चैन की नींद प्रत्येक की आवश्यकता हो सकती है...गहरी नींद के लिये सामान जुटाना उचित या अनुचित....स्वयं का निर्णय...बस बनी रहे..."पांडाल" की गरिमा....'विनायक-पांडाल'....सदैव, हमेशा, निरन्तर....सहज गूंज..."धर्म की जय हो"......सदैव सात्विक...सदैव सकारात्मक....और किसी वस्तु को ढूंढने में विशेषज्ञ समय बर्बाद नहीं करता...कदापि नहीं...महिमा को याद रखने के लिए पर्याप्त....”ख्वाजा मेरे ख्वाजा”.....दिल में समा जा.....जय हो....सादर नमन.....शत-प्रतिशत सहज...संपर्क-सूत्र, विजिटिंग-कार्ड, बैनर, होर्डिंग, समाचार....सहज निरन्तर यात्रा...विनायक-यात्रा…..जय हो...सादर नमन....हार्दिक स्वागतम...मात्र अनुभव करने के लिए....कब ? क्यों ? कैसे ?....आसमान में पक्षी तथा वायुयान दोनों की दक्षता होती है, मगर समुद्र की गहराई तो गोताखोर ही मापने की हिम्मत कर सकता है....अनादि से अनन्त...सहज स्व-सत्संग....सुनिश्चिंत आनन्द...निश्चिन्त प्रारम्भ...विनायक शुभारम्भ....ॐ गं गणपतये नम:....”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)....










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