Sunday 15 November 2015

Vinayak Samadhan:



जय हो...तेज याददाश्त उच्च प्रतिशत का मुख्य आधार हो सकता है...शत-प्रतिशत प्रायोगिक.....स्वयं का निर्णय....यद्यपि माला जपने की अपेक्षा मन को मथना ज्यादा श्रेष्ठ है तथापि माला फेरने का भी अपना एक प्रभाव है….माला के प्रति  हमारी धारणा निष्ठा और विश्वास का ही प्रतिफल है कि वह मौन रहकर भी हमें अनुशासित करती है…..माला फेरने से हमारी बुद्धि या मन मात्र एकाग्रता से शुद्ध हो जाती है…..सहज धर्म....माला, आसन, मन्त्र...सहज मौन तंत्र....सहज मन का यंत्र...दो लोगों में मुस्कराहट या शान्त मन से चर्चा होती है तो दोनों को ही संतुष्टि का अहसास हो सकता है...शायद यही है ‘विनायक-शैली’.....आमने-सामने....जैसे कागज़-कलम......कागज़-पेन की बात ही अलग होती है.....शब्दों का झरना बहता रहे, जैसे ‘गुरु-कृपा”.....हालांकि सभी वनों के पेड़ो की कलम, समस्त धरती रूपी कागज़ तथा समस्त समुन्दरो के बराबर स्याही “गुरु-महिमा” के लिए पर्याप्त नहीं हो सकती है.....परन्तु हिन्दुस्तान की पट्टी-पेम....स्लेट के साथ पेम....और कागज़ के साथ....कलम, पेन्सिल, तूलिका, कूँची.....इनकी ताकत सभी जानते है....भारतीय परिश्रम की सहजता को सम्पूर्ण विश्व ने सराहा है....सम्पूर्ण विश्व में भारत-वर्ष के विद्ध्यार्थी को शायद सब से कम सुविधाये प्राप्त होती है.....और यह भी सत्य है कि भारतीय छात्र वर्तमान में संचार क्रान्ति का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है....और यह हिस्सेदारी बढती जाती है....WHY ??....उत्तर चित्र में प्रस्तुत है....इस विषय पर शब्दों का आदान-प्रदान ‘विनायक-शैली’ में आवश्यक है या नहीं ?...स्वयं का निर्णय....सबके घर मे संतान है....सबको संतान के लिए परिश्रम का अनुभव है....अपने घर की प्रतिभा का सम्मान जब बाहर होता है तो निश्चिन्त रूप से मन पुलकित होता है....भारत वर्ष का विद्यार्थी अपना बचपन कम से कम खिलौनों से भरपूर खेलता है....गुलेल चलाना, कन्चे खेलना, पतंग उड़ना......कम राशी में ज्यादा परिश्रम के साथ ज्यादा आनन्द.....इसके साथ भारतीय परिवारों के छात्र पारिवारिक उतार-चदाव से अनभिज्ञ न होकर माता-पिता की फटकार को सहजता से सुन ही लेते है....कोई भी भारतीय छात्र हो....किसी भी परिवार का हो....किसी भी धर्म का हो....धर्म, आराधना, प्रार्थना से पूर्ण रूपेण परिचित.....सहज परिचय परन्तु अन्त तक अक्षय....बचपन से ही आस्था का अनिवार्य पाठ...कोई घर धर्म से वंचित नहीं.....चाहे रूप-स्वरूप अनेक हो.....भारतीय मस्तिष्क का आभास तथा अनुभूति का संगम चरम प्रदर्शन कर सकता है....और सहज परिणाम कि अनुभव एकत्र करना और फिर उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए तैयार रहना....यह साधारण कार्य शीघ्रता से तथा शुद्धता से  प्रत्येक भारतीय कर सकता है.....यत्र-तत्र-सर्वत्र....शुद्धता का दायरा आँकना चुनौती हरगिज नहीं...शुद्धता की तो कसौटी ही संभव है...हाथ कँगन को आरसी क्या ? पढ़े-लिखे को फ़ारसी क्या ?....शुद्धता स्वयं के दायरे में या घर के दायरे में....और घर का दायरा अपरिमित...घर अर्थात परिवार...मात्र एक से अनेक....जय हो.....Please Wait while you are redirected…..WAIT A WHILE…..कब तक ?.....मालुम नहीं.....तो क्या शायद इसीलिए इन्तजार का फल मीठा होता है ???...मालवा में जिस घर पर, जिस दिन “केड़ी” (गाय-माता की बछड़ी) का जन्म होता है....उस दिन मन से उत्सव मना कर संस्कारों में सात्विक-परिवर्तन या संशोधन कर लिया जाता है....सहज स्त्रीत्व की प्रधानता....सहज स्वीकृति.....मातृत्व-प्रधान....पवित्र-सात्विकता....चरम या शीर्ष....परन्तु सुनिश्चिन्त उत्कृष्ट.....जय हो....सादर नमन...जीवन-प्रबंधन के लिए सहज धर्म सदैव उपस्थित है....धर्म अर्थात आनन्द....और परम-आनन्द अर्थात स्वयं का मानस-धर्म...प्रत्येक विद्ध्यार्थी सहज ‘मानस-पुत्र’....मन से स्वीकार....यत्र-तत्र-सर्वत्र....’विनायक-तृप्ति’....मृग-मरीचिका संभव नहीं....जय हो....सादर नमन....विनायक-समाधान @ 91654-18344...(इंदौर/उज्जैन/देवास)....JUST SEARCH IN “SEARCH-ENGINE”….REGARDS






Saturday 14 November 2015

Vinayak Samadhan: जय हो.....Please Wait while you are redirected…..W...

Vinayak Samadhan: जय हो.....Please Wait while you are redirected…..W...: जय हो.....Please Wait while you are redirected…..WAIT A WHILE…..कब तक ?.....मालुम नहीं.....तो क्या शायद इसीलिए इन्तजार का फल मीठा होता है ...
जय हो.....Please Wait while you are redirected…..WAIT A WHILE…..कब तक ?.....मालुम नहीं.....तो क्या शायद इसीलिए इन्तजार का फल मीठा होता है ???...मालवा में जिस घर पर, जिस दिन “केड़ी” (गाय-माता की बछड़ी) का जन्म होता है....उस दिन मन से उत्सव मना कर संस्कारों में सात्विक-परिवर्तन या संशोधन कर लिया जाता है....सहज स्त्रीत्व की प्रधानता....सहज स्वीकृति.....मातृत्व-प्रधान....पवित्र-सात्विकता....चरम या शीर्ष....परन्तु सुनिश्चिन्त उत्कृष्ट.....जय हो....सादर नमन...जीवन-प्रबंधन के लिए तो सहज धर्म उपस्थित है..धर्म अर्थात आनन्द....और परम-आनन्द अर्थात स्वयं का मानस-धर्म...मन से स्वीकार....यत्र-तत्र-सर्वत्र.....सदैव स्थायी....डगमगाने की लेश-मात्र भी सम्भावना नहीं....द्रव्य, ठोस या वायु....आकर-प्रकार से मुक्त....शायद इसीलिए पूर्ण स्थायित्व....चयन की स्वतंत्रता.....मात्र संस्कारों की बाध्यता मुक्त अनिवार्यता....स्थायित्व की और सहज अग्रसर कहलाये मात्र सहज ‘जीवन-प्रबंधन’.....और यह बड़ी सुविधा कि यह सहज-ज्ञान प्रसारित करने के लिए....सहज सदगुरुदेव सदैव उपस्थित.....”सहज मौलिक ज्ञान, यही धर्म की पहचान”.....सहज ही “उत्कृष्ट”.....जय हो...”जीवन-प्रबंधन”....इस पांडाल की आभा तो....’UNLIMITED’…..सर्वत्र....चिंता नहीं...चिंता दूर करने के लिए चिंतन जारी है....अतः चर्चा हेतु चुनाव मात्र ‘समय-प्रबंधन’ का.....घडी सबके हाथ में....सबके सामने....सबके आस-पास....ENTIRE SYSTEM MOVES ON ‘TIME-MANAGEMENT”…..किसी भी सिक्के का कोई एक पहलु....मुद्रा कोई भी हो...काल अंकित होना अनिवार्य.....और समय-प्रबंधन....या तो पहाड़, या फिर....’खोदा पहाड़, निकली चुहिया’.....खोज करने पर हरगिज न मिले...निश्चिन्त समय में हल-चल की फुर्ती....सहज समय-प्रबंधन....विनायक-प्रबंधन....”मूल-मन्त्र”....”बीज-मन्त्र”.....”मुख्य-सूत्र”....सौ तालो की मात्र एक चाबी को मास्टर-चाबी कहते है...”MASTER KEY”…..सिर्फ और सिर्फ “नियमितता”....शास्त्र मात्र एक ही संकेत देते है....बारम्बार....स्वागतम....भले पधारो...हार्दिक अभिनन्दन.....”BE PUNCTUAL”….समय-निष्ठ....पाबन्द.....नियमित.....”स्वयं का अध्ययन”.....अनिवार्य मन्त्र या सूत्र....सहज “शास्त्री” अलंकार को अलंकृत होने हेतु स्वीकृति प्रदान करे....कुछ कार्य, कुछ समय के लिए.....और नियमित तो सहज अनिवार्य ही स्वीकार....अर्थात मुख्य आधार....”समय-प्रबंधन”.....सहज परीक्षा प्रत्येक की...साक्षात स्वंभू....पूर्व निर्धारित समय से कार्य करना प्रत्येक कार्य को सात्विकता की परिधि प्रदान करता है....सुव्यवस्थित होने का संकेत....नियत समय पर मित्रों से नियमित चर्चा.....'विनायक चर्चा' के माध्यम से यही निवेदन है कि सहज सुंदरता कायम रहे....पूर्णांक में से प्राप्तांक....मात्र परिश्रम का प्रदर्शन.....इस संकल्प के साथ कि प्रत्येक शब्द मात्र सकारात्मक सिद्ध हो...इस आशा के साथ कि समस्त मित्रों के समस्त कार्य सही-समय पर होते रहे....समय-अनुसार मन जाग्रत रहे....मन की जागृति......हमेशा-हमेशा के लिए...मात्र आनंद के लिए...यत्र-तत्र-सर्वत्र....Please Wait while you are redirected…..क्या शायद इसीलिए इन्तजार का फल मीठा होता है ???...मालवा में जिस घर पर जिस दिन “केड़ी” (गाय माता की बछड़ी) का जन्म होता है....उस दिन मन से उत्सव मना कर संस्कारों में सात्विक परिवर्तन या संशोधन कर लिया जाता है....और ‘सुन्दर-काण्ड” द्वारा “सिद्ध-आत्माओं” को तृप्त कर दिया जाता है....’विनायक-तृप्ति’....मृग-मरीचिका संभव नहीं....जय हो....सादर नमन....”विनायक-समाधान” @ 91654-18344...(इंदौर/उज्जैन/देवास)....JUST SEARCH IN “SEARCH-ENGINE”….REGARDS…











Vinayak Samadhan: जय हो....आओ इसका पता लगाए....इस ‘विनायक-साहित्य’ क...

Vinayak Samadhan: जय हो....आओ इसका पता लगाए....इस ‘विनायक-साहित्य’ क...: जय हो....आओ इसका पता लगाए....इस ‘विनायक-साहित्य’ की उत्पत्ति का कारण....शब्दों के माध्यम से निमंत्रण.....”POST’ by ‘POSTMAN’…स्व-परिश्रम....
जय हो....आओ इसका पता लगाए....इस ‘विनायक-साहित्य’ की उत्पत्ति का कारण....शब्दों के माध्यम से निमंत्रण.....”POST’ by ‘POSTMAN’…स्व-परिश्रम...स्वयं लिख कर स्वयं वितरित करे....सहज नियमित परिश्रम....एक डाल दो पंछी बैठे....कौन गुरु ? कौन चेला ?....आमने-सामने...मित्रो से नियमित चर्चा का सात्विक माध्यम.....आमने-सामने....समय पर....नियमित.....One Man Army….गृहणी को किसी सहायक की आवश्यकता नहीं होती है....समस्त सूत्र स्वयं की धरोहर....यह हो सकता है कि पद-प्रतिष्ठा, यश, सामर्थ्य में वृद्धि होती है तो क्या सब-कुछ किसी व्यक्ति-विशेष की उपलब्धि है बल्कि यह कि “मेरा आपकी दुआ से सब काम हो रहा है”....यह भी एक आनन्द हो सकता है कि स्वयं से पूछ सके...”पागल था मै पहले....या अब हो गया हूँ” ???....मस्ती की पाठ-शाला में जाने का सभी को सहज अधिकार....मात्र नियम जानने तथा मानने के लिए....जहाँ नियम संस्कारों का हिस्सा हो सकते है....एकाग्रता भला बाध्यता के दायरे में कैसे सम्भव ?....अध्ययन तो बाद की बात है....ज्वलंत-प्रश्न...यदि अध्ययन को व्यर्थ या निरर्थक माने तो सार्थक क्या हो सकता है ?.....तब मन की संतुष्टि के लिए अनेक पहलु सार्थकता हेतु गिनवाये जा सकते है....परन्तु जिसे सार्थक समझा जाता है...उन पहलुओं का अध्ययन आवश्यक है अथवा नहीं ???....मित्रों से मिलना सार्थक होता है तो मित्रों का अध्ययन निरर्थक कैसे हो सकता है ?....पत्र सार्थक हो तो शब्द निरर्थक कैसे हो सकते है ?...यदि व्यक्तित्व सार्थक है तो फिर व्यक्ति निरर्थक क्यों ?.....और यह समस्त प्रश्न यदि स्वयं से हो तो पुस्तको के अध्ययन से साथ-साथ....स्वयं के अन्दर खोजना संभव है, हाथो-हाथ.....स्वयं से प्रश्न का उत्तर तो स्वयं को खोजना पड़ सकता है......साक्षात स्वंभू.......प्रत्येक परीक्षा में सिर्फ निर्धारित प्रश्नो के लिए समय तथा अंक प्रत्येक के लिए समान तथा निर्धारित होते है...हम अनेक प्रश्न का एक उत्तर या एक प्रश्न के अनेक उत्तर अवश्य जान सकते है...और यह बात मात्र अध्ययन की बात हो सकती है...लगातार उत्तर देने वाला योग्यता की श्रेणी में अवश्य आ सकता है...और समय अनुसार प्रश्न और उत्तर में परिवर्तन अवश्य हो सकता है..इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमारा स्वयं का अनुभव होता है...'विनायक चर्चा' के माध्यम से यही निवेदन है कि सहज सुंदरता कायम रहे...हार्दिक स्वागत...विनायक समाधान @ 91654-18344...(इंदौर/उज्जैन/देवास).








Vinayak Samadhan: जय हो...गौर फरमाईयेगा....सादर नमन....“Objects in t...

Vinayak Samadhan: जय हो...गौर फरमाईयेगा....सादर नमन....“Objects in t...: जय हो...गौर फरमाईयेगा....सादर नमन....“Objects in the mirror are closer than they appear”…..सलाह या चेतावनी....हर वाहन के दर्पण पर लिखा रहता...

Vinayak Samadhan: जय हो....पिता द्वारा पुत्र को सहज सूत्र सिखाने का ...

Vinayak Samadhan: जय हो....पिता द्वारा पुत्र को सहज सूत्र सिखाने का ...: जय हो....पिता द्वारा पुत्र को सहज सूत्र सिखाने का कार्य....हम अपने स्वयं के बच्चों से बहुत कुछ सीखते है....मसलन प्रेम, वात्सल्य, स्नेह, त...

Vinayak Samadhan: ”वसीयत में बंटवारा”......वसीयत को ध्यान से पढ़ा जा ...

Vinayak Samadhan: ”वसीयत में बंटवारा”......वसीयत को ध्यान से पढ़ा जा ...: ”वसीयत में बंटवारा”......वसीयत को ध्यान से पढ़ा जा सकता है...लिपि-बद्ध चर्चा...एकान्त सहज सार्वजनिक....नियमानुसार इच्छा जाहिर करने का अधिक...
”वसीयत में बंटवारा”......वसीयत को ध्यान से पढ़ा जा सकता है...लिपि-बद्ध चर्चा...एकान्त सहज सार्वजनिक....नियमानुसार इच्छा जाहिर करने का अधिकार....वसीयत को वह मित्र ध्यान से पढ़ना चाहेगा जिसके नाम वसीयत होती है....”हिब्बा-नामा”...Nomination में Nominee...अर्थात सबसे प्रिय या सबसे योग्य या सबसे अनुभवी हो....स्वयं से प्रश्न करना पड़ सकता है..."Why Me" ???.....प्रश्न तथा उत्तर दोनों में आनन्द......घर का बंटवारा......हिस्सेदारी.....दावा-प्रस्तुति.....और ठहराव-प्रस्ताव किसी सन्त के पास आ जाये तो क्या होगा ?.....अब सन्त की बुद्धि तो सहज यही कहे.....न घर तेरा, न घर मेरा, यह घर चिड़िया रैन-बसेरा रे भाई.....बंटवारे या वसीयत में चिड़िया का कोई काम नहीं....राम की चिड़िया, राम का खेत.....सबसे ज्यादा फायदे में चिड़िया.....राम का खेत भी अपना और घर पर भी अपना कब्ज़ा.....जैसे मन माफिक.....तन तम्बूरा, तार मन....मन नी मुरलिया मा, श्याम नो नृत्य......भक्ति, भक्त, भगवान.....परीक्षा, परीक्षार्थी, परीक्षक.....गुरु, शिष्य, आश्रम.....सर्व-प्रथम स्वयं के अनुभव के विषय है....तत्पश्चात गर्व के.....गर्व में प्रपंच संभव है परन्तु अनुभव सरल सत्य होता है....टिका-टिप्पणियों से पूर्णतया परे.....चलती बैल-गाड़ी के निचे श्वान के चलने की कहानी सब कहते-सुनते आये है...जबकि श्वान ने आज-तक किसी से कुछ नहीं कहा...बैल-गाड़ी के साथ श्वान का चलना ही सम्भव है, शेर कदापि नहीं...श्वान बैलगाड़ी के निचे मात्र धुप से बचने के लिये चुप-चाप चलता है....श्वान ने कभी स्वीकार नहीं किया कि गाड़ी वह चला रहा है...वह तो मात्र यही स्वीकार कर सकता है जो कि शत-प्रतिशत सत्य है..."तेरी वजह से मेरा काम हो रहा है, बेकाम में मेरा नाम हो रहा है"...सिर्फ अपने साथियों से संभाषण....मौन धन्यवाद...मन की बात....श्वान की उपस्थिति...यात्रा हो या न हो....स्वयं को सुरक्षा का अहसास करवाता है...क्योंकि दरवाजे पर लिखा होता है...'Beware the Dog'....चेतावनी मात्र दुसरो के लिए....खरगोश और कछुए की तुलना सिर्फ गति के कारण होती है....वर्ना दोनों में कोई मेल-जोल नहीं...आदमी, आदमी को मुर्ख बना सकता है, एक बार नहीं, हजार बार...किन्तु जानवर को नहीं....जानवर, जानवर को मुर्ख बनाता है या नहीं ?....पता नहीं...i don't know.....लेकिन शेर, शेर को कभी नहीं खाता...यह fact सबको पता...शेर का शिकार, भला स्वयं शेर कैसे बन सकता है ?...अब गुस्ताखी माफ़...क्या यह प्रश्न उचित है कि जानवर, आदमी को मुर्ख बना सकता है ?.....जानवर वही कार्य करता है, जो उसे सिखाया जाता है...और तब करता है जब उसे कहा जाता है...इशारो में, ध्वनि रूपित शब्दों द्वारा...इस चेष्टा के साथ कि एकबारगी...सुनो तो जरा...परन्तु फिर भी यह नहीं कि...’एक बार मुस्करा दो’...और खुश होने के इशारे हजार...मात्र ध्वनि से इजहार...और मुस्कराहट में तो शब्द व्यक्त करना....’हा-हा, ही-ही’.....मात्र मनुष्य का अधिकार...ठीक जैसे सुचना का अधिकार...कब ?, क्यूँ ?, कैसे ?....आनन्द के मार्ग में कोई शर्त लागू नहीं...आनन्द में बाध्यता बन्धन समान है......जिस को जान की परवाह नहीं, उसके लिए जान से मारने की धमकी व्यर्थ....Hands-up कहने का कोई असर नहीं......जो फेल होने से नहीं डरता, वह प्रावीण्य सूचि में अवश्य आ सकता है...’पहला नम्बर’....”FIRST RANK’....जिसको प्रसिद्धी का मोह नहीं, वही सिद्धि का अधिकारी माना जा सकता है...OFFICER....सबसे कम संख्या परन्तु विलुप्त कदापि नहीं...निर्णय को पहचानने की कला...और यह मान कर चलिए सिद्धि रुपयों से नहीं खरीदी जा सकती है....न बेचीं जा सकती है....न हार का डर, न जीत का लालच....हद से ज्यादा साधारण चीज.....’बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख’.....”सिद्धि” तो सहज ‘रिद्धि-सिद्धि’ में से एक है....कोई निश्चिन्त माप-दण्ड नहीं...समय अनुसार प्रश्न और उत्तर में परिवर्तन अवश्य हो सकता है..इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमारा स्वयं का अनुभव होता है...'विनायक चर्चा' के माध्यम से यही निवेदन है कि सहज सुंदरता कायम रहे...हार्दिक स्वागत...विनायक समाधान @ 91654-18344...(इंदौर/उज्जैन/देवास)..






जय हो....पिता द्वारा पुत्र को सहज सूत्र सिखाने का कार्य....हम अपने स्वयं के बच्चों से बहुत कुछ सीखते है....मसलन प्रेम, वात्सल्य, स्नेह, त्याग....और बदले में हम क्या करे ?....क्या देवे ??....गुरु दक्षिणा नहीं....मात्र स्नेह-पुरस्कार के रूप में....बस कोई भी मौका देख कर चौका लगाये....मात्र एक उपहार सदा के लिए....जैसे हीरा है सदा के लिए....”कोई भी आसान कार्य आसानी से सिखाने कार्य”....जैसे किसान अपने बच्चों को बैल-गाड़ी चलाना सिखाता है....पिता द्वारा पुत्र को सहज सूत्र सिखाने का कार्य.....नित्य कर्म का दायित्व.....सहज निर्वाह....सायकिल सिखाना, तैरना सिखाना, शतरंज सिखाना, घड़ी का उपयोग तथा प्रयोग सीखाना, शास्त्रों तथा शस्त्र की जानकारी साझा करना, प्रार्थना की अनिवार्यता सिखाना, नियमितता तथा समय-प्रबंधन का तालमेल सिखाना.....कब ?, क्यों ?, कैसे ?.....सबको सब-कुछ पता हो सकता है....सम्मान का खाता....एकल कदापि नहीं....युग्म द्वारा संचालित.....समय की गति अनुसार संतान कब परकोटा परिवर्तन कर लेती है ?.....देखते ही देखते....निम्न से मध्य....मध्य से समकक्ष.....समकक्ष से उच्च.....राज्य-पक्ष में पदार्पण....सहज स्वयं की दृष्टि के समक्ष.....सृष्टि की संरचना....मात्र प्रार्थना के रूप में.....मात्र पूर्णांक में से प्राप्तांक.....मन की अभिलाषा.....बस 'प्रश्न-पत्र' बन जाये, 'उत्तर-पुस्तिका'....और मिल जाए खुशियों का खजाना.....
"शुभम करोति कल्याणम,
अरोग्यम धन संपदा,
शत्रु-बुद्धि विनाशायः,
दीपःज्योति नमोस्तुते"......copy check होने पर कितने number आते है ?....पूर्णांक में से प्राप्तांक....मात्र परिश्रम का प्रदर्शन.....छैनी-हतौडी का उपयोग, पत्थरों में प्राण-प्रतिष्ठा का आवश्यक अंग हो सकता है....एक प्रश्न एक शिशु से..."What do you want ?"....और वह अपनी ख्वाहिश लिख देता है...सादे कागज़ पर....जैसे कोई लाइन खिचता है कागज़ पर....और परीक्षक को भी अपने दायरे में रहना है...पूर्ण काटने का अधिकार नहीं परन्तु काट-छांट का पूर्ण अधिकार...ठीक बगीचे के मालिक नहीं बल्कि माली के समान....बागवान...बगीचे का भगवान...’विनायक-तृप्ति’....इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमारा स्वयं का अनुभव होता है..मृग-मरीचिका संभव नहीं....जय-गुरुवर....प्रणाम...इस 'प्रण' के साथ कि 'प्रमाण' में 'प्राण' बसे...Just Because Of You...."अणु में अवशेष"....जय हो....सादर नमन....”विनायक-समाधान” @ 91654-18344...(इंदौर/उज्जैन/देवास)....JUST SEARCH IN “SEARCH-ENGINE”….REGARDS…








Wednesday 11 November 2015

Vinayak Samadhan: जय हो...गौर फरमाईयेगा....सादर नमन....“Objects in t...

Vinayak Samadhan: जय हो...गौर फरमाईयेगा....सादर नमन....“Objects in t...: जय हो...गौर फरमाईयेगा....सादर नमन....“Objects in the mirror are closer than they appear”…..सलाह या चेतावनी....हर वाहन के दर्पण पर लिखा रहता...
जय हो...गौर फरमाईयेगा....सादर नमन....“Objects in the mirror are closer than they appear”…..सलाह या चेतावनी....हर वाहन के दर्पण पर लिखा रहता है....सामान्य बात.....और उससे भी सामान्य बात......प्रत्येक शास्त्र में लिखा रहता है...”Problems are smaller then they appear”….निष्कर्ष या परिणाम....so, we have to face them….FACE to FACE…..और जब हम समस्याओं का सामना करते है तब....हम स्वाभाविक रूप से किसी भी पहलु पर ज्यादा चिंतन करते है...With help of our own ‘THINKING MACHINE’……स्वयं से प्रश्न ???....असमंजस या उहापोह....और शास्त्र कहते है कि संकट में स्वाध्याय वास्तविक प्रार्थना सिद्ध होता है....यही है शास्त्रों का स्पष्टीकरण......”Nobody is useless…..we are just used less…Either use ourselves Or find someone who knows to use US”…..और स्वयं का श्रेष्ठ उपयोग है स्वाध्याय....Total use of machine…..सात्विक-कर्म....स्वयं के वायुमंडल में सात्विकता का समावेश...विनायक-प्रारम्भ....स्वयं को विनायक-आदेश.....ताकि स्वयं का होता रहे ‘विनायक-उपयोग’....गौर फरमाईयेगा....मन से मन की बात...We have to train our ‘MIND’, to mind our ‘TRAIN’…..ताकि गाड़ी चलती रहे सुगम....आखिर चलती का नाम गाडी....और जीवन चलने का नाम....जैसे राम से बड़ा राम का नाम....जैसे राम की चिड़िया, राम का खेत....न जीत का लालच, न हार का डर....सहज-आसान विषय....जिसे समझने के लिए हम भ्रमण करते है.....यत्र-तत्र-सर्वत्र...आमने-सामने...विषय समझ में आया तो ठीक वर्ना ट्यूटर बदलने की सहज सुविधा...और यह भी हो सकता कि स्वाध्याय या स्वयं अध्ययन करे....(SELF-STUDY)…..SELF-TUITION…..फुर्सत के क्षणों में शब्दों का आदान-प्रदान अर्थात चर्चा का योग, समय अनुसार.....उच्च, समकक्ष या मध्यम....शुद्ध रूप से....स्वयं का निर्णय हो सकता है...आमने-सामने...face to face...शब्दों का सम्मान...पूर्ण स्वतंत्रता के साथ....शब्दों को व्यक्त करने का अधिकार अवसर मिलने पर ही सार्थक होता है....समस्त अवसर, प्रश्नों पर आधारित हो सकते है  और प्रश्न करने का अवसर होना चाहिए......सादर नमन्...जय हो..."विनायक-चर्चा" हेतु हार्दिक स्वागत....विनायक समाधान @ 91654-18344....(INDORE/UJJAIN/DEWAS)







Tuesday 10 November 2015

Vinayak Samadhan: REGARDS....BE HAPPY ALWAYS & DON'T WORRY....I...

Vinayak Samadhan:




REGARDS....BE HAPPY ALWAYS & DON'T WORRY....I...
: REGARDS....BE HAPPY ALWAYS & DON'T WORRY....IN EVERY WAYS....IN MANY WAYS....JUST TOWARDS SO MANY WAYS......जय हो...





REGARDS....BE HAPPY ALWAYS & DON'T WORRY....IN EVERY WAYS....IN MANY WAYS....JUST TOWARDS SO MANY WAYS......जय हो....सादर नमन.......WITH DUE RESPECT.....FROM ALL OF US AT 'FACEBOOK'....WE HOPE ENJOY CELEBRATING THE FESTIVAL OF LIGHTS WITH OUR LOVED ONES...."सदा दिवाली संत की, आठों प्रहार आनन्द.....निज-स्वरूप में मस्त रहे, छोड़ जगत के फंद".....इस संकल्प के साथ कि प्रत्येक शब्द मात्र सकारात्मक सिद्ध हो...हमेशा-हमेशा के लिए...मात्र आनंद के लिए....प्रत्येक शब्द में निमंत्रण है....."गुरु कृपा ही केवलम्"....भले पधारो सा...हार्दिक स्वागत...MOST WELCOME...विनायक समाधान @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)....REGARDS..