Monday 17 April 2017

ठुमक-ठुमक चलत #रामचन्द्र बाजत पेजनियाँ... बधाईयाँ मर्यादा #पुरूषोत्म् के जन्मोत्सव की…श्री रामनवमी की हार्दिक बधाई
अनंत शुभकामनाएं……भगवान शिव जी के आराध्य देव प्रभु श्री अभिराम जी के जन्मोत्सव की हार्दिक शुभ कामनाएं…..
श्री राम ने सिखाया है संसार में सबसे बड़ा है वचन ... जिसने वचन का पालन किया बल, ज्ञान और अर्थ सब उसके अधीन हो जाते है….
“रघुकुल रीत सदा चली आयी प्राण जाये पर वचन न जाए”...
जा पर कृपा राम की होई
ता पर कृपा करें सब कोई……
लोकाभिरामं रणरङ्गधीरं
राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं
श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये।।
भए प्रकट कृपाला... दिन दयाला... जय हो #दशरथ_नन्दन की.

किसी को खुश करने की कला....मात्र स्वयं का अनुभव.....एक दिन तो मिटटी में मिलना ही है….चलो जमीन पर ही बैठ बतियाते है…..और फिर यहाँ खालिस ज़मीन पर फर्श भी बिछा है…..हर एक का सपना....वतन का पतन ना हो.....मिलती रहेगी धुल, हवाओं के शोर में.....भले ही अनजान हस्तियाँ चाँदी सी चमक जाये....पर दामन में बदनामी भला किसे भली लग सकती है ?...राम इस देश का प्रभात का स्वर है….अर्थात इस देश की सुबह सदियों से इसी नाम से होती आ रही है…..बधाईयाँ मर्यादा #पुरूषोत्म् के जन्मोत्सव की…श्री रामनवमी की हार्दिक बधाई.....
मानस में कहा है…..
एहि महँ रघुपति नाम उदारा।
अति पावन पुरान श्रुति सारा ।।
मंगल भवन अमंगल हारी।
उमा सहित जेहि जपत पुरारी।।
करन चहउँ रघुपति गुन गाहा।
लघु मति मोरी चरित अवगाहा।।
सूझ न एकउ अंग उपाऊ।
मनमति रंक मनोरथ राऊ।।
..समय अपना-अपना....और आदान-प्रदान हो जाए....तो सहज आमने-सामने.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव.....हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)...

#राम-राम सा#.....भगवान शिव जी के आराध्य देव प्रभु श्री अभिराम जी के जन्मोत्सव की हार्दिक शुभ कामनाएं…..जब तक #सूरज# , #चाँद# रहेगा....तब तक किसका नाम रहेगा ?....मालुम नहीं....पर #राम# से बड़ा #राम# का नाम...."राम की चिड़िया-राम का खेत"...
जा पर कृपा राम की होई
ता पर कृपा करें सब कोई….
ऐसा कहा जाता है कि #राम# नाम पापो का नाशक और मन को शांत करने वाला है...“राम-राम” के उच्चारण द्वारा हमें १०८ मनके की माला जपनें जैसा पुण्य प्राप्त होता है..अंक नौ(9-NINE)...सिद्ध-पूर्णांक....अक्षय वास्तव मे ऐसा है क्योकि मंत्र शास्त्र के अनुसार "रा" अग्नि का बीज मन्त्र है जो कि पापो को भस्म करने को अग्नि के सिद्धान्त पर काम करता है और इसी तरह "म" चन्द्र का जो मन को शीतल और शांत करके शान्ति देता है....हृदयरोग का इलाज विज्ञान के पास है, लेकिन ह्रदय में निहित ,ईर्ष्या, क्रोध, अभिमान इत्यादि दोषों का इलाज धर्म के पास है....धर्म का निर्वाह करने के लिए स्वयं के लिए बाध्यता नहीं कि हम कोई...पंडित, मौलवी, पादरी बने रहे....परन्तु आस्था का दावा अपने आप में किसी दवा से कम नहीं...आखिर आस्था जीवन का आधार है.....तब हम स्वय को सन्त के रूप में आत्मसात कर सकते है...यत्र-तत्र-सर्वत्र.....यह याद रखते हुए कि सन्त का अन्त कदापि नहीं….आदमी मुसाफिर है....आता है-जाता है.....कोई किसी के पास कुछ ही कारणों से आता-जाता है..भाव में, अभाव में या प्रभाव में....भाव में आया है तो प्रेम....अभाव में आया तो मदद....प्रभाव में आया तो प्रसन्न होना लाज़मी है कि प्रभु ने क्षमता दी है.....किसी को खुश करने की कला....मात्र स्वयं का अनुभव.......मात्र शब्दों का आदान-प्रदान.....विनायक क्रमचय-संचय....निरंतर...वर्ष 2007 से...एक दशक विश्वास का.....25000 से भी ज्यादा मित्रो से सहज “विनायक-वार्तालाप”......यह मानते हुए कि प्रत्येक मित्र निपुण होता है...निपुणता नामक गुण प्रत्येक को प्रकृति द्वारा प्रदत्त अनमोल...अनुपम...अमूल्य...अदभुत...उपहार होता है...जीवन की गति का अनुभव....COPY, PASTE & EDIT……तत्पश्चात......Save, Send, Publish....हार्दिक स्वागतम.....विनायक सामाधान @ 91654-18344.... इंदौर / उज्जैन / देवास...
वास्तविकता में कही गयी बात समस्या न हो कर मात्र अनुभव होता है...यदि अनुभव सुखद या लाभप्रद नहीं हो पाता है तो हम इसे समस्या करार देते है...और अनुभव निरन्तर सुखद या लाभप्रद नहीं हो पाता है तो हम इसे गम्भीर समस्या करार देते है...और यदि यह अनुभव लगातार जारी रहता है तो मस्तिष्क में नकारात्मक विचारो की उत्पत्ति शुरू हो जाती है...नकारात्मक विचारों से भय की उत्पत्ति संभव है...ठीक इसी प्रकार जब सुखद अनुभव होता है तो ....हम स्वयं स्वर्ग का अनुभव करते है क्याकि सकारात्मक विचार उतरोत्तर उन्नति का सशक्त अंग सिद्ध हुए है... सकारात्मक पहलु अमर होते हुए अनन्त तक जाने की सम्भावना रख सकता है...जहाँ तक विचारो की बात करते है तो यह मात्र मन की यात्रा होती है...निरन्तर यात्रा....ठहराव-प्रस्ताव का अधिकार मात्र शक्तिशाली मन को...निर्णय लेने की क्षमता ही मन की ताकत होती है....मन एक वृत रूपी परिधि है जहाँ विचार प्रकट होकर भ्रमण करते है जंहा अनन्त भी सहज परिभाषित है बिल्कुल वायुमंडल के परिदृश्य...यथा बीजम् तथा निष्पत्ति....एवम् नकारात्मक विचार की उत्पत्ति शीघ्रता से होती है....सकारात्मक से लगभग तीन गुना अधिक...और उपलब्ध सकारात्मक उर्जा के लिए लगभग पांच गुना हानिकारक....अर्थात कहावत सत्य चरितार्थ होती है... यदि स्थिति नियन्त्रण में नहीं हो तो एक अशुद्धि सम्पूर्ण सम्पूर्ण वायुमंडल के लिए हानिकारक हो सकती है.
हरिद्रा गणेश सिद्धि यन्त्र.......'Haridra Ganesh Yantra' is used for obtaining blessing of Deva Shree Ganesha for success in removal of obstacles & gaining of knowledge, wit, speech, writing power, money, protection, fame, power, position, success in Tantra. It is also used for removing malefic effects of ATMOSPHERE....अर्थात क्षमा, रक्षा, न्याय, व्यवस्था...अर्थात ऊर्जा का संचय...अर्थात साक्षात् "ईशान"…जिस प्रकार सम्पूर्ण सम्पूर्ण पृथ्वी पर लगभग 70% जल तथा 30% भूमि है, उसी प्रकार सम्पूर्ण वायुमंडल में भी 70% सकारात्मक तथा मात्र 30% नकारात्मक उपस्थित मान सकते है...ठीक जैसे 'खेत में खरपतवार'....और गणित के खेत में लेश-मात्र....नगण्य खरपतवार.....सौ की सौ मुद्राएँ.....स्वयं की....यदि सवाल का उत्तर सही हो तो....24 कैरेट GOLD.....जितने का आनन्द.....स्वच्छ आदान-प्रदान.....साबुत.....टूट-फुट नहीं.....साधारण कच्ची मिटटी की जमींन पर मालवा में बच्चे कन्चे (कांच की गोलियाँ) खेलते है.....और कंचो से बच्चे खेल-खेल में....गणना सिख जाते है...भारतीय संस्कृति......सभ्यता एवं राष्ट्र भक्ति के साथ-साथ स्वर्णिम राष्ट्र निर्माण के लिये संकल्पित ....... कुछ शब्द प्रत्येक या किसी भी धर्म या समुदाय या सम्प्रदाय का हिस्सा हो सकते है, उदाहरण....राज्यपक्ष, जड़त्व, युग्म, नाद, पंच-भोजन, पंच-स्वर, श्रवण, कीर्तन, चिन्तन, मनन, वायुमंडल, कालखण्ड, पंचतत्व, परकोटा, प्रवाह, स्थिरता, प्रहर, आहार, विहार, भ्रमण, ज्ञानेन्द्रिया, गुरु, आकर्षण, मौन, त्याग, दर्शन, सहज. सफल, सुफल, प्रार्थना.स्त्रोत, मध्य केन्द्र, उर्जा, शक्ति, वनस्पति, आसन, आश्रम, ध्यान, रेखाए, ईशान कोण, इत्यादि.....और इनका मूल्य भला कैसे तय हो सकता है ?.... .प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव.....हार्दिक स्वागतम…..”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS).

इस 'प्रण' के साथ कि 'प्रमाण' में 'प्राण' बसे...Just Because Of You...."अणु में अवशेष"..उपस्तिथि में 'पंच-तत्व'....गवाही में 'ज्ञानेन्द्रियाँ'...और सम्पूर्ण प्रक्रिया में ऊपर वाले को साक्षी या हाजिर-नाजिर माना जाता है...तब कोई पूछ ले कि कौन है वह ? तब क्या हो...….#कब ?, #क्यों ?, #कैसे ?...सबको मालुम है....कुछ-कुछ, बहुत-कुछ, सब-कुछ…….सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव......#LIVE#.....From the desk of #VINAYAKSAMADHAN#....We are the #WORDS#.....वह #चर्चा# रूपी साहित्य, जो मित्रो के साथ साझा हुई....पढने की शुरुआत या प्रारम्भ, अन्त से भी कर सकते है...अभिनव-प्रयोग....उल्टा-पुल्टा स्वतः सीधा-सीधा....कही से भी पकड़ कर जहाँ भी छोड़े, वायुमंडल स्वयं के इर्दगिर्द.... स्वयं सिद्ध करे....याद रखने की जरुरत नहीं.... सरल-सूत्र.....#तन+मन+धन#.....#33+33+33=99#.....#तीन रेखाओं का खेल#......#पूर्णत: सात्विक#.....एकान्त का सार्वजानिक प्रदर्शन…..”#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#...#vinayaksamadhan# #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#..

હર હર મહાદેવ......ज्ञान की गंगा......शिवत्व में समर्पण का समावेश....."सत्यम-शिवम्-सुंदरम" की अनुभूति.... सुनिश्चिंत परम-आनन्द......चर्चा अन्त की ना हो कर, सन्त की हो...अनन्त की हो... एकांत की हो....बसंत की हो...समस्त सागरों के पानी की स्याही....समस्त जंगलों के पेड़ो की कलम....और सम्पूर्ण धरती मात्र एक कागज़ के समान....पर्याप्त है या नहीं ???....यह तो लिखने वाला ही जाने....इस अनुभव, आभास या अनुभूति के साथ......ईश्वर देवताओं का भी देवता है और इसीलिए वह महादेव कहलाता है...शब्द से चित्र बनते है ? या चित्र शब्द को उत्पन्न करता है ?..
पूरी दुनिया के लोग एक ही बहाना करते है.....NO TIME IS THERE.....और खुद से एक प्रश्न करना भूल जाते है.....WHY ?.....जबकि सच्चाई यह है कि एक दिन में सिर्फ चौबीस घंटे.....सिर्फ सबके लिए.....कोई वाद-विवाद नहीं.....बाबा कहते है....करने से होता है.....इसलिए आज बाथरूम की सही सफाई की चर्चा कर लेते है....आमने-सामने.....यह बात फिर भी धर्म से ही सम्बंधित साबित होगी....वजह एक ही है.....स्पष्ट है.....स्व्च्छता में ईश्वर का वास होता ही है....अगर विश्वास ना हो तो खुद की एड़ियां रगड़ कर साफ़ करके देखियेगा......चौबीस घंटे की आपा-घापी में से आधा-घंटा पूजा या इबादत के लिए जायज माना जा सकता है....बस इसी जायज में से ईमानदारीपूर्वक दस मिनट बिना दस्तावेज़ के.....उधार नहीं बल्क़ि अधिकार से ले कर देखना होगा.....बिना दस्तावेज़ के......ये दस मिनट डबल करने की इच्छा हो सकती है... ये अन्दर की बात है....TV को छोड़ कर कोई चीज ध्यान से देखने की आदत छुटती जा रही है.....इसी चक्कर में लोग नकली नोट थमा देते है….और बात इमानदारी की हो चुकी है....तीस मिनट में से दस मिनट....बस छोटी सी शर्त दस मतलब दस....बस यही दरकार.....और बाथरूम में खुद की सरकार....स्वतंत्र सरकार....LIKE या SHARE स्वयं तक सीमित.....मात्र दस मिनट में जितना भी काम हो जाय....पूर्ण स्वैच्छिक....हिंदी में सक्रियता और अंग्रेजी में WARM-UP जानने का तरीका.....बिना किसी शब्दकोश के.....कोषालय में जाए बगैर.....OUTSTANDING का सीधा-सीधा मतलब होता है....अपने समकक्ष लोगो से मात्र एक कदम आगे.....छोटी सी परिभाषा....एक कदम नापने का अनुभव सबके पास अर्थात सक्रियता......याद रखने की जरुरत नहीं.... सरल-सूत्र.....#तन+मन+धन#.....#33+33+33=99#.....#तीन रेखाओं का खेल#......#पूर्णत: सात्विक#.....एकान्त का सार्वजानिक प्रदर्शन…..”#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#..
अपनेपन का अहसास सबका प्रयास.....हम सब एक-दुसरे के सिर्फ विचारो से जानते है....बाकि अन्य माध्यम प्रमाणिकता के बाद भी छलावा हो सकते है.....बन्दुक को शस्त्र माना जाता है...परन्तु कारतूस के बिना किसी काम की नहीं....तथा रख-रखाव के लिये शास्त्रों की स्वीकृति आवश्यक.....पंडित कहीं नहीं जाता सिर्फ मंदिर की परिधि में प्रतिबन्धित.....तथा धर्म का सिक्का कंही भी उछाला जा सकता है...एक पक्ष में हरी करे सो खरी....दूसरी पक्ष में हरिकथा अनंता....और मंदिर की परिधि का निर्माण....सिर्फ पंडित द्वारा.......युद्ध के मैदान का आँखों देखा हाल....सिर्फ अपने ज्ञान के आधार पर......जय हो....मित्रों हम सब परस्पर मित्रता के बराबर के भागीदार है....धुप में खड़े रहना….मजे का काम.....किसी सजा से कम नहीं.....यह तो गनीमत है कि प्रकृति ने सूरज को एक नियत स्थान पर पक्का कर दिया....बस उगने का और डूबने का खेल समझा दिया....जबकि हकीकत में ना उगे-ना डूबे....उदय या अस्त होना.....एक तयशुदा मंज़ूर नियम....कुबूल-कुबूल-कुबूल.....पूर्ण स्वैच्छिक....हिंदी में सक्रियता और अंग्रेजी में WARM-UP जानने का तरीका.....बिना किसी शब्दकोश के.....कोषालय में जाए बगैर.....OUTSTANDING का सीधा-सीधा मतलब होता है....अपने समकक्ष लोगो से मात्र एक कदम आगे.....छोटी सी परिभाषा....एक कदम नापने का अनुभव सबके पास अर्थात सक्रियता......याद रखने की जरुरत नहीं.... सरल-सूत्र.....#तन+मन+धन#.....#33+33+33=99#.....#तीन रेखाओं का खेल#......#पूर्णत: सात्विक#.....एकान्त का सार्वजानिक प्रदर्शन…..”#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#..


बिल्कुल #भीड़# में शामिल...#भेड़# वाली चाल....वास्तविक खपत पर कोई विचार नहीं करना चाहता....जवाबदारी से जिम्मेदारी का अनुभव सौभाग्य कहला सकता है....धर्म के क्षेत्र में बहुत आधुनिक नहीं या बहुत अलग से नहीं या बहुत चमत्कृत नहीं अपितु दिलचस्प सरल सत्य सामने आना आवश्यक माना जा सकता है....'सरल' शब्द कठिनाईयों से पहले या बाद में स्वतः निर्मित होते आया है....अनुभव किसी भी पहलु को हमेशा आसान बनाते आया है....और यह यकीनन किसी चमत्कार से कम नहीं है....अनुभव को स्वयं की बैंक से ब्याज के लिये बाहर लाना पड़ता है जबकि रुपये को ब्याज के लिये किसी भी बैक में जमा कर सकते है....और अनुभव का ब्याज स्वयं की बैंक से सीधे किसी की व्यक्तिगत बैंक में ट्रांसफर करना आसान और बल्कि स्वतः....बोले तो fully AUTOMATIC...direct inject into the MIND.....आराम से लिखी गई चर्चा को आराम से ही समझना आसान हो सकता है.......धर्म जीवन के हर मोड़ पर हाजिर है....प्रत्येक सम्प्रदाय में वर्ष में उचित अवसरों पर उचित उत्सवो का प्रावधान....बहुजनहिताय....आज भी गावों में किसी भी मंदिर पर शाम को प्रबुद्ध वर्ग को एक साथ देखने का अवसर हो सकता है.....यही उपाय हो सकता है अमन-चैन को वितरित तथा एकत्रित करने का.....चर्चा संगठन में...संपर्क, संवाद और पारदर्शिता....प्रत्येक स्तर पर संभव है.....संगठन का महत्व....यत्र, तत्र, सर्वत्र.....बिल्कुल #भीड़# से अलग...#भेड़# वाली चाल नहीं..... आमने-सामने की कला में पारंगत होना स्वयं का दायित्व.....शत-प्रतिशत.....एक मात्र मुख्य विनायक आधार--'गुरु कृपा हि केवलम्'......”#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#...#vinayaksamadhan# #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#....
डॉ. हेडगेवार व्याख्यानमाला , उज्जैन(म.प्र.) का शाश्वत-सत्य....सोशल-मीडिया पर बहुसंस्कृतिवाद की बजाय लोकतंत्र पर प्रकाश ज्यादा उचित हो सकता है...संगठन का विश्वास, बिखराव का नाश करता है....खेत में खरपतवार का ईलाज अनिवार्य है.....पांचजन्य के प्रधान-संपादक श्री हितेष शंकर जी द्वारा दिये गए उदबोधन से यही समझ में आता है कि संपूर्ण विश्व में कोई भी धर्म या सम्प्रदाय हो....युग निर्माण का जिम्मा हर एक के पास...यह सावधानी हटने पर दुर्घटना घटने का डर बना रहे तो बेहतर.....वातावरण का प्रभाव व्यापक होता है...वातावरण के प्रभाव से जड़, जीव, प्राणी सभी प्रभावित होते है...वातावरण अंतरिक्ष की बहुमूल्य सम्पदा है....अंतरिक्ष की एक और सम्पदा है--'वायुमंडल'.....दोनों सम्पदायें ठीक उसी तरह जैसे पृथ्वी के दो घटक--'पदार्थ और ऊर्जा'....वायुमंडल स्थूल होता है, जबकि वातावरण सूक्ष्म....वायुमंडल का संतुलन और अनुकूलता प्रकृति को पुष्ट बनाते है...किन्तु जब कर्म अशुभ एवं अमंगल होते है तो निकृष्ट कर्मो से वातावरण दूषित हो जाता है...तब विकृतियाँ पनपने से प्रकृति रूठ जाती है और दुर्घटनाओं में वृद्धि होने लगती है...अनाज पीसने की अनेक चक्कियाँ और अनेक कल-कारखाने...मोटे अनाज का महत्व संपूर्ण राष्ट्र जाने-पहचाने....अनाज को अंकुरित करने के लिए सिर्फ एक लोठे पानी की आवश्यकता हो सकती है...आटे में कंकर पीस जाने के बाद कोई विकल्प नही, किन्तु साबुत अनाज में से कंकर बीनने का काम निहायत कौशल और धैर्य का काम होता है.....चटनी-चूरन तब काम के होते है, जब पेट-भर भोजन आनन्द के साथ हो जाये....ज्ञान प्रदर्शित करता है कि हम क्या कर सकते है ?...बुद्धिमता दर्शाती है कि हम कब, क्या कर सकते है ?...दरार उचित है या करार सर्वोत्तम हो सकते है ?....Behind या Front...जो बीत गया उसे जमाना भूतकाल कहता है और जो सामने है, वही भविष्य कहलाता है....किसी भी विफलता का मंथन होता है तो मन में यह विचार अवश्य आता है कि 'what is the reason behind this failure' ?....किसी भी पते को आसान बनाने के लिए 'in front of' इस्तेमाल होता है तो उल्लेखित पहलु को पहले खोजना पड़ता है....और तलाशने का कार्य हो या तराशने का....दोनों कार्य वर्तमान में ही संभव है....श्रेष्ठ बनना हर एक की अभिलाषा हो सकती है, श्रेष्ठ बनने के उपाय भी हर एक को ज्ञात हो सकते है, किन्तु हम औसत क्यों बन जाते है ?...इस प्रश्न पर हर कोई विचार करने में संकोच करता है....क्षमा, रक्षा, न्याय, व्यवस्था की आवश्यकता हर कोई महसूस करता है, तब लक्ष्य, समय, सेवा, ऊर्जा जैसे पहलुओं पर प्रकाश डालने की आवश्यकता हो सकती है....लक्ष्य चुकने के बाद का दुःख, समय निकल जाने पर पछतावा हर किसी का अनुभव हो सकता है, मगर सेवा का मौका और ऊर्जा का सदुपयोग हर एक का व्यक्तिगत अनुभव होता है...दान और प्रदान शब्द एक ही प्रजाति के शब्द है मगर दोनों के उपयोग में स्वयं का योगदान मायने रखता है......यही उपाय हो सकता है अमन-चैन को वितरित तथा एकत्रित करने का.....चर्चा संगठन में...संपर्क, संवाद और पारदर्शिता....प्रत्येक स्तर पर संभव है.....संगठन का महत्व....यत्र, तत्र, सर्वत्र.....बिल्कुल #भीड़# से अलग...#भेड़# वाली चाल नहीं..... आमने-सामने की कला में पारंगत होना स्वयं का दायित्व.....शत-प्रतिशत.....एक मात्र मुख्य विनायक आधार--'गुरु कृपा हि केवलम्'......”#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#...#vinayaksamadhan# #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#...
माना कि 'अल्प-विराम' से तनाव से मुक्ति होती है, किन्तु इस दौरान यह विराम सकारात्मक नहीं हुआ तो तनाव बढ़ सकता है...और यह कोरी चेतावनी नही है बल्कि सलाह के रूप में कार्य में आनंद का समावेश करने की तरकीब हो सकती है...माना कि परीक्षा से डर लगता है मगर परीक्षा के बाद मिठाई वितरित करने का अवसर प्राप्त हो सकता है...उत्तम, सर्वोत्तम, श्रेष्ठ यह सब परिश्रम के उत्पाद हो सकते है....इसके विपरीत....उत्तीर्ण, पूरक, कृपांक वगैरह-वगैरह लापरवाही के उत्पाद जैसे खेत में खरपतवार....आदमी मेहनत से डर जाता है जबकि 'परिश्रम की शुरुआत' दुनिया का सबसे सरल काम होता है...कागज को सही फोल्ड करना, खाली कागज पर रेखाएँ खींचना, पुस्तक को विभिन्न शैली में पढ़ना, किसी एक पहलु पर पांच सरल वक्तव्य देना, बंद आँखों से यात्रा की कल्पना करना, चाबी के छल्ले में चाबियाँ पिरोना...चेहरे और हाथ की मुद्राओं में सामंजस्य तथा तालमेल स्थापित करना....लक्ष्य की प्राप्ति (Target)...समय का सदुपयोग(Time-management)...ऊर्जा का अनुभव(Filling by sense)....सेवा का मौका (Divine-service) सबको मिलता है यानि कि मेवा चखने का सुअवसर...दान या प्रदान...जो भी कहे मजा दोनों में हो सकता है.... Either-Or की सुविधा के साथ... Neither-Nor के प्रतिबन्ध में अनुशासन की झलक प्राप्त करने का सुअवसर…...यही उपाय हो सकता है अमन-चैन को वितरित तथा एकत्रित करने का.....चर्चा संगठन में...संपर्क, संवाद और पारदर्शिता....प्रत्येक स्तर पर संभव है.....संगठन का महत्व....यत्र, तत्र, सर्वत्र.....बिल्कुल #भीड़# से अलग...#भेड़# वाली चाल नहीं..... आमने-सामने की कला में पारंगत होना स्वयं का दायित्व.....शत-प्रतिशत.....एक मात्र मुख्य विनायक आधार--'गुरु कृपा हि केवलम्'......”#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#...#vinayaksamadhan# #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#...


खामोश....अनर्गल शब्दों के विराम की घोषणा....कोई घोषणापत्र नहीं....RULES OF CONDUCT.....झगडे और युद्ध में क्या अन्तर है ?.....सबको पता है......अन्तर्राष्ट्रीय.....झगड़े का अनुभव सबको.....और यह अनुभव ना हो तो मन-मुटाव का अनुभव तो सबको.....और मन-मुटाव को दूर करने का एक-मात्र समाधान....ख़ुशी उर्फ़ मुस्कान.....दूसरा कोई विकल्प नहीं.....और रही बात युद्ध की तो......युद्ध का अनुभव भले ही ना सही....किन्तु अभ्यास का अनुभव शत-प्रतिशत अनिवार्य.....युद्ध का एकमात्र विकल्प है सिर्फ संधि....किन्तु इस समाधान का कोई विकल्प नहीं......याद रखे विजय प्राप्त करने के लिये “DO or DIE” भी जायज माना जाता रहा है.....यही कारण है इतिहासकार के लिये शहीद ही भगवान माना जाता है.....युद्ध में प्रारंभ के लिये बिगुल बजता है तथा समयानुसार युद्ध विराम की घोषणा होती है.....तत्पश्चात घोषणापत्र....गर्व के साथ.....परन्तु झगड़ा तो मामूली बात पर भी संभव है.....और ऐसे भी लोग है जिन्हें झगड़ा करने का इतना शौक होता है कि वे अपने साथ दो-तिन लोग हमेशा साथ रखते है.....और साथ वाले लोग.....ना सामने वाले को समझाते है, ना ही बीच-बचाव का कार्य करते है....पूरी ताकत आदेश के अधीन.....मगर कब तक ?.....हार्दिक स्वागत....यथा संभव आपके अनुरूप करने की कोशिश तथा होने की प्रार्थना…विनायक समाधान @ 91654-18344…( INDORE / UJJAIN / DEWAS )…
हम यह देख सकते है कि 'सहमत करने की कला' का प्रदर्शन भविष्यवक्ताओं से ज्यादा वकील समुदाय भली-भांति कर सकता है..हकीकत बयान करने वाले हालात सामने आ जाये तो पलायन संभव नहीं है...मद्देनज़र रख कर काम को करने की आदत साथ है तो हिम्मत हमेशा साथ रह सकती है...चेलेंज स्वीकार करने से पहले तैयारियों का जायज़ा लेना जरूरी हो जाता है....समूह में तैयारियों से पहले स्वयं की तैयारी पर दृष्टिपात ज्यादा महत्वपूर्ण है...तब यह कि 'Army' की शुरुआत "One man Army" से शुरू होती है...शत-प्रतिशत शर्त....उदबोधन से यही समझ में आता है कि संपूर्ण विश्व में कोई भी धर्म या सम्प्रदाय हो....युग निर्माण का जिम्मा हर एक के पास...यह सावधानी हटने पर दुर्घटना घटने का डर बना रहे तो बेहतर.....वातावरण का प्रभाव व्यापक होता है...वातावरण के प्रभाव से जड़, जीव, प्राणी सभी प्रभावित होते है...तब हर कोई "one man army"....तत्पश्चात "Army"....'राम-राज्य' से तुलना किसी भी राष्ट्र की हो सकती है....और 'राम-राज्य' का सीधा-सीधा अर्थ है "सत्यम-शिवम्-सुन्दरम".... Place-Peace-Prosperity....तन-मन-धन....सर्वाधिक सरल शब्द....बगैर व्याकरण तथा मात्रा के, मगर शुद्ध रूप से गिनती-पहाड़ो युक्त....जिनको गिनते-रटते-जपते....जिंदगी गुजर जाती है....सही-सही समझ में आ जाय तो जिंदगी सुधर जाये...कानून के पचड़ों से बेहतर 'कानून-कायदे' होते है......यही उपाय हो सकता है अमन-चैन को वितरित तथा एकत्रित करने का.....चर्चा संगठन में...संपर्क, संवाद और पारदर्शिता....प्रत्येक स्तर पर संभव है.....संगठन का महत्व....यत्र, तत्र, सर्वत्र.....बिल्कुल #भीड़# से अलग...#भेड़# वाली चाल नहीं..... आमने-सामने की कला में पारंगत होना स्वयं का दायित्व.....शत-प्रतिशत.....एक मात्र मुख्य विनायक आधार--'गुरु कृपा हि केवलम्'......”#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#...#vinayaksamadhan# #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#..
हालात बर्दाश्त से बाहर हो जाय तो इंतहाई कदम हर कोई उठा सकता है...लेकिन जज्बाती हालत में उठाया हुआ कोई भी कदम नुकसानदेह साबित हो सकता है....'राम-राज्य' का सीधा-सीधा अर्थ है "सत्यम-शिवम्-सुन्दरम".... Place-Peace-Prosperity....तन-मन-धन....सर्वाधिक सरल शब्द....बगैर व्याकरण तथा मात्रा के, मगर शुद्ध रूप से गिनती-पहाड़ो युक्त....जिनको गिनते-रटते-जपते....जिंदगी गुजर जाती है....सही-सही समझ में आ जाय तो जिंदगी सुधर जाये...कानूनी-पचड़ों से बेहतर 'कानून-कायदे' होते है....सनातन-शब्दावली की श्रृंखला में 'इजाजतनामा बराए अकदे-सानी' (दूसरी शादी) कैसे संभव है ?...और बल्कि सात जन्म तक साथ-साथ रहने का संकल्प बारम्बार दोहराया जाता है....बिना किसी जब्र के रजामंदी और मर्जी...मनमर्जी की बात नही...पानी आँख में भर कर लाया जा सकता है, जलते वजूद को कभी भी बचाया जा सकता है...लिहाज को कमजोरी समझना भयंकर भूल हो सकती है...तहरीर लिखित में, ताकि सनद रहे और ब-वक्त जरुरत काम आए....दुनिया में ऐशो-आराम के इतने साधन है कि एक पल सरल आदमी को लगता है कि वह सचमुच में उन्नति और आनंद से परे है किंतु आपाधापी के खेल में सुकून सिर्फ सरल आदमी के भाग्य में होता है...बस खुद के हालात, खुद के इल्म में आना चाहिए....कोई हर तरफ से मसलों से घिरा होता है तो यह ईच्छा होती है कि किसी तरह निजात पा लिया जाये....इरादों को अमली जामा पहनाने के लिए बेशुमार मौके मयस्सर होते है......हार्दिक स्वागत....यथा संभव आपके अनुरूप करने की कोशिश तथा होने की प्रार्थना…विनायक समाधान @ 91654-18344…( INDORE / UJJAIN / DEWAS )…
बेहद-महत्वपूर्ण....नामांतरण अर्थात नाम मे परिवर्तन...शब्दो के अध्ययन से उपाधि द्वारा अलंकृत होने की ग्यारंटी....पानी और तमन्नाओं की तासीर एक है....रास्ता बना कर आगे बढ़ने की ललक....पानी सीमाएं लांघ जाये तो प्रलय आ जाता है और कुछ नया पाने के चक्कर में तमन्नाओं की तासीर बहुत कुछ गज़ब ढा सकती है....कदम ना उठे तो यात्रा थम सकती है....किसी गंभीर विषय को नवयुवक वर्ग ध्यान से नही देखता है, सादी-दाल की जगह सभी दाल-फ़्राय चाहते है....और फिर उम्र हो जाने के बाद किसी भी विषय को गंभीरता से देखने के लिए चश्मा लगाना पड़ता है....उम्रदराज होने पर डॉक्टर कहता सादा-भोजन-----आधा-भोजन...तब परहेज का दौर शुरू....और आध्यात्म एक कदम आगे बढ़ कर कहता है...दाल-रोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ....और मानव मात्र को सम्बोधन की सौगात....प्रभु को, प्रभु के द्वारा सर्वाधिक सरल तथा सुन्दर सम्बोधन....वेद, पुराण, श्लोक, मन्त्र.....सब-कुछ प्रभु के लिए....और सब-कुछ याद करने की कोई आवश्यकता नही...सिर्फ एक शब्द आधार या नींव का पत्थर सिद्ध होता है...."प्रभु"....यह बहस नही यह किसका नाम है ?...किन्तु यह आज़ादी अवश्य है कि कोई भी मनुष्य संबोधन के रूप से उपयोग या प्रयोग कर सकता है...स्वयं के साथ-साथ दूसरों के लिए....उम्र कम है तो 'प्रभु' और ज्यादा है तो "प्रभु जी"....आदमी का सफर ठीक पानी और तमन्ना की तरह....प्रभु से प्रभु जी में रूपान्तरण.... तब यह सरल बात सबके ज़ेहन में....पानी में रहना है तो तैरना जरुरी....तमन्ना पूरी करने के लिए कुछ तो करना पड़ता है....कब, क्यों, कैसे....???....यह सब करने वाले की जवाबदारी....यह ध्यान में रखते हुए कि 'सिद्धि-साधना' के खेल में 'हठ-योग' का सीमांकन टोटल सात्विकता के दायरे मे शुमार होता है.....अन्यथा कागज लिखने के साथ-साथ पुड़िया बनाने का काम करता है....वसीयत के साथ-साथ सुसाइड-नोट भी मायने रखता है....आत्मघात की बात नही, किन्तु आत्म-सम्मान की पुष्टि प्रशस्ति-पत्र से अवगत होती है....स्वयं के सम्मान की पुष्टि मन पूर्ण ईमानदारी से स्वीकारता है....सम्मान को खरीदने की बात नही, किन्तु कसम खुदा की....जब खुद को ज्यादा सम्मान मिल जाता है तो प्रभु आश्चर्य के साथ प्रभु जी से अर्थात शिष्य अपने गुरु से....यह प्रश्न करता है कि आखिर मैंने क्या किया ?....और उत्तर न मिलने पर यह मान लेता है कि..... Just Because Of YOU.....बस इसी आधार पर स्वयं को प्रभु संबोधित करता है....और मित्रों के समक्ष यही कि....Just For YOU..... Whatever....प्रभु या प्रभु जी....अन्तर सिर्फ एक कदम का हो सकता है.... you have to decide....सब-कुछ संभव है लेकिन प्रभु शब्द में प्रपंच असंभव है....विनायक समाधान @ 91654-18344…( INDORE / UJJAIN / DEWAS )…
कोई पाबन्दी नहीं....धर्म, संप्रदाय, लिंग....कोई मनभेद या मतभेद नही....आमने-सामने....गवाही में ज्ञानेन्द्रियाँ और साक्ष्य या साक्षी के रूप में पंचतत्व...अनेक लोगो से मिलने के पश्चात यह निष्कर्ष कि बगैर किसी बंदिश के क्या उपाय किये जाये कि कम से कम आफतों से रूबरू होना पड़े ?...व्यायाम तथा योग का सबसे बड़ा फायदा यह कि दिमाग में एक लहर या तरंग चालू हो जाती है कि शरीर सक्रीय हो रहा है....शायद यह साइक्लोजी का सबसे सरल उपाय है....और समस्त सात्विक उपाय इसी श्रेणी के उदाहरण सिद्ध होते है....आखिर हर शख्स फौरी तौर पर प्रपंचो से फ़ौरन फ़ारिग होना चाहता है....तब सरल-सन्देश के तहत निम्न उपाय कहीं-भी, कभी-भी प्रयोग में लाये जा सकते है....
1- हर एक काम इमानदारी से करो !
2- जो भी तुम्हारा भला करे, उसका कहना मानो !
3- अधिक योग्य बने बिना, बड़ों से बराबरी का दावा मत करो !
4- कभी किसी को दिल दुखाने वाली बात मत कहो !
5- जहाँ भी ज्ञान की दो बातें मिलें, उसे ध्यान से सुनो !
याद आया ना.......कक्षा चौथी का किस्सा, जिंदगी भर का हिस्सा....हरपाल सिंह एवं बूढ़े बाबा की कहानी....देखने-सुनने में ये पांचों बाते बड़ी-भारी लग सकती है..शुद्ध रूप से स्कुल की बातें....बस इसी आधार पर अनुपालन और आत्मसात करने में कठिनाई की जगह संकोच महसूस हो सकता है...मगर यह सत्य है कि कार्य की आसान शुरुआत के लिए उपरोक्त समस्त कथन खुद के अतिरिक्त किसी और पर लागू नही होते है....और जेनेरेशन-गेप या परिवार में झिझक मिटाना हो तो संयुक्त-रूप सरल रूप से सुबह का अखबार साथ में पढ़ना शुरू कर सकते है....अच्छे परिवारों में यह होता रहा है...एक दूसरे के साथ चाय पीने का मजा....एक दूसरे की निकट या दूर-दृष्टि को जाँचने या भाँपने का अवसर...एक ही अलार्म-घडी का सबके लिए आदेश मानने का मौका...सबकी नींद साथ में खुल जाए तो सर्वोत्तम-जागरण.....एक लौठा पानी पी कर सबको 'जय श्री कृष्ण' कहने का आनंद बड़ा मजेदार हो सकता है....सरल आदान-प्रदान,आसान क्रमचय-संचय....मिल-बाँट कर पढ़ने का सुकून...आखिर अखबार के अनेक पन्ने....बस थोड़ा सा धैर्य और छिना-छपटी से मुक्ति....समसामयिक विषयो पर एक दूसरे के विचार संक्षिप्त में जानने का मजा...इस अभ्यास या उपाय से एक नहीं अनेक गुण उत्पन्न हो सकते है....ठीक चौथी-कक्षा की पांच बातों की तरह....बहुत छोटी मगर सच्ची बात,
आपका स्वभाव ही आपका भविष्य है !!..
बिल्कुल #भीड़# से अलग...#भेड़# वाली चाल नहीं..... आमने-सामने की कला में पारंगत होना स्वयं का दायित्व.....शत-प्रतिशत.....एक मात्र मुख्य विनायक आधार--'गुरु कृपा हि केवलम्'......”#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#...#vinayaksamadhan# #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#..




खुद के लिए यह खबर काम की साबित हो सकती है......
मोह माया को जानना, रखना इनका ध्यान...
इनका संग ना कीजिये, कर देंगी नुक़सान....
तत्वज्ञान और दर्शन का सार छल-कपट-प्रपंच से हमेशा दूर रहता है...चुम्बक का आकर्षण पूर्णरूपेण विज्ञान द्वारा सिद्ध है और विकर्षण का सत्य भी विज्ञान द्वारा जगविदित है....सिर्फ किनारो के पलटने से क्रिया विपरीत हो जाती है....सन्दर्भ बदलने के लिए कहानी का छोर कहता है....नदी बहती रहती है और किनारे अटल रहते है...तब दिशा परिवर्तन के लिए इरादे अटल हो सकते है....अभिनेता भी किसी के इशारे पर काम करता है....पोशाख पहनने से ले कर उतारने तक....मालवा में ग्रामीण क्षेत्र में नजर उतारने का काम होता है....नमक और लाल-मिर्च हाथ में लेकर victim के आस-पास घुमा दिया जाता है....और दुकान पर नजर से बचने के लिए निम्बू और हरी-मिर्च बाँधी जाती है.....तब यह कि किसी की नजर नुकसानदेह हो सकती है...और बुरी नजर वाले को कोई दोष नहीं दे कर गुपचुप स्वयं ही समाधान का साधन जुटा लिया जाय...और इस मनोवैज्ञानिक प्रभाव को आत्मसात करने का प्रयास कि अब नजर का दोष स्वतः निष्क्रिय हो जावेगा....तब खुद को बुलंद करने के लिए मन में विश्वास जगाना होता है....और समस्त समस्याओं का सरल समाधान यही कि 'अति सर्वत्र वर्जयते"....
वृथा वृष्टि: समुद्रेषु वृथा तृप्तस्य भोजनम...
वृथा दान धनाढ्येषु वृथा शूरे विभूषणम.....
समुद्र में वर्षा, तृप्त को भोजन, धनवान को दान, शूरवीर को आभूषण....यह सब विचारणीय है.....कक्षा चौथी का किस्सा, जिंदगी भर का हिस्सा....हरपाल सिंह एवं बूढ़े बाबा की कहानी....देखने-सुनने में ये पांचों बाते बड़ी-भारी लग सकती है..शुद्ध रूप से स्कुल की बातें....बस इसी आधार पर अनुपालन और आत्मसात करने में कठिनाई की जगह संकोच महसूस हो सकता है...मगर यह सत्य है कि कार्य की आसान शुरुआत के लिए उपरोक्त समस्त कथन खुद के अतिरिक्त किसी और पर लागू नही होते है...तब सरल-सन्देश के तहत निम्न उपाय कहीं-भी, कभी-भी प्रयोग में लाये जा सकते है....
1- हर एक काम इमानदारी से करो !
2- जो भी तुम्हारा भला करे, उसका कहना मानो !
3- अधिक योग्य बने बिना, बड़ों से बराबरी का दावा मत करो !
4- कभी किसी को दिल दुखाने वाली बात मत कहो !
5- जहाँ भी ज्ञान की दो बातें मिलें, उसे ध्यान से सुनो !
याद आया ना.......कक्षा चौथी का किस्सा, जिंदगी भर का हिस्सा....तत्वज्ञान और दर्शन का सार....छल-कपट-प्रपंच से कोसो दूर...बिल्कुल #भीड़# से अलग...#भेड़# वाली चाल नहीं..... आमने-सामने की कला में पारंगत होना स्वयं का दायित्व.....शत-प्रतिशत.....एक मात्र मुख्य विनायक आधार--'गुरु कृपा हि केवलम्'......”#विनायक-समाधान#” @91654-18344....INDORE / UJJAIN / DEWAS///.


अभिनेता भी किसी के इशारे पर काम करता है....पोशाख पहनने से ले कर उतारने तक....मालवा में ग्रामीण क्षेत्र में नजर उतारने का काम होता है....नमक और लाल-मिर्च हाथ में लेकर victim के आस-पास घुमा दिया जाता है....और दुकान पर नजर से बचने के लिए निम्बू और हरी-मिर्च बाँधी जाती है.....तब यह कि किसी की नजर नुकसानदेह हो सकती है...और बुरी नजर वाले को कोई दोष नहीं दे कर गुपचुप स्वयं ही समाधान का साधन जुटा लिया जाय...और इस मनोवैज्ञानिक प्रभाव को आत्मसात करने का प्रयास कि अब नजर का दोष स्वतः निष्क्रिय हो जावेगा....तब खुद को बुलंद करने के लिए मन में विश्वास जगाना होता है....और समस्त समस्याओं का सरल समाधान यही कि 'अति सर्वत्र वर्जयते"....
वृथा वृष्टि: समुद्रेषु वृथा तृप्तस्य भोजनम...
वृथा दान धनाढ्येषु वृथा शूरे विभूषणम.....
समुद्र में वर्षा, तृप्त को भोजन, धनवान को दान, शूरवीर को आभूषण....यह सब विचारणीय है.....तत्वज्ञान और दर्शन का सार....छल-कपट-प्रपंच से कोसो दूर...बिल्कुल #भीड़# से अलग...#भेड़# वाली चाल नहीं..... आमने-सामने की कला में पारंगत होना स्वयं का दायित्व.....शत-प्रतिशत.....एक मात्र मुख्य विनायक आधार--'गुरु कृपा हि केवलम्'......”#विनायक-समाधान#” @91654-18344....INDORE / UJJAIN / DEWAS///.


यह सत्य है कि कार्य की आसान शुरुआत के लिए समस्त कथन खुद के अतिरिक्त किसी और पर लागू नही होते है....और जेनेरेशन-गेप या परिवार में झिझक मिटाना हो तो संयुक्त-रूप सरल रूप से सुबह का अखबार साथ में पढ़ना शुरू कर सकते है....अच्छे परिवारों में यह होता रहा है...एक दूसरे के साथ चाय पीने का मजा....एक दूसरे की निकट या दूर-दृष्टि को जाँचने या भाँपने का अवसर...एक ही अलार्म-घडी का सबके लिए आदेश मानने का मौका...सबकी नींद साथ में खुल जाए तो सर्वोत्तम-जागरण.....एक लौठा पानी पी कर सबको 'जय श्री कृष्ण' कहने का आनंद बड़ा मजेदार हो सकता है....सरल आदान-प्रदान,आसान क्रमचय-संचय....मिल-बाँट कर पढ़ने का सुकून...आखिर अखबार के अनेक पन्ने....बस थोड़ा सा धैर्य और छिना-छपटी से मुक्ति....समसामयिक विषयो पर एक दूसरे के विचार संक्षिप्त में जानने का मजा...इस अभ्यास या उपाय से एक नहीं अनेक गुण उत्पन्न हो सकते है......बहुत छोटी मगर सच्ची बात,.....
आपका स्वभाव ही आपका भविष्य है !!..
बिल्कुल #भीड़# से अलग...#भेड़# वाली चाल नहीं.....”जीवन कोरे कागज़ के स्थान पर भरा-पूरा अखबार”.....और अखबार पढने के लिए आमने-सामने की कला में पारंगत होना स्वयं का दायित्व.....शत-प्रतिशत......हार्दिक स्वागतम.....समय अपना-अपना....और आदान-प्रदान हो जाए....तो सहज आमने-सामने.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव...शत-प्रतिशत.....सम्पूर्ण सिद्धि का एक मात्र मुख्य विनायक आधार--'गुरु कृपा हि केवलम्'......”#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#.

कक्षा चौथी का किस्सा, जिंदगी भर का हिस्सा....हरपाल सिंह एवं बूढ़े बाबा की कहानी....देखने-सुनने में ये पांचों बाते बड़ी-भारी लग सकती है..शुद्ध रूप से स्कुल की बातें....बस इसी आधार पर अनुपालन और आत्मसात करने में कठिनाई की जगह संकोच महसूस हो सकता है...मगर यह सत्य है कि कार्य की आसान शुरुआत के लिए समस्त कथन खुद के अतिरिक्त किसी और पर लागू नही होते है...तब सरल-सन्देश के तहत निम्न उपाय कहीं-भी, कभी-भी प्रयोग में लाये जा सकते है....
1- हर एक काम इमानदारी से करो !
2- जो भी तुम्हारा भला करे, उसका कहना मानो !
3- अधिक योग्य बने बिना, बड़ों से बराबरी का दावा मत करो !
4- कभी किसी को दिल दुखाने वाली बात मत कहो !
5- जहाँ भी ज्ञान की दो बातें मिलें, उसे ध्यान से सुनो !
याद आया ना.......कक्षा चौथी का किस्सा, जिंदगी भर का हिस्सा..
"रुकावटे - परेशानियां "
ज्यादा देर नहीं रूकती
वे तो बस हमारे
" जीवनगाथा की किताब "
पर अपने
" हस्ताक्षर "
कर भाग जाती हैं…..मुश्किल को आसान करने के लिए....एक ही सामान्य आसान उपाय....बारम्बार...‘करत-करत अभ्यास के जङमति होत “सुजान”.....रसरी आवत जात, सिल पर करत निशान’......और जल-घर्षण से कंकर भी ‘शंकर’ बन जावे.....’परम-सुजान’....”महादेव”.....सदस्य, संपर्क तथा संवाद...पारदर्शिता, नियंत्रण और गठबन्धन...एकाग्रता, एकान्त और प्रार्थना....."सत्यम-शिवम्-सुंदरम"...सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड शिव को सत्य तथा सुन्दर स्वीकार करता है....शिव 'नटराज' है....नृत्य की परिधि में आदि है...मध्य है....अंत है...सम्पूर्ण अभिव्यक्ति....कैवल्य तथा निर्वाण की महासमाधि...ज्ञान की गंगा में शिव, शिवत्व तथा शिवत्व में समर्पण का समावेश हो जाये तो "सत्यम-शिवम्-सुंदरम" की अनुभूति सुनिश्चिंत है...अर्थात शिव-कृपा से प्राप्त निर्मल मति से एहलौकिक एवं पारलौकिक फल की कामनाओं का त्याग करके स्वयं में संतुष्टि का आभास संभव है...

33 कोटि पूण्य-आत्माओं का जन्म.....महामृत्युंजयस्तोत्रम् का स्वत: उद्गम.....स्वमेव उद्गार.....ॐ से लेकर स्वस्तिक चिन्ह तक......शुद्धता की कसौटी मात्र प्रतिशत (%) में.....बिंदु रूपी चौराहे से लेकर रेखाओं रूपी रास्तों तक.....सम्पूर्ण धर्म का आव्हान...आस्था एक अन्तरंग ज्ञान है , प्रमाण से परे....कोसो दूर.... "उत्सव आमार जाति, आनंद आमार गोत्र”.....
हर हर महादेव....ॐ नम: शिवाय.....सहज या संकल्पित...WHATEVER....परन्तु अनिवार्य.....अंदाज़ अपना-अपना....उच्च, समकक्ष, निम्न....और मुश्किल को आसान करने के लिए....एक ही सामान्य आसान उपाय....बारम्बार...‘करत-करत अभ्यास के जङमति होत “सुजान”.....
Happiness comes when you believe in what you are doing,
know what you are doing, and love what you are doing......SIMPLE..
विज्ञापन में शुल्क का उल्लेख न हो तो दो ही संभावनाये....या तो निःशुल्क....या फिर मनमर्जी... समस्त पोस्ट मानक-स्तर पर है...बस थोड़ी से गहराई तक जाने की गुजारिश है....घाट-स्नान (Outdoor open BATH) का यही कायदा है....और समस्त पत्र-रूपी चर्चा का एक ही उद्देश्य 'कायदे की बात, फायदे की बात'....सिर्फ सकारात्मक.... Like a Good NEWS....मन को खट्टा करने वाली बात को हवा में उड़ाने की कोशिश....सोशल-मीडिया पर धुंआ और अफवाह उड़ाने वाली बात नही...फैलने के चक्कर में सिमटने की बात नही...आनंद को संक्षेप में कैद करने की कोशिश नहीं...दुनिया में कुछ भी फ्री नहीं है...लेकिन फ्री में उपलब्ध उपाय करना पड़ता है...कहने, सहने और रहने के लिए.....मन की चंचलता को सिर्फ और सिर्फ सादगी से ही संतुष्टि मिलती है....आखिर चाँदनी चार दिन की....आँखे चौधियाँ जाये तो अगले एक पल में कुछ नही सूझता है...और इस बात इनकार नही कि इस पल में अस्तित्व जूझता है....दुनिया की सबसे खराब आदत बोर होने की हो सकती है....मनोरंजन की बानगी या खुश रहने की कला....एक व्यापारी मित्र ने बताया कि मंडी के हम्माल बात कर रहे थे कि आजकल मोदी और योगी के कारण पेपर और टीवी देखने में मजा आ रहा है....और समाचार यह है कि बड़े-बड़ो से हाथ मिला लिया, पर हकीकत में मज़ा तो बच्चों के बीच ही आता है....यही समन्दर, यही Beach...यह तो सुकून कि यही "खरा-सोना"...वर्ना 'यह दुनिया पित्तल दी'....बात चमकने की होती है तो इन दौनो से ज्यादा ताकत सूरज की....भला आमना-सामना भी संभव नहीं ?....खुद को खुश करने के लिए हम वह सब कुछ करने को तैयार रहते है जो मन को भा जाये...और मन का ईलाज करने के लिए खुद को हक़ीम-लुकमान की जगह सरल-संत स्वीकार करना पड़ता है...कहते है लुकमान जी वनस्पति से बात करते थे तथा लेकिन संत स्वयं कहता है....सरल बात तो किसी से भी की जा सकती है....जैसे सब्जी-भाजी बेचने वाला वजन के बराबर पत्थर से पूछ कर उतने ही वजन की सब्जी का तौल-मौल करता रहता है....हर काम step by step होता है, जिसको समस्त steps की जानकारी हो जाती है वह एक्सपर्ट में शुमार हो जाता है..वड़ा-प्रधान नी मन नी वात....भविष्यफल में जो लिखा होता है, आदमी अपने अनुभव से तस्दीक करता है...nil या null....यह रिपोर्ट भी सकारात्मक हो सकती है...जो यह कहती है...थोड़ा है, थोड़े की जरुरत है....या फिर जो प्राप्त है, वही पर्याप्त है....या फिर नहीं है तो मेहनत से रेहमत भी मिल जाती है....इस आधार पर कि कोई पूछ ले कि स्टॉक में कितनी Sleeping Tablets है तो जवाब हो.....nil या null... YES, you may check.... Whenever, WHEREVER....FOREVER.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर "रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव...शत-प्रतिशत.....सम्पूर्ण सिद्धि का एक मात्र मुख्य विनायक आधार--'गुरु कृपा हि केवलम्'......”#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#.

सत्य-कथा...मनोहर-कहानी....एक सुतार मित्र से चर्चा का मौका आया...नशे के आदि उस मित्र ने शराब से बचने के लिए डॉक्टरी सलाह से नींद की गोली लेना शुरू कर दिया और त्रयीका 0.5 को दिन में लेना शुरू कर दिया...और नशे में अपनी कारीगरी के हुनर शुरू कर दिया...तब यह ध्यान में रखते हुए कि किसी भी प्रकार का नशा...हर एक पौष्टिक पहलु का नाश करता है....और शुरू करने के चक्कर में अंत शीघ्रता से आ जाता है....The TRAIN before time....नशा करने वाला उदार है तो दया का पात्र है और नशा करने वाला हिंसक हो जाये तो सर्वप्रथम स्वयं का नाश हो सकता है....इससे बढ़ कर कोई मशविरा नहीं....मुशायरे के नशे में जागरण का बहाना चलेगा...लेकिन नींद में खलल खर्राटों से भी हो सकती है.....नशे का निर्माण होने से पहले उसकी खपत का समय निर्धारित हो जाना चाहिए....'मुनासिब-समय'...और जो समय को 'मुताबिक' कर लेता है, शायद उसका नाम सिकन्दर हो सकता है...तब आमने-सामने दोनो...नाम पूछने वाला और नाम बताने वाला....आप किसी से नाम पूछते है तो अपना नाम बताने का सुअवसर आ जाता है....और नाम में बहुत कुछ....चर्चा और पर्चा साथ-साथ....आखिर सत्य यही कि...राम से बड़ा राम का नाम....
सनातन-शब्दावली की श्रृंखला में 'इजाजतनामा बराए अकदे-सानी' (दूसरी शादी) कैसे संभव है ?...और बल्कि सात जन्म तक साथ-साथ रहने का संकल्प बारम्बार दोहराया जाता है....बिना किसी जब्र के रजामंदी और मर्जी...मनमर्जी की बात नही..
दुनिया में ऐशो-आराम के इतने साधन है कि एक पल सरल आदमी को लगता है कि वह सचमुच में उन्नति और आनंद से परे है किंतु आपाधापी के खेल में सुकून सिर्फ सरल आदमी के भाग्य में होता है...बस खुद के हालात, खुद के इल्म में आना चाहिए....कोई हर तरफ से मसलों से घिरा होता है तो यह ईच्छा होती है कि किसी तरह निजात पा लिया जाये....इरादों को अमली जामा पहनाने के लिए बेशुमार मौके मयस्सर होते है......हार्दिक स्वागत....यथा संभव आपके अनुरूप करने की कोशिश तथा होने की प्रार्थना…विनायक समाधान @ 91654-18344…( INDORE / UJJAIN / DEWAS )…
आखिर चाँदनी चार दिन की....आँखे चौधियाँ जाये तो अगले एक पल में कुछ नही सूझता है...और इस बात इनकार नही कि इस पल में अस्तित्व जूझता है....दुनिया की सबसे खराब आदत बोर होने की हो सकती है....मनोरंजन की बानगी या खुश रहने की कला....एक व्यापारी मित्र ने बताया कि मंडी के हम्माल बात कर रहे थे कि आजकल मोदी और योगी के कारण पेपर और टीवी देखने में मजा आ रहा है....और समाचार यह है कि बड़े-बड़ो से हाथ मिला लिया, पर हकीकत में मज़ा तो बच्चों के बीच ही आता है....यही समन्दर, यही Beach...यह तो सुकून कि यही "खरा-सोना"...वर्ना 'यह दुनिया पित्तल दी'....