खुद के लिए यह खबर काम की साबित हो सकती है......
मोह माया को जानना, रखना इनका ध्यान...
इनका संग ना कीजिये, कर देंगी नुक़सान....
तत्वज्ञान और दर्शन का सार छल-कपट-प्रपंच से हमेशा दूर रहता है...चुम्बक का आकर्षण पूर्णरूपेण विज्ञान द्वारा सिद्ध है और विकर्षण का सत्य भी विज्ञान द्वारा जगविदित है....सिर्फ किनारो के पलटने से क्रिया विपरीत हो जाती है....सन्दर्भ बदलने के लिए कहानी का छोर कहता है....नदी बहती रहती है और किनारे अटल रहते है...तब दिशा परिवर्तन के लिए इरादे अटल हो सकते है....अभिनेता भी किसी के इशारे पर काम करता है....पोशाख पहनने से ले कर उतारने तक....मालवा में ग्रामीण क्षेत्र में नजर उतारने का काम होता है....नमक और लाल-मिर्च हाथ में लेकर victim के आस-पास घुमा दिया जाता है....और दुकान पर नजर से बचने के लिए निम्बू और हरी-मिर्च बाँधी जाती है.....तब यह कि किसी की नजर नुकसानदेह हो सकती है...और बुरी नजर वाले को कोई दोष नहीं दे कर गुपचुप स्वयं ही समाधान का साधन जुटा लिया जाय...और इस मनोवैज्ञानिक प्रभाव को आत्मसात करने का प्रयास कि अब नजर का दोष स्वतः निष्क्रिय हो जावेगा....तब खुद को बुलंद करने के लिए मन में विश्वास जगाना होता है....और समस्त समस्याओं का सरल समाधान यही कि 'अति सर्वत्र वर्जयते"....
वृथा वृष्टि: समुद्रेषु वृथा तृप्तस्य भोजनम...
वृथा दान धनाढ्येषु वृथा शूरे विभूषणम.....
समुद्र में वर्षा, तृप्त को भोजन, धनवान को दान, शूरवीर को आभूषण....यह सब विचारणीय है.....कक्षा चौथी का किस्सा, जिंदगी भर का हिस्सा....हरपाल सिंह एवं बूढ़े बाबा की कहानी....देखने-सुनने में ये पांचों बाते बड़ी-भारी लग सकती है..शुद्ध रूप से स्कुल की बातें....बस इसी आधार पर अनुपालन और आत्मसात करने में कठिनाई की जगह संकोच महसूस हो सकता है...मगर यह सत्य है कि कार्य की आसान शुरुआत के लिए उपरोक्त समस्त कथन खुद के अतिरिक्त किसी और पर लागू नही होते है...तब सरल-सन्देश के तहत निम्न उपाय कहीं-भी, कभी-भी प्रयोग में लाये जा सकते है....
1- हर एक काम इमानदारी से करो !
2- जो भी तुम्हारा भला करे, उसका कहना मानो !
3- अधिक योग्य बने बिना, बड़ों से बराबरी का दावा मत करो !
4- कभी किसी को दिल दुखाने वाली बात मत कहो !
5- जहाँ भी ज्ञान की दो बातें मिलें, उसे ध्यान से सुनो !
याद आया ना.......कक्षा चौथी का किस्सा, जिंदगी भर का हिस्सा....तत्वज्ञान और दर्शन का सार....छल-कपट-प्रपंच से कोसो दूर...बिल्कुल #भीड़# से अलग...#भेड़# वाली चाल नहीं..... आमने-सामने की कला में पारंगत होना स्वयं का दायित्व.....शत-प्रतिशत.....एक मात्र मुख्य विनायक आधार--'गुरु कृपा हि केवलम्'......”#विनायक-समाधान#” @91654-18344....INDORE / UJJAIN / DEWAS///.
मोह माया को जानना, रखना इनका ध्यान...
इनका संग ना कीजिये, कर देंगी नुक़सान....
तत्वज्ञान और दर्शन का सार छल-कपट-प्रपंच से हमेशा दूर रहता है...चुम्बक का आकर्षण पूर्णरूपेण विज्ञान द्वारा सिद्ध है और विकर्षण का सत्य भी विज्ञान द्वारा जगविदित है....सिर्फ किनारो के पलटने से क्रिया विपरीत हो जाती है....सन्दर्भ बदलने के लिए कहानी का छोर कहता है....नदी बहती रहती है और किनारे अटल रहते है...तब दिशा परिवर्तन के लिए इरादे अटल हो सकते है....अभिनेता भी किसी के इशारे पर काम करता है....पोशाख पहनने से ले कर उतारने तक....मालवा में ग्रामीण क्षेत्र में नजर उतारने का काम होता है....नमक और लाल-मिर्च हाथ में लेकर victim के आस-पास घुमा दिया जाता है....और दुकान पर नजर से बचने के लिए निम्बू और हरी-मिर्च बाँधी जाती है.....तब यह कि किसी की नजर नुकसानदेह हो सकती है...और बुरी नजर वाले को कोई दोष नहीं दे कर गुपचुप स्वयं ही समाधान का साधन जुटा लिया जाय...और इस मनोवैज्ञानिक प्रभाव को आत्मसात करने का प्रयास कि अब नजर का दोष स्वतः निष्क्रिय हो जावेगा....तब खुद को बुलंद करने के लिए मन में विश्वास जगाना होता है....और समस्त समस्याओं का सरल समाधान यही कि 'अति सर्वत्र वर्जयते"....
वृथा वृष्टि: समुद्रेषु वृथा तृप्तस्य भोजनम...
वृथा दान धनाढ्येषु वृथा शूरे विभूषणम.....
समुद्र में वर्षा, तृप्त को भोजन, धनवान को दान, शूरवीर को आभूषण....यह सब विचारणीय है.....कक्षा चौथी का किस्सा, जिंदगी भर का हिस्सा....हरपाल सिंह एवं बूढ़े बाबा की कहानी....देखने-सुनने में ये पांचों बाते बड़ी-भारी लग सकती है..शुद्ध रूप से स्कुल की बातें....बस इसी आधार पर अनुपालन और आत्मसात करने में कठिनाई की जगह संकोच महसूस हो सकता है...मगर यह सत्य है कि कार्य की आसान शुरुआत के लिए उपरोक्त समस्त कथन खुद के अतिरिक्त किसी और पर लागू नही होते है...तब सरल-सन्देश के तहत निम्न उपाय कहीं-भी, कभी-भी प्रयोग में लाये जा सकते है....
1- हर एक काम इमानदारी से करो !
2- जो भी तुम्हारा भला करे, उसका कहना मानो !
3- अधिक योग्य बने बिना, बड़ों से बराबरी का दावा मत करो !
4- कभी किसी को दिल दुखाने वाली बात मत कहो !
5- जहाँ भी ज्ञान की दो बातें मिलें, उसे ध्यान से सुनो !
याद आया ना.......कक्षा चौथी का किस्सा, जिंदगी भर का हिस्सा....तत्वज्ञान और दर्शन का सार....छल-कपट-प्रपंच से कोसो दूर...बिल्कुल #भीड़# से अलग...#भेड़# वाली चाल नहीं..... आमने-सामने की कला में पारंगत होना स्वयं का दायित्व.....शत-प्रतिशत.....एक मात्र मुख्य विनायक आधार--'गुरु कृपा हि केवलम्'......”#विनायक-समाधान#” @91654-18344....INDORE / UJJAIN / DEWAS///.
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