Monday 17 April 2017

डॉ. हेडगेवार व्याख्यानमाला , उज्जैन(म.प्र.) का शाश्वत-सत्य....सोशल-मीडिया पर बहुसंस्कृतिवाद की बजाय लोकतंत्र पर प्रकाश ज्यादा उचित हो सकता है...संगठन का विश्वास, बिखराव का नाश करता है....खेत में खरपतवार का ईलाज अनिवार्य है.....पांचजन्य के प्रधान-संपादक श्री हितेष शंकर जी द्वारा दिये गए उदबोधन से यही समझ में आता है कि संपूर्ण विश्व में कोई भी धर्म या सम्प्रदाय हो....युग निर्माण का जिम्मा हर एक के पास...यह सावधानी हटने पर दुर्घटना घटने का डर बना रहे तो बेहतर.....वातावरण का प्रभाव व्यापक होता है...वातावरण के प्रभाव से जड़, जीव, प्राणी सभी प्रभावित होते है...वातावरण अंतरिक्ष की बहुमूल्य सम्पदा है....अंतरिक्ष की एक और सम्पदा है--'वायुमंडल'.....दोनों सम्पदायें ठीक उसी तरह जैसे पृथ्वी के दो घटक--'पदार्थ और ऊर्जा'....वायुमंडल स्थूल होता है, जबकि वातावरण सूक्ष्म....वायुमंडल का संतुलन और अनुकूलता प्रकृति को पुष्ट बनाते है...किन्तु जब कर्म अशुभ एवं अमंगल होते है तो निकृष्ट कर्मो से वातावरण दूषित हो जाता है...तब विकृतियाँ पनपने से प्रकृति रूठ जाती है और दुर्घटनाओं में वृद्धि होने लगती है...अनाज पीसने की अनेक चक्कियाँ और अनेक कल-कारखाने...मोटे अनाज का महत्व संपूर्ण राष्ट्र जाने-पहचाने....अनाज को अंकुरित करने के लिए सिर्फ एक लोठे पानी की आवश्यकता हो सकती है...आटे में कंकर पीस जाने के बाद कोई विकल्प नही, किन्तु साबुत अनाज में से कंकर बीनने का काम निहायत कौशल और धैर्य का काम होता है.....चटनी-चूरन तब काम के होते है, जब पेट-भर भोजन आनन्द के साथ हो जाये....ज्ञान प्रदर्शित करता है कि हम क्या कर सकते है ?...बुद्धिमता दर्शाती है कि हम कब, क्या कर सकते है ?...दरार उचित है या करार सर्वोत्तम हो सकते है ?....Behind या Front...जो बीत गया उसे जमाना भूतकाल कहता है और जो सामने है, वही भविष्य कहलाता है....किसी भी विफलता का मंथन होता है तो मन में यह विचार अवश्य आता है कि 'what is the reason behind this failure' ?....किसी भी पते को आसान बनाने के लिए 'in front of' इस्तेमाल होता है तो उल्लेखित पहलु को पहले खोजना पड़ता है....और तलाशने का कार्य हो या तराशने का....दोनों कार्य वर्तमान में ही संभव है....श्रेष्ठ बनना हर एक की अभिलाषा हो सकती है, श्रेष्ठ बनने के उपाय भी हर एक को ज्ञात हो सकते है, किन्तु हम औसत क्यों बन जाते है ?...इस प्रश्न पर हर कोई विचार करने में संकोच करता है....क्षमा, रक्षा, न्याय, व्यवस्था की आवश्यकता हर कोई महसूस करता है, तब लक्ष्य, समय, सेवा, ऊर्जा जैसे पहलुओं पर प्रकाश डालने की आवश्यकता हो सकती है....लक्ष्य चुकने के बाद का दुःख, समय निकल जाने पर पछतावा हर किसी का अनुभव हो सकता है, मगर सेवा का मौका और ऊर्जा का सदुपयोग हर एक का व्यक्तिगत अनुभव होता है...दान और प्रदान शब्द एक ही प्रजाति के शब्द है मगर दोनों के उपयोग में स्वयं का योगदान मायने रखता है......यही उपाय हो सकता है अमन-चैन को वितरित तथा एकत्रित करने का.....चर्चा संगठन में...संपर्क, संवाद और पारदर्शिता....प्रत्येक स्तर पर संभव है.....संगठन का महत्व....यत्र, तत्र, सर्वत्र.....बिल्कुल #भीड़# से अलग...#भेड़# वाली चाल नहीं..... आमने-सामने की कला में पारंगत होना स्वयं का दायित्व.....शत-प्रतिशत.....एक मात्र मुख्य विनायक आधार--'गुरु कृपा हि केवलम्'......”#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#...#vinayaksamadhan# #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#...

No comments:

Post a Comment