Monday 17 April 2017

હર હર મહાદેવ......ज्ञान की गंगा......शिवत्व में समर्पण का समावेश....."सत्यम-शिवम्-सुंदरम" की अनुभूति.... सुनिश्चिंत परम-आनन्द......चर्चा अन्त की ना हो कर, सन्त की हो...अनन्त की हो... एकांत की हो....बसंत की हो...समस्त सागरों के पानी की स्याही....समस्त जंगलों के पेड़ो की कलम....और सम्पूर्ण धरती मात्र एक कागज़ के समान....पर्याप्त है या नहीं ???....यह तो लिखने वाला ही जाने....इस अनुभव, आभास या अनुभूति के साथ......ईश्वर देवताओं का भी देवता है और इसीलिए वह महादेव कहलाता है...शब्द से चित्र बनते है ? या चित्र शब्द को उत्पन्न करता है ?..

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