Monday 17 April 2017

बेहद-महत्वपूर्ण....नामांतरण अर्थात नाम मे परिवर्तन...शब्दो के अध्ययन से उपाधि द्वारा अलंकृत होने की ग्यारंटी....पानी और तमन्नाओं की तासीर एक है....रास्ता बना कर आगे बढ़ने की ललक....पानी सीमाएं लांघ जाये तो प्रलय आ जाता है और कुछ नया पाने के चक्कर में तमन्नाओं की तासीर बहुत कुछ गज़ब ढा सकती है....कदम ना उठे तो यात्रा थम सकती है....किसी गंभीर विषय को नवयुवक वर्ग ध्यान से नही देखता है, सादी-दाल की जगह सभी दाल-फ़्राय चाहते है....और फिर उम्र हो जाने के बाद किसी भी विषय को गंभीरता से देखने के लिए चश्मा लगाना पड़ता है....उम्रदराज होने पर डॉक्टर कहता सादा-भोजन-----आधा-भोजन...तब परहेज का दौर शुरू....और आध्यात्म एक कदम आगे बढ़ कर कहता है...दाल-रोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ....और मानव मात्र को सम्बोधन की सौगात....प्रभु को, प्रभु के द्वारा सर्वाधिक सरल तथा सुन्दर सम्बोधन....वेद, पुराण, श्लोक, मन्त्र.....सब-कुछ प्रभु के लिए....और सब-कुछ याद करने की कोई आवश्यकता नही...सिर्फ एक शब्द आधार या नींव का पत्थर सिद्ध होता है...."प्रभु"....यह बहस नही यह किसका नाम है ?...किन्तु यह आज़ादी अवश्य है कि कोई भी मनुष्य संबोधन के रूप से उपयोग या प्रयोग कर सकता है...स्वयं के साथ-साथ दूसरों के लिए....उम्र कम है तो 'प्रभु' और ज्यादा है तो "प्रभु जी"....आदमी का सफर ठीक पानी और तमन्ना की तरह....प्रभु से प्रभु जी में रूपान्तरण.... तब यह सरल बात सबके ज़ेहन में....पानी में रहना है तो तैरना जरुरी....तमन्ना पूरी करने के लिए कुछ तो करना पड़ता है....कब, क्यों, कैसे....???....यह सब करने वाले की जवाबदारी....यह ध्यान में रखते हुए कि 'सिद्धि-साधना' के खेल में 'हठ-योग' का सीमांकन टोटल सात्विकता के दायरे मे शुमार होता है.....अन्यथा कागज लिखने के साथ-साथ पुड़िया बनाने का काम करता है....वसीयत के साथ-साथ सुसाइड-नोट भी मायने रखता है....आत्मघात की बात नही, किन्तु आत्म-सम्मान की पुष्टि प्रशस्ति-पत्र से अवगत होती है....स्वयं के सम्मान की पुष्टि मन पूर्ण ईमानदारी से स्वीकारता है....सम्मान को खरीदने की बात नही, किन्तु कसम खुदा की....जब खुद को ज्यादा सम्मान मिल जाता है तो प्रभु आश्चर्य के साथ प्रभु जी से अर्थात शिष्य अपने गुरु से....यह प्रश्न करता है कि आखिर मैंने क्या किया ?....और उत्तर न मिलने पर यह मान लेता है कि..... Just Because Of YOU.....बस इसी आधार पर स्वयं को प्रभु संबोधित करता है....और मित्रों के समक्ष यही कि....Just For YOU..... Whatever....प्रभु या प्रभु जी....अन्तर सिर्फ एक कदम का हो सकता है.... you have to decide....सब-कुछ संभव है लेकिन प्रभु शब्द में प्रपंच असंभव है....विनायक समाधान @ 91654-18344…( INDORE / UJJAIN / DEWAS )…

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