सत्य-कथा...मनोहर-कहानी....एक सुतार मित्र से चर्चा का मौका आया...नशे के
आदि उस मित्र ने शराब से बचने के लिए डॉक्टरी सलाह से नींद की गोली लेना
शुरू कर दिया और त्रयीका 0.5 को दिन में लेना शुरू कर दिया...और नशे में
अपनी कारीगरी के हुनर शुरू कर दिया...तब यह ध्यान में रखते हुए कि किसी भी
प्रकार का नशा...हर एक पौष्टिक पहलु का नाश करता है....और शुरू करने के
चक्कर में अंत शीघ्रता से आ जाता है....The TRAIN before time....नशा करने
वाला उदार है तो दया का पात्र है और नशा करने वाला हिंसक हो
जाये तो सर्वप्रथम स्वयं का नाश हो सकता है....इससे बढ़ कर कोई मशविरा
नहीं....मुशायरे के नशे में जागरण का बहाना चलेगा...लेकिन नींद में खलल
खर्राटों से भी हो सकती है.....नशे का निर्माण होने से पहले उसकी खपत का
समय निर्धारित हो जाना चाहिए....'मुनासिब-समय'...और जो समय को 'मुताबिक' कर
लेता है, शायद उसका नाम सिकन्दर हो सकता है...तब आमने-सामने दोनो...नाम
पूछने वाला और नाम बताने वाला....आप किसी से नाम पूछते है तो अपना नाम
बताने का सुअवसर आ जाता है....और नाम में बहुत कुछ....चर्चा और पर्चा
साथ-साथ....आखिर सत्य यही कि...राम से बड़ा राम का नाम....
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