Monday 17 April 2017

वास्तविकता में कही गयी बात समस्या न हो कर मात्र अनुभव होता है...यदि अनुभव सुखद या लाभप्रद नहीं हो पाता है तो हम इसे समस्या करार देते है...और अनुभव निरन्तर सुखद या लाभप्रद नहीं हो पाता है तो हम इसे गम्भीर समस्या करार देते है...और यदि यह अनुभव लगातार जारी रहता है तो मस्तिष्क में नकारात्मक विचारो की उत्पत्ति शुरू हो जाती है...नकारात्मक विचारों से भय की उत्पत्ति संभव है...ठीक इसी प्रकार जब सुखद अनुभव होता है तो ....हम स्वयं स्वर्ग का अनुभव करते है क्याकि सकारात्मक विचार उतरोत्तर उन्नति का सशक्त अंग सिद्ध हुए है... सकारात्मक पहलु अमर होते हुए अनन्त तक जाने की सम्भावना रख सकता है...जहाँ तक विचारो की बात करते है तो यह मात्र मन की यात्रा होती है...निरन्तर यात्रा....ठहराव-प्रस्ताव का अधिकार मात्र शक्तिशाली मन को...निर्णय लेने की क्षमता ही मन की ताकत होती है....मन एक वृत रूपी परिधि है जहाँ विचार प्रकट होकर भ्रमण करते है जंहा अनन्त भी सहज परिभाषित है बिल्कुल वायुमंडल के परिदृश्य...यथा बीजम् तथा निष्पत्ति....एवम् नकारात्मक विचार की उत्पत्ति शीघ्रता से होती है....सकारात्मक से लगभग तीन गुना अधिक...और उपलब्ध सकारात्मक उर्जा के लिए लगभग पांच गुना हानिकारक....अर्थात कहावत सत्य चरितार्थ होती है... यदि स्थिति नियन्त्रण में नहीं हो तो एक अशुद्धि सम्पूर्ण सम्पूर्ण वायुमंडल के लिए हानिकारक हो सकती है.

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