Saturday 24 December 2016

दस-वर्षीय योजना....ग्यारहवे वर्ष मे अनीति का धन मूल सहित चला जाता है...कहाँ जाता है ?....सबको मालूम है....शास्त्र कहते है कोई ताकत रोक नही सकती है....बारहवे या तेहरवे की बात नही...दस साल नोट गिनने मे कितनी ऊर्जा खर्च हो सकती है ?....यह बात गौरतलब है कि नोट गिनने का काम बड़े ही ध्यान का हो सकता है...गिनती-पहाड़े खुदबख़ुद जेहन मे आने लगते है....आदमी सब काम दरकिनार कर के नोट गिनता है...रात मे दूकान बन्द करने के बाद भी विचारमग्न या उधेड़बुन जारी रहती है...यदि खर्च करने के बाद पैसा बच जाये तो समृद्धि तथा संतुष्टि का आभास होता है....तब यह चेतावनी काम की हो सकती है चादर के अनुसार पैर फैलाना चाहिये....तब इस पहलु मे आध्यात्म का पूर्ण समर्थन....विचार, व्यवहार मे शामिल हो जाये तो इसे प्रकृति या nature या स्वभाव मान लिया जाता है....कुल मिला कर आदमी की फितरत दस रंग बदले, पल भर मे....और दस को आधा कर दिया जाय तो सीधे-सीधे...आधी हकीकत--आधा फ़साना....पंच-वर्षीय योजना...क्या नही हो सकता है इन पांच साल मे...सरकार का राज़...मास्टर की डिग्री....डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, वैज्ञानिक....सब कुछ बनने का अवसर....हम दो से लेकर हमारे दो तक यात्रा हो सकती है...और यह पांच साल सिर्फ मेहनत के बल-बुते पर पूरे जीवन को आम से खास बना सकते है...तब यहाँ भी ध्यान का बड़ा महत्त्व...एकाग्रचित्त हो कर ऊर्जा को अर्जित करने की चेष्टा....आदमी ऊर्जा खर्च करके पैसा एकत्रित करता है, ध्यान से...वही आदमी ऊर्जा अर्जित करके ज्ञान एकत्रित करता है, ध्यान से...तब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि ध्यान का ऊर्जा से क्या सम्बन्ध हो सकता है ?...ऐसा क्या है कि अमरोहा मे हज़रात शाह विलायत की दरगाह मे बिच्छू भी अपनी फितरत बदल लेते है ?...वॉयलेंट क्यों सायलेंट हो जाता है ?...ध्यान से ऊर्जा क्यों और कैसे उत्पन्न होती है ?....कुछ प्रश्नों के उत्तर किताबों में ना हो तो ध्यान से उत्तर उत्पन्न किये जा सकते है...इस पंच-वर्षीय यात्रा के साथ अगली पंच-वर्षीय यात्रा ईमानदारी से आध्यात्म के लिये समर्पित हो जाये तो जिंदगी जन्नत....फितरत रूहानी हो तो जीने का मज़ा ही कुछ और होता है...!...यारी है ईमान मेरा, यार मेरी जिंदगी....राम की चिड़िया, राम का खेत....निगाहें-करम....निगाहें कमजोर या सशक्त उम्र के अनुसार परन्तु निगाहों मे शुद्धता ताउम्र....और चरित्र की शुद्धता मन की आँखों मे रचा-बसा होता है....एनक का आविष्कार आदमी ने किया किन्तु आँखों का आविष्कार प्रकृति करती है...रस्सी की गाँठ किसी भी चाबी से नही खुलती सिर्फ हाथ खुले होना चाहिये.....आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....बातों-बातों में....खेल-खेल मे....चलते-फिरते....सादर नमन्...जय हो..."विनायक-चर्चा" हेतु हार्दिक स्वागत....विनायक समाधान @ 91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS...



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