भूखे-पेट भजन ना होय तब कोई चिन्ता नही... भण्डारे का आयोजन होता रहता
है...लेकिन यह कोई बात नही होती कि भला, भजन भी कोई भजने की चीज है...आखिर
भज-गोविन्दम का अविष्कार आदमी ने किया है....तब यह सिद्ध होता है कि
"आवश्यकता अविष्कार की जननी है"....हरि-कीर्तन अर्थात भजन...जो दो प्रकार
से होता है...निष्ठापूर्ण और निष्ठारहित...यह ध्यान करते हुए कि
निष्ठापूर्ण भजन, निष्ठारहित सतत भजन का फल है...यह मन कभी भजन करना चाहता
है तो कभी भोग की प्राप्ति....कभी घर से भागना चाहता है तो कभी घर मे ही
रमणीय हो जाता है...कभी वैराग्य तो कभी आसक्ति....यही है ज्वार-भाटा... और
इन सब उतार-चढ़ाव का निदान है...सत्संग....सुविचार, भजन, कीर्तन....सत्संग
के अनेक रूप...इसकी स्वाभाविक महिमा समस्त उधेड़-बुन को मिटा सकती
है...रूचि, सुख, रस, प्रीति का विस्तार हर कोई करना चाहता
है...उत्साह-अनुत्साह, आशा-निराशा, सिद्धि-असिद्धि, अनुकूल-विपरीत परिणाम
का सामना करने की शक्ति हर एक की आवश्यकता हो सकती
है...विभिन्न-विषय...जितने लोग, उतनी बाते... बहस का कोई अंत नही.... और यह
भी सत्य है कि संत का कोई अंत नही.... तथा यह अनुभव का विषय है कि "हरि
कथा अनंता"....इस परम सौभाग्य के साथ कि "गुरु कृपा अनंता"....यदि
माता-पिता को गुरु माना जाय तो उपरोक्त समस्त तथ्य किसी भी प्राणी या जीव
मात्र के साथ अनिवार्य रूप से लागू होते है....स्वतः....बिना किसी
जोर-आजमाइश के....जैसे जीवन के दो अटल सत्य ...जो होना है, अवश्य
होगा....और जो बोया है, वही काटना होगा....आखिर सबके पास दिन-रात के चौबीस
घण्टे....यह बात अलग है कि मनोरंजन के चक्कर में लोग घंटो का काम मिनटो मे
करने के लिये बहुत सारा सामान जुटा लेते है...और बस यहीं से बोरियत शुरू हो
जाती है, इस असमंजस के साथ कि कब, कौन सा काम किया जाये ?...हज़ार लोग,
हजार बाते.... सवाल एक, जवाब तुम.....#विनायक-परिश्रम#....एक
ही प्रार्थना..."सर्वे भवन्तु सुखिनः" एवम् एक ही आधार "गुरू कृपा हिं
केवलमं"....आप सभी आमंत्रित है....पूर्व निर्धारित समय हमेशा की तरह सुविधा
सिध्द होती रहेगी....हार्दिक स्वागतम.....समय अपना-अपना....और आदान-प्रदान
हो जाए....तो सहज आमने-सामने.....प्रणाम....सब मित्रों के बीच बैठ कर
"रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव...”#विनायक-समाधान#” @
#91654-18344#...#vinayaksamadhan# #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#.
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