Saturday 24 December 2016

जय हो...सादर नमन...हाल-चाल पुछने की प्रथा सब दूर...आखिर ज्वार-भाटा प्राणी मात्र के मन की प्रकृति....जैसे जल के समान...किन्तु जल से पतला ज्ञान और ज्ञान प्राप्त करने का सबसे सहज तथा सुलभ मार्ग है...हरि-कीर्तन अर्थात भजन...जो दो प्रकार से होता है...निष्ठापूर्ण और निष्ठारहित...यह ध्यान करते हुए कि निष्ठापूर्ण भजन, निष्ठारहित सतत भजन का फल है...यह मन कभी भजन करना चाहता है तो कभी भोग की प्राप्ति....कभी घर से भागना चाहता है तो कभी घर मे ही रमणीय हो जाता है...कभी वैराग्य तो कभी आसक्ति....यही है ज्वार-भाटा... कभी भजन मे सुख तो कभी चित्त ऊबने लगता है...कभी ईश्वर मे श्रद्धा और विश्वास बढ़ते है, तो कभी भगवान की उपेक्षा होकर भोगों की अपेक्षा होती रहती है....और इन सब उतार-चढ़ाव का निदान है...सत्संग....सुविचार, भजन, कीर्तन....सत्संग के अनेक रूप...इसकी स्वाभाविक महिमा समस्त उधेड़-बुन को मिटा सकती है...रूचि, सुख, रस, प्रीति का विस्तार हर कोई करना चाहता है...उत्साह-अनुत्साह, आशा-निराशा, सिद्धि-असिद्धि, अनुकूल-विपरीत परिणाम का सामना करने की शक्ति हर एक की आवश्यकता हो सकती है...तब सबसे अनुकूल तथा श्रेष्ठ मार्ग भक्तिपथ ही सिद्ध होता है...और इस मार्ग मे ये पाँच अवरोध बड़े काँटो के रूप मे प्रस्तुत हो सकते है...
"जातिविद्यामहत्वम च रूपं यौवनमेव च....
यत्नेन परिहर्तव्य: पंच्यैते भक्ति कण्टका:"...
और वास्तव मे मानव इन्हें अवरोध न मान कर अभिमान के साधन के रूप मे देखने का भ्रम उत्पन्न करता है....यथा जाति का अभिमान, विद्या का घमण्ड, धन-ऐश्वर्य-पद का गौरव, शरीर का सौन्दर्य और उफनती जवानी....नित्य रूपेण सत्संग ना हो तो मानव की जीभ मेंढक के समान वाचाल...चपल....चंचल...जो स्पष्टवादी बनने के बहाने किसी का भी दिल दुखाने की चेष्टा कर सकती है...मन मे भेद रख कर किसी की खुशामद कर सकती है...यह याद रखते हुये कि किसी की खिदमत का गुण केवल मानव मात्र का गुण होता है....उतार-चढ़ाव मानव का नही बल्कि जगत का गुण है...चन्द्रमा की ज्योति और घनघोर आकाश दोनो ही क्षणिक होते है....नित्य बहुपयोगी तो सूर्य का प्रकाश होता है....तमसो मा ज्योतिर्गमय...एनक का आविष्कार आदमी ने किया किन्तु आँखों का आविष्कार प्रकृति करती है...रस्सी की गाँठ किसी भी चाबी से नही खुलती सिर्फ हाथ खुले होना चाहिये.....आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....बातों-बातों में....खेल-खेल मे....चलते-फिरते....सादर नमन्...जय हो..."विनायक-चर्चा" हेतु हार्दिक स्वागत....विनायक समाधान @ 91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS...

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