सोते समय शरीर सुन्न हो जाये तो चिंता का विषय...तब विचारों की गति एवं
अशुद्धता एक मात्र वजह....दिमाग सुन्न होने वाली बात नही....विचार शून्य
होने वाली बात तो बिल्कुल नही....सुन्न का समकक्ष शब्द है, निष्क्रिय या
उदासीन और विपरीत शब्द होता है, सक्रीय या चंचल....और मस्तिष्क मे विचार
सबसे चंचल....किंतु शयन के दौरान दिमाग को शांत होना आवश्यक है....वर्ना
बदलते रहे करवटे, सारी-सारी रात....और नींद के कृत्रिम साधन दिमाग और शरीर
दोनो को सुन्न कर देते है....और दिमाग शुद्ध रूप से वैश्विक यानि कि
बुनियादी सुविधाओं से लबरेज....एक शब्द है "स्पिरिट"....एक दूसरे का ख्याल
रखना और एक दूजे की खुशियों के लिये जगह बनाना... किन्तु आज-कल दूसरे से
ज्यादा अपनी भावनाओं का ख्याल रखने का रोज का रिवाज़....इस बात की तकलीफ
सबसे ज्यादा कि मेरी ख़ुशी का ख्याल क्यों नही ?...कोई फ़र्क नही पड़ता है कि
सामने वाले को किस बात से ख़ुशी मिल रही है....तब प्रश्न यह कि आमने-सामने
को प्रपंच रहित कैसे बनाया जाय ?....और उत्तर यह कि सात्विकता सभी
मर्यादाओं को थामे रहती है....हर उत्सव मे सात्विकता का शुमार आवश्यक
है....प्रत्येक त्यौहार का मुल मंत्र यही हो सकता है कि सबका ख्याल रखा
जाये....सदा दिवाली संत की, आठो प्रहर आनन्द....और सर्वोपरि भक्ति यही कि
"तुम हो तो हर रोज़ दिवाली"....रौशनी अर्थात प्रकाश के पर्व का कोई
तोड़-बट्टा नही.... फटाखों के शोर और प्रदूषण की बात नही.... दुर्घटना से
सावधानी भली....आखिर हत्याओं से ज्यादा हादसों में ज्यादा जानो-माल का
नुक्सान...विचारों की गति पर नियंत्रण अर्थात क्रोध पर नियंत्रण मतलब
तनावपूर्ण स्थिति भी नियंत्रण मे....और इसका एक ही रहस्य है....करत-करत
अभ्यास के गुणमति होत सुजान.....सफलता का सरल उपाय....सबके
लिये......”श्रद्धावान लभते ज्ञानम”.....आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च
इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may
search into Google....just say "vinayak samadhan".....विनायक समाधान @
91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS...
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