कोई एक समस्या , अनेक समस्याओं की यजमान ना बन जाये.....कही आपातकाल
आमंत्रित ना हो जाये....और गेहूँ के साथ-साथ धुन भी पीस जाता है...और नियम
यह है कि---“सर्वे भवन्तु सुखिनः”.....समस्त प्रार्थनाओं का सार.....संसार
का भव-सागर.....मात्र यही प्रार्थना तो भक्त को भगवान से बाँधे रखती
है....तब सन्त की धुनी ज्यादा जाग्रत हो सकती है....कविता के पठन से पहले
कविता का गठन होता है.....और शारीरिक गठन जन्म के बाद ही संभव है, पंच-तत्व
पर निर्भर रह कर.....और पंच-तत्वों की अशुद्धि के कारण मन में गठान नहीं
होना चाहिये.....पठान के मन में गठान....तौबा-तौबा.....और जवान को मंजूर
नहीं हरगिज कि.....जवानी पर जरा (वृद्धावस्था) का प्रहार.....तब आहार,
विहार, सदाचार ही रक्षक....जवान की कोई उम्र नहीं....बस चाल से ही स्फूर्ति
घोषित हो जाती है....स्वत:....और स्फूर्ति ना हो तो शतरंज का वजीर तथा मन
का ज़मीर, आदमी को अमीर नहीं बनने देता है....अंत तक....दोनों ख़तम तो खेल
ख़तम....और सन्त कभी भी अन्त की बात ना करे....और जिन्दा वजीर और जाग्रत
ज़मीर से आदमी खिलाड़ी बन जाता है....तब खेल, खिलाड़ी का.....भोजन करते समय यह
अहसास होने लगे कि पेट भर रहा है....और भोजन से तीन घंटे पहले यह अहसास
होता रहे कि भूख लग रही है....एक आसन का कमाल.....चमत्कार का सरल
नियम...मात्र तीन पहलु सम्पूर्ण वायुमंडल की सक्रियता को निर्मित करने के
लिये....जिनकी सत्यता हर प्राणी तथा हर धर्म को स्वीकार
है....शत-प्रतिशत....सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण.....पूर्णरूपेण व्यक्तिगत
पहलु, किन्तु गुरु के अधिन.......सारा खेल सरपरस्ती में, सक्रियता
का....Just Because Of You….अनादि से अनन्त...सहज स्व-सत्संग....सुनिश्चिंत
आनन्द...निश्चिन्त प्रारम्भ...विनायक शुभारम्भ....ॐ गं गणपतये
नम:....”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)...
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