Saturday 24 December 2016

.*मैं आप लोगो के साथ हूँ ये मेरा भाग्य है।*
*पर आप सभी लोग मेरे साथ है यह मेरा सौभाग्य है..*
"उत्सव आमार जाति, आनंद आमार गोत्र”....
जय-गजानंद.....सदा रहे आनंद...दिन या रात की बात नहीं.....गुरु-शिष्य की परम्परा...सदैव अजर-अमर.....जप-तप से गुरुदेव को स्मरण करने का शुभ-दिन.....
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः, गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरु साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
ध्यानमूलं गुरुर्मूर्ति पूजामूलं गुरूर्पदं ।
मन्त्रमूलं गुरुर्वाक्यं, मोक्षमूलं गुरु कृपा।
ॐ श्री गुरुवे नमः।
....बिन पानी सब सुन्न..... कतरा-कतरा जिन्दगी.....कतरा-कतरा बहने के लिये......किसी से अगर पुछ लिया जाये कि सोचो साथ क्या जायेगा ?....तब उत्तर अलग-अलग मगर मजेदार.....उत्तर के दमदार होने की कोई ग्यारंटी नहीं.....प्रश्न एक ही है.....किन्तु उत्तर मार्ग के रूप में तीन हो सकते है.....ठीक तीन रेखाओं के समान.....और इनका चयन विवेक से ही संभव है.....ठीक चुनाव में मतदान करने के समान....महावीर का ज्ञान-मार्ग.....मोहम्मद का कर्म-मार्ग......चैतन्य का भक्ति मार्ग......और मौका सबको मिलता है.....बारम्बार.....जन्म से प्रारम्भ हो कर मोक्ष प्राप्त करने की सुगम यात्रा का सुअवसर....स्वयं को जानने और पहचानने का सुनहरा अवसर...आनंद ही जाति और उत्सव ही गौत्र.....ज्ञान के प्रसार में ईश्वर साक्षी होता है.....सारी खुदाई एक तरफ और खुदा का यह रूप सर्वस्व......गुरु बिन ज्ञान अधुरा....अमृत का कोई विकल्प नहीं.....जैसे परिश्रम का कोई विकल्प नहीं....सामानांतर सोचने के लिये, कोई तो चाहिये.....पानी को अमृत कहने के लिये.....मानो तो गंगा.....ना मानो तो बहता पानी.....हर हर गंगे.....कतरा-कतरा जिन्दगी.....कतरा-कतरा बहने के लिये...... 'हरि कथा अनंता' और "गुरु कृपा अनंता"......‪#‎अन्तराष्ट्रीय‬# स्तर पर....धर्म स्पष्ट हर-दम यही कहे....सप्ताह का एक दिन गुरु को समर्पित....और गुरु के लिए....सब दिन समान....इस आशय या निवेदन के साथ.....”सदा दिवाली संत की आठों प्रहर आनन्द....निज स्वरुप में मस्त है छोड़ जगत के फंद”........सदगुरु-देव की कृपा....चर्चा अन्त की ना हो कर, सन्त की हो...अनन्त की हो... एकांत की हो....बसंत की हो.....और मुर्गी-अन्डे की पहेली के समान....गुरु पहले या शिष्य ?.....जानकारी यही कि....गुरु कृपा ही केवलम्......‪#‎ईश्वर‬# तुल्यं या सर्वोपरि….‪#‎गुरु‬# के स्थान की गणना या मान्यता या तुलना ...परिवार में माता-पिता....शरीर में मष्तिष्क....जन्म-पत्रिका में वृहस्पति ग्रह....हस्त-रेखा में गुरु पर्वत...मित्र-मण्डल में सम्माननीय गण....समाज में वरिष्ठ अथवा बुजुर्ग....कार्य-क्षेत्र या राज्य-पक्ष में वरिष्ठ अथवा सम्माननीय...आश्रम में कल्याणकारी #गुरु# श्री....एकलव्य जी ने तो गुरु द्रोणाचार्य जी की मूर्ति को सर्वस्व मान लिया था....और सर्वश्रेष्ठ साबित हुए....गुरु को किसी भी रूप में माना जाये परन्तु #गुरु# का श्रृंगार श्रद्धा एवम् एकाग्रता से ही सम्भव है.....”श्रद्धावान लभते ज्ञानम”.....आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....विनायक समाधान @ 91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS




No comments:

Post a Comment