Saturday 24 December 2016

परिवार में माता-पिता....शरीर में मष्तिष्क....जन्म-पत्रिका में वृहस्पति ग्रह....हस्त-रेखा में गुरु पर्वत...मित्र-मण्डल में सम्माननीय गण....समाज में वरिष्ठ अथवा बुजुर्ग....कार्य-क्षेत्र या राज्य-पक्ष में वरिष्ठ अथवा सम्माननीय...आश्रम में कल्याणकारी गुरु श्री....एकलव्य जी ने गुरु द्रोणाचार्य जी की मूर्ति को सर्वस्व माना....और सर्वश्रेष्ठ साबित हुए....गुरु को किसी भी रूप में माना जाये परन्तु #गुरु# का श्रृंगार श्रद्धा एवम् एकाग्रता से ही सम्भव है.....”श्रद्धावान लभते ज्ञानम”..... लाभ अर्थात ज्ञान अर्थात श्रवण, किर्तन, चिन्तन, मनन अर्थात निर्णय लेने की क्षमता...अर्थात #अध्ययन#...अर्थात #ज्ञान# जो जल से पतला माना जाता है....
#पानी#......
आकाश से गिरे तो........#बारिश#.....
आकाश की ओर उठे तो........#भाप#
अगर जम कर गिरे तो...........#ओले#......
अगर गिर कर जमे तो...........#बर्फ#
फूल पर हो तो....................#ओस#.......
फूल से निकले तो................#इत्र#
जमा हो जाए तो..................#झील#.......
बहने लगे तो......................#नदी#
सीमाओं में रहे तो................#जीवन#.....
सीमाएं तोड़ दे तो................#प्रलय#
आँख से निकले तो..............#आँसू#.....
शरीर से निकले तो..............#पसीना#
और.............#श्री हरी# के चरणों को छू कर निकले तो....#चरणामृत#....
अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में
जो जग मे रहूं तो ऐसे रहूं ज्यों जल में कमल का फूल रहे,
मेरे सब गुण दोष समर्पित हो, गुरुवर तुम्हारे हाथों में
मुझ पूजक की एक-एक रग का, हो तार तुम्हारे हाथों में
मैं हूँ संसार के हाथों में और संसार तुम्हारे हाथों में..... जय हो...सादर नमन…

No comments:

Post a Comment