मात्र आस्था एवम् प्रार्थना के आधार पर...सामाजिक त्रिकोण में धार्मिक आधार
का अपना महत्त्व है....धर्म , विज्ञानं एवम् साहित्य....ये तीनो पहलू
हमारे भीतर मौजूद है...हम प्रतिदिन इन पहलूओ पर कार्य करते है....घर, मंदिर
और कार्यालय या दूकान अर्थात राज्य-पक्ष....और सब जगह हम स्वयं....ठीक एक
नेतृत्व...एक राजा के समान....सेवा तो निश्चिन्त परन्तु कर्तव्य
सुनिश्चिन्त...यत्र, तत्र, सर्वत्र.....बस यही अहसास चमत्कार का रूप ले
लेता है, जब देर रात्रि-भोजन का त्याग करने की स्वत: इच्छा जाग्रत हो
जाये....पानी में ‘मछली प्यासी’ वाली कहावत सबने सुनी.....परन्तु जल का
विसर्जन तथा ग्रहण स्वत: होता है.....चार लाईनों की बात नहीं...उपन्यास के
चार पन्ने समझ में आ जाये तो समझिये कि उपन्यास खुद ले लिखी है....और हर
किताब में शायद इसीलिए प्रारम्भ में दो शब्दों कि प्रस्तावना होती
है....प्रार्थना के रूप में....समस्या रूपी तालों में, शब्द चाबियों के
गुच्छे का काम करते है.....अर्थात प्रार्थना स्व (SELF) के लिये नहीं, पर
(OTHERS) के लिये होती है.....याचना हरगिज नहीं.....बल्कि कृतज्ञता युक्त
ज्ञापन....प्रेय और श्रेय से श्रेष्ठतम मोक्ष होता है.....और यह श्रेष्ठ
सत्य सिद्ध करते है....महावीर-कैवल्य तथा बुद्ध-निर्वाण.....बस यही हो सकती
है--“श्रमण-संस्कृति”......जहाँ समस्त रूप
सम्माननीय.....मजदुर, कारीगर, कलाकार....और सबका एक ही
रूप.....कर्मयोगी.......चमत्कार से कोई लेना देना नही....स्वयं की योग्यता
स्वयं के लिए एक प्रायोगिक सत्य है....."रघुपति राघव" गाने का
आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव...”#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#...#vinayaksamadhan# #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#..
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