सारी चर्चा एक सांस में सम्भव नहीं....एक सांस में में तो सम्पूर्ण जीवन ही
सम्भव है...बात सही इसलिये साबित होती है क्योकि "हरि कथा अनंता"....जबकि
सांस गिनती की.....और सांसो को पहाड़े के रूप में परिभाषित करने में समय कम
पड़ते जाता है...जिसकी धडकन जितनी ज्यादा, जीवन उतना ही कम....और दिल की
धड़कन को हमारी आसक्ति से कोई लेना-देना नहीं, इसके उपरांन्त भी लगातार
उतार-चढाव, ठीक शेयर-मार्केट के सूचकांक की तरह....और इंसान की आसक्ति किसी
भी कार्य की सफलता में हो सकती है....और सफलता का मूलाधार
है--"पंच-समवाय"...अर्थात....काल, स्वभाव, कर्म, पुरुषार्थ, नियति....किसी
एक की कमि से सफलता में बाधा या अवरोध उत्पन्न होता है....मनुष्य जीवन
काल-चक्र की धूरी पर घूमता रहता है...और काल अपना कार्य सतत जारी रखता
है....भुत, भविष्य, वर्तमान सब इसमें समाहित....स्वभाव स्वतः भेद में
विभक्त है.....वस्तु स्वभाव, देश स्वभाव, जाति स्वभाव, काल स्वभाव....कर्म
हेतु गीता श्री का एक ही कथन...कर्मयोग की कथा...फल की चिंता अनुचित
है...मजबूत पुरुषार्थ कमजोर भाग्य को पछाड़ देता है....शायद इसीलिये कार्य
सिद्धि का मूलाधार पुरुषार्थ है...और जो होना है, वह हो कर रहेगा अर्थात
"हरि करे, सो खरी"...अर्थात... "नियति" वह तत्व है जिसके अधीन सबकुछ
है.....काल, स्वभाव, कर्म और पुरुषार्थ....यदि नियति अनुकूल नहीं तो जड़ को
कीड़ा लग जाता है...तब जड़े खोखली हो सकती है....विद्यार्थी का
जीवन...प्रतिदिन का अभ्यास......
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