जीने के लिए #जीवन# भले ही छोटा सही, परन्तु उपाय द्वारा #सुधार# के लिए बहुत लम्बा....मुड (#mood#) ख़राब है तो सब कुछ ख़राब लग सकता है....ठीक जैसे #पेट# ख़राब हो जाता है, #कभी-कभी#....किसी
कार्य को टालने के लिए mood का हवाला देना अत्यंत आसान....और सविनय अवज्ञा
आन्दोलन या वादाखिलाफ़ी....तब मुड़ सही करने के लिए क्या उचित है ?...यह हम
अपने अनुसार तय करते है.....और mood सही करने लिए simplest one उपाय
सर्व-श्रेष्ठ माने गए है....जो प्रत्येक धर्म में विभिन्न शास्त्रों में
लिखा है.....#कब?, #क्यों?, #कैसे?...सबको
मालुम है....कुछ-कुछ, बहुत-कुछ, सब-कुछ.....परन्तु hardest one को सही
मानते हुए...mood को सही करने की कोशिश करते है....अर्थात सामान्य सी बात
है कि शास्त्र पढ़े नहीं जाते है....और यह और भी सामान्य बात है कि शास्त्र
आसानी से सुने जा सकते है.....और यह परम साधारण सत्य है कि पढना हो या
सुनना हो, दोनों में #ध्यान# आवश्यक है....और जो कुछ है मात्र #अध्ययन#.....busy without business.....कोई व्यवसाय नहीं....जबकि mood सही करने का व्यवसाय #business#
व्यापक स्तर पर....स्वयं से प्रश्न....What More ?, What Next ?, What
Else ?.....The Three Magical Questions that PROPEL
Progress....’विनायक-प्रश्नोत्तर’.....भक्त, भक्ति और भगवान को मानव के
अतिरिक्त कोई दूसरा समझ ही नहीं सकता है...फटा #पोस्टर# निकला #हीरो#.....बिल्कुल #भीड़# से अलग...#भेड़#
वाली चाल नहीं....एक समीकरण को हल करने के लिए दो मित्र पर्याप्त
है...साझा अध्ययन...COMBINED STUDY…..कोई पहेली नहीं....रचना हमारी खुद की,
स्वयं द्वारा
रचित....छोटी-बड़ी...आड़ी-तिरछी....सीधी-सादी...मोटी-पतली....भले ही कैसी भी
हो....है तो स्व-रचित....कोई प्रतियोगिता या प्रतिस्पर्धा नहीं....कोई हार
या जीत नहीं.....सुना है कुछ लोग अपनी लकीर को बड़ी करने के लिए, दूसरों की
लकीरों को अकसर मिटा कर या घटा कर छोटी कर देते है....तब वें यह भूल जाते
है कि मजा तो सिर्फ अपनी लकीर बड़ी करने में है..
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