सुना है कुछ लोग अपनी लकीर को बड़ी करने के लिए, दूसरों की लकीरों को अकसर
मिटा कर या घटा कर छोटी कर देते है....तब वें यह भूल जाते है कि मजा तो
सिर्फ अपनी लकीर बड़ी करने में है...और यह मजा मात्र सरल या आसान होने के
कारण है....जितना वक्त लकीर मिटाने में लगता है, उससे कंही कम वक्त लकीर
बनाने में लगता है....शायद इसीलिए प्रकृति-प्रदत्त....सहज
हस्त-रेखायें....प्रत्येक मानव-हस्त पर नैसर्गिक रचना....विधाता का सहज
‘लेख’....शायद आज-तक कोई न निकाल सका....’मीन-मेख’....और अन्त तक विधाता
यही कहे...’देख तमाशा देख’....और चिंता की
कोई बात नहीं....सब ईश्वरीय ‘देख-रेख....We Demand….क्षमा, रक्षा, न्याय,
व्यवस्था....’जाको राखे साईयाँ, मार सके ना कोय’.... #JUST for YOU#.......बड़े #होर्डिंग# की लागत ज्यादा हो सकती है, परन्तु छोटे #होर्डिंग# तो कोई भी बना सकता है..... #चित्र# ध्यान से देखियेगा....प्रत्येक #अप्रत्यक्ष#
प्रश्न का उत्तर चित्र स्वयं देने का प्रयास करेगा....एक विनायक-मित्र के
रूप में....इस चित्र में मात्र तीन रेखाए....और सहज दृष्टि अर्थात एक
आँख...विनायक-दृष्टि....संजय दृष्टि या दिव्य दृष्टि.....#आँखे# मनुष्य की सर्वोत्तम ज्ञानेन्द्रिय अंग है....#चित्र# से बेहतरीन #मित्र# भला और कौन ? इसीलिए #त्राटक# योग सर्वोत्तम #ध्यान# माना गया है....किसी भी चित्र को सोलह सेकण्ड तक स्वतः #अध्ययन# करती रहती है....और हमेशा के लिए संग्रह कर सकती है....और यह किसी #चमत्कार# से कम नहीं....शायद #ईशान#
में अवश्य बोलते है.....बस #ध्यान# से सुनना होगा...बस सहज #ध्यान# ही
विनम्र निवेदन…..एक मात्र सद्बुद्धि का सन्मार्ग....सात्विक मार्ग....चाहे #कर्म# हो या #धर्म#......मात्र #सत्संग#....उपदेश या उद्देश्य....जो भी हो परन्तु हो #आमने-सामने#....गुरु
द्रोणाचार्य ने शिष्य एकलव्य को कभी उपदेश नहीं दिया...और उद्देश्य भी
एकलव्य द्वारा स्व-निर्धारित किया गया....स्पष्ट चर्चा....न पांडाल न ही
कोई धर्मगुरु....अक्सर शंकाये हो जाती है....किसी ने कुछ कर दिया है....#क्या# कर दिया ?....ऐसा लगता है तो...#क्यों# लगता है ?.....हर कार्य शीघ्रातिशीघ्र हो परन्तु...#कब# हो ?....प्रत्येक कार्य आसानी से हो....#कैसे
हो ?......कब ? क्यों ? कैसे ?...….'तलाशने या खोजने का अपना एक अलग आनंद
होता है'...जिज्ञासा प्रतिपल या प्रतिदिन...हो सकता है, कुछ काम को बनाने
वाली बात मिल जाये...और मिल जाये तो "निश्चिन्त हो कर निश्चिन्त रूप" से
समझना पड़ सकता है..
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