Monday 26 December 2016

एक बार अंगूर 🍇🍇खरीदने के लिए एक फल बेचने वाले के पास रूका..
पूछा "क्या भाव है?"गुच्छों🍇🍇🍇🍇🍇🍇🍇 का ?
बोला : "80 रूपये किलो ।"
पास ही अलग से कुछ अलग-अलग टूटे हुए अंगूरों के दाने पडे थे ।
मैंने पूछा : "क्या भाव है इन का ?"
वो बोला : "30 रूपये किलो"
मैंने पूछा : "इतना कम दाम क्यों..?
वो बोला : "साहब, हैं तो ये भी बहुत बढीया..!!
लेकिन .....अपने गुच्छे से टूट गए हैं ।"
मैं समझ गया कि अपने....संगठन...समाज और परिवार से अलग होने पर हमारी कीमत.......आधे से भी कम रह जाती है।
एकता व संगठित में ही बल है.
|| jai ho prabhu bhole nath ki ||
KIND ATTENTION PLEASE....Is there any different kind of PLACE ?....स्थान किस प्रकार का उपयुक्त ?....भीड़-भाड़ से युक्त या भीड़-भाड़ से मुक्त....एकान्त मे अचानक भीड़ प्रकट हो जाये....या फिर भीड़ गायब हो जाये तथा एकदम से एकान्त हो जाये....आकर्षण और विकर्षण का अनोखा खेल.....यह खेल हर कहीं...यत्र-तत्र-सर्वत्र...खिलाड़ी को दोनों स्थान पर अपना अभ्यास नियमित करना पड़ता है....विकर्षण मतलब मुँह फेर लेना और आकर्षण अर्थात सर्वोत्तम श्रृंगार...दुनिया मे जितने भी उपयुक्त परामर्श होते है, वे आमने-सामने की मुलाकात का परिणाम है....उपयुक्त स्थान पर उपयुक्त समय का चुनाव....परामर्श एकान्त मे और भीड़ मे दोनों जगह सम्भव है....मस्तिष्क के कक्ष मे एकान्त रूपी एकाग्रता, या फिर शोरगुल रूपी भीड़...भेजा शोर करता है तो गोली खाना पड़ सकती है...तब स्थान के रूप मे एक मात्र कमरा यही...पाप-पुण्य, ख़ुशी-गम, संतुष्टि इत्यादि सब कुछ यहीं पर...अनेक कमरो वाली कोई ईमारत नही...इसके अतिरिक्त कोई और जगह नही...इसका कोई विकल्प नही...किराये-भाड़े की बात नही किन्तु ध्यान ना रखो तो लोग फटाफट उपयोग कर लेते है....just use & throw...और कमरे को कहीं फेकना संभव नही....या तो खाली करो या उपयोग करो....और खुद के चेहरे का उपयोग खुद को करना पड़ता है....उपयोग अर्थात शृंगार....लीपने-छाबने की बात नही....सनातन पहलु कहता है आज्ञा-चक्र और हँसा-चक्र मे अदभुत आकर्षण होता है...अतः इस आकर्षण को यथावत रखने के लिये इन स्थानों का शृंगार समय-समय पर आवश्यक हो जाता है...माथे पर बिंदिया...यही है आध्यात्मिक इंडिया...भारतीय महिलायें समय-समय पर बिन्दिया को टटोल कर सही कर ही लेती है...पुरुष बिन मस्तक श्रृंगार के पूजा मे ना बैठे, ना उठे...इस श्रृंगार का यह कमाल कि...एकान्त मे अकेलापन या भीड़ मे अधूरापन महसूस ना हो...सूनेपन या सुन्न हो वाली बात कदापि नही...सूखे या सावन की बात नही किन्तु सदाबहार अवश्य है...ज्ञान दिखता नही है, किन्तु कार्य करने के दौरान कौशल का प्रदर्शन हो कर रहता है....करत-करत अभ्यास के गुणमति होत सुजान.....सफलता का सरल उपाय....सबके लिये......”श्रद्धावान लभते ज्ञानम”.....आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....विनायक समाधान @ 91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS...
आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....विनायक समाधान @ 91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS...
दुर्घटना से सावधानी भली....आखिर हत्याओं से ज्यादा हादसों में ज्यादा जानो-माल का नुक्सान...विचारों की गति पर नियंत्रण अर्थात क्रोध पर नियंत्रण मतलब तनावपूर्ण स्थिति भी नियंत्रण मे....और इसका एक ही रहस्य है....करत-करत अभ्यास के गुणमति होत सुजान.....सफलता का सरल उपाय....सबके लिये....सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और हिम्मत का काम है खुद के गिरेबाँ मे झांकना....सचमुच भटकना छूट जाता है....बुरा जो देखन मैं चल्या....पर मुझसे बुरा ना कोय... और मै ठान लूँ तो मुझ से भला ना कोय....कभी-कभी आदमी सांस कम औऱ बोलता ज्यादा है....यह आदमी का गुण भी है तथा अवगुण भी....और दिनचर्या मे संतुलन के लिये हर सांस मे राम का नाम शामिल करने का संस्कार सर्वोत्तम....सबसे सरल शब्द....आखिर जीवन के सन्तुलन का सवाल है....सांप औऱ नेवले मे मित्रता कम ही होती है, बाहुबली नाग भी नेवले का सामना करने से कतराता है....और नेवला कितना भी फुर्तीला हो, भुजंग के विष से सदा भयभीत....किन्तु सर्प आभूषण के रूप मे, भगवान शंकर के गले मे और नेवले का मंदिर मे प्रवेश किसी भी रूप से वर्जित नही....भोले का भगवान...भोलापन सबसे असरदार प्रभाव माना जा सकता है...उत्तम संगति या सत्संग से सर्वोत्तम प्रभाव उत्पन्न होता ही है....सत्यमेव जयते...खुद को प्रमोट करने के लिये खुद ही प्रायोजक हो तो राम भरोसे नाम रख कर, राम भरोसे काम करने की आज़ादी हर एक को....राम भरोसे बजरंग परम सेवक कहलाये...औऱ इण्डिया कितना भी डिजिटल हो जाये, हर भारतीय ग्राम-सेवक अवश्य कहलाये....धर्म को धारण करना सचमुच सरल, बस अख़बार की हर नकारत्मक खबर को सकारात्मक करके दिखाया जाय....और हर सकारात्मक पहलू का प्रसार कर लिया जाय....पढ़ने-लिखने वाले और मेहनत करने वाले मिल जाये तो चमत्कार हो कर रहता है....चश्मदीद केवल गवाह नही बल्कि चित्रकार भी हो सकता है...सिर्फ स्केच के आधार पर सुराग लग सकता है....हँस कर देखना और देख कर हँसना.... सिर्फ समझ-समझ का फेर हो सकता है....लोग ज्यादा से ज्यादा जमा करना चाहते है, लेकिन यह बात सौ टका सही है कि कम खाना औऱ कम बोलना कभी नुक्सान नहीं करता है....करत-करत अभ्यास के गुणमति होत सुजान.....सफलता का सरल उपाय....सबके लिये......”श्रद्धावान लभते ज्ञानम”.....आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....विनायक समाधान @ 91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS...
सोते समय शरीर सुन्न हो जाये तो चिंता का विषय...तब विचारों की गति एवं अशुद्धता एक मात्र वजह....दिमाग सुन्न होने वाली बात नही....विचार शून्य होने वाली बात तो बिल्कुल नही....सुन्न का समकक्ष शब्द है, निष्क्रिय या उदासीन और विपरीत शब्द होता है, सक्रीय या चंचल....और मस्तिष्क मे विचार सबसे चंचल....किंतु शयन के दौरान दिमाग को शांत होना आवश्यक है....वर्ना बदलते रहे करवटे, सारी-सारी रात....और नींद के कृत्रिम साधन दिमाग और शरीर दोनो को सुन्न कर देते है....और दिमाग शुद्ध रूप से वैश्विक यानि कि बुनियादी सुविधाओं से लबरेज....एक शब्द है "स्पिरिट"....एक दूसरे का ख्याल रखना और एक दूजे की खुशियों के लिये जगह बनाना... किन्तु आज-कल दूसरे से ज्यादा अपनी भावनाओं का ख्याल रखने का रोज का रिवाज़....इस बात की तकलीफ सबसे ज्यादा कि मेरी ख़ुशी का ख्याल क्यों नही ?...कोई फ़र्क नही पड़ता है कि सामने वाले को किस बात से ख़ुशी मिल रही है....तब प्रश्न यह कि आमने-सामने को प्रपंच रहित कैसे बनाया जाय ?....और उत्तर यह कि सात्विकता सभी मर्यादाओं को थामे रहती है....हर उत्सव मे सात्विकता का शुमार आवश्यक है....प्रत्येक त्यौहार का मुल मंत्र यही हो सकता है कि सबका ख्याल रखा जाये....सदा दिवाली संत की, आठो प्रहर आनन्द....और सर्वोपरि भक्ति यही कि "तुम हो तो हर रोज़ दिवाली"....रौशनी अर्थात प्रकाश के पर्व का कोई तोड़-बट्टा नही.... फटाखों के शोर और प्रदूषण की बात नही.... दुर्घटना से सावधानी भली....आखिर हत्याओं से ज्यादा हादसों में ज्यादा जानो-माल का नुक्सान...विचारों की गति पर नियंत्रण अर्थात क्रोध पर नियंत्रण मतलब तनावपूर्ण स्थिति भी नियंत्रण मे....और इसका एक ही रहस्य है....करत-करत अभ्यास के गुणमति होत सुजान.....सफलता का सरल उपाय....सबके लिये......”श्रद्धावान लभते ज्ञानम”.....आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....विनायक समाधान @ 91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS...
बाजार मे एक नही, अनेक बाजीगर....ताबीज़-लाकेट की बिक्री खुल्लेआम... यंत्र की तयशुदा कीमत....आयत को याद करने मे दिलचस्पी कम से कम...महत्व को जाने बिना बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत करने की हाय.... परिणाम स्वरूप भाषा से नियंत्रण गायब....यह गहन अध्ययन का विषय हो सकता है कि तंत्र-मंत्र-यंत्र के नाम पर अनेक पढ़े-लिखे लोगों से कम पढ़े-लिखे लोग, कैसे धन का आदान-प्रदान अत्यन्त आसानी से कर लेते है ?....और यह आश्चर्यजनक बात है कि इस प्रकार की ठगी की कोई शिकायत नही करता है....और तो और इस बात का फायदा उठा कर खुल्ले आम चमत्कार का दावा करते है...जबकि हर चमत्कार के पिछे विज्ञान की खोज होती है...और हर एक रहस्य के पिछे अध्ययन की आवश्यकता हो सकती है...चमत्कार से अभिप्राय सिर्फ रहने, कहने और सहने से ही हो सकता है...और गायब होने को हाथ की सफाई ही कहा जाता है...हवा को प्रकट करने मे पंखा हिलाना जरुरी होता है....और कुदरत यह काम बिना साधन के कर लेती है, साक्षात् चमत्कार.....और अख़बार उठा कर देखते है तो मिनटो तथा घण्टो मे चमत्कार का चैलेंज, डंके की चोट के साथ किन्तु डंका नदारद....तब चमत्कार भी नदारद....तमाम सामान जुटाने ने समय जाया होता रहता है...तमाम तमाशे भीड़ जुटाने के लिये....असली सामना तो आमने-सामने मे....रूबरू...कामयाब होना कमाई पर टिक गया है...घड़ी की टिक-टिक के साथ पैसा कमाने की हसरत...सिर्फ आंकड़ो की पेशकश....आंकडे कैसे जुटाये जाते है ?, यह कोई नही देखता है...ठोक-बजा कर, नियम से, संजीदगी से या जल्दबाज़ी के साथ......”श्रद्धावान लभते ज्ञानम”.....आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....विनायक समाधान @ 91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS...
जनी अचरजु करहु मन माहीं।
सुत तप तें दुर्लभ कछु नाहीं।।
तपबल तें जग सृजइ बिधाता। तपबल बिष्नु भए परित्ताता।।
तपबल संभु करहिं संघारा। तप तें अगम न कछु संसारा।।
"सत्यम-शिवम्-सुंदरम".....हर हर महादेव...शतरंज की चालों का खौफ उन्हें होता है ....जो सियासत करते है और रियासत की चाह रखते है.......अखण्ड ब्रहमांड के राजा महाकाल के भक्त है तो न हार का डर, न जीत का लालच....चिन्ता हो ना भय...सम्पूर्ण निर्भय....’हर-हर महादेव’....चिन्तामण चिन्ता हरे । कष्ट हरे महाँकाल ।। हरसिध्दी माँ सिध्दी दे । आशीष दे गोपाल ||…..
Happiness comes when you believe in what you are doing,
know what you are doing, and love what you are doing......SIMPLE...पौ-बारह...कब ?, क्यों ?, कैसे ?...आओ इसका पता लगायें.....किसी पहलु पर आवश्यकता के अनुरूप सोचने में तो समानांतर सोचने वाले की आवश्यकता महसूस हो सकती है....आपकी प्रसन्नता और खुशहाली ही विनायक समाधान की सफलता है....सदा आपके साथ......हार्दिक स्वागत.....विनायक समाधान @ 91654-18344....( इंदौर / उज्जैन /देवास )...जय हो....भले पधारो सा…जय श्री महाकाल....
“तदेजति तन्नैजति तद दूरे तद्वन्तिके....
तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः”.....
... इतनी सी यात्रा साधना की....हर दिन नया सवेरा...हर रात के बाद सुबह....चमत्कार का सरल नियम....कब?, क्यों?, कैसे?.....इत्यादि प्रश्नों के उत्तर बुद्धि से ही संभव है....तीनो पहलु अपने-अपने स्थान पर कायम है......और इनका योग अर्थात सम्मिश्रण हो जाये तो पौ-बारह...आओ इसका पता लगायें.....किसी पहलु पर आवश्यकता के अनुरूप सोचने में तो समानांतर सोचने वाले की आवश्यकता महसूस हो सकती है....आपकी प्रसन्नता और खुशहाली ही विनायक समाधान की सफलता है....सदा आपके साथ......हार्दिक स्वागत.....विनायक समाधान @ 91654-18344....( इंदौर / उज्जैन /देवास )...जय हो....भले पधारो सा…


Earn Wealth Only by Moral Means......What is the use of earning money with hard work.....if it is to turn into a source of anxiety?.... A rich man spends his entire life in acquiring wealth, but in the absence of awareness of God, the wealth ultimately ruins him. However, if you acquire wealth while maintaining continuous remembrance of God, you will not get ruined but enjoy happiness due to it…धन तभी सार्थक हैं जब धर्म भी साथ हो.....पुर्णतः परिपूर्ण....
“तदेजति तन्नैजति तद दूरे तद्वन्तिके....
तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः”...अनीति से युद्ध करने में इस सृजन में रूचि लेना होगी.....यही है एक अंश दान का.....निज समय का....निज प्रभाव का.....निज ज्ञान का.....निज धन का.....निज पुरुषार्थ का......चमत्कार से कोई लेना देना नही....स्वयं की योग्यता स्वयं के लिए एक प्रायोगिक सत्य है....."रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव...”#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#...#vinayaksamadhan# #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#.
एक परीक्षा स्वयं के लिये, स्वयं द्वारा.....we have to give the ANSWERS…..now start please…
Q1—HOW OFTEN DOES OUR MIND GO UPSET or FAULTY ?……very frequently, frequently, occasionally, very rarely….
Q2—HOW OFTEN OUR CONNECTION GO BREAK WITH GOD ?….. very frequently, frequently, occasionally, very rarely….
Q3—HOW QUICKLY, DRAWBACK or FAULT IS RECTIFIED ?.....within 24 hours, within 3 days, within 7 days, more than 7 days…..
Q4—HOW DO WE RATE OUR PRAYER COVERAGE ?......excellent, very good, good, not satisfied…..
Q5—HOW EASILY ARE WE ABLE TO ACCESS OUR SPIRITUAL FIELD FOR ANY QUERIES or CLEARANCE….not at all accessible, difficult to access, easy, very easy…..
तो स्वयं के आदेश.....request for SERVICE.....सयंम की साधना....नियमित क्रमानुसार.....धन, समय तथा इन्द्रियों में संयमित विचारधारा.....अनीति से युद्ध करने में इस सृजन में रूचि लेना होगी.....यही है एक अंश दान का.....निज समय का....निज प्रभाव का.....निज ज्ञान का.....निज धन का.....निज पुरुषार्थ का......चमत्कार से कोई लेना देना नही....स्वयं की योग्यता स्वयं के लिए एक प्रायोगिक सत्य है....."रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव...”#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#...#vinayaksamadhan# #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#.
खरी-खरी.....कहने, सुनने और रहने के लिये....आराम से....सुनिए....म्हारो हेलो सुणो जी रामा पीर.....धर्म का तो एक ही कहना है...जो तू सच्चा बनिया, तो सच्ची दूकान लगा....नहीं तो सीधी-सच्ची बात....देवालयों से देव निकल जाए तो, उस स्थान की लय गायब हो जाती है....और लय पर टिका है....संगीत का समस्त और सम्पूर्ण साम्राज्य....स्वर-कोकिला यही कहे....और यह हरगिज नहीं कहे कि देव नहीं होते....अच्छी आत्माओं का सत्संग करने के लिये....सभी योनियों की कामना होती है....और यह सब साक्षात सदृश्य संसार में ही संभव है.....खुली आँखों में वर्तमान बसता है...और दिल हँसता नहीं, बल्कि मुस्कराता है....धड़कन में तनिक भी मिथ्या नहीं.....संसार का विरोध करके कोई इससे मुक्त नहीं हुआ......बोध से ही इससे ज्ञानीजनों ने पार पाया है.....संसार को छोड़ना नहीं, बस समझना है....परमात्मा ने पेड़-पौधे, फल-फूल, नदी, वन, पर्वत, झरने और ना जाने क्या- क्या हमारे लिए नहीं बनाया ?.....हमारे सुख के लिए, हमारे आनंद के लिए ही तो सबकी रचना की है.....पदार्थों में समस्या नहीं है, हमारे उपयोग करने में समस्या है……कभी-कभी विष की एक अल्प मात्रा भी दवा का काम करती है और दवा की अत्याधिक मात्रा भी विष बन जाती है…..विवेक से, संयम से, जगत का भोग किया जाये तो कहीं समस्या नहीं है….संसार की निंदा करने वाला अप्रत्यक्ष में ईश्वर की ही निंदा कर रहा है....वैज्ञानिक सारे संसार के अनेक तथ्यों को जान कर भी अज्ञानी बना रहता है...तत्वज्ञानी एक अर्थात स्वयं को जान कर ज्ञान को प्राप्त करने का प्रयास करता रहता है....साधना की सिद्धि कहती है कि सात्विक तत्व के प्रति आकर्षण और हानिकारक तत्वों से विकर्षण...और जब वैज्ञानिक तत्वज्ञानी बन जाता है....तब वह धर्म की अनुभूति करने लगता है....तब वह संसार को सृष्टि का नाम देता है....सिर्फ एक का उदाहरण समझ कर....इसी आधार पर श्री अल्बर्ट आइन्स्टीन ने प्रकृति को ईश्वर मान लिया....दुनिया को कौन चला रहा है ?....आस्था की आवाज है---"ईश्वर"...परन्तु 'यंत्र-तंत्र-मन्त्र' कुछ , कुछ-कुछ, बहुत-कुछ....कहते है....और 'षडयंत्र'.....'कुछ भी नहीं कहते'....अच्छी आत्मा को शुद्ध रूप से मस्तिष्क द्वारा मात्र आत्म-सम्मान हेतु 'ब्रहम-देव' माना गया है..."ॐ ब्रह्म देवाय नम:"....ॐ सिद्ध आत्माय नम: , ॐ पूण्य आत्माय नम: , ॐ दिव्य आत्माय नम: , ॐ पवित्र आत्माय नम: , ॐ दयालु आत्माय नम:....सम्पूर्ण ईश्वर....सम्पूर्ण आस्था.... ’शत-प्रतिशत’...."खरी-खरी".....यह मान कर कि प्रत्येक शरीर में आत्मा का निवास है....Just An Attachment with Body....कब तक ?...पक्का...नहीं मालुम !!! ...जय हो....हार्दिक स्वागत....जय-गुरुवर....प्रणाम...इस 'प्रण' के साथ कि 'प्रमाण' में 'प्राण' बसे...Just Because Of You...."अणु में अवशेष"......Just An idea.....To Feel Or Fill.....With Faith....Just For Prayer..... Just for Experience.... मात्र स्वयं का अनुभव...”#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#...#vinayaksamadhan# #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#...
मात्र आस्था एवम् प्रार्थना के आधार पर...सामाजिक त्रिकोण में धार्मिक आधार का अपना महत्त्व है....धर्म , विज्ञानं एवम् साहित्य....ये तीनो पहलू हमारे भीतर मौजूद है...हम प्रतिदिन इन पहलूओ पर कार्य करते है....घर, मंदिर और कार्यालय या दूकान अर्थात राज्य-पक्ष....और सब जगह हम स्वयं....ठीक एक नेतृत्व...एक राजा के समान....सेवा तो निश्चिन्त परन्तु कर्तव्य सुनिश्चिन्त...यत्र, तत्र, सर्वत्र.....बस यही अहसास चमत्कार का रूप ले लेता है, जब देर रात्रि-भोजन का त्याग करने की स्वत: इच्छा जाग्रत हो जाये....पानी में ‘मछली प्यासी’ वाली कहावत सबने सुनी.....परन्तु जल का विसर्जन तथा ग्रहण स्वत: होता है.....चार लाईनों की बात नहीं...उपन्यास के चार पन्ने समझ में आ जाये तो समझिये कि उपन्यास खुद ले लिखी है....और हर किताब में शायद इसीलिए प्रारम्भ में दो शब्दों कि प्रस्तावना होती है....प्रार्थना के रूप में....समस्या रूपी तालों में, शब्द चाबियों के गुच्छे का काम करते है.....अर्थात प्रार्थना स्व (SELF) के लिये नहीं, पर (OTHERS) के लिये होती है.....याचना हरगिज नहीं.....बल्कि कृतज्ञता युक्त ज्ञापन....प्रेय और श्रेय से श्रेष्ठतम मोक्ष होता है.....और यह श्रेष्ठ सत्य सिद्ध करते है....महावीर-कैवल्य तथा बुद्ध-निर्वाण.....बस यही हो सकती है--“श्रमण-संस्कृति”......जहाँ समस्त रूप सम्माननीय.....मजदुर, कारीगर, कलाकार....और सबका एक ही रूप.....कर्मयोगी.......चमत्कार से कोई लेना देना नही....स्वयं की योग्यता स्वयं के लिए एक प्रायोगिक सत्य है....."रघुपति राघव" गाने का आनन्द....मात्र स्वयं का अनुभव...”#विनायक-समाधान#” @ #91654-18344#...#vinayaksamadhan# #INDORE#/#UJJAIN#/#DEWAS#..
कोई एक समस्या , अनेक समस्याओं की यजमान ना बन जाये.....कही आपातकाल आमंत्रित ना हो जाये....और गेहूँ के साथ-साथ धुन भी पीस जाता है...और नियम यह है कि---“सर्वे भवन्तु सुखिनः”.....समस्त प्रार्थनाओं का सार.....संसार का भव-सागर.....मात्र यही प्रार्थना तो भक्त को भगवान से बाँधे रखती है....तब सन्त की धुनी ज्यादा जाग्रत हो सकती है....कविता के पठन से पहले कविता का गठन होता है.....और शारीरिक गठन जन्म के बाद ही संभव है, पंच-तत्व पर निर्भर रह कर.....और पंच-तत्वों की अशुद्धि के कारण मन में गठान नहीं होना चाहिये.....पठान के मन में गठान....तौबा-तौबा.....और जवान को मंजूर नहीं हरगिज कि.....जवानी पर जरा (वृद्धावस्था) का प्रहार.....तब आहार, विहार, सदाचार ही रक्षक....जवान की कोई उम्र नहीं....बस चाल से ही स्फूर्ति घोषित हो जाती है....स्वत:....और स्फूर्ति ना हो तो शतरंज का वजीर तथा मन का ज़मीर, आदमी को अमीर नहीं बनने देता है....अंत तक....दोनों ख़तम तो खेल ख़तम....और सन्त कभी भी अन्त की बात ना करे....और जिन्दा वजीर और जाग्रत ज़मीर से आदमी खिलाड़ी बन जाता है....तब खेल, खिलाड़ी का.....भोजन करते समय यह अहसास होने लगे कि पेट भर रहा है....और भोजन से तीन घंटे पहले यह अहसास होता रहे कि भूख लग रही है....एक आसन का कमाल.....चमत्कार का सरल नियम...मात्र तीन पहलु सम्पूर्ण वायुमंडल की सक्रियता को निर्मित करने के लिये....जिनकी सत्यता हर प्राणी तथा हर धर्म को स्वीकार है....शत-प्रतिशत....सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण.....पूर्णरूपेण व्यक्तिगत पहलु, किन्तु गुरु के अधिन.......सारा खेल सरपरस्ती में, सक्रियता का....Just Because Of You….अनादि से अनन्त...सहज स्व-सत्संग....सुनिश्चिंत आनन्द...निश्चिन्त प्रारम्भ...विनायक शुभारम्भ....ॐ गं गणपतये नम:....”विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)...

Saturday 24 December 2016

Vinayak Samadhan: दस-वर्षीय योजना....ग्यारहवे वर्ष मे अनीति का धन मू...

Vinayak Samadhan: दस-वर्षीय योजना....ग्यारहवे वर्ष मे अनीति का धन मू...: दस-वर्षीय योजना....ग्यारहवे वर्ष मे अनीति का धन मूल सहित चला जाता है...कहाँ जाता है ?....सबको मालूम है....शास्त्र कहते है कोई ताकत रोक नही...

Vinayak Samadhan: दस-वर्षीय योजना....ग्यारहवे वर्ष मे अनीति का धन मू...

Vinayak Samadhan: दस-वर्षीय योजना....ग्यारहवे वर्ष मे अनीति का धन मू...: दस-वर्षीय योजना....ग्यारहवे वर्ष मे अनीति का धन मूल सहित चला जाता है...कहाँ जाता है ?....सबको मालूम है....शास्त्र कहते है कोई ताकत रोक नही...
सारी चर्चा एक सांस में सम्भव नहीं....एक सांस में में तो सम्पूर्ण जीवन ही सम्भव है...बात सही इसलिये साबित होती है क्योकि "हरि कथा अनंता"....जबकि सांस गिनती की.....और सांसो को पहाड़े के रूप में परिभाषित करने में समय कम पड़ते जाता है...जिसकी धडकन जितनी ज्यादा, जीवन उतना ही कम....और दिल की धड़कन को हमारी आसक्ति से कोई लेना-देना नहीं, इसके उपरांन्त भी लगातार उतार-चढाव, ठीक शेयर-मार्केट के सूचकांक की तरह....और इंसान की आसक्ति किसी भी कार्य की सफलता में हो सकती है....और सफलता का मूलाधार है--"पंच-समवाय"...अर्थात....काल, स्वभाव, कर्म, पुरुषार्थ, नियति....किसी एक की कमि से सफलता में बाधा या अवरोध उत्पन्न होता है....मनुष्य जीवन काल-चक्र की धूरी पर घूमता रहता है...और काल अपना कार्य सतत जारी रखता है....भुत, भविष्य, वर्तमान सब इसमें समाहित....स्वभाव स्वतः भेद में विभक्त है.....वस्तु स्वभाव, देश स्वभाव, जाति स्वभाव, काल स्वभाव....कर्म हेतु गीता श्री का एक ही कथन...कर्मयोग की कथा...फल की चिंता अनुचित है...मजबूत पुरुषार्थ कमजोर भाग्य को पछाड़ देता है....शायद इसीलिये कार्य सिद्धि का मूलाधार पुरुषार्थ है...और जो होना है, वह हो कर रहेगा अर्थात "हरि करे, सो खरी"...अर्थात... "नियति" वह तत्व है जिसके अधीन सबकुछ है.....काल, स्वभाव, कर्म और पुरुषार्थ....यदि नियति अनुकूल नहीं तो जड़ को कीड़ा लग जाता है...तब जड़े खोखली हो सकती है....विद्यार्थी का जीवन...प्रतिदिन का अभ्यास......
अनेक समस्याये....पग-पग पर...पल-पल में....और आदमी अपनी संतान को हमेशा अव्वल देखना चाहता है....ताजा-तरीन.... बच्चों को ट्रेन्ड करना चाहते है तो एक उपाय है जो आर-पार का उपाय कहा जा सकता है..और यह उपाय अमूमन सभी करते है और कर सकते है.....सब्जी खरीदने भेज दीजिये....पुर्णतः प्रायोगिक उपाय....पचास रुपैये की पाचँ किलो.....पाँच प्रकार की सब्जी....और सब जानते है कि एक किलो...वह भी दस रुपैये मे....जरा मुश्किल का काम है....तब दस रुपैये मे अनेक चीजे आती है....और हर सब्जी वाला पाँच सब्जियाँ ले कर ही बैठता है....बगैर किसी एजेन्सी के....धंधा नॉकरी से आसान होता है...एक सब्जीवाला आसानी से सबको बताता है....धनिया, मिर्च, आलू, टमाटर, निम्बू....शुद्ध शाकाहारी....सिर्फ पचास रुपैये मे एक मामूली सा सब्जी वाला सारी दुनिया को मार्केटिंग सिखाता है....प्रतिदिन....और हम यह मामूली शुल्क अदा करके उसका हाथ मजबूत करते है....तब यह अभियान ना निःशुल्क, ना कोई दान-दक्षिणा की दरकार....जय हो...गौर फरमाईयेगा....सादर नमन....“Objects in the mirror are closer than they appear”…..सलाह या चेतावनी....हर वाहन के दर्पण पर लिखा रहता है....सामान्य बात.....और उससे भी सामान्य बात......प्रत्येक शास्त्र में लिखा रहता है...”Problems are smaller then they appear”….निष्कर्ष या परिणाम....so, we have to face them….FACE to FACE…..और जब हम समस्याओं का सामना करते है तब....हम स्वाभाविक रूप से किसी भी पहलु पर ज्यादा चिंतन करते है...With help of our own ‘THINKING MACHINE’……स्वयं से प्रश्न ???....असमंजस या उहापोह....और शास्त्र कहते है कि संकट में स्वाध्याय वास्तविक प्रार्थना सिद्ध होता है....यही है शास्त्रों का स्पष्टीकरण......”Nobody is useless…..we are just used less…Either use ourselves Or find someone who knows to use US”…..और स्वयं का श्रेष्ठ उपयोग है स्वाध्याय....Total use of machine…..सात्विक-कर्म....स्वयं के वायुमंडल में सात्विकता का समावेश...विनायक-प्रारम्भ....स्वयं को विनायक-आदेश.....ताकि स्वयं का होता रहे ‘विनायक-उपयोग’....गौर फरमाईयेगा....मन से मन की बात...We have to train our ‘MIND’, to mind our ‘TRAIN’…..ताकि गाड़ी चलती रहे सुगम....आखिर चलती का नाम गाडी....और जीवन चलने का नाम....जैसे राम से बड़ा राम का नाम....जैसे राम की चिड़िया, राम का खेत....न जीत का लालच, न हार का डर....सहज-आसान विषय....जिसे समझने के लिए हम भ्रमण करते है.....यत्र-तत्र-सर्वत्र...आमने-सामने...विषय समझ में आया तो ठीक वर्ना ट्यूटर बदलने की सहज सुविधा...और यह भी हो सकता कि स्वाध्याय या स्वयं अध्ययन करे....(SELF-STUDY)…..SELF-TUITION…..फुर्सत के क्षणों में शब्दों का आदान-प्रदान अर्थात चर्चा का योग, समय अनुसार.....उच्च, समकक्ष या मध्यम....शुद्ध रूप से....स्वयं का निर्णय हो सकता है...आमने-सामने...face to face...शब्दों का सम्मान...पूर्ण स्वतंत्रता के साथ....शब्दों को व्यक्त करने का अधिकार अवसर मिलने पर ही सार्थक होता है....समस्त अवसर, प्रश्नों पर आधारित हो सकते है और प्रश्न करने का अवसर होना चाहिए......सादर नमन्...जय हो..."विनायक-चर्चा" हेतु हार्दिक स्वागत....विनायक समाधान @ 91654-18344....(INDORE/UJJAIN/DEWAS)
.the power of LOVE...
whenever love glows, it is bliss...
a state of perfect happiness.....
इसी प्रेम से गणपति और कार्तिकेय की सिद्धियां प्रसारित होती है...सबसे बड़ा सत्य...आदमी अपनी कुशलता से कितना भी आगे चला जाये, फिर भी एक समय मे खुद को ऐसे स्थान पर खड़ा पाता है, जहाँ से उसे आगे का रास्ता मालुम नही होता है...बस यह मानना होगा कि यहीं से ईश्वरीय सत्ता शुरू होती है...अवसाद और विषाद का सामना सभी करते है...स्वयं के प्रति संशय हो तो जीवन मे पलायन का अध्याय शुरू होता है...तब स्वयं की सत्ता से ज्यादा शक्तिशाली ईश्वर की सत्ता सिद्ध होती है...जो अवसाद की अपेक्षा आनंद को उत्पन्न करती है...हर उचित मार्ग अनुसरण करने के लिये....किन्तु हर मार्ग सात्विकता से परिपूर्ण हो...अनेक युग व्यतीत हो जाने के बाद भी हम आज भी अपने आराध्य देवों के प्रति भक्ति भाव प्रकट करते है...
पार्वती-पति...हर-हर शम्भू....पाहि-पाहि दातार हरे...शिव-भक्ति सर्वाधिक सरल...शिव-आराधना सर्वाधिक आसान....शिव-मार्ग सर्वाधिक सहज...सभी के लिये....मजदुर, कारीगर, कलाकार....सभी नत-मस्तक....यंत्र, तंत्र, मन्त्र....शास्त्र, शस्त्र....धर्म , विज्ञानं एवम् साहित्य....ये तीनो पहलू हमारे भीतर मौजूद है...हम प्रतिदिन इन पहलूओ पर कार्य करते है...

मसालों का राजा...जो अनेक मसलों को हल करे...King of spice....काली मिर्च....अनेक व्याधियों का एक उपाय...कोई भी व्याधि कॉकरोच के समान...जिसे पाला नही जाता है...अवस्था अनुसार व्यवस्था अथवा व्यवस्था अनुसार अवस्था.....ज्योतिष अथवा पुरुषार्थ....उपाय सात्विक हो तो हर स्थिति मे लाभ-प्रद.....तब सार्वजानिक हो या पर्सनली....मन्त्र का सबसे बड़ा फायदा यह कि मन ही मन मे अर्थात उच्चारण मे निःशब्द और सशब्द भी....तब यह काली मिर्च वाला उपाय सचमुच निःशब्द....और तब उपाय अचूक राम-बाण के समान...बच्चों को एक ही गलती करने पर हम बारम्बार टोकते है, चूँकि हम चाहते है कि वह बार-बार गलती हरगिज ना करे....और यह व्याधि उत्पन्न होती है लार ग्रंथि के स्त्राव से....और यह किसी भी उम्र में संभव है...और इसका उपाय कभी भी संभव है....सुपारी, तंबाकू या गुटखा खाने की बात नही....जैसे ही काली मिर्च जीभ के संपर्क मे आती है, कुछ ही समय मे ऊपर का छिलका गलने लगता है और तीखा स्वाद लार मे घुलने लगता है...और लार का स्त्राव संतुलित हो जाता है...तब व्याधि का उपाय आवश्यक...कोई भी व्याधि संपूर्ण वातावरण को बोझिल बना देती है...माना कि जहाज समुद्र के किनारे ज्यादा सुरक्षित है किंतु उसका उपयोग इस पार से उस पार जाने के लिये ही होता है...काली-मिर्च के सेवन से सेरोटोनिन हार्मोन बनता है जो डिप्रेशन को रोकता है...काली-मिर्च मे फाइटोन्यूट्रीएन्ट्स जो ज्यादा पसीना और मूत्र की मात्रा उत्पन्न करते है अर्थात शरीर की गंदगी स्वतः बाहर हो जाती है....काली-मिर्च मे विशेष तरह के रेज़ीन से कम मात्रा मे भी ज्यादा असर दिखाती है...इसी वजह से रक्तचाप को भी शीघ्रता से नियंत्रित होता है...अल्प मात्रा मे सेवन मात्र से अनावश्यक सुस्ती और तनाव से बचा जा सकता है....अनेक समस्याये....पग-पग पर...पल-पल में....और आदमी अपनी संतान को हमेशा अव्वल देखना चाहता है....ताजा-तरीन.... बच्चों को चुस्त देखना चाहते है तो यह उपाय है जो आर-पार का उपाय कहा जा सकता है..और यह उपाय अमूमन सभी करते है और कर सकते है....”श्रद्धावान लभते ज्ञानम”.....आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....विनायक समाधान @ 91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS...



सील-सिक्के-मोहर.....हर एक के मन को हरने वाले....मनोहर....कोई भी बनवा सकता है....आखिरकार साधारण आदमी द्वारा ही तो बनाये जाते है किन्तु इन पर हस्ताक्षर किसी अधिकृत अर्थात असाधारण द्वारा ही सम्भव है....और यह बात बेहद साधारण है कि हर परिवार मे कोई एक सदस्य परिवार की परिपाटी को छोड़ का कुछ नया करना चाहता है...तब यह सरल सत्य है कि व्यक्ति-विशेष की योग्यता का प्रभाव पीढ़ियों तक कायम रहता है....और यह निःसंदेह सच है कि हर व्यक्ति का अपना कुछ निजी या व्यक्तिगत होता है...तब अनुभव सर्वोत्तम-संपत्ति सिद्ध होता है...तब प्रश्न हमेशा बना रहता है कि किसकी सक्रियता, कब तक कायम रहती है ?.....सोने की चमक बनी रहेगी किन्तु रख-रखाव के अभाव मे लोहा मजबूत होते हुये भी जंग लगने से कमजोर होते रहता है....चाहे अफगानी लोहे की तलवार हो...चमक बरकरार रहना चाहिये...जंग मे जंगी मुकाबला नंगी तलवार से ही सम्भव है....बख़्तरबंद आदमी के हाथो मे...कौन कब तक महफूज़ ???...माना कि जहाज समुद्र के किनारे ज्यादा सुरक्षित है किंतु उसका उपयोग इस पार से उस पार जाने के लिये ही होता....यह ध्यान मे रखते हुये...कोई भी व्याधि कॉकरोच के समान...जिसे पाला नही जाता है...अवस्था अनुसार व्यवस्था अथवा व्यवस्था अनुसार अवस्था.....ज्योतिष अथवा पुरुषार्थ....उपाय सात्विक हो तो हर स्थिति मे लाभ-प्रद.....तब सार्वजनिक हो या पर्सनली....मन्त्र का सबसे बड़ा फायदा यह कि मन ही मन मे अर्थात उच्चारण मे निःशब्द और सशब्द भी....अपांश...तब ध्यान तथा अध्ययन के समस्त उपाय सचमुच निःशब्द....जल से पतला ज्ञान है....अचूक राम-बाण के समान...बच्चों को एक ही गलती करने पर हम बारम्बार टोकते है, चूँकि हम चाहते है कि वह बार-बार गलती हरगिज ना करे....और यह व्याधि उत्पन्न होती है लार ग्रंथि के स्त्राव से....और यह किसी भी उम्र में संभव है...और इसका उपाय कभी भी संभव है....सुपारी, तंबाकू या गुटखा खाने की बात नही....शरीर मे जल की मात्रा का अनुपात ठीक पृथ्वी पर जल की मात्रा समान....और ज्वार-भाटे का प्रभाव संपूर्ण जल पर एक समान...यही है प्रकृति की समरसता....और इसके उपरान्त भी उथल-पुथल समय-समय पर जारी रहती है....और यह परम सत्य है कि हर प्राणी शांति चाहता है, पत्थर भी टकराते है तो चिंगारी निकलने लगती है..!..और मन की शांति के भ्रम मे अज्ञान का सेवन शुरू हो सकता है...तीनो रास्तो के द्वारा....आहार, विहार, सदाचार के सरल मार्ग...और शरीर मे अशांति की व्याधि व्याप्त हो जाती है....सरल मार्ग को क्लिष्ट करने का अपराध सचमुच संगीन..?...सरल रूप से रंगीन तो प्रभु-प्रेम ही हो सकता है...इस मार्ग का कोई अंत नही, इसकी अति और इति....ना भूतो, ना भविष्यति...बाकि तो अति सर्वत्र वर्जयते...जब चाहे आजमाये...निगाहें कमजोर या सशक्त उम्र के अनुसार परन्तु निगाहों मे शुद्धता ताउम्र....और चरित्र की शुद्धता मन की आँखों मे रचा-बसा होता है....एनक का आविष्कार आदमी ने किया किन्तु आँखों का आविष्कार प्रकृति करती है...रस्सी की गाँठ किसी भी चाबी से नही खुलती सिर्फ हाथ खुले होना चाहिये.....आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....बातों-बातों में....खेल-खेल मे....चलते-फिरते....सादर नमन्...जय हो..."विनायक-चर्चा" हेतु हार्दिक स्वागत....विनायक समाधान @ 91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS...
दस-वर्षीय योजना....ग्यारहवे वर्ष मे अनीति का धन मूल सहित चला जाता है...कहाँ जाता है ?....सबको मालूम है....शास्त्र कहते है कोई ताकत रोक नही सकती है....बारहवे या तेहरवे की बात नही...दस साल नोट गिनने मे कितनी ऊर्जा खर्च हो सकती है ?....यह बात गौरतलब है कि नोट गिनने का काम बड़े ही ध्यान का हो सकता है...गिनती-पहाड़े खुदबख़ुद जेहन मे आने लगते है....आदमी सब काम दरकिनार कर के नोट गिनता है...रात मे दूकान बन्द करने के बाद भी विचारमग्न या उधेड़बुन जारी रहती है...यदि खर्च करने के बाद पैसा बच जाये तो समृद्धि तथा संतुष्टि का आभास होता है....तब यह चेतावनी काम की हो सकती है चादर के अनुसार पैर फैलाना चाहिये....तब इस पहलु मे आध्यात्म का पूर्ण समर्थन....विचार, व्यवहार मे शामिल हो जाये तो इसे प्रकृति या nature या स्वभाव मान लिया जाता है....कुल मिला कर आदमी की फितरत दस रंग बदले, पल भर मे....और दस को आधा कर दिया जाय तो सीधे-सीधे...आधी हकीकत--आधा फ़साना....पंच-वर्षीय योजना...क्या नही हो सकता है इन पांच साल मे...सरकार का राज़...मास्टर की डिग्री....डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, वैज्ञानिक....सब कुछ बनने का अवसर....हम दो से लेकर हमारे दो तक यात्रा हो सकती है...और यह पांच साल सिर्फ मेहनत के बल-बुते पर पूरे जीवन को आम से खास बना सकते है...तब यहाँ भी ध्यान का बड़ा महत्त्व...एकाग्रचित्त हो कर ऊर्जा को अर्जित करने की चेष्टा....आदमी ऊर्जा खर्च करके पैसा एकत्रित करता है, ध्यान से...वही आदमी ऊर्जा अर्जित करके ज्ञान एकत्रित करता है, ध्यान से...तब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि ध्यान का ऊर्जा से क्या सम्बन्ध हो सकता है ?...ऐसा क्या है कि अमरोहा मे हज़रात शाह विलायत की दरगाह मे बिच्छू भी अपनी फितरत बदल लेते है ?...वॉयलेंट क्यों सायलेंट हो जाता है ?...ध्यान से ऊर्जा क्यों और कैसे उत्पन्न होती है ?....कुछ प्रश्नों के उत्तर किताबों में ना हो तो ध्यान से उत्तर उत्पन्न किये जा सकते है...इस पंच-वर्षीय यात्रा के साथ अगली पंच-वर्षीय यात्रा ईमानदारी से आध्यात्म के लिये समर्पित हो जाये तो जिंदगी जन्नत....फितरत रूहानी हो तो जीने का मज़ा ही कुछ और होता है...!...यारी है ईमान मेरा, यार मेरी जिंदगी....राम की चिड़िया, राम का खेत....निगाहें-करम....निगाहें कमजोर या सशक्त उम्र के अनुसार परन्तु निगाहों मे शुद्धता ताउम्र....और चरित्र की शुद्धता मन की आँखों मे रचा-बसा होता है....एनक का आविष्कार आदमी ने किया किन्तु आँखों का आविष्कार प्रकृति करती है...रस्सी की गाँठ किसी भी चाबी से नही खुलती सिर्फ हाथ खुले होना चाहिये.....आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....बातों-बातों में....खेल-खेल मे....चलते-फिरते....सादर नमन्...जय हो..."विनायक-चर्चा" हेतु हार्दिक स्वागत....विनायक समाधान @ 91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS...



#घोषणा-पत्र#.....एक बार यह विचार आता है कि ऊपर वाला जब भी देता #छप्पर फाड़ कर#......विषय कोई भी हो परन्तु अच्छे प्रतिशत उत्तम छात्र की प्रथम पहचान होती है....बस, यही मिल्कियत जो मालिक बनने के लिए पर्याप्त....और जो प्राप्त है वही पर्याप्त है....% या #प्रतिभा तो बस #अध्ययन# मात्र है.....अर्थात ज्ञान जो जल से पतला माना गया है...ठीक एक पक्षी के समान जो ध्यान तथा अध्ययन के पंखो के सक्रियता से जीवित है.....#प्रतिमा के सामने #प्रार्थना करने से #प्रतिभा सम्पन्न होती है.....कहाँ जायेंगे विचार ?...बुलाएँगे तो दस बार आयेंगें....और एक नहीं चार....बस हो साथ में सत्संग का अचार.....चखने पर मिलते है समाचार.....”श्रद्धावान लभते ज्ञानम”..... लाभ अर्थात ज्ञान अर्थात श्रवण, किर्तन, चिन्तन, मनन अर्थात निर्णय लेने की क्षमता..



बचपन के दिन...स्कुल जाते वक्त माँ अक्सर कहा करती थी...अपने रास्ते आना और अपने रास्ते जाना....और रास्ते मे चार आने भी मिल जाये तो छूना नही....यदि चार मंदिर आ जाये तो नमन जरूर करना....तब यह विचार किसी भी बाल-मन मे अवश्य आ सकता है...रास्ते सबके, चार आने का मालिक लापता और मंदिर सार्वजनिक...सबसे आसान तो चार आने को अपना बनाना...भला रास्ता अपना कैसे कहला सकता है ?....किन्तु वक्त-वक्त की बात है...मंजिल को अपना बनाना हो तो रास्तों को अपनाना पड़ता है...पहले या बाद का प्रश्न नही... साथ-साथ का कोई विकल्प नही....संगति या सत्संग...मुख्य अभिप्राय तो संपर्क अर्थात समीपता या नज़दीकी ही होता है...हम किस पहलु के संपर्क मे है ?....यह जीवन का मुख्य प्रश्न है जो जीवन के बुनियादी उसूल का निर्माण करता है...यथा बीजं तथा निष्पत्ति....गाड़ी मे स्पार्क प्लग ढीला हो जाता है तो गाड़ी स्टार्ट नही होती है और स्टेशन पर खड़ी गाड़ी किसी का इंतज़ार नही करती...टेसन से गाड़ी छूटने का टेंशन हर एक को....सही वक्त पर सही पहलुओं पर संपर्क हो जाये तो स्मारक बनना तय है...भविष्यवाणी तो योग बनने के बाद ही घोषित होती है...योग अनेक और भविष्यवक्ता भी अनेक...और योग बनना-बनाना...कर्म तथा पुरुषार्थ के इर्द-गिर्द....यह बात अलग है कि भक्ति-भाव से यह प्रार्थना होती है कि हर योग-संयोग सफल और सुफल हो...योग-संयोग कुछ और नही बल्कि शुभ समय से संपर्क मात्र है...सबसे शुभ योग ईश्वर से नजदीकी मानी जा सकती है,और इसका एक ही उपाय हो सकता है....सर्वदा प्रसन्नचित्त रहना...और यह हो जाये तो दुनिया मुट्ठी मे.... नन्हे-मुन्ने तेरी मुट्ठी मे क्या है ?....तो बंधी मुट्ठी लाख की....मुनासिब उत्तर....वास्तविक प्रश्न तो यह है कि एक पैर पर जॉगिंग कितनी देर संभव है ?....मालवांचल मे बच्चे एक पैर पर उछल कर आज भी पव्वा खेलते है....इंटरनेट पर दुनिया को मुट्ठी मे कैद करने के चक्कर मे यह खेल विलुप्त ना हो जाये आखिर हर उम्र के लिये लज़ीज़ फायदेमंद...खेल आसान है किंतु कितने लोग कर सकते है ?...भारी वजन के रहते यह भजन कठिन हो सकता है...चरित्र की शुद्धता मन की आँखों मे रचा-बसा होता है....एनक का आविष्कार आदमी ने किया किन्तु आँखों का आविष्कार प्रकृति करती है...रस्सी की गाँठ किसी भी चाबी से नही खुलती सिर्फ हाथ खुले होना चाहिये.....आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....बातों-बातों में....खेल-खेल मे....चलते-फिरते....सादर नमन्...जय हो..."विनायक-चर्चा" हेतु हार्दिक स्वागत....विनायक समाधान @ 91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS...




जय हो...सादर नमन...हाल-चाल पुछने की प्रथा सब दूर...आखिर ज्वार-भाटा प्राणी मात्र के मन की प्रकृति....जैसे जल के समान...किन्तु जल से पतला ज्ञान और ज्ञान प्राप्त करने का सबसे सहज तथा सुलभ मार्ग है...हरि-कीर्तन अर्थात भजन...जो दो प्रकार से होता है...निष्ठापूर्ण और निष्ठारहित...यह ध्यान करते हुए कि निष्ठापूर्ण भजन, निष्ठारहित सतत भजन का फल है...यह मन कभी भजन करना चाहता है तो कभी भोग की प्राप्ति....कभी घर से भागना चाहता है तो कभी घर मे ही रमणीय हो जाता है...कभी वैराग्य तो कभी आसक्ति....यही है ज्वार-भाटा... कभी भजन मे सुख तो कभी चित्त ऊबने लगता है...कभी ईश्वर मे श्रद्धा और विश्वास बढ़ते है, तो कभी भगवान की उपेक्षा होकर भोगों की अपेक्षा होती रहती है....और इन सब उतार-चढ़ाव का निदान है...सत्संग....सुविचार, भजन, कीर्तन....सत्संग के अनेक रूप...इसकी स्वाभाविक महिमा समस्त उधेड़-बुन को मिटा सकती है...रूचि, सुख, रस, प्रीति का विस्तार हर कोई करना चाहता है...उत्साह-अनुत्साह, आशा-निराशा, सिद्धि-असिद्धि, अनुकूल-विपरीत परिणाम का सामना करने की शक्ति हर एक की आवश्यकता हो सकती है...तब सबसे अनुकूल तथा श्रेष्ठ मार्ग भक्तिपथ ही सिद्ध होता है...और इस मार्ग मे ये पाँच अवरोध बड़े काँटो के रूप मे प्रस्तुत हो सकते है...
"जातिविद्यामहत्वम च रूपं यौवनमेव च....
यत्नेन परिहर्तव्य: पंच्यैते भक्ति कण्टका:"...
और वास्तव मे मानव इन्हें अवरोध न मान कर अभिमान के साधन के रूप मे देखने का भ्रम उत्पन्न करता है....यथा जाति का अभिमान, विद्या का घमण्ड, धन-ऐश्वर्य-पद का गौरव, शरीर का सौन्दर्य और उफनती जवानी....नित्य रूपेण सत्संग ना हो तो मानव की जीभ मेंढक के समान वाचाल...चपल....चंचल...जो स्पष्टवादी बनने के बहाने किसी का भी दिल दुखाने की चेष्टा कर सकती है...मन मे भेद रख कर किसी की खुशामद कर सकती है...यह याद रखते हुये कि किसी की खिदमत का गुण केवल मानव मात्र का गुण होता है....उतार-चढ़ाव मानव का नही बल्कि जगत का गुण है...चन्द्रमा की ज्योति और घनघोर आकाश दोनो ही क्षणिक होते है....नित्य बहुपयोगी तो सूर्य का प्रकाश होता है....तमसो मा ज्योतिर्गमय...एनक का आविष्कार आदमी ने किया किन्तु आँखों का आविष्कार प्रकृति करती है...रस्सी की गाँठ किसी भी चाबी से नही खुलती सिर्फ हाथ खुले होना चाहिये.....आनन्द के लिये हम सम्पुर्ण सर्च इंजिन को खंगाल सकते है....तब यह आध्यात्मिक विषय बन जाता है...you may search into Google....just say "vinayak samadhan".....बातों-बातों में....खेल-खेल मे....चलते-फिरते....सादर नमन्...जय हो..."विनायक-चर्चा" हेतु हार्दिक स्वागत....विनायक समाधान @ 91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS...

*मैं आप लोगो के साथ हूँ ये मेरा भाग्य है।*
*पर आप सभी लोग मेरे साथ है यह मेरा सौभाग्य है..*
"उत्सव आमार जाति, आनंद आमार गोत्र”...
हर हर महादेव.....ॐ नम: शिवाय !!
गंगातरंग रमणीय जटाकलापं
गौरीनिरंतर विभूषित वामभागम।
नारायण प्रियमनगं मदापहारं
वाराणसीपुरतपतिं भज विश्वनाथम।।
नमः सर्वहितार्थाय जगदाधार हेतवे।
साष्टांङ्गोऽयं प्रणामस्ते प्रयत्नेन मया कृतः।।
पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः।
त्राहि मां पार्वतीनाथ सर्वपापहरो भव।।
ॐ नम: शिवाय !!....
रूचि, सुख, रस, प्रीति का विस्तार हर कोई करना चाहता है...उत्साह-अनुत्साह, आशा-निराशा, सिद्धि-असिद्धि, अनुकूल-विपरीत परिणाम का सामना करने की शक्ति हर एक की आवश्यकता हो सकती है...तब सबसे अनुकूल तथा श्रेष्ठ मार्ग भक्तिपथ ही सिद्ध होता है...और इस मार्ग मे ये पाँच अवरोध बड़े काँटो के रूप मे प्रस्तुत हो सकते है...
"जातिविद्यामहत्वम च रूपं यौवनमेव च....
यत्नेन परिहर्तव्य: पंच्यैते भक्ति कण्टका:"...
.यथा जाति का अभिमान, विद्या का घमण्ड, धन-ऐश्वर्य-पद का गौरव, शरीर का सौन्दर्य और उफनती जवानी...
33 कोटि पूण्य-आत्माओं का जन्म.....महामृत्युंजयस्तोत्रम् का स्वत: उद्गम.....स्वमेव उद्गार.....ॐ से लेकर स्वस्तिक चिन्ह तक......शुद्धता की कसौटी मात्र प्रतिशत (%) में.....बिंदु रूपी चौराहे से लेकर रेखाओं रूपी रास्तों तक.....सम्पूर्ण धर्म का आव्हान....सबसे बड़ा सत्य....गुरु साक्षात् परमब्रह्म.....तस्मै श्री गुरुवै नम:....परमब्रह्म की सत्यता को शिष्य ससम्मान स्वीकार करता है...सत्यमेव जयते…सत्यम, शिवम् , सुन्दरम....मुख्य-धारा अर्थात सनातन धारा...हर घर मे परिवार...और परिवार मे प्रत्येक सदस्य के लिये...पूजा-स्थल...पूजा-साधना के लिये शिव-परिवार....सर्वोत्तम, आदर्श परिवार...परिवार मे गुरु सर्वोपरि.....विशिष्ट-फल की प्राप्ति के लिये सुगम आराधना...गुरु-स्वरूप स्वयं शिव....शक्ति-स्वरूप माता....
the power of LOVE...
whenever love glows, it is bliss...
a state of perfect happiness.....
इसी प्रेम से गणपति और कार्तिकेय की सिद्धियां प्रसारित होती है...सबसे बड़ा सत्य...आदमी अपनी कुशलता से कितना भी आगे चला जाये, फिर भी एक समय मे खुद को ऐसे स्थान पर खड़ा पाता है, जहाँ से उसे आगे का रास्ता मालुम नही होता है...बस यह मानना होगा कि यहीं से ईश्वरीय सत्ता शुरू होती है....बातों-बातों में....खेल-खेल मे....चलते-फिरते....सादर नमन्...जय हो..."विनायक-चर्चा" हेतु हार्दिक स्वागत....विनायक समाधान @ 91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS...


पक्का और खास, आपके लिये...अंतर्देशीय होते हुये भी #अंतर्राष्ट्रीय..पकवान वह जो महकता रहे और महकाता रहे....तलने, उबलने, सिकने वाली बात नही...पकवान वह जो सदा जवान बना रहे....ताजा-बासी वाली बात नही...मार्किट मे बहुत कुछ रेडी-मेड...मित्रों और मेहमान को प्रस्तुत करना बेहद आसान किन्तु हो सकता है दोनो एक ही दूकान से खरीदते हो तब नया क्या ?....तब नया यह कि हर एक वस्तु के लिये अनेक दुकाने....तब ज़मीर कहता है जो तू सच्चा बनिया तो साँची हाट लगा...तब सोशल-मीडिया के माध्यम से सभी मित्रों के सम्मुख प्रस्तुत है..."विनायक-पकवान"...प्रतिदिन की पोस्ट...विनायक-पोस्ट जैसे वाशिंगटन-पोस्ट....यक़ीन माने समय का अच्छा-खासा निवेश हो सकता है....और यह निवेश जिंदगी की गाड़ी मे दुरुस्त संचालन के लिये तेल-पानी का काम करता है...चाय-पानी वाली बात नही...बात पते की तब हो, जब पता मिल जाय....और पता ढूंढने के लिये गलियों मे गाड़ी की गति निर्धारित सीमा के बाहर पूर्ण रूपेण वर्जित....तेज गति से वाहन चलाने से चालान कट जाता है....लेकिन रेस के मैदान मे तेज गति का इस्तेमाल पुर्णतः वाँछित है, यह ना हो तो धीमी गति के समाचार कम से कम सुने जाते है...और हर शॉट का एक्शन-रिप्ले कोई भी, कभी भी देख सकता है बेशक....बेझिझक....बेशुमार....दर्पण झूठ ना बोले....हजार झूठ को पल मे ताड़े....असंख्य गुण को पल मे सँवारे...आमने-सामने....मेकअप का सामान भी सेकण्डरी आयटम साबित हो जाय...और यह बात कांच के समान साफ़....दर्पण झूठ न बोले...सेकण्डरी से पहले मेट्रिक होता है...मुन्ना बिना मेट्रिक पास के भाई नही हो सकता है....और मेट्रिक फ़ैल का मुनीम मज़े मे....आखिर मुनीम का मज़मा कौन देखे ?....बैल यदि बूढ़े हो जाय तो किसान की जवानी भी थक जाती है...और बैलों की ताकत को कायम रखने के लिये पौष्टिक खुराक का इंतज़ाम किया जाता है....भले ही किसान रूखी-सुखी खाता रहे...और यह संतुष्टि की बात कि रूखी-सुखी मे भी वक्त की पाबन्दी....भरपेट खाने का मजा नियमित समय के साथ...यह बात काम की बात सिद्ध हो अतः एक माह का नियमित कार्यक्रम "दो केले, प्रतिदिन, एक माह तक"....सेवन करना होगा...सेवन शब्द अपने-आप मे सात्विकता को समर्पित है...जैसे सम्राट...शब्दो का बाज़ीगर....जैसे स्टाम्प पर लिखा जाता है पुरे होशो-हवाश मे लिखता हूँ कि माफ़ करना मैं नशे मे हूँ, और शास्त्र कहते है....मदहोश, होश में आ....दो केले खाने का काम अकेले करना है....यकीनन सारे हैप्पीनेस हार्मोन्स बढ़ेंगे....तब ख़ुशी भी बढ़ेगी....और अंदरूनी शक्ति भी बढ़ेगी....अर्थात कंसंट्रेशन तथा मेमोरी भी बढ़ेगी...और इसकी आवश्यकता 24x7 मतलब 365 days हर उम्र वाले को लगती रहती है....यह ना हो तो बोर होने की बीमारी लगने का डर....आखिर महामारी की चपेट मे गेंहू के साथ धुन भी पीस जाता है....और भीड़ मे गधे-घोड़े एक समान....साथ-साथ....आमने-सामने फिर भी नही...घोड़ा कभी वार नही करता है, बस तेज दौड़ता है...अपनी धुन मे....तीर की तरह....जबकि धनुष अपनी जगह ठीक घुड़सवार के समान....स्थिर....जड़त्व को धारण करने की अदम्य क्षमता.....बातों-बातों में....खेल-खेल मे....चलते-फिरते....सादर नमन्...जय हो..."विनायक-चर्चा" हेतु हार्दिक स्वागत....विनायक समाधान @ 91654-18344...INDORE/UJJAIN/DEWAS...