Monday 26 October 2015

जय हो...."जय गजानन्द. सदा रहे आनन्द".....'जय गणेश देवा. माता जाकि पार्वती- पिता महादेव'......

 ‘सादर-वन्दे’......सभी मित्र बने ‘ऊपर-वाले’ के नेक ‘बन्दे’....मात्र ‘दुआ’....करने पर ही अनुभव सम्भव...और अनुभव संपन्न तो आनन्द सुनिश्चिंत संपन्न...Leave Me Alone...यह किस स्थिति में किसी को कहा जाता है...अवश्य गौर करने लायक हो सकता है...सायकल चलाने के लिये कोई किताब कहाँ मिल सकती है ? या किस स्कूल में अच्छा सिखाया जाता है ?....इन प्रश्नों के उत्तर तैयार करने में बहुत मशक्कत चाहिए...इससे तो दो-चार चोट खाकर आसानी से सायकल सीखना आसान है....ठोकर खाकर ठाकूर बनने की कहानी के हीरो कोई और नहीं...मात्र स्वयं....और नई शुरुआत में हम सायकल को किसी हेलीकाप्टर से कम नहीं समझते है....वह तो जब गाडी पंचर होती है तो समझ में आता है कि हेलीकाप्टर तो सर के ऊपर उड़ता है...चलता है पेट्रोल से, मगर उड़ता हवा में है....और सायकल चलती हवा से, मगर चलती है जमीन पर....गिरत-पडत तो इसमें भी होती है पर सिर्फ बचपने में....मात्र दो-चार घाव जो हवा ही हवा में ठीक हो जाते है.....दवाखाने जाते-जाते.....मगर निशानी जरुर रह जाती है....गहरी-छाप....मात्र यह कहने के लिये कि गलतियाँ दोहराई नहीं जाती है...मात्र इसी सीख पर पर या गुरु-मन्त्र के आधार पर किसी भी मामूली गैरेज का 'छोटू' आखिर एक न एक दिन "उस्ताद" बन ही जाता है....और मामूली 'गैरेज' को खास 'कारखाने' में बदल सकता है....जहाँ एक 'छोटू' नहीं अनेक "छोटे-सरकार" चाहिये....मात्र सहज परिश्रम करने के लिये...."विनायक-परिश्रम".....जैसा सचमुच के छोटे-सरकार द्वारा किया गया...."माता-पिता" की परिक्रमा......धन्य हो वह सम्पूर्ण परिधि.....सम्पूर्ण वायुमंडल...मात्र एक आकाशवाणी....."जय गणेश देवा, माता जाकि पार्वती-पिता महादेवा"....मात्र मित्रता से महादेवी तथा महादेव दोनों को प्रभावित करने की सिद्धि....साधारण कार्य....आखिर कर दिखलाया....और असाधारण नाम पाया...."मंगल-मूर्ति, बुद्धि-दाता".....हर-कोई इनके गुण गाता....और हर-कोई चाहता सफलता की यात्रा...."विनायक-यात्रा"....सहज-परिश्रम....जैसे सायकल की यात्रा....सहज-पहुँच....यत्र-तत्र-सर्वत्र....साधारण मगर अपना आनन्द....सत्यम शिवम् सुन्दरम्”.....सहज “सत्यमेव जयते”.....सिर्फ हवा से बात करने का ज़ज्बा.....हवा में उड़ने का दुस्साहस हरगिज नहीं....जमीन पर बैठने का फायदा यह कि गिरने का डर कदापि नहीं.....जमीन से जुड़ने का मतलब अपनों को भूलने की भूल हरगिज नहीं....सिकन्दर जमीन पर युद्ध करके सिकन्दर कहलाया....विमान तो राजा रावण के पास भी अनेक थे....पर वह आज भी जमींन पर ही जलाया जाता है.....'सेर को सवा सेर' मिल ही जाते है परन्तु मन तो स्वतः 'सवा-मन' हो जाता है...शायद इसीलिए मन को काबू में रखा जाता है...यह सार्थक करने के लिए...."मन चंगा तो कठौती में गंगा"....सादर नमन....जय हो....हार्दिक स्वागत....जय-गुरुवर....प्रणाम...इस 'प्रण' के साथ कि 'प्रमाण' में 'प्राण' बसे...Just Because Of You...."अणु में अवशेष"....जय हो..."विनायक समाधान"...@...91654-18344....Just An idea.....To Feel Or Fill..... To Fit With Faith....Just For Prayer..... Just for Experience....INDORE / UJJAIN / DEWAS....










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