Saturday 31 October 2015


“स्वर्णिम-व्यवसाय का अवसर”....‘आओ इसका पता लगाये’....पाठ—एक....”बाल-भारती”....कक्षा--मालुम नहीं....कौन है ‘वो’ ?...जिसके बारे में सब कहते है...’वो है”.....अनन्त नाम....अनन्त परिभाषा...सार्वजानिक हो कर भी अनन्त रहस्य....आदि से अनंत तक...अनेक विरोधाभास....परन्तु वह है कि विचलित ही नहीं....टस से मस नहीं...किसी भी नाम से पुकारो, कोई विरोध नहीं.....प्रारम्भ से अनंत तक...सब को सब-कुछ करने के साथ कहने-रहने-सहने की स्वतंत्रता....हमेशा के लिए...ज्यादा पीछा करने पर कहता है...”स्वयं अपने मस्तिष्क का उपयोग करो, मैने तो कर लिया, स्वयं उपयोग...’स्वयं तुम्हे मस्तिष्क प्रदान कर’....मत करो पीछा मेरा....काम करने दो....फुरसत नहीं....कारण या व्यवसाय कुछ भी समझ लो....कोई फर्क नहीं पड़ता.....’मस्तिष्क को मस्तिष्क प्रदान करने में मस्तिष्क का उपयोग हो रहा है....और निरन्तर....Train your MIND….to mind your TRAIN……और पीछा करना है तो करो....कहने का, रहने का, सहने का....भले ही एक जासूस की तरह....ताकि दुसरे यह न कह सके....रहना नहीं आता, कहना नहीं आता, सहना नहीं आता.....और यह प्राप्त हो जाये तो स्वत: मेरी तरह मस्तिष्क का व्यवसाय प्रारंभ कर देना.....मेरे बारे में समझ जाओगे....कुछ-कुछ, बहुत-कुछ, सब-कुछ....मजा न आये तो नाम बदल देना...और मै जानता हूँ तुम्हे...आखिर मैंने तो मस्तिष्क प्रदान किया....समझने के बाद भी यही कहोगे...”Grant me A place to stand, i shall lift the EARTH”....संकट में घड़ी की चाल धीमी लगती है और प्रसन्नता में यही घडी पंख लगा कर उडती प्रतीत होती है....शायद यही सबसे बड़ा भ्रम है....सादर नमन....जय हो....हार्दिक स्वागत....जय-गुरुवर....प्रणाम...इस 'प्रण' के साथ कि 'प्रमाण' में 'प्राण' बसे...Just Because Of You...."अणु में अवशेष"....यही है आदेश....अतिशीघ्र दूर हो स्वयं के दोष....जय हो..."विनायक समाधान"...@...91654-18344....Just An idea.....To Feel Or Fill..... To Fit With Faith....Just For Prayer..... Just for Experience....INDORE / UJJAIN / DEWAS...







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