…..अनाथ अर्थात जिसका कोई नाथ
नहीं....नाथ अर्थात जिसका कोई मालिक नहीं...खुद मालिक....मालिक का मालिक कौन ?....तब तो
राम ही जाने क्योंकि 'राम की चिड़िया, राम
का खेत'....अब यदि मालिक है तो 'बिन
सेवक कैसा 'मालिक' ???...दो-चार
अट्ठे-पट्ठे तो बनते-बनते बन ही जाती है...मालिक की गिनती शुरू से ही कमजोर हो
सकती है....जैसे Lucky Singh ( Get Well Soon-लगे
रहो मुन्ना भाई).....और कुछ नहीं तो मिल्कियत में तनाव के कारण या उदारता के
कारण...तब तो अनाथ होने से बेहतर है...’बन्दगी’....मालिक की.....सिर्फ यह कहना है कि 'जो
हुक्म-मेरे आका'...यह याद रखते हुए कि न अलादीन, न
चिराग....न जीत, न हार....बस सेवा होती रहे
"बारम्बार"....'हे नाथ, मेरे
नाथ, मै आपको भूलू नहीं'.....और
आश्रम में मात्र 'गुरु'....दूर-दूर
तक मालिक का अता-पता नहीं....फिर भी सेवक अनेक....और 'गृहस्थ-आश्रम' द्वारा
प्रत्येक सेवक को 'मालिक' बनने
का सुअवसर....सुशासन का अधिकार...प्रत्येक को...मै 'मालिक' अपनी
मर्जी का, पर मेरा "मालिक"
कोई और....ठीक जैसे....Train Your MIND, To Mind Your TRAIN.....संकट में घड़ी की चाल धीमी लगती है और
प्रसन्नता में यही घडी पंख लगा कर उडती प्रतीत होती है....शायद यही सबसे बड़ा भ्रम
है....सादर नमन....जय हो....हार्दिक
स्वागत....जय-गुरुवर....प्रणाम...इस 'प्रण' के
साथ कि 'प्रमाण' में
'प्राण' बसे...Just
Because Of You...."अणु में
अवशेष"....जय हो..."विनायक समाधान"...@...91654-18344....Just
An idea.....To Feel Or Fill..... To Fit With
Faith....Just For Prayer..... Just for Experience....INDORE / UJJAIN / DEWAS...
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