जय हो......पर्याप्त एकान्त की तलाश में.....MOST WEL-COME......
‘खरी-खरी’....अपनों से
अपनी बात…..’खम्मा-घणी’….पुस्तकों
का ज्ञान महत्वपूर्ण होता है,
परन्तु व्यवहारिक ज्ञान तो
यत्र-तत्र-सर्वत्र....मात्र अनुभव ही आधार....किताबो में ज्ञान खोजना पड़ता है....’विनायक-अध्ययन”.....किसी भी मुसीबत या
संकट को सहन करने की शक्ति चाहिये....और यह शक्ति मात्र परमात्मा ही दे सकता
है...समय सबसे बड़ा मरहम....संकट में घड़ी की चाल धीमी लगती है और प्रसन्नता में यही
घडी पंख लगा कर उडती प्रतीत होती है....शायद यही सबसे बड़ा भ्रम है... अनावश्यक भौतिक सुविधाओं की कमि या
कटौती तथा सात्विक प्रतिबन्ध मात्र अंकुश के रूप में किसी भी घर को गृहस्थ-आश्रम
में परिवर्तित करने के लिये पर्याप्त हो सकते है...व्यर्थ की सुविधाओं की कमि से
हम तनाव पूर्ण चिंता करते है...और यदि गंभीर चिंतन किया जाय तो इन सुविधाओं के
अभाव में कोई विशेष फर्क ना पड़ता हो तो इनको त्यागना ही उत्तम कार्य हो सकता
है...सुनिश्चिंत भविष्य....किसी भी तलब का मतलब यह कि वह वस्तु जल्दी से जल्दी
चाहिये...अभी के अभी....Immediately....
Right Now.... No Delay Service....किसी
रेस्टोरेन्ट में अगर थोड़ी सी देर हो जाये तो हम सम्पूर्ण सेवा को लेकर तमाम इस
प्रकार की टिप्पणियाँ करते है जो हमारे स्वयं के घर में लागु ही नहीं होती है और
अगर होती भी है तो यह कटु-सत्य है कि हिम्मत नहीं होती....वह सब-कुछ कहने की, जो हम अकसर कहते है...आज की इस भागम-भाग
के दौर में आश्रम-वयवस्था का महत्व शायद इसलिये महत्वपूर्ण है कि यही दौर है गौर
करने का...इस विश्वास के साथ कि हर कोई अपनी आस्था को अन्त तक जीवित रखना चाहता
है...येन केन प्रकारेण...आखिर आस्था ही तो जीवन का आधार...यह शाश्वत सत्य है कि
चिंतन-मनन के लिये एकाग्रता चाहिये और एकाग्रता के लिये एकान्त...और एकान्त का
उपयोग निश्चिन्त रूप से 'सर-परस्ती' का योग है...बहुत कम मित्र है जो अपने
एकान्त का अवलोकन नहीं कर पाते है..अकेलेपन से डर लगना या बोर होना एक आम व्याधि
हो सकती है...और मजे की बात तो यह कि अकसर कहा जाने लगा है कि 'समय नहीं मिलता'...प्रत्येक को समय की कमि...और यह जग
जाहिर है कि 'समय का प्रबन्धन स्वयं का कार्य या
शत-प्रतिशत स्वयं की जवाबदारी'...एकान्त किसी भी पहलु को स्मरण करने का
पल होता है....और एकान्त में हम भूल जाते है...शवासन करना, पुस्तक पढना, स्वयं से संवाद करना, महत्वपूर्ण विषयों पर चिंतन करना, व्यस्तता को व्यवस्थित करना, स्वाध्याय करना, अध्यात्मिक चिंतन करना...एकान्त
एक-प्रयोग अनेक....
‘सादर-वन्दे’......सभी मित्र बने ‘ऊपर-वाले’ के नेक ‘बन्दे’....मात्र ‘दुआ’....करने पर ही अनुभव सम्भव...और अनुभव
संपन्न तो आनन्द सुनिश्चिंत संपन्न...Leave Me Alone...यह
किस स्थिति में किसी को कहा जाता है ?...अवश्य गौर करने लायक हो सकता है....'सेर
को सवा सेर' मिल ही जाते है परन्तु
मन तो स्वतः 'सवा-मन' हो
जाता है...शायद इसीलिए मन को काबू में रखा जाता है...यह सार्थक करने के
लिए...."मन चंगा तो कठौती में गंगा"....सादर नमन....जय हो....हार्दिक
स्वागत....जय-गुरुवर....प्रणाम...इस 'प्रण' के
साथ कि 'प्रमाण' में
'प्राण' बसे...Just
Because Of You...."अणु में अवशेष"....जय
हो..."विनायक समाधान"...@...91654-18344....Just
An idea.....To Feel Or Fill..... To Fit With
Faith....Just For Prayer..... Just for Experience....INDORE / UJJAIN / DEWAS...
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