RESPECTED FRIENDS....IT'S ALL ABOUT OUR HOME.......
”रसौडा
नी महाराजन”...’रोटी’....एक खड़ी, एक पड़ी, एक छमाछम नाच रही...सहज नृत्य.....देख
तमाशा रोटी का...जिन्दगी
के कुछ रंगों को समेटकर टूटे-फूटे शब्दों में सहेजने का प्रयास, बस वही लिखने का प्रयत्न....शब्दों के
सहारे मुस्कुराने की कोशिश..... बहुत बड़ी
"डाइनिंग-टेबल"...उस पर कोई अकेले.....पंगत में अकेले....नितांत अकेले
भोजन करे तो क्या पर्याप्त भोजन कर पाने में पूर्ण सक्षम ???....मजदूर भी नियत समय से साथ-साथ भोजन
करते है....भर-पेट खा कर, भर-पुर मेहनत की क्षमता....पर्याप्त कला...पर प्रश्न
पर्याप्त भोजन का है...यह प्रश्न खुद से..और उत्तर की
अपेक्षा भी स्वयं से...स्वयं की उपेक्षा लगभग नामुमकिन....यह विरोधाभास कि नितांत
अकेले यदि ‘भजन’ हो तो पर्याप्त ‘आनन्द’ प्राप्त करने में पूर्ण सक्षम....क्रिकेट
के मैदान में तो टीम का ही महत्व है...अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता....और रणवीर मैदान
नहीं छोड़ता....रणजीत रण जीत कर रहता है..... आदमी एक वर्ष तक के भोजन दोष से
लगभग-मृत्यु-सा महसूस कर सकता है....व्रत, उपवास या एक-आसन तो....सहज
संकल्पों की श्रृंखला... सबके घर में आटे का डिब्बा...और
दाने-दाने पर लिखा है, खाने वाले का नाम.....सदैव निष्पक्ष वाणी....और अनिवार्य रूप से
प्रत्येक प्राणी...अन्न का 'अधिकारी' अर्थात भोजन का 'अधिकारी'...यत्र, तत्र, सर्वत्र....."भूखा
कोई नहीं सोता"....भला नींद आना कैसे सम्भव ?...कमि-पेशी सिर्फ अधिकारी की
जिम्मेवारी...क्योंकि बस एक अधिकारी बराबर दस....कम से कम....सहज शून्य को भी लाद
कर....कहलाये "दस-नम्बरी"...मात्र एक अधिकारी...प्रत्येक गुणित दस
बराबर...सहस्त्र-आधार...और स्त्री प्रत्येक युग की अधिकारी...सर्व-प्रथम भोजन
अधिकारी....”भोजन-शाला प्रभारी”...”रसौडा नी महाराजन”...प्रत्येक कोण से
सशक्त....जो छुट्टी की भी छुट्टी कर दे...अच्छे-अच्छों की छुट्टी कर
दे....अच्छे-भले पहलवान को भी भूख से चक्कर आने लगते है....”माँ अन्नपूर्णा” को
अन्न के दाने-दाने पर गर्व होता है....प्रत्येक दाना सहज
‘अन्न-देवता’....दाने-दाने पर लिखा है नाम....उनका जो उर्जा ग्रहण करना चाहते या
जो आशीर्वाद प्रदान करना चाहते है....पल-पल, प्रति-पल, हर-पल....स्वयं सहज
नत-मस्तक....पुनर्जन्म में सहज-कृपा....’अनुकम्पा’.....हे माँ....तू नहीं तो मै
नहीं....तू है तो सब-कुछ.....परिश्रम ही तेरा रहस्य...और मै परिश्रम का अंध-भक्त...तू
नहीं तेरी भक्ति कहे...’जियो और जीने दो”....खुद भी जाने, औरो से भी कहे....’भोजन
के अधिकारी, एक से भले दो’....कठोर या उदार...’बिन सहकार, नहीं उद्धार’.....सहज-सहिष्णु....काम
करते रहो, सीख जाओगे....मित्रों की मदद करते जाओ, बड़े आदमी बन
जाओगे.....बेरोकटोक.....बेहिचक....बेशक.....बेआवाज...लेकिन इमानदारी से....बेईमानी
सम्भव नहीं...वो देख रहा है क्योंकि "वो है"...”उच्च-अधिकारी”....स्थान
की दुरी को भी ज्ञान की नजदीकी से समीप करे...स्त्रीत्व का ज्ञान तीक्ष्ण....दुनिया
गोल है अर्थात 'शून्य'.....और यह सौ-टका सही कि ‘चपाती’ भी गोल....जहाँ से शुरू पुन:
वंही....और शून्य सहज दस को दस लाख बनाये…...और स्त्री अर्थात माँ अन्नपूर्णा कहे
यही.....मै 'मालिक' अपनी मर्जी की, पर मेरा "मालिक" कोई
और....ठीक जैसे....Train Your MIND, To Mind Your TRAIN.....और स्त्री की सहज चंचलता यही कि ‘संकट में
घड़ी की चाल धीमी लगती है और प्रसन्नता में यही घडी पंख लगा कर उडती प्रतीत होती
है....शायद यही सबसे बड़ा भ्रम है....और भ्रम का निराकरण सहज ‘प्रार्थना’.....सादर
नमन....जय हो....हार्दिक स्वागत....जय-गुरुवर....प्रणाम...इस 'प्रण' के साथ कि 'प्रमाण' में 'प्राण' बसे...Just Because Of
You...."अणु में अवशेष"....यही है आदेश....अतिशीघ्र दूर हो स्वयं के
दोष....जय हो..."विनायक समाधान"...@...91654-18344....Just An idea.....To
Feel Or Fill..... To
Fit With
Faith....Just For Prayer..... Just for Experience....INDORE / UJJAIN / DEWAS....
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