Saturday 17 October 2015


….."राम की चिड़ियाँ, राम का खेत"....शब्दों के खेत में शब्दों की चिड़ियाँ...यह कहावत निरर्थक कि....'चिड़ियाँ चुग गयी खेत, अब का होत'....दूर-दूर तक पश्चाताप नहीं....चारो और गर्व ही गर्व...कहते है....'हकीम लुकमान' के पास एक 'सिद्ध-विद्या' थी, उस आधार पर वे प्रत्येक वनस्पति औषधीय पौधे से साक्षात् चर्चा करते थे...परन्तु यह भी सुना है कि शक का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं था...शत-प्रतिशत लाइलाज...यह भी बहस का विषय है की शक बिमारी है भी या नहीं ???...शक अनभिज्ञ या अप्रत्यक्ष या अस्पष्ट पहलुओं पर हो सकता है...शक कल्पनाओं का नकारात्मक विस्तार हो सकता है...अब ईश्वर के बारे में भी अनेक धारणाये हो सकतीं है....परन्तु हम है कि कभी शक करने की हिम्मत तक नहीं करते...और जब हिम्मत जुटाते है तो अक्सर या कभी-कभी मन में विचार आता है कि..."मानो तो तो, मै गंगा माँ हूँ....न मानो तो बहता पानी'...मानव एक साधारण पत्थर पर छैनी-हथोड़ी चला कर मूर्ति तैयार करता है...मंत्रोच्चार द्वारा प्राण-प्रतिष्ठा करके मूर्ति को असाधारण घोषित करता है...और फिर "मजा नी लाइफ"...सहज प्रार्थना...परम आनन्द...हमेशा के लिये....सुना है---‘खड्ग सिंह के खड़कने से खड्कती है खिड़कियाँ....और खिड़कियों के खड़कने से खडकता है खडग सिंह’...मजा तो बहुत आता है परन्तु समझने का प्रयास अवश्य करना होगा...स्वयं को...OUTPUT का चमत्कार से कोई लेना-देना नहीं....लेना न देना, मगन रहना...मात्र प्रतिशत % की भाषा.....तब सहज INPUT क्या हो ???..... जय हो...सादर नमन....हार्दिक स्वागतम...मात्र अनुभव करने के लिए....कब ? क्यों ? कैसे ?....अनादि से अनन्त...सहज स्व-सत्संग....सुनिश्चिंत आनन्द...निश्चिन्त प्रारम्भ...विनायक शुभारम्भ....ॐ गं गणपतये नम:....विनायक समाधान” @ 91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)…









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