..... सहज युग्म...स्त्री-पुरुष...पति-पत्नी...सूर्य-चन्द्र...विवाद कब
शुरू हो कर ख़त्म हो जाते है, पता ही नहीं लगता है...रूठने-मनाने में
जिन्दगी कब गुजर जाती है ?...शायद इसीलिये कहा है-'दो पल की है
जिन्दगी'....एक पल तुम्हारा-एक पल मेरा...ओपचारिकता का पल पूर्ण
नदारद....सच मानिये जोड़िया आसमान में बनती है या राम मिलायी
जोड़ी....सीता-राम, राधे-श्याम, लक्ष्मी-नारायण, उमा-शंकर.......या रब ने
बना दी जोड़ी....और स्त्री तो स्वयं में एक युग्म...एक युग बनाने में
सक्षम...रिद्धि-सिद्धि......शादी हो जाती
है या बनाना पड़ती है या कर दी जाती है.....जीवन का अनिवार्य पहलु जिसे
लड्डू के नाम से भी जाना जाता है....दो पल अर्थात साल, महीने, दिन...घड़ी की
अपनी चाल...समय को पहचानने का अवसर...मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने
हमारा....हर दिन नया सवेरा...शिकवा-शिकायत, ज्वार-भाटा...फिर भी सदैव
गतिमान जिन्दगी...शायद यही प्रेम...खुद की शिकायत खुद दूर करना है...विवाद
सम्पूर्ण रूप से बल-हठ के समान...एक ही चीज के लिए....प्रेम...खुद की दूकान
से कुछ खरीदना इतना भी आसान नहीं, जितना हम समझते है......आकांक्षाओं को
उपलब्धियों में परिवर्तित करने के लिए PARTNER या साथी तो अवश्य
चाहिए....और यंहा बात ‘जीवन-साथी’ की हो रही है....सुना है---‘खड्ग सिंह के
खड़कने से खड्कती है खिड़कियाँ....और खिड़कियों के खड़कने से खडकता है खडग
सिंह’...मजा तो बहुत आता है परन्तु समझने का प्रयास अवश्य करना
होगा....समुद्र की गहराई तो गोताखोर ही मापने की हिम्मत कर सकता
है....अनादि से अनन्त...सहज स्व-सत्संग....सुनिश्चिंत आनन्द...निश्चिन्त
प्रारम्भ...विनायक शुभारम्भ....ॐ गं गणपतये नम:....”विनायक समाधान” @
91654-18344...(INDORE/UJJAIN/DEWAS)…
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